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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर -

विद्यापति की पदावली की भाषा के सम्बन्ध में पर्याप्त विवाद चलता रहा है। बंगाली वैष्णव भक्त कवियों ने विद्यापति के पदों के कीर्तन का विषय बनाया और उन्होंने वैसे ही भाव तथा भाषा के आधार पर काव्य रचनाएँ प्रस्तुत की। इस काव्य शैली की भाषा बंगला से कुछ भिन्न थी। अतः उसे 'ब्रजबूली' नाम से अभिहित किया। कुछ समय तक यही भाषा बंगाल की साहित्यिक भाषा रही और आधुनिक कवि रवीन्द्रनाथ भी इसी प्रवाह में बढ़ने लगे। इस प्रकार विद्यापति बंग- साहित्य क्ले आदिकवि माने गये, किन्तु किसी विद्वान् ने यह जानने का प्रयत्न नहीं किया कि 'ब्रजबूलि' ब्रजभाषा की ही एक शाखा है या ब्रजभाषा-मिश्रित बंगला है या इसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व है और बंगला, ब्रज आदि की भाँति यह एक प्राचीन भाषा है। यूरोप के विद्वानों ने इस 'ब्रजबूलि' को हिन्दी की ओर उन्मुख पाया तो उन्होंने बंगला को हिन्दी की उपभाषा घोषित कर दिया। किन्तु बंगाली विद्वानों को यह बात असहनीय थी, क्योंकि उनकी दृष्टि में बंगला भाषा का साहित्य अन्य प्रान्तीय भाषाओं की अपेक्षा अधिक समृद्ध है। अतः उसे उपभाषा मानना उन्हें खटकने लगा। शोध के कई कार्य हुए और उसका परिणाम यह निकला कि विद्यापति के काव्य की भाषा न तो बंगला सिद्ध हुई और न ब्रजभाषा वरन् पांच सौ वर्ष पूर्व की स्वतंत्र मैथिली भाषा प्रमाणित हो गई है।

मैथिली तथा बंगला का जन्म मागधी प्राकृत से माना जाता है। परन्तु दोनों में पर्याप्त भिन्नता मिलती है। इसका कारण स्पष्ट है। बौद्ध तथा जैनियों की धर्म पुस्तक अर्द्ध मागधी से प्रभावित में लिखी गई है। कहने का अभिप्राय यह है कि बिहार प्रान्त की भाषा मैथिली, पश्चिम, प्राकृत, अर्द्ध मागधी और कुछ सीमा तक शौरसेनी प्राकृत से प्रभावित होती रही और इसके विरुद्ध बंगला इस प्रभाव से दूर रहीं। उसका विकास विशुद्ध मागधी से हुआ। इसीलिए मैथिली और बंगला दोनों बहनें होते हुए भी आपस में भिन्नता लिए हुए सामने आई। मैथिली हिन्दी से अपना सम्पर्क स्थापित कर बैठी। वर्तमान मैथिली तो हिन्दी से बहुत अधिक मात्रा में प्रभावित हो गई है। आजकल मिथिला प्रान्त की भाषा हिन्दी ही है।

जब तक बंगाली विद्वान इस परिणाम पर नहीं पहुँचे थे, तब तक विद्यापति की भाषा में बंगला के उच्चारण भरे जा रहे थे और उनके अनुरूप ध्वन्यात्मक तथा रूपात्मक परिवर्तन भी हो रहे थे। नगेन्द्रनाथ गुप्त द्वारा सम्पादित पदावली में उक्त बात का पता लगता है -

शुन शुन ऐ सखि कहन न होई।
राहि राहि कय तन मन खोई ॥

यहाँ 'सुन-सुन के स्थान पर 'शुन शुन' कर दिया गया है। बंगला उच्चारण के अनुसार यह परिवर्तन किया गया है। इसी प्रकार रूपात्मक परिवर्तन भी किये गये है

नन्दव क नन्दनं कंदबेरि तरु तरे
धिर धिर मुरिलि बजाव॥

उक्त पंक्ति में 'कदंब क' के स्थान पर 'कंदबेरि कर दिया है। 'र' बंगला में सम्बन्ध कारक की विभक्ति है, जो संज्ञा तथा इसकेसर्वनाम के साथ सर्वत्र लगाई जाती है।

