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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -

उत्तर -

1. त्वम्

यहाँ युष्मद शब्द से प्रथमा के एकवचन में स्वौजसमौट्छष्टाभ्यांभिसभ्यांभ्यस्ङ सिभ्यांभ्यङ्सोसामङयोस्सुप्' इस सूत्र से 'सु' प्रत्यय होता है -

युष्मद् + सु = इस स्थिति में ङे प्रथमयोरम् से 'सु' को अम् आदेश हो जाता है। युष्म + अम् = इस स्थिति में त्वाऽहौ सौ' सूत्र के द्वारा 'युष्म्' को त्व आदेश हो जाता है।

त्व + अद् + अम् = इस स्थिति में 'अतोगुणे से 'त्व' के 'अ' और 'अद्' के 'अ' का पररूप होकर

त्वद् + अम् = यह स्थिति होती है। तब शेषे लोपः इस सूत्र के द्वारा अद् का लोप हो जाता है।

त्व् + अम् = त्वम् रूपसिद्ध होता है।

2. युवाम्

यहाँ युष्मद् शब्द से प्रथमा के द्विवचन में स्वौजससौ → इस सूत्र से 'औ' प्रत्यय होता है।

युष्मद् + औ → इस स्थिति में ङे प्रथमयोरम् इस सूत्र के द्वारा औ को अम् आदेश हो जाता है।

युष्मद् + अम् → इस स्थिति में "युवाऽऽवौ द्विवचने" इस सूत्र के द्वारा युष्म् को युव आदेश हो जाता है।

युव + अद् + अम् इस स्थिति में 'अतोगुणे' से पररूप होकर -

युवद् + अम् → यह स्थिति होती है। तत्पश्चात् 'प्रथमायाश्च द्विवचने भाषायाम्' इस सूत्र के द्वारा 'दकार' को आकार आदेश हो जाता है। तत्पश्चात् 'अ' और 'आ' को सवर्ण दीर्घ हो जाता है।

युवा + अम् - इस स्थिति में वा के आ और अम् के अ को संवर्ण दीर्घ होकर युवाम् रूपसिद्ध होता है।

3. यूयम्

यहाँ प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में स्वौजस ------- सूत्र से जस् प्रत्यय होता है।

युष्मद् + जस् - इस स्थिति में 'ङे प्रथमयोरम' सूत्र से जस को अम् आदेश हो जाता है।

युष्मद् + अम् - इस स्थिति में 'यूय वयौ जसि सूत्र के द्वारा युष्म को 'यूय' आदेश हो जाता है।

यूय + अद् + अम् - इस स्थिति में अतोगुणे' से 'यूय' के 'अ' और 'अद्' के अ को पररूप हो जाता है।

 

यूय + अद् + अम् - 'शेषे: लोप': सूत्र से 'अद' की 'टि' का लोप हो जाता है।

यूय् + अम् = यूयम् – इस प्रकार यूयम् रूपसिद्ध होता है।

4. त्वाम्

यहाँ द्वितीया विभक्ति के एकवचन में स्वौजस ... सूत्र के द्वारा 'अम्' प्रत्यय आता है।

युष्मद् + अम् - इस स्थिति में 'त्व - मावेकवचने इस सूत्र के द्वारा युष्म के स्थान पर त्व आदेश हो जाता है।

त्व + अद् + अम् - इस स्थिति में अतोगुणे से पररूप होता है।

त्वद् + अम् इस स्थिति में द्वितीयायांच ...... इस सूत्र के द्वारा अन्त्य दकार को आकार आदेश हो जाता है।

त्व + आ + अम् - इस स्थिति में पहले पूर्व अकार और आकर को सवर्ण दीर्घ होता है। त्वा + अम् - इस स्थिति में 'अ' और 'अम्' के 'अ' को सवर्णदीर्घ होकर 'त्वाम्' रूपसिद्ध होता है।

विशेष - द्वितीया के द्विवचन में 'औ = औ' प्रत्यय आता है। इसकी रूपसिद्ध प्रथमा के द्विवचन युवाम् की तरह होती है।

5. युष्मान्

यहाँ 'युष्मद' शब्द से द्वितीया के बहुवचन से स्वौजस शस् प्रत्यय होता है। शस् के शकार का लोप होकर अस् शेष रहता है।

युष्मद् + अस् - इस स्थिति में 'शसोन' इस सूत्र के द्वारा 'अस्' के आदि अकार को नकार हो जाता है।

युष्मद् + न् + स् - इस स्थिति में 'द्वितीययां च' इस सूत्र के द्वारा दकार को अकार आदेश हो जाता है।

