बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
अथवा
समकालीन हिन्दी कविता की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
समकालीन हिन्दी कविता में जीवन और जगत से जुड़ी प्रत्येक स्थिति - परिस्थिति को अत्यन्त यथार्थ ढंग से चित्रित किया गया है। भरसक प्रयासों के बाद भी जब स्वराज को आदर्श रामराज्य में परिणत न किया जा सका जो जनमानस में मोहभंग की स्थिति पैदा हो गई। जीवन के इस कटु यथार्थ का सामना करने में उसे जिन दबावों व तनावों को झेलना पड़ा है जिन-जिन आरोहों, संकल्पों विकल्पों में से गुजरना पड़ा है, उसकी स्पष्ट छाप हमें समकालीन हिन्दी कविता में दिखाई पड़ती है। परम्परित मूल्यों मान्यताओं का विरोध करने वाली इस कविता में प्रतिक्रियात्मक स्वर ही अधिक प्रबल है। यथा स्थिति को नकारकर आमूलपूर्ण परिवर्तन जाने की आकांक्षा तथा समकालीन परिवेश एवं यथार्थ को स्पष्ट वेलाग शब्दों में व्यंजित करना ही इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं
(1) विघटित व्यवस्था के प्रति आक्रोश एवं विद्रोह - व्यवस्था एक व्यापक प्रत्यय है। यह समूचे परिवेश का पर्याय है जिसके अन्तर्गत समाज, धर्म, राजनीति, संस्कृति आदि सब कुछ समाहित है। व्यवस्था को किसी देश अथवा समाज की पहचान बनाती है, उसे स्थायित्व प्रदान करती है, किन्तु जब इस व्यवस्था के मूल्यों, आदर्शों एवं परम्पराओं की अवहेलना कर इसमें मनमाने ढंग से परिवर्तन किये जाते हैं तो यह विघटन की शिकार हो जाती है और कोई भी विघटित व्यवस्था कल्याणकारी नहीं हो सकती। यही कारण है कि समकालीन हिन्दी कविता में भी ऐसी अव्यवस्थित व्यवस्था के प्रति तीव्र आक्रोश एवं असन्तोष दिखाई पड़ता है। ढोंगी और भ्रष्ट व्यवस्था को कवि मानस एक पल भी सहन करने के लिए तैयार नहीं, उसे तो एक चिनगारी की तलाश थी, जिससे इस ढोंग को सदा-सर्वदा के लिए खाक किया जा सके -
एक चिनगारी और
जो खाक कर दे
दुर्नीत को ढोंगी, व्यवस्था को
कायर गति को मूढ़ मति को
जीवन का वास्तविक निरूपण - कोई भी रचना तभी जीवन्त एवं प्राणवान बन सकती है, जब उसका जुड़ाव जीवन से हो। जीवन के तीव्र उत्कट अनुभवों की आँच में तपे बिना साहित्य सर्जना सम्भव नहीं है। चूंकि रचनाकार अपने परिवेश के प्रति प्रतिबद्ध होता है, अतः यह आवश्यक है कि बदलते मान-मूल्यों के साथ-साथ कविता का तेवर भी परिवर्तित हो। जहाँ तक समकालीन हिन्दी कविता का प्रश्न है इसमें जीवन की निर्मम वास्तविकताओं को अत्यन्त ईमानदारी से निरूपित किया गया है। अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने को तत्पर यह कविता जीवन की विसंगतियों को बेपर्द करना चाहती है। वह उन रूग्ण एवं विकृत व्यवस्थाओं के भीतर तक झांक लेना चाहती है, जिसके कारण जीवन दिनोदिन जटिल और संघर्ष पूर्ण बनता जा रहा है -
मुझे लगा मुझे एक दाने के अन्दर
घुस जाना चाहिए
पिसने के पहले मुझे पहुंच जाना चाहिए
आटे के शुरू में
चक्की की आवाज के पत्थर के नीचे
मुझे होना चाहिए इस समय
जहाँ से
गाने की आवाज आ रही थी।
