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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

अथवा
'केशवदास की रामचन्द्रिका 'छन्दों का अजायबघर' है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में केशवदास की साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर -

केशवदास का जीवन परिचय - केशवदास का जन्म सं0 1612 (सन् 1555 ई0) में ओरछा के प्रसिद्ध ब्राह्मण परिवार में पं. काशीनाथ के घर हुआ था। उनके पितामह का नाम पं. कृष्णदत्त था। केशवदास के पिता एवं पितामह संस्कृत के विद्वान थे इसलिए उन्हें भी संस्कृत का अच्छा ज्ञान हो गया था। केशवदास ओरछा नरेश राजा इन्द्रजीत के दरबार में रहते थे। इन्द्रजीत के दरबार की एक वेश्या को शिक्षा इन्होंने ही दी थी और इसके उपरान्त कविप्रिया नामक ग्रन्थ की रचना की। कुछ विद्वान इन्हें तुलसीदास का समकालीन मानते हैं। इनकी मृत्यु सं0 1674 (सन् 1617 ई0) में हुई थी।

 

साहित्यिक व्यक्तित्व - महाकवि केशवदास रीतिवादी काव्यधारा के प्रवर्तक एवं प्रचारक समझे जाते हैं। उन्होंने कविता के भाव पक्ष को अधिक महत्व देने के स्थान पर कला पक्ष की प्रधानता को स्वीकार किया और तत्कालीन काव्यधारा के क्षेत्र में एक नये युग का सूत्रपात किया। इनके काव्य की कलात्मक विलक्षण है। 'रामचन्द्रिका' नामक कृति में उनकी पाण्डित्यपूर्ण काव्य- कला के दर्शन होते हैं। उन्होंने संस्कृत के अनेक छन्दों एवं अलंकारों को ब्रजभाषा में ढालकर हिन्दी काव्य का अनोखा अलंकृत रूप प्रस्तुत किया। रस विवेचन, नायिका भेद, अलंकार एवं छन्दों के शास्त्रीय स्वरूप से काव्य को अलंकृत करने वाले केशवदास, भाव एवं मार्मिक अभिव्यक्ति की दृष्टि से अधिक सफल नहीं रहे हैं। इस कारण बहुधा लोग उन्हें 'हृदयहीन कवि' कहते हैं। यद्यपि अनेक विद्वानों ने उन्हें हृदय हीन कहे जाने पर आपत्ति की है, तथापि यह सत्य है कि केशवदास के काव्य में भाव पक्ष का अभाव था और यह अभाव उनके काव्य में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि केशव ने काव्य के शास्त्रीय अलंकृत स्वरूप की रचना करने में ही अपना सारा ध्यान केन्द्रित कर दिया, जिसके कारण उनको काव्य के भाव पक्ष को विकसित करने का समय ही नहीं मिला।

वस्तु-निरूपण, शब्दयोजना, अलंकार-योजना एवं छन्द - विधान के शास्त्रीय रूप को अपने काव्य में स्थान देकर काव्य का शास्त्रीय रूप प्रस्तुत करने वाले केशवदास काव्यशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित समझे जाते हैं।

कृतियाँ - केशवदास 16 ग्रन्थों के रचयिता माने जाते हैं। इनमें से आठ ग्रन्थ असंदिग्ध रूप से इन्हीं के लिखे हुए माने जाते हैं, शेष की प्रामाणिकता अभी संदिग्ध है। इनकी प्रामाणिक रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) रामचन्द्रिका - यह ग्रन्थ राम-सीता को इष्टदेव मानकर पाण्डित्यपूर्ण भाषा-शैली एवं छन्द में लिखा गया है।
(2) विज्ञान गीता - यह एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है।
(3) वीरसिंह देव - चरित।
(4) जहाँगीर - जस-चन्द्रिका।
(5) नख-शिख।
(6) रतन बावनी।
(7) रसिकप्रिया - इसमें रस विवेचन किया गया है।
(8) कविप्रिया - इसमें कवि कर्तव्य एवं अलंकार का वर्णन है।

