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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 9

आधुनिककाल की पृष्ठभूमि : सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक

 

प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ सम्वत् 1900 से माना है। वस्तुतः आधुनिक हिन्दी साहित्य का प्रादुर्भाव भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से होता है। हिन्दी साहित्य में नवयुग की चेतना का विकास और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का उदय दोनों ही घटनाएँ एक-दूसरे से घुली मिली हैं। हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में नवयुग की चेतना का विकास बड़ी महत्वपूर्ण घटना है। इसका बीज इसी युग की राजनीतिक चेतना, सामाजिक अवस्था, धार्मिक परिस्थितियों एवं साहित्यिक पृष्ठभूमि में मिलता है।

राजनीतिक चेतना - सन् 1657 के प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों की नीव भारत में दृढ़ कर दी और धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन सारे भारत में फैल गया। ज्यों-ज्यों कम्पनी का प्रभाव बड़ा त्यों-त्यों उसके अधिकारियों के अत्याचार भी बढ़े। सन 1854 में झाँसी को 'लैप्स की नीति' के द्वारा कम्पनी ने अपने शासन में ले लिया। देश में प्रजा और देशी राजा दोनों ही कम्पनी के अत्याचार पूर्ण शासन से घबराये हुए थे। राजनीतिक चेतना का दूसरा काल सन् 1905 से आरम्भ होता है, अब काँग्रेस आवेदन और प्रार्थना की नरम नीति को छोड़ने लगी थी, और उसने 'स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। की घोषणा कर दी। इसी समय काँग्रेस में दो दल हो गए गरम दल तथा नरम दल। सन् 1909 में मिण्टो मार्ले सुधार कानून पास हुआ इसने मुसलमानों को अलग प्रतिनिधित्व दिया, जिससे हिन्दू मुस्लिम एकता को बड़ी ठेस पहुँची। बड़े प्रयत्न से काँग्रेस के दोनों दलों में भी एकता हो गई। भारत ने अपनी विदेश नीति के लिए वह प्रशंसा का पात्र है और अपनी विदेश नीति में तटस्थता को सर्वाधिक महत्व दिया है। वह गुटों में बंधा नही हैं सन् 1975 में श्रीमती इन्द्रागाँधी ने राष्ट्र को अनुशासित करने के लिए आपातकालीन स्थिति घोषित करके एक क्रान्तिकारी कदम उठाया था, जिसके कुछ दूरगामी एवं स्वस्थ्य प्रभाव हुये।

सामाजिक पृष्ठभूमि - भारत में अंग्रेजी शासन एक महत्वपूर्ण घटना है, जिससे भारत के सामाजिक जीवन में जो चेतना आई उसका कारण आंग्ल-भारतीय सम्पर्क है। सामाजिक क्षेत्र की परम्पराओं एवं रूढ़ियों पर आंग्ल सम्पर्क ने आघात किया जो भारतीय दृष्टिकोण परिवर्तन करने में सहायक सिद्ध हुआ। हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल के द्वितीय उत्थान में सामाजिक क्षेत्र की अशान्ति दूर हो गई और नवीन व्यापक दृष्टिकोण जीवन के नवीन मूल्य के रूप में स्थापित हो गया। यही कारण है कि इस युग में पूर्व युग के वाद-विवाद, आलोचना - प्रत्यालोचना का प्रायः अभाव है। इस युग के विचारकों ने समाज सुधार की आवश्यकता को बहुत महत्व दिया। और बड़े शान्त चित्त से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के सुझाव दिये। इस कारण इस युग के विचारकों में मानवता के प्रति विस्तृत दृष्टिकोण का प्रादुर्भाव हुआ। देश के महान विचारकों ने निर्धन और शोषित समाज के प्रति संवेदना और नारी की स्थिति के प्रति करुणा व्यक्त की, उसकी आँचल में दूध और आँखों में पानी वाली स्थिति का चित्रण करके गम्भीर सहानुभूति एवं उच्च भावना अभिव्यक्त की।

आर्थिक पृष्ठभूमि - अब तक हमने आधुनिककाल की सामाजिक अवस्था का वर्णन किया। राजनीतिक चेतना और सामाजिक अवस्था के मूल में देश की जनता की आर्थिक स्थिति रहती है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता युद्ध के पश्चात् सत्ता का हस्तान्तरण हुआ और यह आशा बँधी कि देश की आर्थिक व्यवस्था में सुधार होगा, क्योंकि एक व्यापारी कम्पनी से तो इस प्रकाश की आशा करना समीचीन नहीं था। चतुर्थ उत्थान में वर्ग संघर्ष ने और जोर पकड़ा। बेरोजगारी, महँगाई, पूँजी का कुछ लोगों के पास जमा होना और देशव्यापी दरिद्रता से भारतीय आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ी। पूँजीवाद के मानव समाज में शुद्ध आर्थिक सम्बन्ध स्थापित कर दिये थे। इसीलिए श्रमिक वर्ग के चेतना का आधार भी शुद्ध आर्थिक स्वार्थ थे। वे अपना संगठन दृढ़ कर रहे थे। धीरे-धीरे इस युग के विचारकों का ध्यान यथार्थ की कठोर परिस्थितियों एवं निम्नवर्गी की दशा ने पूर्ण रूप से अपनी ओर केन्द्रित कर लिया। वर्ग संघर्ष से व्यापक जागृति हुई और दलितवर्ग विद्रोह करने के लिए तत्पर हुए। आर्थिक सम्बन्धों में कल्पना और भावुकता न्यून से न्यूनतम होती गई और यथार्थवाद को महत्व मिला।

