बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
उत्तर -
संस्कृत-साहित्य के महाकवियों एवं नाटककारों ने अपनी अमर कृतियों से साहित्य निधि का विस्तार किया है एवं उसे समृद्ध करते रहे हैं, किन्तु कब, कहाँ और कैसे? यह प्रश्न अनुमान के द्वारा ही हल होते रहे हैं। जिसका मुख्य कारण है, अपनी रचनाओं व तत्कालीन घटनाओं का उल्लेख न करना, एक परम्परा ही बन गई थी जिसकी एक कड़ी 'भट्टनारायण' भी हैं। ये 'भट्टनारायण' ने भी अपने सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं लिखा है। परन्तु इनकी रचना 'वेणीसंहार' नाट्यकला की दृष्टि से उत्तम कोटि की रचना नहीं कही जा सकती, किन्तु उसमें काव्यात्मक सौन्दर्य और रसमयता का अभाव नहीं है। इसी कारण विद्वानों की दृष्टि में उसका रचयिता भट्टनारायण सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
जहाँ तक सन्धियों, अर्थ, प्रकृतियों और अवस्थाओं के शास्त्रीय दृष्टिकोण का सम्बन्ध है, वेणीसंहार में उनका निरूपण पूर्णतः करने की चेष्टा की गई है किन्तु सन्ध्ययङ्गों की योजना नाट्यशास्त्र के ग्रन्थों में दिये हुय क्रमानुसार है। यथा नाट्यशास्त्र में ग्रन्थों में मुख- सन्धि के अङ्गों में पहले विलोभन का उल्लेख किया गया है, तदुपरान्त प्राप्ति का। किन्तु वेणीसंहार में पहले प्राप्ति का उदाहरण मिलता है, बाद में विलोभन का। इसी प्रकार अन्य सन्धियों के अंगों की योजना में व्यतिक्रम दृष्टिगत होता है। वेणीसंहार नाटक की वस्तु का प्रधान कार्य द्रौपदी की वेणी का संहार (बाँधना) है। इस कार्य का बीज युधिष्ठिर का क्रोध है, भीम का नहीं। क्योंकि युधिष्ठिर के क्रोध के बिना युद्ध घोषणा सम्भव नहीं थी और बिना युद्ध के कार्य सम्पादन नहीं हो सकता था। वेणीसंहार के प्रथम अङ्क में 'स्वस्था भवन्तु मयि जीवतितोऽम तथा क्रोध 'ज्यातिमिदं महत्कुरुवने यौधिष्ठिरं नृत्भते। तथा युधिष्ठिर के क्रोध रूप बीज की सूचना दी गई है। इस प्रकार प्रथम अङ्क में मुख सन्धि है।
वेणीसंहार में घटनाक्रम का बाहुल्य, वर्णन-विशदता और कार्यव्यापार की आपाधापी है, इसलिये कार्यान्विति का अभाव दिखायी पड़ता है। इसमें असम्बद्ध घटनाओं का संयोजन अधिक हुआ है। इसमें मुख सन्धि, (बीजं, अर्थ, प्रकृति और आरम्भ नामक कार्यावस्था का संयोग) जैसा कि निर्दिष्ट किया जा चुका है। प्रथम अङ्क में युधिष्ठिर के युद्ध के लिए तत्पर होने तथा भीमसेन की प्रतिज्ञा में है। यह सन्धि अङ्क में आदि से अन्त तक व्याप्त है।
प्रतिमुख सन्धि (बिन्दु, अर्थ, प्रकृति और यत्न कार्यावस्था का संयोग) द्वितीय अङ्क में मिलती है। जयद्रथ की माँ दुःशला का प्रवेश बिन्दु नामक चमत्कारी प्रसंग - है और दुर्योधन तथा भानुमती के द्वारा जो नाटक के मुख्य कार्य व्यापार में अवरोध उत्पन्न कर दिया गया है, वह युद्ध के समाचार मिलने से दूर होता है। उसका प्रवेश कार्य नैरन्तर्य की बाधा दूर करता है। अतः यह कार्य को यत्नावस्था की ओर बढ़ाने वाला है। जयद्रथ की माँ के द्वारा पाण्डवों के (अर्जुन द्वारा जयद्रथ को उसी दिन मारने की प्रतिज्ञा) प्रयत्न का वर्णन है।
गर्भ सन्धि (पताका, अर्थ, प्रकृति तथा प्राप्तयाशा नामक कार्यावस्था) वेणीसंहार के तृतीय तथा चतुर्थ अंक में बहुत लम्बी चलती है। अश्वत्थामा का पिता की मृत्यु पर शोक प्रकाशन, कर्ण से संघर्ष एवं उसकी (कर्ण की मृत्यु तक) शस्त्र परित्याग की नयी प्रतिज्ञा सब अचानक घटित हो रहे हैं। यह पताका है। सुन्दरक का स्वागत एवं युद्ध-वर्णन भी पताका है। भीमसेन द्वारा नेपथ्य से दुःशासन खून पीने की घोषणा में प्राप्तयाशा की अभिव्यक्ति हुई है।
विमर्श सन्धि (प्रकरी अर्थ प्रकृति के साथ नियताप्ति नामक कार्यावस्था का संयोग) नाटक के पंचम तथा षष्ठ अङ्क में है। धृतराष्ट्र और गान्धारी के शान्ति प्रयत्न प्रकरी है तथा भीमसेन की प्रतिज्ञा की पूर्ति में बाधक है। चार्वाक वृत्तान्त भी प्रकरी है। भीमसेन की नवीन प्रतिज्ञा सुनकर (दुर्योधन को न मारने पर आत्मघात करने की) दुर्योधन का सरोवर में छिप जाना विमर्श सन्धि का कठिन स्थल एवं भीम की प्रतिज्ञा की पूर्ति में बाधक हैं। पाञ्चालक की इस सूचना में कि दुर्योधन मिल गया है, नियताप्ति नामक कार्यावस्था है। इसी अवसर पर श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को विजयोत्सव मनाने का सन्देश भी नियताप्ति है।
निर्वहण सन्धि दुर्योधन के वध में दिखाई पड़ती है। भीम की यह घोषणा कि उसने दुस्तर प्रतिज्ञा समुद्र पार कर लिया है, कार्य है। द्रौपदी का वेणीसंहार फलागम है। निर्वहण सन्धि षष्ठ अङ्क में ही प्रारम्भ होकर अन्त तक चलती है। इसका मुख्य बिन्दु कञ्चुकी द्वारा भीमसेन को पहचानना है। जिसका चार्वाक के छल के कारण अभी तक दुर्योधन समझकर प्रतिशोध किया जा रहा है।
वेणीसंहार में सन्धि-योजना की उपर्युक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि इसके द्वारा नाटकीय सौन्दर्य की अभिव्यक्ति हुई है। वेणीसंहार की तुलना में रत्नावली में नाटकीय सन्धि एवं सन्ध्यंगों की योजना अधिक उपयुक्त हुई है। इसलिये धनञ्जय के दशरूपक और विश्वनाथ के साहित्यदर्पण में सन्धि और सन्ध्यंगों के निरूपण में जितने अधिक रत्नावली के उद्धरण मिलते हैं उतने वेणीसंहार के नहीं। फिर भी, नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थों में रत्नावली के बाद वेणीसंहार के ही उद्धरण सर्वाधिक प्राप्त होते हैं।
|
- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
- प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
- प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
- प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
- प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
- प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
- प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
- प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
- प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
- प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
- प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
- प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)