बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
उत्तर -
भवभूति ने अपने नाटकों की प्रस्तावना में अपना परिचय दिया है। महावीर चरित की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि वे विदर्भ बराबर के पद्मपुर नगर के निवासी थे। उन्होंने उदुम्बुरवंशी ब्राह्मणों के परिवार में जन्म लिया था। वे ब्राह्मण बड़े ही आदरणीय, धर्मनिष्ठ, सोमरस का पान करने वाले और वेदों के ज्ञाता थे। भवभूति के पाँचवें पूर्वज का नाम 'महाकवि' था, उन्होंने 'वाजपेज' यज्ञ किया था। भवभूति के बाबा का नाम 'भट्टगोपाल' था, पिता का नाम 'नीलकण्ठ' था और माता का 'जतुकर्णी' था। इनके गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' था। वे वास्तव में ज्ञान के निधि ही थे।
भवभूति स्वभाव से बहुत ही गम्भीर थे। उनके पात्रों में विदूषक का अभाव इसी का परिणाम है। यों एक- आधा स्थल पर उनकी हास्य-प्रियता भी दृष्टिगोचर होती है। उत्तररामचरित में चित्रदर्शन के अवसर पर उर्मिला के विषय में सीता का यह पूछना 'वच्छ ! इयं वि अवरा का? (वत्स ! इयमप्यपरा का?)' चतुर्थ अंक में सौधातकि और दण्डायन का वार्तालाप तथा चतुर्थ अंक में ही ब्रह्मचारियों के द्वारा घोड़े का वर्णन उनके विनोदी स्वभाव की एक झलक देता है किन्तु यह हास्यस्मित से आगे नहीं बढ़ पाता।
ऐसा प्रतीत होता है कि भवभूति अपने जीवन के सरस दिनों में ही विधुर हो गये थे। उनका बारम्बार विधुरावस्था का मार्मिक वर्णन इसी ओर संङ्केत करता हुआ प्रतीत होता है। बहुत सम्भव है कि बहुत दिनों तक साहित्य-क्षेत्र में अपनी उपेक्षा और अपने पारिवारिक जीवन के दुःखद अवसान ने उन्हें गम्भीर बना दिया हो।
भवभूति बड़ी ही सच्चरित्रता, निष्ठा और मर्यादा से जीवन व्यतीत करने वाले थे। धर्म के प्रति उनमें गहन आस्था थी। इस पवित्रता की धवल धारा में अवगाहन करके उन्होंने जो कुछ दिया है वह साहित्य संसार की सचमुच अक्षय निधि है।
उत्तररामचरित की रस योजना के सम्बन्ध में प्रायः सभी आलोचकों ने 'करुण रस को अङ्गीरस के रूप में स्वीकार किया है। उनकी मान्यता का आधार ही भवभूति का अपना ही श्लोक 'एको रसः करुण एवं निमित्तभेदात्....... इन विद्वानों के मत में भवभूति करुण रस के ही समर्थक थे और नाट्यशास्त्र के नियमों को चुनौती देकर वीर और शृङ्गार के स्थान पर 'करुण' को अंङ्गीरस स्वीकार किया है। परन्तु यहाँ विचारणीय प्रश्न उठता है कि उत्तररामचरित में 'करुण रस' है या 'करुण विप्रलम्भ? करुण का स्थायी भाव 'शोक' है जिसका लक्षण है -
"इष्टनाशादिभिश्चेतोवैक्लव्यं 'शोकशब्दभाक्।'
इनमें पुनर्मिलन की आशा नहीं रहती परन्तु 'करुणाविप्रलम्भ' में पुनर्मिलन की आशा बनी रहती है, जैसा कि उसके लक्षण से स्पष्ट है -
"'यूनोरेकतरस्मिन् गतवति लोकान्तरं पुनर्लभ्ये।
विमनायते यदैकस्ततो भवेत् करुणविप्रलम्भाख्यः॥"
यहाँ राम और सीता का पुनर्मिलन होता है। अतः हमारे मत में 'करुणविप्रलम्भ' मानना ही उपयुक्त होगा। रही 'करुण' की बात, उसके विषय में उत्तर यह है कि 'शोक' शोक तक ही रहता है, रस तक नहीं पहुँच पाता। वह 'अनिभिन्न अन्तर्गढ़ घनव्यथ' तक 'पुटपाक-प्रतीकाश' ही रह जाता है। कवि ने 'पुटपाक' शब्द का प्रयोग किया है। पुटपाक के अनन्तर ही 'रस' सिद्धि होता है। अतः यह सिद्ध है कि कवि भी अपने करुण को अभी पूर्ण परिपक्व नहीं मानते। राम के हृदय की व्याकुलता का वर्णन करना उन्हें अभीष्ट है। भवभूति के प्रशंसकों ने उनके सम्बन्ध में जो प्रशस्तियाँ की हैं उनमें भी 'करुण रस' का प्रयोग नहीं आता अपितु 'करुण्य' (करुण भाव) का ही उल्लेख है -
'भवभूतेः सम्बन्धात् भूधरभूरेव भारती याति।
एतत्कृतकारुण्ये किमन्यथा रोदिति ग्रावा?'
यह विचार कि भवभूति एकमात्र 'करुण' के ही समर्थक थे, उचित प्रतीत नहीं होता। क्योंकि यदि उन्हें केवल करुण रस की अभीष्ट होता तो ये 'रस' करुण एवं कहते, 'एक' विशेषण उन्होंने अपने नाटक के तृतीय अङ्क के लिये ही दिया है। जहाँ तक 'करुण' निमित्त भेद से भिन्न-भिन्न पात्रों में विभिन्न रस से प्रतिबिम्बित हो रहा है। भवभूति अन्य रसों को स्वीकार न करते हों, यह बात नहीं है, 'उत्तररामचरित' में उन्होंने 'जनितात्यद्भुतरसः' और 'वीरो रसः किमयम् आदि रसान्तरों का स्पष्ट उल्लेख किया है। अतः भवभूति को केवल 'करुण रस का ही समर्थक मानना सत्य का अपलाप करना है। वे 'करुण' के पक्षपाती हो सकते हैं, किन्तु रसान्तरों के विरोधी नहीं।
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- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
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- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
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- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
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- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
- प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
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- प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
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- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
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- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
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- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
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- अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
- प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
- प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
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- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
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