बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
अथवा
हिन्दी साहित्य के इतिहास की काल विभाजन सम्बन्धी स्थितियों पर युक्ति संगत विचार कीजिए।
अथवा
काल विभाजन के आधारभूत मानदंडों की विवेचना करते हुए हिन्दी साहित्य के विभिन्न काल विभाजनों के पक्ष-विपक्ष में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
अथवा
हिन्दी साहित्य के काल विभाजन का उल्लेख करते हुए अपना मत दीजिए।
उत्तर -
आचार्य शुक्ल ने अपने काल विभाजन एवं नामकरण का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा है कि यद्यपि इन कालों की रचनाओं की विशेष प्रवृत्ति के अनुसार ही इनका नामकरण किया गया है पर यह न समझना चाहिए कि किसी काल में और प्रकार की रचनाएँ होती ही नहीं थी। जैसे भक्तिकाल या रीतिकाल को ले तो उसमें वीर रस के अनेक काव्य मिलेंगे। जिसमें वीर राजाओं की " प्रशंसा उसी ढंग की होगी जिस ढंग की वीरगाथाकाल में हुआ करती थी। किसी विशेष प्रवृत्ति मूलक रचनाओं की अधिकता से यह अभिप्राय है कि शेष दूसरी प्रवृत्तिमूलक रचनाओं में से यदि किसी एक प्रकार की रचनाओं को लें तो वे संख्या में उनके समान न हो।
इस काल विभाग का दूसरा आधार ग्रन्थों की प्रसिद्धि है। जिस काल के भीतर एक ही प्रवृत्ति *वाले बहुत से प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं, उस प्रकार के ग्रन्थ उस काल के लक्षण के अन्तर्गत माने जायेंगे, चाहे और अनेक प्रकार के अप्रसिद्ध और साधारण कोटि के ग्रन्थ इधर-उधर पड़े हो। प्रसिद्धि भी किसी काल की लोकप्रवृत्ति की परिचायक है। सारांश यह है कि उक्त दो सिद्धान्तों को सामने रखकर ही विद्वान लेखक साहित्य के इतिहास का काल विभाजन एवं नामकरण करते हैं।
परम्परागत काल विभाजन पुनर्विचार - इस सम्बन्ध में सबसे पहला प्रयास करने का श्रेय जार्ज ग्रियर्सन को है। लेकिन उन्होंने स्वयं अपने ग्रन्थ की भूमिका में स्वीकार किया है कि उनके सामने अनेक ऐसी कठिनाइयाँ थीं जिससे वे कालक्रम एवं काल विभाजन के निर्वाह में पूर्णतः सफल नहीं हो सके। उनका काल विभाजन इस प्रकार है-
(1) चारणकाल,
(2) पन्द्रहवीं शती का धार्मिक पुनर्जागरण,
(3) जायसी की प्रेम कविता,
(4) ब्रज का कृष्ण सम्प्रदाय,
(5) मुगल दरबार,
(6) तुलसीदास,
(7) रीतिकाव्य,
(8) तुलसीदास के अन्य परवर्ती,
(9) अठ्ठारहवीं शताब्दी,
(10) कम्पनी के शासन में हिन्दुस्तान,
(11) महारानी विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्तान।
इस प्रकार उनका ग्रन्थ इन ग्यारह कालखंडों में विभक्त हैं, जो वस्तुतः युग विशेष के द्योतक कम है, अध्यायों के शीर्षक अधिक है, इसके अतिरिक्त कालक्रम का निर्वाह भी इसमें अविच्छिन्न रूप से नहीं चलता।
जैसे - चारणकाल के बाद एकाएक वे पन्द्रहवीं शती में पहुंच जाते हैं, पूरी चौदहवीं शती को वे इतिहास में से निकाल देते हैं। अस्तु ग्रियर्सन का यह प्रयास प्रारम्भिक प्रयास मात्र है, जिसमें विभिन्न न्यूनताओं, असंगतियों एवं त्रुटियों का होना स्वाभाविक है।
इसके बाद मिश्रबन्धुओं ने अपने 'मिश्रबन्धु विनोद' में काल विभाजन का नया प्रयास किया जो प्रत्येक दृष्टि से ग्रियर्सन के प्रयास से बहुत अधिक प्रौढ़ एवं विकसित कहा जा सकता है। उनका विभाजन इस प्रकार है -
(1) प्रारम्भिक काल - पूर्वारंभिक काल (900-1343 वि0) एवं उत्तरांरभिक काल (1344-1444 वि0)
(2) माध्यमिक काल - पूर्व माध्यमिक काल (1445-1560 वि0) एवं प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561-1680 वि0)
(3) अलंकृत काल - पूर्वालंकृत काल (1681-1790 वि0) एवं उत्तरालंकृत काल (1791 1889 वि0)
(4) परिवर्तनकाल (1890-1924 वि0)
(5) वर्तमानकाल (1926 वि0 से अब तक)
जहाँ तक पद्धति की बात है, यह वर्गीकरण बहुत सम्यक् एवं स्पष्ट है परन्तु तथ्यों की दृष्टि से इसमें भी अनेक विसंगतियाँ हैं। अस्तु, इन दोषों के होते हुए भी, मिश्रबन्धुओं का प्रयास पर्याप्त महत्वपूर्ण एवं प्रौढ़ है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास प्रस्तुत करते हुए काल विभाजन का नया प्रयास किया, जो इस प्रकार है -