काव्यगत विशेषताएँ - यह एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है। आचार्य केशवदास रीतिकाल के प्रवर्तक माने जाते हैं। केशवदास के चमत्कार को काव्य का सर्वस्व और अलंकार को काव्य की आत्मा माना है। इस दृष्टि से उनके काव्य में कला पक्ष की अपेक्षा भाव थोड़ा दब सा गया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने केशव के काव्य पर अपना मत व्यक्त करते हुए लिखा है कि केशव को कवि हृदय नहीं मिला। उनमें वह सहृदयता और केशव के काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(अ)भावपक्षीय विशेषताएँ यह निम्न प्रकार है-

(1) भाव व्यंजना - किसी भी सरस काव्य के लिए भाव-व्यंजना अनिवार्य है। भाव-व्यंजना के लिए कवि का सहृदय होना आवश्यक है। यद्यपि अनेक आलोचकों ने केशवदास को हृदयहीन सिद्ध करने का प्रयास किया है, तथापि उनके काव्य में अनेक ऐसे स्थल मिल जात हैं, जो उन्हें सरस और सहृदय कवि सिद्ध कर सकते हैं। केशव कृत 'रामचन्द्रिका' में विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा हेतु राम को लेने के लिए आते हैं। उस स्थल पर दश्रथ की विवशता देखने योग्य है। दशरथ के लिए राजसिंहासन पर बैठना भी कठिन हो जाता है। इसी प्रकार सीता हरण के पश्चात् राम का जो विलाप केशव ने अंकित किया है, वह भी विरही मानव मन का सजीव चित्र प्रस्तुत करता है। जब रावण मेघनाद के कटे हुए सिर को देखता है तो वह स्वयं को अत्यधिक असहाय अनुभव करता है। पुत्र-शोक के कारण वह अत्यधिक निराशा एवं अवसाद की मनःस्थिति में पहुँच गया है। अशोक वाटिका में सीता को अपनी कुशलता का ही नहीं, राम कुशलता की भी चिन्ता है। वे राम की मुद्रिका से राम की कुशलता पूँछती हैं

कहि कुशल मुद्रिके रामगात सुभ लक्ष्मण सहित समान तात॥

(2) रस - निरूपण आचार्य केशवदास मुख्यतः अलंकारवादी थे। अलंकारों के प्रयोग में उनका विश्वास अधिक था। उनका सिद्धान्त था -

भूषण बिनु न बिराजई, कविता वनिता मित्त।

इसलिए रस-निरूपण में वे अधिक सफल नहीं रहे है। उनके काव्य का रस पक्ष कमजोर रह गया है। केशवदास ने श्रृंगार, वीर रस, करुण और शान्त रसों का अधिक प्रयोग किया है। अन्य रस भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर हो जाते हैं, परन्तु उपर्युक्त रसों में ही इनका मन अधिक रमा है। इनमें से भी शृंगार रस कवि को अधिक प्रिय है क्योंकि केशव रसिक वृत्ति के व्यक्ति थे। शृंगारपरक अनुभावों का कवि ने सहज, स्वाभाविक और आकर्षक वर्णन किया है। अनन्य प्रेम में मग्न राधा अपनी सुध-बुध ही भूल गयी है

केशव चौकति सी चितकै छतिया धरकै तरकै ताकि छाँही।

वीर रस भी कवि को प्रिय है। रामचन्द्रिका में अनेक ओजपूर्ण प्रसंग देखे जा सकते हैं। शत्रुघ्न एवं लव के बीच हुए युद्ध का एक चित्र देखिए -

घोर चमू चहुँ ओर त गाजी। कौनेहि रे यह बाँधियो बाजी॥
बोलि उठे लव मैं यह बाँध्यौ। यो कहि कै धनुसायक साध्यौ॥

कारुणिक प्रसंगों का भी कवि ने बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है। लव की मूर्च्छावस्था का समाचार पाकर सीता व्याकुल होकर अचेत हो जाती हैं। उनकी अवस्था को व्यक्त करती हुई कवि की उक्ति है -