युष्म + अ + न् + स् - इस स्थिति में सवर्ण दीर्घ होकर -

युष्मान् + स् - यह स्थिति होती है, "संयोगान्तस्य लोपः" से सकार का लोप होकर युष्मान् रूपसिद्ध होता है।

6. त्वया

यहाँ 'युष्मद्' शब्द के तृतीया के एकवचन में 'स्वौजस ---- सूत्र से 'टा' प्रत्यय होता है।

युष्मद् + टा - इस स्थिति में 'टा' की इत् संज्ञा होकर 'आ' शेष रहता है।

युष्मद् + आ - इस स्थिति में 'त्वं मावेकवचने से 'युष्म' को 'त्वा' आदेश हो जाता है।

त्वा + अद् + आ - इस स्थिति में 'अतोगुणे' से पररूप होता है।

त्वद् + आ - इस स्थिति में 'योऽचि' इस सूत्र के द्वारा 'दकार' को यकार आदेश हो जाता है।

त्व + य् + आ = ‘त्वया' रूप सिद्ध होता है।

7. युवाभ्याम्

यहाँ तृतीया विभक्ति के एकवचन में 'स्वौजस सूत्र से भ्याम् प्रत्यय होता है।

युष्मद् + भ्याम् - इस स्थिति में युवाऽवौद्विवचने इस सूत्र के द्वारा 'युष्म्' को 'युव' आदेश होता है।

यूव + अद् + भ्याम् – इस स्थिति में 'अतोगुणे' से पररूप होता है।

युवद् + भ्याम् - इस स्थिति में 'युष्मदस्मदोरनादेशे" इस सूत्र के द्वारा दकार को आकार आदेश होता है।

युव + आ + भ्याम् इस स्थिति में सवर्ण दीर्घ होकर 'युवाभ्याम्' रूप सिद्ध होता है।

8. युष्माभिः

यहाँ युष्मद् शब्द से तृतीया के बहुवचन में 'स्वौजस' सूत्र से भिस् प्रत्यय होता है।

युष्मद् + भिस् - इस स्थिति में इस युष्मदस्म सूत्र से दकार को आकार होता है।

युष्म + अ + भिस् - इस स्थिति में सवर्ण दीर्घ होता है।

युष्माभिस् - यहाँ सकार को रुत्वं विसर्ग होकर युष्माभिः रूप सिद्ध होता है।

9. तुभ्यम्

यहाँ युष्मद् शब्द से चतुर्थी एकवचन में “स्वौजस सूत्र से ड़े प्रत्यय होता है।

युष्मद् + डे - इस स्थिति में 'ङे प्रथमयोरम्' सूत्र से डे को 'अम्' आदेश हो जाता है।

युष्मद् + अम् - इस स्थिति में "तुभ्यमह्यौडामि' सूत्र से "युवम्" को तुभ्य आदेश हो जाता है। "अतोगुणे" से पररूप हो जाता है।

तुभ्य् + अम् = तुभ्यम् रूप सिद्ध होता है।

विशेष- चतुर्थी के द्विवचन में 'भ्याम् प्रत्यय आता है। इसकी रूप सिद्ध तृतीया के द्विवचन की तरह होती है।

10. युष्मभ्यम्

यहाँ युष्मद शब्द में चतुर्थी के बहुवचन में "स्वौजस् - सूत्र से भ्यस् प्रत्यय होता है।

युष्मद् + भ्यस् - इस स्थिति में "भ्यसोऽभ्यम्" इस सूत्र के द्वारा 'भ्यस्' को अभ्यम् आदेश होता है।

युष्मद् + अभ्यम् - इस स्थिति में "शेषेलोप": सूत्र से अद् टि का लोप हो जाता है।

युष्म् + अभ्यम् = युष्मभ्यम् रूप सिद्ध होता है।

11. 'त्वत्'

यहाँ युष्मद् शब्द से पंचमी एकवचन में "त्वौजस" सूत्र से ङसि प्रत्यय होता है।

युष्मद् + ङसि - इस स्थिति में "त्वमावेकवचने इस सूत्र के द्वारा युष्म् को त्व आदेश हो जाता है।

त्वद् + ङसि - इस स्थिति में एकवचनस्यच इस सूत्र के द्वारा 'ङसि' को 'अत्' आदेश हो जाता है।

त्वद् + अत् - इस स्थिति में "शेषेलोप": सूत्र से 'अद्' टि का लोप हो जाता है।

त्व् + अत् = त्वत रूपसिद्ध होता है।

विशेष - पंचमी द्विवचन में 'युवाभ्याम्' की रूपसिद्ध तृतीया के द्विवचन की तरह होगी।

12. युष्मत्

यहाँ 'युष्मद्' शब्द से पंचमी के बहुवचन में स्वौजस सूत्र से भ्यस् प्रत्यय होता है।

