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बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक सम्प्रेषण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2669
आईएसबीएन :0

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बीकाम सेमेस्टर-1 व्यावसायिक सम्प्रेषण

प्रश्न- अनौपचारिक सम्प्रेषण ( अंगूरलता सम्प्रेषण) क्या है? इसके गुण व दोष (सीमाएँ) भी बताइये।

अथवा
अंगूरीलता सम्प्रेषण का अर्थ स्पष्ट कीजिए एवं इसकी विशेषताएँ एवं प्रकार बताइए।
अथवा
ग्रेपवाइन सम्प्रेषण किस प्रकार होता है?

उत्तर -

अनौपचारिक सम्प्रेषण या अपुष्ट सम्प्रेषण
(Informal Communication or Grapevine)

अनौपचारिक सम्प्रेषण पद्धति को अपुष्ट सम्प्रेषण भी कहा जाता है। इस प्रकार की सम्प्रेषण रीति अनौपचारिक सम्बन्धों पर आधारित होती है। शब्द अंगूरीलता (grapevine) की उत्पत्ति यूएएसए सिविल युद्ध के दौरान हुई। उस समय इण्टैलीजेन्स टेलीफोन लाइनों को एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर अंगूर की लता की भाँति लटकाया गया था जो कि ढीली व अस्त-व्यस्त स्थिति में थी। इनसे संदेश प्रायः विकृत (distort) हो जाया करता था। यह विधि केवल अनौपचारिक संगठनात्मक ढाँचे की दशा में अपनाई जा सकती है। प्रायः संदेश सीधे भेजा जाता है। इस पथ को अपनाने पर अफवाह ( rumour) की सम्भावना होती है। अफवाहों पर समुचित नियंत्रण रखना आवश्यक होता है। अनौपचारिक सम्प्रेषण निर्धारित सम्प्रेषण संजाल के बाहर कार्य करता है क्योंकि यह रिकार्ड से पृथक होता है तथा संगठनात्मक सोपानिकता से बाहर होता है। इसकी कोई विशेष दिशा नहीं होती। सामान्यतया औपचारिक एवं अनौपचारिक सम्प्रेषण साथ-साथ चलते है। संगठन द्वारा औपचारिक सम्प्रेषण के साथ अनौपचारिक सम्प्रेषण को बढ़ाया जा सकता है ताकि संगठन में सम्प्रेषण को प्रभावी बनाया जा सके।

नीचे दिया गया चित्र संगठन में अनौपचारिक सम्प्रेषण दिखाता है -

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दिए गये चित्र में बिन्दुकित रेखाएँ औपचारिक सम्प्रेषण को व्यक्त करती हैं।

 

विशिष्ट तथ्य (Specific Elements) : ये निम्नवत् व्यक्त किये जा सकते हैं -

1. तकनीकी रूप से 'ग्रेपवाइन' कहा जाना,
2. कार्यालयी संजाल से बाहर होना,
3. ढाँचा रहित होना,
4. सभी दिशाओं में संदेश का जाना,
5. गैर-कार्यालयी पथ,
6. औपचारिक सम्बन्धों की सीमा से बाहर होना,

गुण
(Merits)

इसके गुण निम्नवत् हैं -

1. सम्प्रेषण क्रिया अत्यधिक तीव्रगति से होना,
2. लोगों की प्राकृतिक इच्छा को अभिव्यक्त करना,
3. कुछ निर्धारित संदेशों के प्रसारण में उपयोगी होना,
4. अन्य पथों को सहायता देना,
5. मनोवैज्ञानिक संतुष्टि प्राप्त होना।

अंगूरीलता सम्प्रेषण की सीमाएँ
(Demerits of Grapevine Communication)

इसके दोष निम्नलिखित हैं-

1. अस्थाईपन होना,
2. गैर-नियोजित होने के कारण हानि की सम्भावना होना,
3. क्रमबद्धता का अभाव,
4. कभी-कभी अफवाहें, असत्यता गप्पबाजी एवं पक्षपातपूर्ण संदेश का प्रसारण होना,
5. मौखिक सम्प्रेषण पर आधारित होने के कारण मौखिक सम्प्रेषण के दोष आ जाना
6. कोई निश्चित स्वरूप का न होना,
7. कभी-कभी गम्भीरता से नहीं लिया जाना,
8. इस पर अत्यधिक निर्भरता ठीक होना,
9. कभी-कभी पूर्ण सूचना को प्रसारित न किया जाना,
10. अप्रमाणितता,
11. संगठन की सूचना को क्षति होने की सम्भावना,
12. किसी को उत्तरदायी ठहराने में कठिनाई होना, आदि।

अंगूरलता सम्प्रेषण श्रृंखलाओं के प्रकार
(Types of Grapevine Chains)

कीथ डेविस ने अंगूरलता सम्प्रेषण श्रृंखलाओं के निम्नलिखित चार प्रकार बताये हैं-

(a) एक से दूसरे तक या समंकवाद से काल तक बढ़ाने वाली श्रृंखला या एकल धारा या एकाकी धारा श्रृंखला (Single-strand Chain): इस प्रकार की श्रृंखला में एक व्यक्ति कुछ किसी व्यक्ति को तथा यह दूसरा व्यक्ति किसी तीसरे व्यक्ति को बताता है तथा यह प्रक्रिया आगे तक चलती रहती है। जैसे 'ए' 'बी' से तथा 'बी' 'सी' को कुछ संदेश दें यह श्रृंखला बहुत कम ही ठीक होती है।

(b) गप्पों वाली श्रृंखला या गपशप श्रृंखला (Gossip Chain): इसमें एक व्यक्ति संदेश जानकर सभी को बताता है। ऐसा तब होता है जब संदेश रुचिकर परन्तु कार्य से असम्बद्ध होता है।

(c) सम्भावित श्रृंखला (Probability Chain): इस श्रृंखला में व्यक्ति उदासीन तथा रुचि न रखने वाले होते हैं। वे अचानक (at random) बताते हैं तथा वे किन्हीं और लोगों को अचानक बताते हैं। ऐसा तब होता है जब सूचना कुछ रुचिकर हो परन्तु उसका कोई वास्तविक महत्व न हो। 

(d) समूह या गुच्छा श्रृंखला (Cluster Chain): इस श्रृंखला में कोई एक व्यक्ति कुछ चुनिंदा व्यक्तियों को कोई संदेश देता है तदुपरान्त ये व्यक्ति कुछ अन्य चुनिंदा व्यक्तियों को संदेश देते हैं।

अपुष्ट सम्प्रेषण पद्धति के दोषों हेतु उत्तरदायी कारण
(Cowses Responsible for the Drawbacks of Grapevine
Communication System)

1. अनिश्चितता की भावना,
2. निदेशन के ज्ञान का न होना,
3. कर्मचारियों की ओर से अनुचित कार्यवाही करने की भावना,
4. कर्मचारियों में आत्म-विश्वास की कमी,
5. प्रबन्धकों द्वारा पक्षपात समूह का निर्माण।

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