इसके विपरीत मैथिली (प्राचीन) में संज्ञा के साथ सदैव सम्बन्ध कारक में 'क' विभक्ति लगती है और 'र' केवल सर्वनामों के साथ लगायी जाती है। ठोस तथ्यों का आधार होने के कारण अब उक्त प्रचार की भूलें नहीं दिखाई देतीं। हिन्दी साहित्यकारों ने विद्यापति को हिन्दी में इसलिए अपनाया है कि उनकी भाषा पश्चिमी हिन्दी की उपभाषाओं से प्रभावित है और आज मिथिला की साहित्यिक भाषा हिन्दी है।

विद्यापति की भाषागत विशेषताएँ

(1) विद्यापति की पदावली की भाषा की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सरसता है उसमें जो शब्द आये हैं वे एक ओर तो श्रृंगार की प्रवृत्ति के अनुकूल है और दूसरी ओर उसमें प्रेमिल सन्दर्भों को उद्घाटित करने की पूरी क्षमता विद्यमान है। पदावली में कोमलकान्त शब्दावली का प्रयोग पर्याप्त मात्रा में हुआ है। यद्यपि जयदेव के गीत गोविन्द की भाषा में भी पर्याप्त कोमलता और सरसता मिलती है। किन्तु विद्यापति की पदावली जो जयदेव से ही प्रभावित है इस दिशा में काफी आगे बढ़ती हुई दिखाई देती है।

(2) विद्यापति की पदावली की भाषा अपनी विशिष्टता लिए हुए हैं। इसका पद विन्यास, शब्द चयन और वर्णमैत्री अनुपम है। इसकी भाषा में तत्कालीन लोकभाषा का स्वरूप देखने को मिलता है। शब्द इतने कोमल हैं कि भाषा में कोमलता और मधुरता के साथ-साथ सुकुमारता और सचिक्कणता भी आ गई है जैसे

ससन परस खसु अम्बर रे रेखल धनि देह।
नव जलधर तरसंचर रे जनि बिजुरि रेह ॥

(3) विद्यापति की पदावली में वर्णमैत्री और नाद - सौन्दर्य स्थापित करने के लिए भाषा में ऐसे वर्णों का प्रयोग किया गया है जिससे उनकी नादात्मकता स्पष्टतः देखी जाती हैं जैसे-

बाजत दिग दिग धोद्रिम द्रिमयनटति कलावति
मति श्याम सग करताल प्रबन्धक ध्वनियां

डमडम उफ डिमिक डिमि मादल रुनझुन मजीर बोल।

इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि ध्वन्यात्मकता विद्यापति की पदावली की स्पष्ट और उल्लेखनीय विशेषता है। इसी क्रम में कोमलकान्त पदावली की मधुर गूंज को भी भुलाया नहीं जा सकता।
यथा -

रिपुपतिरति रसिक रसराज, रसमय रास रभस सस माझ।
रसमति रम्रीन घतन बनिराहिं रास रसिक सह रस अवगाहि।

(4) विद्यापति की पदावली में लाक्षणिकता और अर्थ गौरव लाने के लिए लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग भी पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग से विद्यापति ने एक ओर तो भाषा में अर्थ गाभीर्य ला दिया और दूसरी ओर उसमें उचति चमत्कार भी पर्याप्त मात्रा में आ गया है। उदाहरणार्थ अवसर 'बहला रहा पचताव, असमय आस न पूरय काम, कूप न आवए पथिक के पास, अनक वेदन नइ बुझ आन, आरति गाहक मबंग मेसाह', कांच काचन न आनय मूल', बुदिना हितजन अनहित रेधिक जगत सोभाव, धएले रतन अधिक मुल होए, धनिक के आदर सब तह होअ, भेक न पिबए कुसुम मकरन्द', पोपि न काटिअ विषहुक गाछ और बानर मुँह की सोभाए पान आदि अनेक लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग से विद्यापति की भाषा में विशिष्टता आ गई है।

(5) विद्यापति की पदावली में भाषा की चित्रात्मकता भी देखने को मिलती है। जहाँ-जहाँ कवि ने विरह का चित्र प्रस्तुत किया है अथवा जहाँ कवि ने सौन्दर्य का निरूपण किया है वहाँ तो चित्रात्मकता भाषा मिलती ही है। भाषा का चित्रण गुण उन पदों में सबसे अधिक मिलता है जहाँ सद्य स्नाताओं के चित्र है और नायिका की यौवन और शैशव के बीच की स्थिति का निरूपण किया गया है। वस्तुतः विद्यापति का एक-एक पद श्रृंगार और सौन्दर्य से भरपूर होने के कारण अपनी चित्रात्मकता में अकेला है।