(3) मोहभंग की स्थिति - छठे दशक की कविता पूर्णतः मोहभंग की कविता है। भ्रष्ट व्यवस्था, राजनेताओं की वादाखिलाफी, बढ़ते विदेशी ऋण, पूंजीवादी अधिनायकत्व, मंहगाई, भुखमरी, बेरोजगारी कालाबाजारी आदि समस्याओं ने आम आदमी के मन में असन्तोष एवं आक्रोश की भावना को ही उपजाया। आजादी उसके लिए महज तीन थके हुए रंगों का नाम बनकर रह गयी -
बीस साल बाद और इस शरीर में
सुनसान गलियों से चोरों की तरह गुजरते हुए
अपने आप से बात करता हूँ
क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक पहिया ढ़ोता है
या इसका कोई खास मतलब है
(4) राजनेताओं के प्रति क्षोभ की अभिव्यक्ति - देश की उत्तरोत्तर ह्रासोन्मुखी स्थिति के लिए कवि भ्रष्ट राजनेताओं को ही दोषी मानता है, क्योंकि इनकी क्षुद्र राजनीति केवल कुर्सी तक सीमित है, इनका दीन ईमान सब कुर्सी है -
अरमान बसे हैं, कुर्सी में
मन प्राण बसे हैं कुर्सी में भगवान बसे हैं कुर्सी में
सब धर्म कर्म कुर्सी, उनके
वे कुर्सी छोड़ नहीं सकते लाचारों को आवाज न दो।
(5) व्यक्ति और सामान्य सत्ता की प्रतिष्ठा - जनतंत्र में जन की महत्ता निर्विवाद है। साधारण जन की उपेक्षा करके न तो राजनीति ही की जा सकती है और न कविता, क्योंकि इतिहास साक्षी है -
जब-जब भी
लोगों को
इतिहासहीन कर देने की चेष्टा की गई है
तब-तब
वे लोग
अपनी पिपीलिकावत साधारणता के साथ
इतिहास की आग पर चलकर
पुराण पुरुष बन जाते रहे हैं।
(6) परम्परागत मूल्यों का विघटन - सन् साठ के बाद के वर्षों में उपजी मोहभंग की स्थिति ने हर पारम्परिक प्रणाली के प्रति नकार का भाव अपनाया। धर्म, सत्य, ईश्वर, न्याय उसके लिए बेमानी शब्द हो गये, क्योंकि विज्ञान की महत्ती उपलब्धियों ने आज मनुष्य को इतना समर्थ और शक्ति सम्पन्न बना दिया कि मिथ्या दर्प में चूर होकर वह स्वयं को ईश्वर के समकक्ष समझने लगा। पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, धर्म-अधर्म आदि किसी चीज से उसे भय नहीं है, मानवीय मूल्य अपना महत्व खोते जा रहे हैं। ऐसी हासोन्मुखी स्थिति में रचनाकार का चिन्तित होना स्वाभाविक है, इसीलिए वह कहता है -
प्राण हुए सस्ते अब पानी के मोल बिके
स्नेह, प्रेम, नेह, मोह दिखते हैं थके-थके
घर से निष्कासित हो शान्ति खड़ी होती है
उसको अपनाओ आलम्बन बदनाम न हो
(7) आस्था और अनास्था का संकुल चित्रण - समकालीन हिन्दी काव्य में आस्था और अनास्था दोनों का संकुल चित्रण मिलता है। बदलते मानव मूल्यों ने मानवीय संवेदनाओं को भोथरा बना दिया है। प्यार प्रेम जैसी सुकोमल भावनाएँ केवल छलावा बनकर रह गयी है, इनकी आड़ में मनुष्य कोई भी घटिया से घटिया कर्म करने से न हीं चूकता -
सहानुभूति और प्यार
अब एक ऐसा छलावा है
उसकी पीठ में
छुरा भोंक देता है।
(8) व्यक्ति मन का सहज अभिकथन - समकालीन कविता की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि इसमें पूरी ईमानदारी के साथ आम आदमी के दैनंदिनी संसार को सुरेखित किया गया है। औसत व्यक्ति की सहज साधारण संवेदनाओं को इतने कलात्मक ढंग से उकेरा गया है कि वे स्वयं में अद्भुत असाधारण बन गई है। इस उपभोक्तावादी संस्कृति की त्रासदियों को झेलते-झेलते मनुष्य की चेतना इतने खंडों में बंट गयी है कि उसे हर चीज से वितृष्णा हो गयी है, इसी मनःस्थिति को व्यक्त करती हुई निम्नलिखित पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं -
क्या मैं छुपाऊँ इश्तिहार?