युष्मद् + भ्यस् - इस सूत्र के द्वारा भ्यस् को अत् आदेश होता है।

युष्मद् + अत् - इस स्थिति में शेषे लोपः सूत्र 'अत् टि' का लोप हो जाता है।

युष्म + अत् = युष्मत् रूपसिद्ध होता है।

13. तव

यहाँ युष्मत् शब्द में षष्ठी एकवचन में स्वौजस सूत्र से ङस प्रत्यय होता है।

युष्मद् + ङस् - इस स्थिति में "तव ममौङसि" सूत्र के द्वारा "युष्म्" को "तव" आदेश हो जाता है और अतोगुणे से पररूप होता है।

तवद् + ङस् - इस स्थिति में " युष्मदस्यांङसोङश्" सूत्र से ङस् के स्थान पर अश् आदेश हो जाता है। शकार की इत् संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

त्वद् + अ - इस स्थिति में 'शेषेलोप: सूत्र से 'अद् टि' का लोप होकर 'त' रूप सिद्ध होता है।

14. युवयोः

यहाँ 'युष्मद्' शब्द से षष्ठी विभक्ति के द्विवचन में "स्वौजस..... सूत्र से "ओस्' प्रत्यय होता है।

युष्मद् + ओस् - इस स्थिति में 'मुवाऽऽवौद्विवचने" सूत्र से युष्म को युव आदेश हो जाता है।

युव + अ + ओस् - इस स्थिति में अतोगुणे से पररूप हो जाता है।

युवद् + ओस् - इस स्थिति में ' योऽचि' सूत्र से दकार को यकार आदेश हो जाता है।

युवय् + ओस् = युवयोस् - इस स्थिति में सकार का रुत्व विसर्ग होकर युवयोः रूप सिद्ध होता है।

15. युष्माकम्

यहाँ 'युष्मद' शब्द से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में स्वौजस सूत्र से 'आम्' प्रत्यय आता है।

युष्मद् + आम् इस स्थिति में "साम् आकम्" - इस सूत्र के सूत्र के द्वारा आम् को "आकम्" आदेश हो जाता है।

युष्मद् + आकम् - इस स्थिति में "शेषे लोप:" सूत्र से दकार का लोप हो जाता है।

युष्म + आकम् - यहाँ सवर्ण दीर्घ होकर युष्माकम् रूपसिद्ध होता है।

16. त्वयि

यहाँ 'युष्मद्' शब्द से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में 'त्व मावेकवचने' सूत्र से 'त्वम्' को त्वद् आदेश होता है। अतोगणु से पररूप हो जाता है।

त्वद् + इ - इस स्थिति में 'योऽचि' सूत्र से दकार को यकार आदेश हो जाता है।

त्व + य् + इ = त्वयि रूप सिद्ध होता है।

विशेष - सप्तमी विभक्ति के द्विवचन के युवयोः की सिद्धि षष्ठी विभक्ति के द्विवचन के युवयोः के समान होगी।

17. युष्मासुः

यहाँ युष्मद् शब्द से सप्तमी के बहुवचन में स्वौजस सूत्र से (सुप्) प्रत्यय होता है। पकार की इत्संज्ञा और लोप हो जाता है।

युष्मद् + सु - इस स्थिति में "युष्मदस्यदोरनादेशे" सूत्र से दकार को आकार आदेश होता है।

युष्म + अ + सु - इस स्थिति में सवर्ण दीर्घ होकर 'युष्मासु' रूप सिद्ध होता है।

18. भुवयोः

भुवयोः प्रतिपादक संज्ञक भुव शब्द से षष्ठी द्विवचन में 'ओस्' प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है। भुवयोस् शब्द में रुत्व विसर्ग होकर भुवयोः रूपसिद्ध होता है।

अस्मद् शब्द के रूप

विभक्ति एक वचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा अहम् आवाम् वयम्
द्वितीया माम आवाम्, अस्मान्
तृतीया मया आवाभ्याम् अस्माभिः
चतुर्थी मह्यम् आवाभ्याम् अस्मभ्यम्
पञ्चमी  मत् आवाभ्याम् अस्मत्
षष्ठी मम आवयोः अस्माकम्
सप्तमी  मयि आवयोः अस्मासु

19. अहम्

यहाँ स्मद् शब्द से प्रथमा के एकवचन में स्वौजसमौटछटाभ्यांभिस डेभ्याभ्यस्ङसिभ्यांभ्यसङ सोसामङ्योस्सुम्स्सुप्' इस सूत्र 'सु' प्रत्यय होता है।