(6) विद्यापति की भाषा में माधुर्य गुण की प्रधानता है। उन्होंने शृंगार रस के उपयुक्त भावोपम शब्दावली प्रसंगानुकूल शब्दचयन और चित्र गुण प्रधान पद विन्यास को अपनाकर भाषा को जो सौष्ठव प्रदान किया है, वह अनूठा है। वस्तुतः विद्यापति हिन्दी गीतिकाव्य परम्परा के सफल भाषा प्रयोक्ताओं में गिने जा सकते हैं।

(7) 'पदावली' से स्पष्ट है कि विद्यापति की भाषा भावानुकूलता प्रसंगानुकूलता, वर्णन की अनुकूलता और रस की अनुकूलता लिए हुए हैं। उसमें तत्सम तद्भव, देशज और विदेशी शब्दों का प्रयोग मिलता है। वह अलंकृति से युक्त है। उसकी शैली चित्रात्मक है, उसका सौन्दर्य प्रभावशाली और मर्मान्त है। विद्यापति की भाषा एक ओर सुकुमारता और कोमलकान्त पदावली है तो दूसरी ओर उसमें प्रेषणीयता और सहज प्रवाह भी देखने मिलता है। विद्यापति की भाषा में छोटे वाक्यों के अन्तर्गत गम्भीर से गम्भीर भावों को सफलता से चित्रित किया गया है। डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के शब्दों में "विद्यापति की भाषा चन्द्रमा की भांति, पियूष वर्षिणी है, सरिता की भांति प्रवाहमयी है, मृदग ध्वनि की भांति नादात्मक ध्वनि से परिपूर्ण है तथा मलय पवन की भांति मधुर भाव की सुगन्धि से, परिपूर्ण है। वस्तुतः वह पाठकों के मन को मोहित करने वाली है। एक शब्द में विद्यापति की भाषा लोक भाषा के गुणों से सजी हुई होकर भी सरस, सजीव और आकर्षक है। विद्यापति निसर्ग सिद्ध कवि थे वे मानव स्वभाव एवं समाज की रीति-नीति से पूर्णतया परिचित थे। उनकी भाषा सरल सुबोध और ग्रामीण क्षेत्रों में रमी हुई है। इसी कारण अनपढ़ जनता भी उसे सहज ही अपना लेती है।

(8) डॉ. शुभकार कूपर ने लिखा है कि "पंचावली वर्षों के साम्य से युक्त शब्दों के मधुर चित्र संत्र संयोग और वियोग के अनेक सूक्ष्म भावों को अपनी भाव प्रवीणता और अर्थ सबलता द्वारा श्रोता एवं पाठक के चित्त को विद्यापति तदाकार कर देते हैं। उन्होंने अपनी पदावली में वैदर्भी रीति का अधिक आश्रय लिया है। इस प्रकार की कृति में सानुनासिक वर्ग तथा वर्ण के पंचम वर्ग की योजना अधिक रहती है। यही कारण है कि उनकी रचना में माधुर्य अधिक है। पदावली की भाषा में माधुर्य गुण की प्रधानता का यही रहस्य है।

निष्कर्ष - संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि विद्यापति की भाषा सरस प्रवाहमय और चित्ताकर्षक है। एक आलोचक के शब्दों में यदि यह कह दिया जाये तो अत्युक्ति नहीं होगी कि 'सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में विद्यापति उस समुचित, मधुर, सौन्दर्यमयी काव्य-भाषा के आदि जनक हैं जिनका अनुकरण कर सूर आदि परवर्ती कवियों ने काव्य - रस की वह अजस्त धारा प्रवाहित की, जिस पर आज हिन्दी जगत को गर्व है। समस्त साहित्य में विद्यापति का रस तथा भाषा सौन्दर्य अन्यत्र दुर्लभ है।' वस्तुतः भाषा पर विद्यापति का असाधारण अधिकार था। वे शब्दों को तोलकर भाव के वजन के साथ बिठाने में पर्याप्त सफल हुए। यों उनकी भाषा में कातत्व प्रदान करने में उनकी गीति-शैली का विशेष हाथ है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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