लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

जीवन परिचय - बड़े आश्चर्य का विषय है कि हिन्दी साहित्याकाश के सूर्य महात्मा सूरदास का जिसमें भक्ति काव्य संगीत का अभूतपूर्व समन्वय था, जीवन वृत्तान्त पूर्णतया ज्ञात नहीं हैं। सूर-साहित्य के अन्तः साक्ष्य तथा समकालीन परवर्ती रचनाओं के बहिः साक्ष्य के आधार पर सूर को शोधकर्ता विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सम्वत् 1535 की वैशाख शुक्ल पंचमी को इनका जन्म हुआ था। इनका जन्म स्थान बल्लभगढ़ के निकटवर्ती 'सीही' नामक गाँव है। ये एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण के चतुर्थ पुत्र थे। इसके अतिरिक्त इनके माता-पिता कुटुम्बी जनों एवं बन्धु बान्धवों का कुछ भी पता नहीं है। कुछ विद्वान अकबर के दरबारी कवि रामदास को इनका पिता मानते हैं। किन्तु यह मत अब प्रमाणित हो चुका है। सूर की साहित्य लहरी में इनकी वंशावली का परिचय इस प्रकार मिलता है कि वे ब्राह्मण भट्ट थे, और चन्दबरदायी के वंशज थे किन्तु विद्वानों ने साहित्य लहरी के उस पद को जिसमें उक्त वंश का परिचय है प्रसिद्ध माना है। बहुत से विद्वान साहित्य लहरी को ही अप्रामाणिक मानते हैं।

यह तो निर्विवाद है कि सूरदास नेत्रविहीन थे। किन्तु वे जन्मांध थे अथवा बाद में अन्धे हुए थे, यह विवादग्रस्त है। सूर काव्य में दृश्य जगत् के सूक्ष्मातिसूक्ष्म यथार्थ, पारदर्शी और सर्वांगीण वर्णन को देखकर यह विश्वास नहीं होता है कि वे जन्मांध थे। इसलिए आज के अनेक विद्वान सूर की जन्मांधता पर विश्वास नहीं करते हैं, अन्यथा उनके पास जन्मांधता के विरुद्ध कोई ठोस प्रमाण नहीं है। सूरदास ने जहाँ अपने आपको जन्मांध तथा अभागा कहा है वहाँ कदाचित् उन्होंने आत्मग्लानिवश कहा है। ऐसे स्थलों में अक्षरार्थ को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए। ऐसे प्रसंगों में, लाक्षणिकता और प्रतीकात्मकता है। सम्भव है कि ज्ञान चक्षुओं के अभाव के द्योतन के लिए ऐसा कहा गया हो। सूरदास का साहित्य किसी जन्मान्ध व्यक्ति का लिखा हुआ नहीं हो सकता है। चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार सूरदास अपने बहुत से सेवकों के साथ संन्यासी वेश में मथुरा के बीच गऊघाट पर रहा करते थे। प्रभु बल्लभाचार्य जब अड़ेल से ब्रज पधारे तब गऊघाट पर सूर. ने उनसे भेंट की। बल्लभ के कहने पर सूर ने बड़ी तन्मयता से "प्रभु हौ सब पतितन को टीकौ" गाया जिसे सुनकर आचार्य जी ने कहा "जो सूरे हैके ऐसो काहे को घिघियात है। कछु भगवत- लीला वर्णन करि।' बल्लभ ने इन्हें अपने संप्रदाय में दीक्षित करके भागवत के आधार पर लीलापद रचना के लिए कहा। तत्पश्चात् सूरदास आचार्य की आज्ञा से श्रीनाथ के मन्दिर में कीर्तन करने लगे और नित्य सुललित पदों में भगवान कृष्ण की पावन लीलाओं का गान करने लगे। श्रीनाथ जी के मन्दिर से कुछ दूरी पर पारसौली नामक स्थान में सूरदास रहा करते थे। वहाँ श्रीनाथ जी के मन्दिर में आकर कीर्तन करना और सायंकाल को वापस लौट जाना उनका दैनिक कार्यक्रम था। उन्होंने लगभग अपनी 33 वर्ष की अवस्था में श्रीनाथ के मन्दिर में कीर्तन करना आरम्भ किया था और वे अपने देहावसान काल 1640 तक नियमित रूप से लीलागान में निरत रहे। 105 वर्ष के सुदीर्घ जीवनकाल में उन्होंने प्रायः एक लाख पदों की रचना की थी जो कि बाद में सूर कि कृतियों में संकलित किये गये हैं। पारसौली में गुसाई बिट्ठलनाथ, रामदास, कुम्भनदास, गोविन्दस्वामी और चतुर्भुज दास आदि की उपस्थिति में इन्होंने अपने महाप्रयाण के समय " खंजन नैन रूप रस माते" पद का गान करते हुए अपने शरीर को छोड़ा और कृष्ण के नित्य लीला धाम में प्रविष्ट हुए। पूर्व संस्कार, जन्मजात प्रतिभा, गुणियों के सत्संग और निजी अभ्यास के कारण छोटी आयु में ही सूरदास विभिन्न विद्याओं के ज्ञाता हो गये। इनकी ख्याति गायक और महात्मा के नाते खूब फैली। कहा जाता है कि सम्राट अकबर ने मथुरा में इनसे भेंट की थी। गोस्वामी तुलसीदास भी इनसे मिले थे। उस समय सूरदास अतिवृद्ध थे और अपने अधिकांश काव्य की रचना कर चुके थे। जबकि तुलसीदास युवा थे और उन्होंने अपनी काव्य-रचना का आरम्भ ही किया था। तुलसीदास सूर के लीला पदों से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने बाद में सूर की शैली पर भगवान राम की बाल- लीलाओं का वर्णन किया। तुलसीदास की गीतावली में ऐसे कई प्रसंग हैं जो सूरदास से स्पष्ट प्रभावित हैं।

