बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रगतिवादी काव्यधारा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
प्रगतिवादी की प्रवृत्तिगत विशेषताएँ -
(1) सामाजिक यथार्थ का चित्रण प्रगतिवादी काव्य में कल्पना प्रवज अन्तर्दृष्टि के स्थान पर सामाजिक यथार्थ दृष्टि का पल्लवन हुआ है। उच्च समाज की विलासिता के आधारस्तम्भ कृषकों और मजदूरों को इस काव्य में प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ। पन्त जी की कविता में ग्रामीण कृषक एवं श्रमिक की हीन दशा का चित्रण सजीव रूप में हुआ है -
'यह भारत का ग्राय, सभ्यता संस्कृति से निर्वासित।
झाड़ फूंस के विवर- यही क्या जीवन-शिल्पी के घर?'
(2) सामाजिक समस्याओं का चित्रण - प्रगतिवादी कवि सामाजिक जीवन की विभिन्न घटनाओं एवं परिस्थितियों को खुली आँखों से देखता है और उनके चित्रण में सचेष्ट रहता है। उसका निश्चित मत है कि कविता का सम्बन्ध सामाजिक वास्तविकता से है और वही कविता उत्कृष्ट है जो उक्त वास्तविकता के प्रति सजग और संवेदनशील हैं। इसी सन्दर्भ में ही प्रगतिवादियों ने बंगाल के अकाल, भारत के विभाजन, हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य तथा राष्ट्रपिता गाँधी की हत्या पर लेखनी चलाई है।
(3) बौद्धिकता का समावेश - आधुनिक काल में वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने सर्वत्र तर्क तथा चिन्तन को प्रधानता दी है, फलतः आज कविता में भी भावुकता का स्थान बौद्धिकता ने ले लिया है। इस काव्यधारा में व्यंग्य की प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं जिससे बौद्धिकता का भार बनकर नहीं आती। एक बृद्ध भिक्षुक के चित्रण में व्यंग्य का रूप दर्शनीय है -
'भूखा है कुछ पैसे पा, गुनगुना
खड़ा हो जाता वह धर
पिछले पैरों के बल उठ
जैसे कोई चल रहा जानवर।
(4) प्राचीन रूढ़ियों का विरोध - प्रगतिवादी कवि प्राचीन मान्यताओं, परम्पराओं एवं रूढ़ियों को मानव विकास के पथ में बाधक मानकर उनका विरोध करता है। उसका निश्चित मत है कि समाज की प्रगति में बाधक - चाहें, वह धर्म हो, भगवान् हो, पुरातन साहित्य हो अथवा परम्परागत संस्कृति हो का विध्वंस आवश्यक है। इसी संदर्भ में उसका उद्घोष हैं -
"गा कोकिल बरसा पावक कण,
नष्ट-भ्रष्ट हो जीर्ण पुरातन।
ध्वंस अंश हो जग के जड़ बन्धन,
हो पल्लवित नवल मानव मन।'
(5) सांस्कृतिक समन्वय का भाव - प्रगतिवादी काव्य में प्राचीन संस्कृति के तत्वों और स्वरूपों को समेटकर उन्हें अधिक पुष्ट और विकसित करते हुए नवीन समन्वयात्मक संस्कृति की कल्पना है। पन्त जी के काव्य में अरविन्द के चेतनावाद और मार्क्स के समाजवाद के समन्वय से धर्म-जाति वर्ण इत्यादि के भेदों से सर्वथा शून्य एक अभिनव विश्व संस्कृति की भावना मुखरित हुई हैं -
'सर्व देश सर्व काल
धर्म जाति वर्ण काल
हिलमिल सब हों विशाल
एक हृदय अगणित स्वर।
(6) मानवता की महत्ता पर आस्था - प्रगतिवाद में मानवता की महत्ता पर अपरिमित विश्वास प्रकट किया गया है। कर्म की महत्ता का सन्देश सुन कर उठते हुए व्यक्ति को ओर अधिक उठाने का प्रयास किया गया है। इस काव्यधारा में व्यक्ति की महत्ता के संदर्भ में ईश्वर की महत्ता तक उपेक्षित हो गई है। एक उदाहरण प्रस्तुत है -
'जिसे तुम कहते हों भगवान्
जो बरसाता है जीवन में
रोग शोक दुःख दैन्य अपार
उसे सुनाने वाला पुकार
(7) प्रेम का स्वस्थ चित्रण - प्रेम जीवन की शाश्वत वृत्ति है। प्रगतिवादी साहित्य हो अथवा किसी अन्य वाद से सम्बद्ध या असम्बद्ध साहित्य प्रेम की उपेक्षा किसी भी साहित्य में सम्भव नहीं। प्रगतिवादी काव्यधारा में चित्रित प्रेम के स्वरूप की व्याख्या में डॉ. रांगेय राघव का अनुसार, 'इस प्रेम मे छायावादी दुरूहता नहीं है, इसमें रूप एक जाल नहीं जो कि जीवन को एकांगी बना रहा हो, वह तो उसकी वास्तविकता का आभास दे रहा है। समाज की विशेषताएँ भी साहित्य में इसीलिए दिलाई जाती हैं कि वे मनुष्य के सौन्दर्य और सत्य पर आघात पहुंचाती हैं।
(8) नारी विषयक जीवन दृष्टिकोण - जब तक उपयोग की वस्तु तथा निजी सम्पत्ति समझी जाने वाली नारी के प्रति प्रगतिवादी काव्य में एक स्वस्थ और नवीन दृष्टिकोण को अपनाया गया। नारी के शोषण का विरोध करते हुए उसे पुरुष के समान महत्वपूर्ण तथा पुरुष की जीवन सहचरी माना गया है। पन्त जी ने नारी स्वातन्त्र्य का समर्थन करते हुए लिखा -
'योनि नहीं है रे नारी, वह भी मानवी प्रतिष्ठित,
उसे पूर्ण स्वाधीन करो, वह रहे न नर पर अवसित
(9) शोषण का विरोध - प्रगतिवादी काव्य का मूल स्वर प्रत्येक प्रकार के शोषक जैसे- पूँजीपति, जमींदार, साम्राज्यवादी के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न करना, प्रत्येक प्रकार के शोषित मजदूर, किसान आदि के प्रति सहानुभूति का भाव प्रकट करना तथा सभी प्रकार के शोषण राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक का विरोध करना है।
प्रगतिवादी काव्य का कला पक्ष
प्रगतिवादी साहित्य का सम्बन्ध जनजीवन से होने के कारण इस धारा का साहित्यकार सरल एवं स्वाभाविक भाषा शैली अपनाने का पक्षधर है। उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग के बीच में वैषम्य को प्रदर्शित करने के लिए प्रगतिवादी कवि ने अत्यन्त तीखी व्यंग्यमयी भाषा को अपनाया है। वह परम्परागत उपमानों तथा प्रतीकों का परित्याग करके नवीन विचारों को व्यक्त करने में सक्षम नूतन उपमानों तथा प्रतीकों का प्रयोग करता है। छन्दों के क्षेत्र में भी वह परम्परागत छन्दों के स्थान पर नवीन मुक्त छन्द का प्रयोग करता है। इस प्रकार प्रगतिवादी कवि अपनी वाणी जन-जन तक पहुंचाने के लिए उपयोगितावादी दृष्टि को अपनाते हुए सरलतम भाषा शैली को अपनाता है।
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- प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
- प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
- प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
- प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।