अस्मद् + सु - इस स्थिति में 'ङे प्रथमयोरम्' से 'सु' को अमादेश हो जाता है।

अस्मद् + अम् इस स्थिति में 'त्वाऽहौसौ' इस सूत्र के द्वारा 'अस्म्' को 'अह्' आदेश हो जाता है।

अह् + अद् + अम् - इस स्थिति में "अतोगुणे" से अस्म् के 'अ' और 'अद्' के 'अ' का पररूप होकर

अहद् + अम् - यह स्थिति होती है। तत्पश्चात् शेषेलोपः सूत्र के द्वारा 'अद्' का लोप हो जाता है।

अह् + अम् = अहम् रूपसिद्ध होता है।

20. आवाम्

यहाँ 'अस्मद्' शब्द से प्रथमा विभक्ति के द्विवचन में "स्वौजस" ---- सूत्र से 'और' प्रत्यय होता है।

अस्मद् + औ - इस स्थिति में 'ङे प्रथमयोरम्' इस सूत्र में 'और' को अम् आदेश होता है।

अस्मद् + अम् - इस स्थिति में 'युवाऽऽवौद्विवचने' सूत्र के द्वारा अस्म् को आव आदेश हो जाता है।

आव + अद् + अम् – इस स्थिति में अतोगुणे से पररूप होता है।

आवद् + अम् - इस स्थिति में प्रथमायाश्चद्विवचने भाषायाम् इस सूत्र के द्वारा दकार को आदेश होता है। तत्पश्चात् अकार और आकार को सवर्ण दीर्घ होता है और पुनः अ और आ को सवर्णदीर्घ होकर आवाम् रूपसिद्ध होता है।

21. वयम्

यहाँ अस्मद् शब्द से प्रथमा बहुवचन में "स्वौज्स" ....... सूत्र के द्वारा "जस्' प्रत्यय होता है -

अस्मद् + जस् - इस स्थिति में 'डे' 'प्रथमयोरम्' सूत्र से जस को अम् आदेश होता है।

अस्मद् + अम् - इस स्थिति में यूय वयौजसि इस सूत्र के द्वारा 'अस्म' को 'वय' आदेश हो जाता है।

वय + अद् + अम् - इस स्थिति में अतोगणु' से पररूप होकर

वयद् + अम् - इस स्थिति में 'शेषेलोप' से अद् 'टि' का लोप हो जाता है।

वय् + अम् = वयम् रूपसिद्ध होता है।

22. माम्

यहाँ 'अस्मद' से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में स्वौजस............. सूत्र से अम् प्रत्यय होता है।

अस्मद् + अम् - इस स्थिति में 'ङे प्रथमयोरम्' सूत्र से 'अम्' को अम् आदेश हो जाता है।

अस्मद् + अम् - इस स्थिति में "त्व मावेकवचने' सूत्र से 'अरम' को 'म' आदेश होकर

म + अद् + अम् - यह स्थिति होती है। अतोगुणे से पररूप हो जाता है।

मद् + अम् - इस स्थिति में द्वितीयायांच सूत्र के द्वारा दकार को अकार आदेश हो जाता है।

म + अ + अम् - इस स्थिति में पहले पूर्व अकार और आकार को सवर्णदीर्घ होता है। तत्पश्चात् आकार और 'अम्' के 'अ' का सवर्ण दीर्घ होकर 'माम रूपसिद्ध होता है।

विशेष -  द्वितीया के द्विवचन में और प्रत्यय होता है। 'ट्' की इत्संज्ञा और लोप हो जाता है। शेष कार्य प्रथमा के द्विवचन के समान होकर 'आवाम्' रूप बनता है।

23. अस्मान्

यहाँ अस्मद् शब्द से द्वितीया के बहुवचन में 'स्वौजस.... सूत्र से 'शस्' प्रत्यय होता है। शकार की इतसंज्ञा और लोप होकर 'अस्' शेष रहता है।

अस्मद् + अस् - इस स्थिति में 'शसो न इस सूत्र के द्वारा 'अस' के अकार को नकार आदेश हो जाता है।

अस्मद् + न् + स् - इस स्थिति में द्वितीयायांच इस सूत्र से दकार को अकार आदेश हो जाता है।

अस्म + अ + न् + स् इस स्थिति में सवर्ण दीर्घ होकर

अस्मान् + स् - यह स्थिति होती है और "संयोगान्तस्य लोप: सूत्र से सकार का लोप होकर अस्मान् रूपसिद्ध होता है।

24. मया

यहाँ 'अस्मद्' शब्द से तृतीया के एकवचन में "स्वौजस".... सूत्र के द्वारा टा प्रत्यय होता है। टकार की इतसंज्ञा और लोप हो जाता है।

