बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
उत्तर -
कबीर रहस्यवादी कवि डॉ. श्यामसुन्दर के शब्दों में रहस्यवादी कवियों में कबीर का आसन सबसे ऊँचा है। शुद्ध रहस्यवाद केवल उन्हीं का है। रहस्यवाद की परिभाषा डॉ. रामकुमार वर्मा के शब्दों में इस प्रकार है रहस्यवाद जीवात्मा की उस अन्तर्निहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है जिसमें वह दिव्य और अलौकिक शक्ति से अपना शान्त और निश्छल सम्बन्ध जोड़ना चाहती है और यह सम्बन्ध यहां तक बढ़ता जाता है कि दोनों मे कुछ अन्तर नहीं रह जाता। जीवात्मा अपने अस्तित्व को एक प्रकार से भूल सी जाती है। एक भावना, एक वासना हृदय मे प्रभुत्व प्राप्त कर लेती है। यह भावना सदैव जीवन के अंग-प्रत्यंगों में प्रकाशित होती रहती है। उपर्युक्त परिभाषा से रहस्य के निम्नलिखित तत्व स्पष्ट होते है -
(1) प्रकृति के कण-कण में दिव्य सत्ता की अनुभूति।
(2) आत्मा को परमात्मा का अंश समझना तथा उससे मिलने की अकांक्षा व्यक्त करना।
(3) अज्ञात सत्ता के स्वरूपोद्घाटन सम्बन्धी भावों को वाणी देना।
यही तीन तत्व ही रहस्यवाद की तीन अवस्थाएँ मानी गयी हैं। कबीर ने शास्त्र ज्ञान की अपेक्षा प्रत्याक्षानुभूति (आँखन की देखी) को वाणी दी है और इस अनुभूति की अभिव्यक्ति को विद्वानों ने 'गूँगे के गुण' की संज्ञा दी है क्योंकि वाणी (भाषा) तत्वदृष्टा के भावों की अभिव्यक्ति में असमर्थ हो जाती है और तब संकेतों से ही काम चलाना पड़ता है जिसके कारण अस्पष्टता और रहस्यात्मकता का आ जाना स्वाभाविक है। कबीर के रहस्यवाद में ये तीनों तत्व अथवा अवस्थाएँ अत्यन्त समृद्ध रूप में उपलब्ध हैं
प्रथमावस्था
'कबीर बादल प्रेम का हम पर बरस्या आइ।
अंतरि भीगी आत्मा हरि भई बनराइ ॥
द्वितीयावस्था '
आँषड़ियाँ झाँई पड़ी पंथ निहारि निहारि।
जीभड़िया छाला पड्या राम पुकारि पुकारि।
तृतीयावस्था
'लाली मेरे लाल की जित देखूँ तित लाल।
लाली देखन मैं गई, तो मैं भी हो गयी लाल ॥
इसी प्रकार अनेक उदाहरण कबीर वाणी में मिलते हैं जो कबीर को उत्कृष्ट रहस्यवादी कवि सिद्ध करते हैं। कबीर के काव्य में रहस्यवादी की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि उसमे कहीं प्रयत्न की छाया नहीं और अस्वाभाविकता से कहीं ढूँढने पर भी नहीं मिलती।
समीक्षकों ने कबीर के काव्य में रहस्यवाद के निम्नोक्त चार रूप स्वीकार किये हैं -
(1) वैष्णवों और सूफियों का भावनात्मक रहस्यवाद
'तू-तू करता तू भया मुझमें रही न हूँ।
वारी फेरी बली गयी जित देखूँ तित हूँ।
(2) हठयोगी का साधनात्मक रहस्यवाद
'गगन गरजै बरसै अभी बादल गंहिर गम्भीर।
चहुँ दिसि दमकै दामिनी भीजै दास कबीर ॥
(3) पारिभाषिक शब्दों का चमत्कारमूलक रहस्यवाद
'फीलु स्वाबी बलबु अब बाबज कउआ ताल बजावै।
पहरि चोलना गदहा नाचै भैंसा निरति करावै।
(4) उलटवासियों के रूप में अभिव्यक्तिमूलक रहस्यवाद
'बरसै कंबल भीजै पानी।
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि यद्यपि कबीर के काव्य में रहस्यवाद के उपर्युक्त चारों रूप मिलते हैं तथापि निश्चित रूप से प्रधानता भावनात्मक रहस्यवाद की ही है।
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- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
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- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
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- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
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- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।