सांस्कृतिक पृष्ठभूमि - मुगलों के पराभव होने के साथ-साथ ही हिन्दू जाति की कट्टरपंथी शाखा का ह्रास होने लगा। नवयुग की चेतना की सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात। धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण में परिवर्तन हैं। इस युग में वर्तमान सांस्कृतिक भावना का प्रभाव पड़ता है। अन्य धर्मों की सहिष्णुता इस युग की धार्मिक परिस्थितियों की विशेषता है उपासना की पद्धति पर भी परिवर्तन हुआ। द्वितीय उत्थान काल में सांस्कृतिक चेतना का प्रमुख आधार मानवतावादी विचारधारा बनी, धीरे-धीरे इस मानवतावादी विचारधारा का विकास हुआ। इस प्रकार राष्ट्रीय एकता की मांग का नया अध्याय खुला और आज धर्म का रूप प्राचीनकाल से बहुत कुछ बदल गया है। भारतीय जनतन्त्र ने इस दिशा में धर्मनिरपेक्ष शासन को अपना आदर्श बनाया। श्रीमती इन्द्रा गाँधी ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं। और साम्प्रदायिक प्रवृत्ति का निर्मूलन करने के लिए कारगर कदम उठाएँ हैं।

1857 की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण काल

सन् 1857 में भारतियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध छेड़ा एक वर्ष भी नहीं बीत पाया और दासता के प्रति किया गया विद्रोह दबा दिया गया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त करके ब्रिटेन की सरकार ने भारत का शासन अपने हाथ में ले लिया। महारानी विक्टोरिया ने घोषणा की, जिसमें भारतवासियों को बड़े मधुर आश्वासन दिये गये। भारतियों में एक नवीन चेतना और आशा की लहर दौड़ गई। कम्पनी के अत्याचारपूर्ण शासन और डलहौजी की नीति को देखते हुए विक्टोरिया का शासन भारत की जनता के लिए सन्तोष का विषय था, इसीलिए विक्टोरिया के मरने पर भारतवासियों ने बहुत दुःख हुआ। 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में देश की जनता में अंग्रेजी राज के प्रति राज्य भक्ति दिखाने के और उसके प्रति सुधार के प्रार्थना करने की प्रवृत्ति थी, जिससे अंग्रेजी शासन का बोलबाला हो गया। इधर इण्डियन नेशनल काँग्रेस ने भारतीयों की राजनीतिक चेतना को और अधिक विकसित किया। कॉंग्रेस की स्थापना से जनता के सामने कुछ राजनीतिक सिद्धान्त उपस्थित हुए, जिनकी प्राप्ति के लिए देश की जनता में अदम्य उत्साह छा गया। इटली के स्वतन्त्रता युद्ध, आयरलैण्ड के होमरूल आन्दोलन तथा फ्रांस की राज्यक्रान्ति के इतिहास ने जनता की विरोधी भावना के और भी इच्छुक हो गए। हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल में नव युग के इस राजनीतिक चेतना का प्रभाव भारतेन्दु युग में दृष्टिगोचर होता है।

भारतेन्दु युग पुनर्जागरण काल - भारतेन्दु युग तथा पुनर्जागरण काल का उदय हिन्दी कविता के लिए नवीन जागरण के संदेशवाहक के युग के रूप में हुआ था, किन्तु इसके सीमांकन के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के रचनाकाल को दृष्टिगत में रखकर संवत् 1925 से 1950 की अवधि को नयी धारा अथवा प्रथम उथान की संज्ञा दी है। इस काल को हरिश्चन्द्र तथा उसके सहयोगी लेखकों के कृतित्व से समृद्ध माना है, किन्तु उनके द्वारा निर्धारित काल अवधि से कुछ अन्य लेखकों का वैमत्य है। यह उल्लेखनीय है कि भारतेन्दु द्वारा सम्पादित पत्रिका 'कविवचन सुधा का प्रकाशन 1767 ई. में हुआ था, अतः भारतेन्दु युग का उदय 1925 से मानना उचित है। इसी तर्क का अनुसरण करते हुए सरस्वती के प्रकाशन वर्ष 1900 ई. को भारतेन्दु युग की परिसमाप्ति का सूचक माना जा सकता है। यह ठीक है कि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के देहावसान के साथ ही भारतेन्दु युग की समाप्ति मानकर उसके समकालीन कवियों द्वारा बाद में रचित कृतियों को ध्यान में रखते हुए इस काल की व्याप्ति 1900 ई. है। इसी भाँति किसी नये युग का शुभारम्भ भी सहसा नहीं होता, उसके स्वरूप निर्माण की प्रक्रिया के बीज दस-बीस वर्ष पहले तक के साहित्य में विद्यमान रहते हैं। 1943 से 1667 ई. तक का कृतित्व न तो पूर्णतः रीतिकाल के प्रभाव क्षेत्र के अन्तर्गत आता है और न इसमें भारतेन्दु युग की पुर्नजागरण प्रवृत्तियाँ विद्यमान हैं, अतः इसका अनुशीलन भारतेन्दु युग की पृष्ठभूमि के रूप में किया जाना चाहिए। भारतेन्दु के पूर्ववर्ती कवियों की भाषा ब्रजभाषा रचनाओं को तीन वर्गों में विभाजिक किया जा सकता है - भक्तिकाव्य, श्रृंगार रस का काव्य और रीति निरूपण।

उन्होनें प्रबन्ध और मुक्तक दोनों शैलियों में लगभग अट्टाइस कृतियों की रचना की थी। मुद्रण यन्त्रों के विस्तार और राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए उचित वातावरण बन सका - समाचार पत्रों के प्रकाशन ने भी जन-जागरण में योगदान दिया। परिणामस्वरूप तत्कालीन साहित्य चेतना, मध्यकालीन रचना प्रवृत्तियों तक ही सीमित न रहकर नवीन साहित्य दिशाओं की ओर उन्मुख होने लगी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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