अस्मद् + आ - इस स्थिति में 'त्वमावेकवचने' सूत्र के द्वारा 'अस्म' को म आदेश हो जाता है। अतोगुणे से पररूप होकर

मद् + आ - यह स्थिति होती है। "योऽचि" इस सूत्र के दकार को यकार आदेश होकर मया रूपसिद्ध होता है।

25. आवाभ्याम्

यहा अस्मद् शब्द से तृतीया के द्विवचन में स्वौज्स ....  सूत्र से भ्याम् प्रत्यय होता है।

अस्मद् + भ्याम् - इस स्थिति में "युवाऽऽवौ द्विवचने" सूत्र से अस्म को आव आदेश हो जाता है।

आव + अद्भ्याम् - इस स्थिति में 'अतोगुणे: से पररूप होकर

आवद् + भ्याम् - इस स्थिति में "युष्मदस्मदोरनादेशे" इस सूत्र से दकार को आकार आदेश हो जाता है।

आव + अ + भ्याम् - इस स्थिति में सवर्णदीर्घ होकर आवाभ्याम् रूपसिद्ध होता है।

26. अस्माभिः

यहाँ अस्मद् शब्द से तृतीया के बहुवचन में स्वौजस सूत्र से भिस् प्रत्यय होता है।

अस्मद् + भिस् - इस स्थिति में "युष्मदस्मदोरनादेशे' सूत्र से दकार को आकार आदेश होता है। सवर्णदीर्घ होकर

अस्मा + भिस् - अस्माभिस इस स्थिति में सकार को रुत्व विसर्ग होकर अस्माभिः रूप सिद्ध होता है।

27. मह्यम्

यहाँ 'अस्मद्' शब्द से चतुर्थी एकवचन में 'स्वौजस'----- सूत्र से 'डे' प्रत्यय होता है।

अस्मद् + ङे - इस स्थिति में 'डे' प्रथमयोरम् सूत्र से 'डे' को अम् आदेश होता है। अस्मद् + अम् - इस स्थिति में तुभ्यमह्यौडयि मह्य आदेश होता है।

मह्य + अद् + अम् - इस स्थिति से अतोगुणे' से पररूप होकर

मह्यद् + अम् - इस स्थिति में 'शेषेलोप' से अद् 'टि' का लोप होकर 'मह्यम्' रूपसिद्ध होता है।

विशेष- चतुर्थी विभक्ति के द्विवचन में तृतीया विभक्ति के द्विवचन के समान रूपसिद्धि होगी। यहाँ भी आवाभ्याम्' रूप बनेगा।

28. अस्मभ्यम्

यहाँ अस्मद्' शब्द से चतुर्थी विभक्ति के बहुवचन में स्वौजस.... सूत्र से 'भ्यस' प्रत्यय होता है।

अस्मद् + भ्यस् - इस स्थिति में "भ्यसोऽभ्यम्" सूत्र के द्वारा 'भ्यस' को 'अभ्यम्' आदेश हो जाता है।

अस्मद् + अभ्यम् - इस स्थिति में 'शेषे लोपः' से 'अद्' का लोप होकर 'अस्मभ्यम्' रूप सिद्ध होता है।

29. मत्

यहाँ अस्मद् शब्द से पंचमी विभक्ति के एकवचन में "स्वौज ... सूत्र से ङसि प्रत्यय होता है।

अस्मद् + सि - इस स्थिति में "त्वामेकवचने' सूत्र से 'अस्म' को 'म' आदेश हो जाता है।

म + अद् + ड्सि - इस स्थिति में 'अतोगुणे' से पररूप होता है।

मद् + ङसि - इस स्थिति में 'एकवचनस्य' 'च' सूत्र से 'ङसि' को अत् आदेश हो जाता है।

मद् + अत् - इस स्थिति में 'शेषे लोपः से अद टि का लोप होकर 'मत' रूपसिद्ध होता है।

विशेष - पंचमी विभक्ति के एकवचन में 'आवाभ्याम्' रूप बनता है। इसकी रूप सिद्धि तृतीया विभक्ति के द्विवचन की तरह होती है।

30. अस्मत्

यहाँ 'अस्मद्' शब्द से पंचमी विभक्ति के बहुवचन में "स्वौज ... सूत्र से भ्यस् प्रत्यय होता है।

अस्मद् + भ्यस् - इस स्थिति में "पञ्चम्याअत्' सूत्र से 'भ्यस्' को अत् आदेश हो जाता है।

अस्मद् + अत् - इस स्थिति में 'शेषेलोपः' सूत्र से अद्' टि का लोप होकर 'अस्मत्' रूपसिद्ध होता है।

