बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये -
1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य,
2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क,
3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
उत्तर -
1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य
(Globalization and Welfare States)
समाजवादी एवं कल्याणकारी आँकड़ों से जुड़े सामाजिक न्याय के सिद्धान्त का वैश्वीकरण के कार्यक्रम में कोई स्थान नहीं है। तकनीकी इलेक्ट्रानिक उपकरणों एवं संसाधनों जैसे कम्प्यूटर, ई-मेल, इन्टरनेट आदि की सुलभता समान रूप से एवं यथापेक्षित सभी विश्व राष्ट्रों को सुलभ नहीं है। अनुसंधान एवं विकास आज किसी भी अर्थव्यवस्था की प्रगति के लिये संजीवनी शक्ति है। इस दिशा में प्रायः पश्चिम के बहुराष्ट्रीय लोगों की ही पहल है। ऐसी स्थिति में विकासशील देशों की शक्ति संरचना में भागीदारी और नीति निर्धारण में साझेदारी से वंचित रहने की बहुत सम्भावनाएँ हैं। फलतः बहुराष्ट्रीय निगमों एवं कम्पनियों का वर्चस्व और आर्थिक एवं बाजार क्षेत्रों में अग्रिम भागीदारी विकसित देशों की ही दिखाई पड़ रही है।. वैश्वीकरण उपभोक्तामूलक अर्थव्यवस्था द्वारा अग्रसर है जबकि सम्पूर्ण विश्व का 80% भाग उत्पादनमूलक अर्थव्यवस्था में संलग्न है। विकासशील देशों तथा भारत में रह रहे निर्धन, कमजोर वर्ग, पिछड़े वर्ग, कृषि, श्रमिक आदि की आवश्यकताओं और आशाओं के लिए यह भ्रामक है क्योंकि यह धनी और निर्धन के बीच उग्रवादी चेतना और सामाजिक-आर्थिक दूरी को बढ़ावा देता है।
वैश्वीकरण को अंगीकार करने का सीधा आशय विश्व के बहुसंख्यक समाजों पर सुसंगठित अल्पसंख्यक राष्ट्रों के प्रभुत्व और प्राथमिकता को स्वीकार करना है।वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण का कार्यक्रम सहभागी प्रजातांत्रिक व्यवस्था के प्रतिकूल है क्योंकि विश्व के 80% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व एवं सहभागिता वैश्वीकरण के कार्यक्रम से सम्बन्धित नीति-निर्माण एवं निर्णय में नहीं है। प्रत्यतः विकासशील राष्ट्रों ने सीथेटल और जनेवा के विश्व व्यापार संगठन के शीर्ष सम्मेलनों में अपनी आपत्ति व्यक्त करते हुए संकेत दिया कि वे विश्व व्यापार संगठन के नियामकों और शर्तों को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं हैं क्योंकि ये शर्तें उनकी सामाजिक व आर्थिक स्वतन्त्रता पर पाबन्दी लगाती हैं।
बौद्धिक सम्पदा की बहुराष्ट्रीय लोगों द्वारा चोरी व तस्करी तथा उन पर अपने द्वारा प्रमाणन की मुहर लगाना साम्राज्यवादी शोषण से कम नहीं है। इसने उदारतामूलक सामाजिक वैचारिकी को कमजोर किया है तथा आर्थिक दृष्टि से कमजोर राष्ट्रों के मन में, पश्चिम के प्रभुत्व और उच्च स्वामित्व की याद दिलाकर उन्हें प्रपीड़ित करता है। पश्चिमी औद्योगिक रूप से विकसित देश वस्तुतः कपटमूलक सहानुभूति के घड़ियाली आँसू, विकासशील देशों की कमजोरियों को प्रकट करते हैं, जबकि विकासशील देशों की संस्कृति, ऐतिहासिक परम्परा, राष्ट्रीय अस्मिता उत्तर औद्योगिक के संकट की उपज है जो मानवीय संदर्भ और अनुरूपता के सवाल से पृथक है। तृतीय विश्व के देशों को आपसी सहमति के साथ एक शक्ति के रूप में उभरना होगा जिसमें वे 21वीं शताब्दी की चुनौतियों का सामना कर सकें।
2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क'
(Debate on Globalization)
ज्ञान का प्रसार वैश्वीकरण का वह आलंब है जो विकासशील देशों के तीव्रतापूर्वक आगे बढ़ने के लिये संभावनाओं की व्यवस्था करता है। इसके लिये विकासशील देशों की सरकारों को एक निश्चित भूमिका का निर्वहन करना है, सरकारों को विकास हेतु ज्ञान के पर्याप्त प्रयोग एवं प्रभावशाली अभिग्रहण की सहायता हेतु संस्थाओं एवं मशीनरी का एक सहायक ढाँचा निर्मित करना चाहिये। वैश्वीकरण ही एकमात्र वह प्रक्रिया है जो विकासशील राष्ट्रों की इस कार्य में सहायता कर सकती है।
3. वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क
(Arguments in favour of Globalization)
किम और पार्क ने अपने अध्ययन के दौरान यह निष्कर्ष निकाला कि वैश्वीकरण और उदारीकरण की प्रक्रियाएँ क्षमता के श्रेष्ठ उपयोग में सहायता करती हैं। वैश्वीकरण के प्रभावों के सम्बन्ध में किये गये अधिकांश अध्ययन प्राय: इस उपकल्पना का समर्थन करते हैं कि खुलेपन के स्तर एवं कुशलता प्राप्ति के मध्य सकारात्मक सम्बन्ध है अर्थात् कोई भी अर्थव्यवस्था विश्व के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में जितनी उदारता या खुलापन दिखाएगी, वह उतनी ही अधिक कुशलता प्राप्त करेगी। यह भी स्पष्ट है कि खुलेपन के स्तर और G.N.P. (Grand National Production) वृद्धि में सकारात्मक गठजोड़ है। जो देश विश्व व्यापार के प्रति जितना अधिक खुलापन दिखाते हैं उन देशों में जी.एन.पी. की वृद्धि दर उतनी ही अधिक होती है।
एडवर्ड्स (1989) का मत है कि व्यापार के प्रति उदार दृष्टिकोण परिवर्द्धित प्रतिफल देता है जिसके बाद अर्थव्यवस्था में वृद्धि की दर ऊँची हो जाती है। भारत में समाज वैज्ञानिकों एवं सुधारकों का एक वर्ग सुधार कार्यों के महत्व का समर्थन करता है और सुधार कार्यक्रमों के शेष बिन्दुओं का शीघ्र क्रियान्वयन चाहता है। इस विचारधारा के विद्वानों में प्रमुख हैं जगदीश भगवती 1994, श्रीनिवास 1998 जोशी एवं लिटिल 1998 पारिख 1999, मोहन 1999 आदि।
वैश्वीकरण के विपक्ष में तर्क
(Arguments against Globalization)
वैश्वीकरण की प्रक्रिया में नकारात्मक बिन्दुओं का उल्लेख इस प्रकार है I.M.F. (International Monetary Fund) और विश्व बैंक वैश्वीकरण की प्रक्रिया को यह कहकर प्रोत्साहित करते हैं कि वैश्वीकरण कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को अनेक प्रकार के ऋण उपलब्ध करा कर उनके बेहतर भविष्य का मार्ग तैयार करता है, किन्तु सुसेन जॉर्ज ने अपने अध्ययन के आधार पर यह सिद्ध किया कि सन् 1982 तक कर्जदार देशों पर जितना कर्ज था, 1990 में यह कर्ज 62% बढ़ गया। राष्ट्रीय हितों के दृष्टिगत निम्न बिन्दुओं के आधार पर वैश्वीकरण की आलोचना की जा सकती है।
1. राष्ट्र पर विदेशी अभिकरणों एवं संगठनों का कर्ज निरन्तर बढ़ रहा है।
2. अत्यधिक आयात के कारण उदारीकरण ने व्यापार के मध्य दूरी बढ़ा दी है तुलनात्मक मूल्य लाभ के लिये तथा निर्यातों की कमी के कारण।
3. निवेश और पूँजीगत माल के आयात मूल्यों में वृद्धि - अवमूल्यन का दुराचारी वृत्त, आयात, उदारीकरण, उच्च एक्साइज ड्यूटी, मुद्रा स्फीति इत्यादि।
4. नगरीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि केवल अभिजन वर्गों का लाभ।
5. अनियमित उपक्रमों में रोजगार में वृद्धि, निर्धनता उन्मूलन के प्रयासों की असमर्थता, क्योंकि वैश्वीकरण के कारण सापेक्ष मूल्यों में वृद्धि हुई है। इससे लोगों का जीवन स्तर और बुरी अवस्था में पहुँच गया है।
6. घरेलू उद्योगों पर संकट एवं राष्ट्र की आर्थिक सम्प्रभुत्ता स्थापित हो जाना।
वैश्वीकरण की विशेषताएँ
(Characteristics of Globalization)
वैश्वीकरण की विशेषताएँ निम्नवत् हैं-
1. ज्ञान का प्रसार - वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने देशों के बीच दूरियाँ कम कर दी हैं। इसलिये जब किसी देश में कोई नया आविष्कार होता है या किसी नई वस्तु / तकनीक की खोज होती है, तो उसकी जानकारी तुरन्त विश्व के दूसरे देशों को पहुँच जाती है। इस प्रकार ज्ञान का प्रसार सम्भव हो गया है।
2. बहुराष्ट्रीय निगमों की स्थापना - दूरसंचार और यातायात की सुविधाओं का विस्तार होने से प्रत्येक देश शेष विश्व से जुड़ गया है। फलस्वरूप पूरे विश्व में बहुराष्ट्रीय निगमों का जाल फैल गया है और पूरा विश्व आज एक बाजार में तब्दील हो गया है। इसका फायदा बहुराष्ट्रीय निगम उठा रहे हैं। ये विश्व स्तर पर अपने उत्पादों को विज्ञापित करके अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को लुभा रहे हैं। आउटसोर्सिंग के द्वारा उन्हें कम लागत पर कर्मचारी हासिल हो जाते हैं। इस प्रकार वे अधिकतम मुनाफा कमाते हैं।