रचनाएँ - सूरदास ने श्रीमद्भागवत के आधार पर कृष्ण सम्बन्धी अनेक पदों की रचना की थी जिनकी संख्या सवा लाख बताई जाती है। उनके जीवनकाल में ही इतने असंख्य पद सागर कहलाने लगे थे जो कि बाद में संगृहीत होकर सूरसागर कहलाने लगे। परन्तु अब सूरसागर के चार-पाँच हजार पद प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त काशी नागरी प्रचारिणी सभा की अनुंसधान विवरण पत्रिका और आधुनिक विद्वानों की खोज के अनुसार सूर-प्रणीत चौबीस ग्रन्थों का उल्लेख किया जाता है। इनमें से साहित्य लहरी, सूरसावली आदि उल्लेखनीय हैं। सूरदास के इन दोनों ग्रन्थों की प्रामाणिकता विवादास्पद है।

सूरसावली में 1103 तक पद हैं। संग्रहकार ने पुस्तक के प्रारम्भ में लिख दिया है कि रचना सूरकृत है तथा यह सूरसागर का सार एवं उनके पदों की अनुक्रमणिका है। परन्तु उक्त ग्रन्थ के अध्ययन से विदित होता है कि यह अनुक्रमणिका न होकर स्वतंत्र ग्रन्थ है। दूसरे सूरसावली में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जिनका उल्लेख सूरसागर में नहीं है।

इन दोनों ग्रन्थों में कृष्ण जीवन सम्बन्धी घटनाओं में वैषम्य पाया गया है। डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा की धारणा है कि सम्भव है कि इस ग्रन्थ के प्रणेता सूरसागर के कर्त्ता सूरदास से भिन्न कोई दूसरा हो। अस्तु इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।