31. मम

यहाँ अस्मद् शब्द से षष्ठी एकवचन में स्वौज .... सूत्र से ङस् प्रत्यय होता है।

अस्मद् + ङस् - इस स्थिति में "तवममौङसि" सूत्र के द्वारा 'ङस्' के स्थान पर मम आदेश हो जाता है। तत्पश्चात् अतोगुणे' से पररूप होकर

ममद् + ङस् - इस स्थिति में "युष्मदस्तदभ्यांङसोडश्' सूत्र से 'ङस्' के स्थान पर 'अश' आदेश हो जाता है। शकार की इतसंज्ञा और लोप हो जाता है।

ममद् + अ इस स्थिति में 'शेषेलोपः सूत्र से 'अद्' 'टि' का लोप होकर 'मम' रूपसिद्ध होता है।

32. आवयोः

यहाँ 'अस्मद्' शब्द से षष्ठी विभक्ति के द्विवचन में "स्वौज ...... सूत्र से ओस् प्रत्यय होता है।

अस्मद् + ओस् - इस स्थिति में "युवाऽऽवौद्विवचने' सूत्र से 'अस्म्' को 'आव्' आदेश होता है।

आव + अ + ओस् - इस स्थिति में अतोगुणे से पररूप होकर -

आवद् + ओस् - इस स्थिति में 'योऽचि' सूत्र से दकार को यकार आदेश होता है।

आवय् + ओस् - आवयोस् - यहाँ सकार को रुत्व विसर्ग होकर आवयोः रूपसिद्ध होता है।

33. अस्माकम्

यहाँ 'अस्मद्' शब्द से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में 'स्वौज सूत्र से आम् प्रत्यय होता है।

अस्मद् + आम् - इस स्थिति में "सामआकम्" सूत्र से आम को आकम् आदेश हो जाता है।

अस्मद् + आकम् - इस स्थिति में "शेषेलोपः " सूत्र से दकार का लोप हो जाता है।

अस्म + आकम् - इस स्थिति में 'सवर्ण दीर्घ' होकर अस्माकम् रूपसिद्ध होता है।

34. मयि

यहाँ 'अस्मद्' शब्द से सप्तमी विभक्ति के एकवचन में स्वौज सूत्र से ङि प्रत्यय होता है।

अस्मद् + ङि - इस स्थिति में 'त्वामावेकवचने सूत्र से अस्म को 'म' आदेश हो जाता है।

म + अद् + ङि - इस स्थिति में 'अतोगुणे' से पररूप होकर -

मद् + ङि - इस स्थिति में उकार का लोप हो जाता है।

मद् + इ - इस स्थिति में योऽयि सूदकार को इंकार होकर मयि रूपसिद्ध होता है।

विशेष - सप्तमी विभक्ति के द्विवचन के रूप आवयोः की सिद्धि षष्ठी विभक्ति के द्विवचन के समान होती है।

35. अस्मासु

यहाँ 'अस्मद्' शब्द से सप्तमी के बहुवचन से स्वौज सूत्र से 'सुप्' प्रत्यय होता है। पकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

अस्मद् + सु - इस स्थिति में "युष्मदस्मदोरनादेश" सूत्र से दकार को आकार हो जाता है।

अस्म + आ + सु इस स्थिति में अकार और आकार को सवर्णदीर्घ होकर अस्मासु रूपसिद्ध होता है।

तद् शब्द पुल्लिंग के रूप

 

विभक्ति एक वचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा सः तौ ते
द्वितीया तम् तौ तान्
तृतीया तेन ताभ्याम् तैः
चतुर्थी तस्मै ताभ्याम् तेभ्यः
पञ्चमी  तस्मात् ताभ्याम् तेभ्यः
षष्ठी तस्य तयोः तेषाम
सप्तमी  तस्मिन् तयोः तेषु

36. सः

यहाँ 'तद्' शब्द से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में "स्वौज ... सूत्र से 'सु' प्रत्यय होता है। उकार की इत्संज्ञा और लोप हो जाता है।

तद् + स् - इस स्थिति में 'त्यदादीनाम्' सूत्र से दकार को अकार हो जाता है।

त + अ + स् - इस स्थिति में अतोगुणे से पररूप हो जाता है।

त + स् - इस स्थिति में "तदोः सः सावनन्त्ययोः' सूत्र से तकार को सकार आदेश हो जाता है।

स + स् = सस् - इस स्थिति में सकार को रुत्व विसर्ग होकर 'सः' रूपसिद्ध होता है।

37. तौ

यहाँ 'तट्' शब्द से प्रथमा विभक्ति के द्विवचन में स्वौज सूत्र से 'औ' प्रत्यय होता है। तद् + औ

इस स्थिति में 'त्यादादीनामः' सूत्र से दकार को अकार आदेश हो जाता है। और अतोगुणे से पररूप होकर