3. पूंजी निवेश की दर में वृद्धि - इलेक्ट्रानिक आधार पर धन प्रेषण की सुविधा उपलब्ध होने से पूँजी निवेश की दर में वृद्धि हुई है। धनी देश अपने धन को विकासशील देशों में निवेश करके अपनी पूँजी मैं अभिवृद्धि करते हैं।
4. जागरूकता और गतिशीलता में वृद्धि - जागरूकता बढ़ाने अवसरों की उपलब्धता और यातायात की सुविधाओं में सामान्य वृद्धि होने से लोगों में गतिशीलता बढ़ी है और वे एक नये मकान, एक ये जॉब और एक नये जीवन की शुरुआत करने के लिये कहीं भी जाने के लिये तत्पर हैं। अधिकतर लोग अपना जीवन स्तर सुधारने के लिए विकसित देशों की ओर कूच कर रहे हैं, क्योंकि वहाँ उन्हें ऊँचे वेतनमान के जॉब आकर्षित करते हैं।
5. गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका बढ़ी - वैश्विक जागरूकता बढ़ने से जनकल्याण, बाल-श्रम, पर्यावरण, स्वास्थ्य, समाज-सेवा के प्रति गैर-सरकारी संगठनों की रूचि और भूमिका भी बढ़ी है। कई अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन इन क्षेत्रों में आगे आये हैं। वे पीड़ितों को निःशुल्क डॉक्टरी परामर्श एवं अन्य आवश्यक परामर्श लोगों को देते हैं, जिससे जन-जीवन की सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी होता रहे।
6. यातायात एवं दूरसंचार के साधनों की बहुतायत - वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने वैसे तो हर क्षेत्र में विकसित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया है, परन्तु यातायात एवं दूरसंचार के क्षेत्र में अद्भुत परिवर्तन हुए हैं। दूरसंचार के मामले में आज सारा विश्व एक छोटे से गाँव में परिवर्तित हो गया है, जिसे "ग्लोबल विलेज' की संज्ञा दी जाती है। दो दशक पूर्व तक लोगों को विश्व स्तर पर संचार और परस्पर अन्तः क्रिया करने की कोई सुविधा प्राप्त नहीं थी। लेकिन अब उन्हें विश्व के किसी भी भाग से जुड़ने के लिए या किसी भी देश के व्यक्ति से फोन पर बात करने के लिए S. MS भेजने, चैटिंग, वाट्सएप या वीडियों कॉन्फ्रेन्स की सुविधा सहज ही उपलब्ध है। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति हवाई यात्रा द्वारा चंद ही घंटों में विश्व के किसी भी देश में पहुँच सकता है। अतः हम कह सकते हैं कि देशों के बीच दूरियाँ कम हुई हैं और विश्व सिकुड़कर छोटा-सा हो गया है।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- विकास के अर्थ तथा प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। बॉटोमोर के विचारों को लिखिये।
- प्रश्न- विकास के आर्थिक मापदण्डों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के आयामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति की सहायक दशाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक ) एवं भावात्मक ( विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जातीय संरचना में परिवर्तन किस प्रकार से होता है?
- प्रश्न- स्त्रियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्त हुए हैं?
- प्रश्न- विवाह की संस्था में क्या परिवर्तन हुए स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- परिवार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक रीति-रिवाजों में क्या परिवर्तन हुए वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "क्या विचारधारा किसी सामाजिक आन्दोलन का एक अत्यावश्यक अवयव है?" समझाइए।
- प्रश्न- सर्वोदय आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न - रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सम्पूर्ण क्रान्ति' की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के संदर्भ में राजनीति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन क्या है? भारत में किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में दलित आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?