मनो चित्र की पुत्तिका, मन क्रम वचन समेत।

इस प्रकार श्रृंगार, करुण एवं वीर रस के विविध दृश्य केशव ने अंकित किये हैं। केशव कृतं 'विज्ञान - गीता' में शान्त रस का प्रयोग हुआ है। अन्य रस भी यत्र-तत्र देखे जा सकते हैं, परन्तु रस- परिपाक की दृष्टि से केशव को अधिक सफलता नहीं मिली है।

(3) प्रकृति चित्रण - केशवदास ने काव्य और प्रकृति के मध्य अटूट सम्बन्ध माना है, यहाँ तक कि प्रकृति चित्रण के लिए केशव ने कहीं-कहीं बालात ही अवसर बना लिये हैं। केशव ने प्रकृति-चित्रण में परम्परागत सभी विधियों को अपनाया। उन्होंने प्रकृति का आलम्बन, उद्दीपन, आलंकारिक, बिम्ब-प्रतिबिम्ब और परिगणनात्मक रूप में वर्णन किया है। सीता से वियुक्त होने पर राम को चन्द्रमा भी सूर्य के समान दाहक प्रतीत हो रहा है। चन्दन आदि के शीतल लेप भी उन्हें आग की तरह जलाते हैं। ऐसा ही एक दृश्य देखिए -

हिमांशु सूर सो लगै सो बाद बज्र - सी बहै।
दिशा लगै कृसानु ज्यों, विलेप अंग को दहै।
विसेष काल राति सो कराल राति मानिए।
वियोग सीय को न काल लोकहार जानिए |

(4) संवाद सौष्ठव - केशवदास की 'रामचन्द्रिका' नाटकीय तत्वों से अनुप्राणित है। केशवदास दरबारी कवि थे। उन्होंने दरबार की संवादपटुता को बहुत निकट से देखा था, अतः यह स्वाभाविक ही था कि वे अपने काव्य में संवादों को प्रमुख स्थान देते। 'रामचन्द्रिका' का कथानक वस्तुतः संवादों के माध्यम से ही आगे बढ़ता है। केशव के संवादों में भावानुकूलता, वाग्वैदग्ध्य, वाक्पटुता और व्यंग्यात्मकता देखने को मिलती है। उनमें राजनीति के दाँव-पेंच भी हैं।

इस प्रकार केशव का काव्य भावपक्षीय विशेषताओं की दृष्टि से किसी भी उच्चकोटि के कवि से कम नहीं है। यद्यपि वे कला पक्ष के पण्डित हैं, तथापि उनका भाव पक्ष भी दबा हुआ नहीं है।

(ब) कलापक्षीय विशेषताएं- केशव ने अपने काव्य के कला पक्ष को जितना पुष्ट किया है, उतना भाव पक्ष को नहीं। उनके काव्य की कलापक्षीय विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है -

(1) भाषा - भाषा पर केशवदास जी का असाधारण अधिकार था। उन्होंने प्रसंगों के अनुकूल भाषा का भी प्रयोग किया है। उनकी भाषा में विषय के अनुरूप प्रसाद, माधुर्य और ओज गुण विद्यमान हैं। ओजस्विता, लाक्षणिकता तथा प्रवाह उनकी भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। केशव की भाषा ब्रजभाषा है, जिसमें बुन्देलखण्डी का पुट है। इसलिए अधिकांश आलोचकों ने उनकी भाषा को 'बुन्देलखण्डी मिश्रित ब्रजभाषा' कहना अधिक उचित समझा है। केशवदास ने पाण्डित्य प्रदर्शन और चमत्कार दिखाने के लिए संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग अधिक किया है। यत्र-तत्र अरबी- फारसी के शब्द तथा मुहावरों के प्रयोग भी देखे जा सकते हैं। यद्यपि केशव की भाषा शुद्ध साहित्यिक है, परन्तु व्याकरण की दृष्टि से उसमें अनेक दोष भी विद्यमान हैं। कवि ने शब्दों को इच्छानुसार तोड़ा मरोड़ा भी है। समग्र रूप में भाषा प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावशाली है। इस विषय में डॉ. विजयपाल सिंह का मत है कि "जो पाठक संस्कृत भाषा की प्रकृति से अनभिज्ञ हैं उनके लिए केशव की भाषा दुरूह है, क्लिष्ट है।" वस्तुतः केशव में भाव के अनुकूल भाषा का प्रयोग करने की पूर्ण क्षमता है।'