त + औ - इस स्थिति में पूर्व सवर्णदीर्घ प्राप्त होता है। 'नाऽऽदिचि' सूत्र से पूर्व सवर्ण दीर्घ का निषेध हो जाता है। इस स्थिति में 'वृद्धिरेचि' से 'त' में स्थित 'अ' और औ को वृद्धि एकादेश होकर 'तौ' रूपसिद्ध होता है।

38. ते

यहाँ 'तद्' शब्द के प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में 'स्वौज' सूत्र से 'जस्' प्रत्यय होता है।

तद् + जस् - इस स्थिति में त्यदादीनामः सूत्र से दकार को अकार हो जाता है और 'अतोगुणे' से पररूप हो जाता है।

त + जस् - इस स्थिति में "जशः शी" सूत्र के द्वारा 'जस्' के स्थान पर शी आदेश हो जाता है। शकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

त + ई - इस स्थिति में अकार और ईकार के स्थान में गुण एकादेश होकर 'ते' रूपसिद्ध होता है।

39. तम्

यहाँ 'तद्' शब्द से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में "स्वौजस" सूत्र से 'अम्' प्रत्यय होता है।

तद + अम् - इस स्थिति में त्यदादीनामः इस सूत्र के द्वारा दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप होकर बनता है।

त + अम् - इस स्थिति में 'अमिपूर्वः सूत्र से पूर्वरूप होकर तम् रूप सिद्ध होता है।

विशेष - तद् शब्द के द्वितीया विभक्ति के द्विवचन में 'तौ' रूप प्रथमा विभक्ति के द्विवचन की तरह

40. तान्

यहाँ 'तद्' शब्द से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में "स्वौजस' सूत्र से 'शस्' प्रत्यय आता है। शकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

तद् + अस् - इस स्थिति में 'त्यदादीनामः' सूत्र से दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप हो जाता है।

त + अस् - इस स्थिति में सवर्ण दीर्घ होकर -

तास् – यह स्थिति होती है। 'तस्माच्छसो नः पुंसि इस सूत्र के द्वारा सकार को नकार होकर तान् रूपसिद्ध होता है -

41. तेन -

यहाँ 'तद्' शब्द से तृतीया विभक्ति के एकवचन में 'स्वौजस' सूत्र से 'टा' प्रत्यय होता है।

तद् + टा - इस स्थिति में 'त्यादादीनामः' सूत्र से दकार को अकार, अकार और अतोगुणे से पररूप होता है।

त + टा - इस स्थिति में "टाङसिङसामिनात्स्या' सूत्र के द्वारा 'टा' को इन आदेश हो जाता है।

त + इन - इस स्थिति में आदगुणः से 'अ' और इ को गुण ए होकर तेन रूपसिद्ध होता है।

42. ताभ्याम् -

यहाँ 'तद्' शब्द से तृतीया विभक्ति के द्विवचन में 'स्वौजसः सूत्र से 'भ्याम् ' प्रत्यय होता है।

तद् + भ्याम् – इस स्थिति में 'त्यदादीनामः' सूत्र से दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप होकर -

त + भ्याम् - इस स्थिति में 'सुपिच' सूत्र से दीर्घ होकर ताभ्याम् रूपसिद्ध होता है।

43. तैः

यहाँ 'तद्' शब्द से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में 'स्वौजस' सूत्र से 'भिस्' प्रत्यय होता है।

तद् + भिस् - इस स्थिति में 'त्यदादीनामः सूत्र से दकार को अकार और अतोगुणे पररूप हो जाता है।

त + भिस् - इस स्थिति में अतोभिस ऐस् सूत्र से भिस को ऐस आदेश हो जाता है।

त + ऐस् - इस स्थिति में 'अकार' और ऐकार को वृद्धि एकादेश होकर

तैस् - रूप बनता है। सकार के रुत्व विसर्ग होकर।

तैः रूप की सिद्धि होती है।

44. तस्मै

यहाँ 'तद' शब्द से चतुर्थी विभक्ति के एकवचन में 'स्वौजस सूत्र से 'डे' प्रत्यय होता है।

तद् + ङे - इस स्थिति में 'त्यदादीनामः' सूत्र से दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप होकर

त + डे - इस स्थिति में 'सर्वनाम: स्मै' 'आदेश होकर 'तस्मै रूप सिद्ध होता है।

विशेष - चतुर्थी विभक्ति के द्विवचन में "ताभ्याम्" शब्द की सिद्धि तृतीया विभक्ति के द्विवचन के समान होगी।

45. तेभ्यः

यहाँ 'तद्' शब्द से चतुर्थी विभक्ति के बहुवचन में "स्वौजस सूत्र से भ्यस् प्रत्यय होता है।

