बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
उत्तर -
(1) परमाल रासो (आल्हा खण्ड) - आल्हा खण्ड के नाम से प्रसिद्ध रचना ही परमाल रासो है। इसका वर्तमान स्वरूप लोकगीत शैली है। इसके रचयिता 'जगनिक' नामक कवि हैं। डॉ. वीरेन्द्र कुमार अग्रवाल के शब्दों में, 'महोबा के राजा परमर्दिदेव (परमार) का जीवन चरित इसमें है। आल्हा ऊदल नामक दो शूरवीर भाइयों की शौर्य गाथा बड़े भाव सौन्दर्य के साथ प्रस्तुत की गयी है। ध्वन्यात्मकता इसका विशिष्ट गुण है। छन्द विधान की दृष्टि से इसे 'आल्हा' छन्द की शैली का काव्य कहा गया है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इस कृति को अर्द्ध प्रामाणिक मानते हैं। अनेक परिवर्तन तथा परिवर्द्धन होते हुए भी इस रचना में कवि जगनिक की हृदयस्पर्शी भावधारा एवं दयोक्तिपूर्ण वाणी अजस्त्र गति से प्रवाहित होकर आज तक रसिकों के मन को आप्लावित करती आयी है कवि के लिए यह कम महत्व की बात नहीं है। एक उदाहरण प्रस्तुत है -
और तेरह बरिस लै जिये सियार,
बरिस अठारह क्षत्री जियें,
आगे जीवन को धिक्कार।
(2) खुमान रासो - चित्तौड़ के राजा खुमान के समकालीन कवि दलपति विजय के द्वारा यह रासो लिखा गया माना जाता है। इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति पूना के संग्रहालय में मौजूद है, प्रति में लेखक का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इस कारण विद्वानों में इसके रचयिता के सम्बन्ध में विवाद है। कुछ का कहना है कि इसकी रचना जैन संत दलपति विजय ने की। पर यह 1700 वीं शताब्दी में लिखा गया। भले ही यह 1700 वीं शताब्दी की रचना हो पर जैन संत की रचना तो इसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। दरअसल अधिकांश रासो रचित नायक के समकालीन कवियों द्वारा दरबार में रखकर ही लिखे गये हैं। खुमान रासो में चित्तौड़ के राजा राजसिंह तक का वर्णन है। पर रचना की कथावस्तु खुमान से प्रारम्भ होती है। अतः खुमान के समकालीन रचनाकार दलपति विजय को इसका लेखक होना चाहिए। इस ग्रन्थ में करीब पांच हजार के करीब छन्द हैं, पर इसमें प्रक्षिप्त अंश भी काफी है जो उनके बाद के कवियों ने जोड़े हैं। इस ग्रन्थ में नायिका भेद, ऋतु वर्णन वीर एवं शृंगार का सुन्दर परिपाक है। कथावस्तु सुन्दर है, भाषा राजस्थानी हिन्दी है और इसमें प्रमुख रूप से दोहा, कवित्त और सवैया छन्दों का इस्तेमाल किया गया है। इसकी भाषा का एक उदाहरण यों दिया जा सकता है।
जोवै बाट बिरहिणी खिणखिण अणवै खीज।
संदेसोपिण साहिबा, पाछी फिरिय न देह |
पंछी घाल्या पिंजरे, छूटणरो संदेह ॥
(3) बीसलदेव रासो - नरपति नाल्ह का यह ग्रन्थ अपने समकालीन राजा विग्रहराज चतुर्थ 'बीसलदेव' के चरितांश को लेकर लिखा गया है, जिसमें बीसलदेव का राजा भोज परमार की पुत्री राजमती से विवाह, कलह, वियोग और मिलन का रसात्मक वर्णन है। यह नृत्य प्रधान ग्रन्थ काव्य वीर हृदय की संवेदनशील, कोयल व सरस भावनाओं का प्रतिबिम्ब है।
आदिकाल की प्रसिद्ध रचनाओं में बीसलदेव रासो को गिना जाता है। इसके रचयिता नरपति नाल्ह हैं और रचनाकाल 1155 ई. है। इसके भी रचयिता व रचना संवत् पर कम विवाद नहीं। इस रचना का वर्णनीय विषय अजमेर के चौहान बीसलदेव तृतीय और भोज परमार की पुत्री राजमती का विवाह, वियोग एवं पुनर्मिलन है। इसका भाव सौन्दर्य श्रेष्ठ है। प्रकृति वर्णन और बारहमासा भी सुन्दर है। शृंगार के दोनों पक्षों का भी चित्ताकर्षक चित्रण है। एक उदाहरण प्रस्तुत है -
अवर जनम धारई धणा रे नटेस
राणि न सिर जिय धडलीय गाइ।
वणषंड काली कोइली
हउँ बइसती अंबा, नई चंपा की डाल
(4) पृथ्वीराज रासो - इसके रचयिता चन्दबरदाई हैं। ये लाहौर के रहने वाले थे। ये भाट जाति के जगात गोत्र से थे। ये दिल्ली के अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के मित्र भी थे और सामन्त भी। स्वयं वीर योद्धा थे। पृथ्वीराज और चंदबरदाई की जन्ममरण की तिथि भी समान हैं। चंद राजकवि थे, अनेक विधाओं में कुशल थे। चन्द के संकेत पर ही शब्द बेधी बाण से पृथ्वीराज ने गजनी में शहाबुद्दीन गोरी को मारा था। चंद के हाथों ही पृथ्वीराज मारे गये थे और बाद में चंद ने भी अपने प्राणों का अन्त कर दिया था। 1168 से 1192 के बीच इस ग्रन्थ का रचनाकाल माना जाता है। पृथ्वीराज रासो चंदबरदायी की ही रचना है। यह हिन्दी का पहला महाकाव्य है। इसमें 69 समय (सर्ग या अध्याय) हैं। ऐसा भी प्रसिद्ध है कि इसका अन्तिम भाग चंदबरदायी के बेटे जल्हण ने पूरा किया। विद्वानों में इसकी प्रामाणिकता को लेकर विवाद है। इसका कारण यह है कि इसमें पृथ्वीराज के बाद बहुत से राजाओं का भी वर्णन है। यह डिंगल भाषा में है। इसका एक उदाहरण इस प्रकार दिया जा सकता है -
बाल वैस ससि ता समीप, अम्रित रस पित्रिय।
काव्य-व्यंजना, चरित्रांकन, वस्तु वर्णन और शिल्प सौष्ठव के कारण आदिकालीन रचनाओं में यह विशेष कीर्तिप्राप्त है।
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- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
- प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
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- प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।