(2) शैली - शैली की दृष्टि से उन्होंने प्रबन्ध और मुक्तक दोनों शैलियों को अपनाया है। 'रामचन्द्रिका' में प्रबन्ध शैली है तो 'कविप्रिया' और 'रंसकप्रिया' में मुक्तक शैली है।

(3) अलंकारप्रियता - केशव का दृष्टिकोण था 'भूषण बिनु न बिराजई, कविता बनति मित्त' अर्थात् आभूषण के अभाव में कविता और नारी का सौन्दर्य फीका पड़ जाता है। अपने काव्य में केशव ने अलंकारों का इतना अधिक प्रयोग किया है कि उन्हें 'अलंकारवादी' कहा जाता है। उनके काव्य में रूपक, यमक, श्लेष उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, विरोधाभास, सन्देह एवं अनुप्रास आदि अलंकारों के बहुत अधिक प्रयोग हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि केशव ने अलंकारों का साधन के रूप में न करके साध्य के रूप में किया है।

(4) विविध छन्दों का प्रयोग - हिन्दी के किसी अन्य कवि ने इतने अधिक छन्दों का प्रयोग नहीं किया, जितना केशव ने किया। हिन्दी साहित्य में यत्र-तत्र उपलब्ध सभी छन्द 'रामचन्द्रिका' में प्राप्त हो जाते हैं। केशव ने तो रामचन्द्रिका के आरम्भ में ही अपना मत प्रकट करते हुए लिखा है

जागति जाकी ज्योति जग, एक रूप स्वच्छन्द।
रामचन्द्र की चन्द्रिका, बरनत हौं बहुछन्द ॥

केशव ने 'रामचन्द्रिका' में लगभग 82 प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है जिसमें 24 मात्रिक और 58 वर्णिक छन्द हैं। डॉ. बड़थ्वाल ने तो 'रामचन्द्रिका' को छन्दों का अजायबघर कहा है।

केशव को इस बात का भली प्रकार ज्ञान था कि किस भाव को व्यक्त करने के लिए कौन- सा छन्द उपयुक्त होगा। यश-वर्णन करने के लिए उन्होंने कवित्त और सवैया का प्रयोग किया, जबकि वीररस का वर्णन छप्पय में किया गया है। यद्यपि केशव चमत्कार प्रिय हैं. तथापि उनकी स्वाभाविक सहृदयता के कारण अनेक स्थलों पर भावों रसों के सर्वथा अनुकूल छन्दों की रचना मिलती है।

निष्कर्षत - केशव के काव्य में कलात्मक सौष्ठव उच्चकोटि का है। उनका कला पक्ष सशक्त, समर्थ, प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावशाली हैं।

हिन्दी साहित्य में स्थान - काव्य को काव्यशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुरूप ढालने एवं उसके वस्तु निरूपण, शब्द - योजना, अलंकार-योजना एवं छन्द - विधान आदि को नियमबद्धता प्रदान करने के लिए महाकवि आचार्य केशवदास को सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। वे रीतिकालीन युग के एक विशिष्ट कवि माने जाते हैं। हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत रीति ग्रन्थों का सृजन करने का श्रेय सर्वप्रथम उन्हीं को दिया जाता है। इसी कारण उन्हें रीतिकालीन काव्य का प्रवर्तक भी माना जाता है। काव्य के कला पक्ष पर उनका अद्भुत स्वामित्व था। उनके कला पक्ष की विलक्षणता को देखकर ही उन्हें आचार्य केशवदास के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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