क्या मैं बन जाऊँ किसी क्लब का सदस्य?
दूसरे के बच्चों से
झूठ-मूठ प्यार?
(9) काम का उन्मुक्त चित्रण - पाश्चात्य जीवनदृष्टि से प्रभावित समकालीन साहित्यकारों की रचनाओं में काम का उन्मुक्त चित्रण देखने को मिलता है। भारतीय संस्कृति के चतुवर्गों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला 'काम' अपनी प्राचीन गरिमा को खोकर केवल पाशविक उपभोग तक सीमित रह गया है। नारि को केवल भोग-विलास की वस्तु माना जा रहा है और अधिक आश्चर्य होता है, यह देखकर कि अश्लीलता की इस दौड़ में कवियित्रियाँ भी पीछे नहीं हैं।
(10) प्रकृति चित्रण - समकालीन हिन्दी कविता में प्रकृति का वह बहुरंगी रूप देखने को नहीं मिलता जो छायावाद में था। प्रकृति के प्रति इस तटस्थ रागात्मकता का कारण इसके केन्द्र में स्वयं मानव का होना है। फिर भी जगदीश गुप्त, नरेश मेहता, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, त्रिलोचन, प्रयाग शुक्ल आदि के काव्य में प्रकृति का सुन्दर और हृदयाकर्षी रूप दिखाई पड़ता है।
(11) जनवादी चेतना की विस्तृत व्यंजना - सामान्य रूप से, जनवाद से तात्पर्य उन मार्क्सवादी, माओवादी विचारधाराओं से है जिनके मूल में सर्वहारा सर्व की मुक्ति और संघर्ष के लिए किये गये सचेतन प्रयास एवं वर्गविहीन समाज की परिकल्पना प्रमुख है लोकतंत्र की इस वनतंत्री व्यवस्था से क्षुब्ध होकर कविमानस का ऐसा विराट् विश्वव्यापी चिन्तन प्रक्रिया के प्रति आकर्षित होना सहज स्वाभाविक ही था। कवि का अकम्प विश्वास है कि इन भयावह परिस्थितयों से टकराने का एकमात्र विकल्प संघर्ष ही है, इसके लिए वह सामान्य से सामान्य व्यक्ति के पास जाना चाहता है चाहे वे होरी किसान हो या मोचीराम -
राजतंत्र की इस वनतंत्री व्यवस्था में
मैं अकेला और असक्षम हूँ
मेरे स्नायुतंत्र पर भय और आतंक की कँटीली झाड़ियाँ
जब हम एक ही कोने में सिमटकर
एक-दूसरे को कुत्ते की तरह चाटेंगे
चाहें जो हो, इस प्रकार के गर्हित चित्र न तो समाज के लिए कल्याणकारी हैं और न साहित्य के सिले। मात्र भोगवाद पर टिका हुआ कोई भी चिन्तन अधिक दिन तक स्थायी नहीं रह पाता है और यही कारण रहा कि यह प्रवृत्ति भी जल्दी दम तोड़ गयी।
|
- प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
- प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
- प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
- प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।