तद् + भ्यस - इस स्थिति में "त्यादादीनामः सूत्र से दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप होकर

त + भ्यस् - इस स्थिति में बहुवचन ने झल्येत्' इस सूत्र से त में स्थित 'अ' का एकार आदेश हो जाता है।

त् + ए + भ्यस् = तेभ्यस् - इस स्थिति में सकार को रुत्व विसर्ग होकर तेभ्यः रूपसिद्ध होता है।

विशेष - पंचमी बहुवचन में 'तेभ्य' रूप की सिद्धि चतुर्थी विभक्ति के बहुवचन के समान होगी।

46. तस्मात्

यहाँ 'तद' शब्द से पंचमी विभक्ति के एकवचन में "स्वौजस सूत्र से 'ङसि' प्रत्यय होता है।

तद् + ङसि - इस स्थिति में "त्यादादीनामः" से दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप होकर -

त + ङसि - इस स्थिति में "ङसिङ्योः स्यात्स्मिनौ" सूत्र से ङसि को स्मात् आदेश होकर 'तस्मात्' रूपसिद्ध होता है।

विशेष - पंचमी विभक्ति के द्विवचन में 'ताभ्याम् रूप की सिद्धि तृतीया विभक्ति के द्विवचन के समान होगी।

47. तस्य

यहाँ 'तद्' शब्द से षष्ठी विभक्ति के एकवचन में 'स्वौजस सूत्र से 'ङस्' प्रत्यय होता है।

तद् + ङस् - इस स्थिति में "त्यदादीनामः" सूत्र से दकार को अकार और अतोगुणे पर रूप होकर -

त + ङस् - यह स्थिति होती है। "टाङसिङ्सामिनात्स्याः " सूत्र से ङस् कोस्य आदेश होकर तस्य रूप की सिद्धि होती है।

48. तयो:

यहाँ पर 'तद्' शब्द से षष्ठी विभक्ति के द्विवचन में 'स्वौजस' सूत्र से ओस् प्रत्यय होता है।

तद् + ओस् - इस स्थिति में 'ओसि च' सूत्र के द्वारा अकार को एकार होकर —

ते + ओस् यह स्थिति होती है तत्पश्चात् 'एचोऽयवायावः' सूत्र से एकार के स्थान पर 'अय्' आदेश होकर तयोस् रूप बनता है। तत्पश्चात् सकार को रुत्व विसर्ग होकर 'तयो:' रूप बनता है।

49. तेषाम्

यहाँ 'तद्' शब्द से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में "स्वौजस' सूत्र से 'आम्' प्रत्यय होता है।

तद् + आम् - इस स्थिति में "त्यदादीनामः" से दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप हो जाता है।

त + आम् - इस स्थिति में "आमि सर्वनाम्नः सुट्" सूत्र से सुट का आगम होता है। उकार और टकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

त + स + आम् - इस स्थिति में "बहुवचने झल्येत्" सूत्र से अकार के स्थान पर एकार आदेश होकर -

ते + स् + आम् होता है। तत्पश्चात् 'आदेशप्रत्यययोः इस सूत्र के द्वारा सकार को षकार आदेश होकर तेषाम् रूप सिद्ध होता है।

50. तस्मिन् -

यहाँ 'तद्' शब्द से सप्तमी एकवचन में "स्वौजस' सूत्र से 'ङि' प्रत्यय होता है।

तद् + ङि - इस स्थिति में "त्यदादीनामः " सूत्र से दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप होकर

त + ङि - इस स्थिति में "ङसिङयोः स्यात्स्मिनौ" सूत्र से 'ङि' को स्मिन् आदेश होकर, 'तस्मिन्' रूप की सिद्धि होती है।

विशेष - सप्तमी विभक्ति के द्विवचन में तयोः की रूप, की सिद्धि षष्ठी विभक्ति के द्विवचन के समान होती है।

51. तेषु

यहाँ 'तद्' शब्द से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में "स्वौजस" सूत्र से 'सुप्' प्रत्यय होता है। पकार की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है।

तद् + सु - इस स्थिति में " त्यदादीनामः " सूत्र से दकार को अकार और अतोगुणे से पररूप होकर -

त + सु - इस स्थिति में "बहुवचने झल्येत्" सूत्र के द्वारा अकार को एकार आदेश हो जाता है।

ते + सु - इस स्थिति में "आदेश प्रत्यययोः " सूत्र से दन्त्य 'स्' को मूर्धन्य 'ष' होकर 'तेषु' रूपसिद्ध होता है।

52. किमः कः

अर्थ  -'किम' शब्द को 'क' आदेश हो जाता है और विभक्ति से परे रहते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

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