(1) आदिकाल (वीरगाथाकाल, सं0 1050- 1375)
(2) पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल, सं0 1375- 1700)
(3) उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल, सं0 1700-1900)
(4) आधुनिक काल (गद्यकाल, सं0 1900-1984 तक)
आचार्य शुक्ल के काल विभाजन में हम प्रारम्भिक काल की शुरूआत सं. 1050 से देखते हैं जो यथार्थ के अधिक निकट है। दूसरे, इन्होंने मिश्रबन्धुओं के द्वारा किये गये भेदोपभेदों की कुल संख्या को दस से घटाकर चार तक सीमित कर दिया। इससे इनके काल विभाजन में अधिक सहजता, सरलता, सुबोधता एवं स्पष्टता आ गई है। अपनी इसी विशेषता के कारण वह बहुमान्य एवं बहुप्रचलित है।
शुक्ल जी के बाद के इतिहासकारों में से अनेक ने आचार्य शुक्ल के उपयुक्त काल विभाजन की निन्दा तो की, किन्तु किसी ने संशोधित करके नया रूप देने की कोशिश नहीं की। केवल डॉ. रामकुमार वर्मा का ही नाम इस क्षेत्र में उल्लेखनीय है। उनका काल विभाजन निम्न रूप में है -
(1) संधिकाल (750-1000 वि0)
(2) चारणकाल (1000-1375 वि0)
(3) भक्तिकाल (1375 से 1700 वि0)
(4) रीतिकाल (1700 से 1900 वि0 तक)
(5) आधुनिककाल (1900 से अब तक)
डॉ. वर्मा के इस विभाजन के अन्तिम चार कालखंड तो आचार्य शुक्ल के ही विभाजन के अनुरूप है, केवल 'वीरगाथाकाल' के स्थान पर चारणकाल नाम अवश्य दे दिया गया है। इस विभाजन में 'संधिकाल की कल्पना निश्चित रूप से एक भ्रान्ति को जन्म देती है। हिन्दी साहित्य का आरम्भ सातवीं-आठवीं शताब्दी से मानना एक विशेष भ्रान्ति का परिणाम है। इसलिए इसे शुक्ल के काल विभाजन का परिष्कृत रूप नहीं कहा जा सकता। फिर भी वर्मा जी ने किन्हीं अंशों में आचार्य शुक्ल की रूढ़ि को त्यागने का साहस अवश्य किया है जो इस युग के लिए कम महत्व की बात नहीं है।
इसी बीच डॉ. रामबिहारी शुक्ल एवं डॉ. भगीरथ मिश्र का हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास' ग्रन्थ भी प्रकाश मं4 आया है जो प्रारम्भिककाल की सीमाओं में किंचित परिवर्द्धन और संशोधन करने के अतिरिक्त सामान्यतः आचार्य शुक्ल के ही अनुरूप है। डॉ. नगेन्द्र तथा आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा लिखे गये इतिहास ग्रन्थों में भी थोड़ा बहुत किसी काल के विभाजन में भले ही नाम का परिवर्तन हो गया हो, शेष बातों में पूर्ववर्ती परम्परा का निर्वाह ही हुआ है।
इस प्रकार इस समय आचार्य शुक्ल के ही काल विभाजन को सर्वमान्य कहा जा सकता है, किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वह सर्वथा संगत एवं निर्दोष है। आचार्य शुक्ल ने जिन परिस्थितियों में इतिहास लेखन किया था, उस दृष्टि से यह ठीक है किन्तु विगत 50 वर्षों में हिन्दी के क्षेत्र में पर्याप्त अनुसंधान हुए जिसे ध्यान में रखने पर अनेक न्यूनताएँ एवं त्रुटियाँ स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती हैं, जो निम्नवत् हैं -
(1) पूर्ववर्ती इतिहासकारों ने तथा आचार्य शुक्ल ने अपभ्रंश साहित्य के सम्बन्ध में किसी स्पष्ट नीति का अनुसरण नहीं किया। शुक्लोत्तर इतिहासकारों की नीति तो इस सम्बन्ध में और भी भ्रामक एवं विचित्र है। कभी तो वे इसे हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत समाविष्ट कर देते हैं और कभी इसे हिन्दी से भिन्न मानते हैं। वस्तुतः इस सम्बन्ध में हमें अब एक स्पष्ट नीति का अनुसरण करना होगा, या तो अपभ्रंश और हिन्दी को एक मानना होगा अथवा अपभ्रंश रचनाओं को हिन्दी साहित्य में स्थान देने का लोभ संवरण करना होगा।