साहित्य लहरी को सूरसागर का अंश बताया गया है। इसमें सूरदास के वे पद हैं जिनमें नासिका भेद, अलंकार एवं रस निरूपण है। इसमें अनेक दृष्टिकोण के पद संकलित हैं। किवदन्ती है कि अष्टछाप के दूसरे प्रमुख कवि नन्ददास को रस रीति से परिचित कराने के लिए इस ग्रन्थ का प्रणयन किया गया था। साहित्य लहरी के 112वें पद में सूर का वंश परिचय दिया गया है जिसमें उन्हें चन्दबरदायी का वंशज माना है। इसमें यह भी बताया गया है कि किस प्रकार जन्मान्ध सूर कुएँ में गिरे और भगवान ने सातवें दिन उन्हें निकाला और फिर अन्तर्ध्यान हो गये। भगवान ने उन्हें यह भी बताया कि दक्षिण के ब्राह्मण कुल से शत्रु का नाश होगा। दक्षिण के ब्राह्मण कुल से पेशवाओं का बोध होता है। अधिकतर विद्वानों ने इस पद को प्रक्षिप्त माना है। आचार्य द्विवेदी ने इस सारी की सारी रचना को संदेहास्पद माना है। उनका कहना है कि यह बहुत अजब है कि सूरदास जैसा सहज भक्त अलंकार और नायिका भेद के प्रदर्शन की उलझन में उलझा हो, दूसरे ग्रन्थ के 109वें पद में ग्रन्थ की तिथि और समाप्ति का निर्देश कर चुकने के बाद वह अपने वंश और जाति का उल्लेख करने लगेगा। इस ग्रन्थ का निर्माण समय 1920 ई. पड़ता है जो कि सूरदास की मृत्यु के बाद का समय है। जहाँ तक निवेदी जी के प्रथम तर्क का सम्बन्ध है वह कोई इतना पुष्ट नहीं।

कृष्णदास अधिकारी की प्रेरणा से सूरदास को नन्ददास के लिए अलंकार नायिका भेद और रस रीति पर कुछ लिखना पड़ा हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। सूर साहित्य में कई घोर शृंगारिक पद मिलते हैं जिन्हें अधिकारी जी का प्रभाव कहा जा सकता है। ऐसे पदों का आध्यात्मिक अर्थ लगाना केवल अटकलपच्चू मात्र होगा। अस्तु ! द्विवेदी जी के अन्य दो तर्क बड़े सबल हैं। यह बहुत सम्भव है कि साहित्य लहरी किसी अन्य सूरदास की रचना हो और इसमें सूरदास के भी कुछ पद मिल गये हों। डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा का अनुमान है कि यह किसी भाट या सूरदास को स्वजातीय बनाने का प्रयत्न है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने भी इस कृति को सूरदास कृत नहीं माना है। अस्तु ! इस पुस्तक को इतना अधिक महत्व देना उचित नहीं।

सूरसागर इनकी एकमात्र प्रामाणिक रचना है। यह एक गेय मुक्तक काव्य है जिसमे भगवान की लीलाओं का विस्तारपूर्वक फुटकर पदों में वर्णन किया गया है। श्रीमद्भागवत् के समान इसमें भी बारह स्कन्ध हैं। यह ग्रन्थ भागवत को आधार बनाकर लिखा गया है किन्तु इसे भागवत का अनुवाद समझना भूल होगी। इसमें सूरदास ने पर्याप्त मौलिक उद्भावना से काम लिया है। सूरसागर के दशम स्कन्ध में 3632 पद हैं जो कि कृष्णभक्ति काव्य का गौरव और सूर साहित्य की अमूल्य सम्पत्ति है। भागवतकार कृष्ण के समूचे जीवन को लेकर चला है जबकि सूर ने कृष्ण के जीवन के कोमल अंशों पर असंख्य लीला-पद रचे। भागवत में कृष्ण की अनन्य प्रेमिका किसी गोपी का उल्लेख है जबकि यहाँ प्रेम रस में आमूलचूल सिक्त राधा की कल्पना की गयी है। भ्रमरगीत की कल्पना उनकी कृष्ण भक्तिकाव्य को एक मौलिक देन है। सूरदास ने लोक प्रचलित कृष्ण की प्रेमकथाओं का अपने सागर में स्तुत्य प्रयोग किया है। सूरदास का काव्य मुक्तक काव्य होते हुए भी प्रबन्धात्मकता के सूत्रों को भी सम्भाले हुए है। इनके लीलापदों में कृष्ण जीवन की क्रमात्मक कथा मिल जाती है। आचार्य द्विवेदी इस सम्बन्ध में लिखते हैं- "शिल्प में गीतिकाव्यात्मक मनोरोगों को आश्रय करके महाकाव्यात्मक शिल्प का निर्माण हुआ है। ताजमहल साही महाकाव्यात्मक शिल्प है, जिसका मूल मनोराग गीतिकाव्यात्मक या लिरिकल है। सूरसागर में इसी प्रकार का महाकाव्यात्मक शिल्प है, जिसका मूल मनोराग लिरिकल या गीतिकाव्यात्मक है।'

 

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book