(2) जिन रचनाओं के आधार पर आचार्य शुक्ल तथा अन्य इतिहासकारों ने हिन्दी साहित्य के आरम्भिककाल, वीरगाथाकाल या आदिकाल की स्थापना की थी, अब वे अस्तित्वहीन, अप्रमाणिक या परवर्तीकाल की सिद्ध हो गई है। जैसे- 'जयमंयक जस चन्द्रिका', 'जयचन्द्र प्रकाश अस्तित्वहीन हैं, 'पृथ्वीराज रासो', 'वीसलदेव रासो' आदि का रचनाकाल संदिग्ध है, 'खुमान रासो', परवर्तीकाल की सिद्ध हो गई हैं तथा अन्य कुछ रचनाएँ हिन्दी की न होकर अपभ्रंश की हैं। इस प्रकार रचनाओं की दृष्टि से आचार्य शुक्ल का 'वीरगाथाकाल' बिल्कुल आधार शून्य सिद्ध होता है। कुछ विद्वानों ने इस स्थिति को सुधारने के लिए इस काल के नये नामकरण आदिकाल का सुझाव दिया।
(3) परम्परागत इतिहास ग्रन्थों में विभिन्न कालखंडों का नामकरण केवल एक प्रवृत्ति विशेष के आधार पर करना भी न्यायसंगत एवं वैज्ञानिक नहीं हैं। वीरगाथाकाल की असंगति तो ऊपर वर्जित हो चुकी है। भक्तिकाल एवं रीतिकाल भी दोषमुक्त नहीं है। क्योंकि इसमें केवल भक्ति एवं रीति की ही प्रवृत्ति नहीं है। अपितु अन्य प्रवृत्तियाँ भी हैं। एक प्रवृत्ति को ही प्रधानता देने एवं शेष को गौण मानकर फुटकर खाते में डाल देने का परिणाम यह हुआ कि इस समय विभिन्न युगों का अधूरा एवं एकपक्षीय रूप ही हमारे सामने आ पाता है। अस्तु इसमें विभिन्न युगों का नामकरण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे युग की विभिन्न प्रवृत्तियों के साथ न्याय हो सकें।
(4) नये अनुसंधान से अधिक नयी रचनाओं एवं काव्य परम्पराओं का भी उद्घाटन हुआ है। जिन्हें हिन्दी साहित्य के इतिहास में स्थान देना आवश्यक है। इसके लिए भक्तिकाल के चार उपखंडों के अतिरिक्त अन्य खंडों में विभक्त करना होगा जिससे उन रचनाओं को भी किसी उपखंड में स्थान दिया जा सके।
(5) 'भक्तिकाल' में प्रवर्तित होने वाली सभी काव्य परम्पराएँ आधुनिक काल के प्रारम्भ तक अखंड रूप से चलती रहती है, अतः भक्तिकाल को रीतिकाल से सर्वथा विच्छिन्न मानना भी ठीक नहीं है।
उपरोक्त असंगतियों एवं त्रुटियों को ध्यान में रखकर डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने नये काल विभाजन की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने 'हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास लिखा और निम्नलिखित काल विभाजन किया। उन्होंने सबसे पहले हिन्दी साहित्य के इतिहास को दो बड़े कालखंडों में विभक्त किया। पहला 1857 ई. के पहले का समय और दूसरा, उसके बाद का समय। जिस प्रकार हमारे राजनीति इतिहास में 1857 ई. एक ऐसी विभाजक रेखा है जिससे मुस्लिम राज्य की समाप्ति तथा ब्रिटिश शासन का आरम्भ होता है, उसी प्रकार हिन्दी साहित्य के इतिहास में भी यह पुराने युग की समाप्ति एवं नये युग के आरम्भ की सूचक है। आचार्य शुक्ल ने भी इसी समय के आस-पास (सन् 1843 ई. अर्थात् 1900 विक्रमी) से नये युग का आरम्भ माना है। इस तरह इस काल के नामकरण के बारे में विद्वानों में सामान्यतः मतैक्य है। कठिनाई इससे पहले के कालखंडों के बारे में हैं। पूर्ववर्ती काल को भी उन्होंने मोटे रूप में दो खंडों में विभक्त किया है. प्राचीनकाल और मध्यकाल। मध्यकाल की दीर्घता को ध्यान में रखते हुए उसे भी दो उपखंडों में विभक्त किया गया -
(1) पूर्व मध्यकाल (1350 से 1600 ई. तक),
(2) उत्तर मध्यकाल (सन् 1600 ई. से 1857 ई0)
उपर्युक्त काल विभाजन को संक्षेप में इस प्रकार किया जा सकता है -
(1) आदिकाल (सन् 1184-1350 ई. तक)
(2) पूर्व मध्यकाल (सन् 1350 ई0-1600 ई. तक)
(3) उत्तर मध्यकाल (सन् 1600-1857 ई. तक)
(4) आधुनिककाल (सन् 1857 से अब तक)
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- प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
- प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
- प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
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- प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
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- प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।