बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
अतिसार ( Diarrhea)
जब कोई व्यक्ति दिन में दो बार से ज्यादा मल त्याग करता है, अतिसार कहलाता है। यह फटे दूध की तरह पतला भी हो सकता है या घी की तरह चिकना तथा गाढा हो सकता है।
अतिसार कोई अपने आप में बीमारी नहीं है बल्कि यह बीमारी का लक्षण है जिसमें कि आँतों की पानी तथा अन्य पोषक तत्त्वों का अवशोषण करने की शक्ति काफी कम हो जाती है तथा बिना पचा हुआ भोज्य पदार्थ मल के रूप में शरीर से बाहर आ जाता है।
अतिसार अधिकांशतः ग्रीष्म ऋतु में या वर्षा ऋतु मे फैलता है। इस रोग के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण विषाक्त भोजन या दूषित जल ग्रहण करना है। अर्थात कच्चे-पक्के फल या जीवाणु युक्त दूषित जल, दूध या खाद्य पदार्थों के सेवन करने के कारण यह रोग फैलता है। मक्खियाँ इस रोग को फैलाने में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। ये गन्दे पदार्थों पर जब बैठती हैं तो जीवाणु इनके पंजों में चिपक जाते हैं तथा जब यह भोज्य पदार्थों पर बैठती हैं तो ये जीवाणु भोज्य पदार्थों पर आ जाते हैं और भोजन करने के बाद मनुष्य की आँत में पहुँचकर अतिसार कर देते हैं। इसके अतिरिक्त अतिसार के अन्य बहुत से कारण हैं।
अतिसार के कारण
1. भोज्य पदार्थों से एलर्जी- कुछ व्यक्ति किसी विशेष भोज्य पदार्थ के लिए संवेदनशील होते हैं जिससे व्यक्ति को अतिसार हो जाता है। इस प्रकार के अतिसार की तीव्रता बहुत ज्यादा होती है लेकिन कम समय के लिए होता है। जैसे— ग्लूटिनयुक्त भोज्य पदार्थ को ग्रहण करने से स्प्रूरोग में अतिसार हो जाता है।
2. विषाक्त भोजन- भोजन के विषाक्त होने के दो कारण है-
(i) रासायनिक पदार्थ के द्वारा - कुछ रासायनिक पदार्थ, जैसे— आर्सेनिक, लैड, मरकरी आदि जल के द्वारा आँतों में पहुँच जाते हैं तथा अतिसार उत्पन्न कर देते हैं।
(ii) जीवाणुओं के द्वारा — कुछ जीवाणु; जैसे- साल्मोनेला या स्टेफाइलों को कई समूह के जीवाणु जब भोज्य पदार्थ पर बैठते हैं तो विषैला पदार्थ उसमें स्रावित कर देते हैं जिससे इस भोजन को ग्रहण करने वाले सभी व्यक्ति अतिसार के शिकार हो जाते हैं।
3. बीमारियाँ - जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि अतिसार कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह बीमारी का एक लक्षण है। सिरोसिस, यूरेमिया, मधुमेह, न्यूरौपैथी आदि।
4. कुपोषण - यह बच्चों में अतिसार का प्रमुख कारण है। जब बच्चों को उचित आहार नहीं मिलता है तो उनमें पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है जिससे पाचन तन्त्र कमजोर हो जाता है तथा उनमें अवशोषण शक्ति बहुत कम हो जाती है और अतिसार हो जाता है।
5. दवाएँ — कुछ दवाइयाँ; जैसे— एम्पीसिलिन समूह के एण्टीबायोटिक, आयरन, क्लोरोक्यून आदि दवाइयाँ पाचन तन्त्र पर अपना प्रभाव डालती हैं जिससे अतिसार हो जाता है।
6. संक्रमण – कुछ जीवाणु जैसे स्ट्रेप्टोकोकस, ई० कोलाई, शिगैला, समूह के जीवाणु भोज्य पदार्थों के साथ शरीर में पहुँच जाते हैं तथा रोग उत्पन्न कर देते हैं।
7. मनोवैज्ञानिक कारक- जब व्यक्ति अपने को क्षीण महसूस करने लगता है तथा जब मानसिक दबाव ज्यादा बढ़ जाता है जैसे कि परीक्षा के दौरान विद्यार्थी को हो जाता है तो वह अतिसार से ग्रसित हो जाते हैं।
8. पाचन तन्त्र की शल्य चिकित्सा के उपरांत-जैसे ग्रेस्ट्रो जिजूनोस्टोमी जिसमे भोजन आमाशय से सीधा बड़ी आँत में आ जाता है जिससे उसके अवशोषण में बाधा आती है और अतिसार हो जाता है।
अतिसार के प्रकार
अतिसार को दो समूहों मे बाँट सकते हैं-
1. कम तीव्रता व दीर्घ अवधि का अतिसार
2. अधिक तीव्रता व कम अवधि का अतिसार
1. अधिक तीव्र व कम अवधि का अतिसार - इस प्रकार के अतिसार की मुख्य विशेषता है कि मल में पानी की मात्रा ज्यादा होगी तथा पेट में दर्द होगा, व्यक्ति को बुखार भी हो सकता है। यह अस्वास्थ्यकर भोजन, खराब तथा बासी खाद्य पदार्थों के खाने से होता है। यह सामान्यतः एक से तीन दिन तक रहता है।
2. कम तीव्र व दीर्घ अवधि का अतिसार - इस प्रकार का अतिसार काफी दिनों तक रहता है। जब छोटी आँत में अवशोषण क्षमता कम हो जाती है जिसके कारण भोज्य पदार्थों के पौष्टिक तत्त्व अवशोषित नहीं हो पाते हैं और अतिसार हो जाता है।
अतिसार में आहार
अतिसार में आहार देते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि रोगी को ऐसा भोज्य पदार्थ दिया जाये जिसको कि वह आसानी से पचा सके क्योंकि अतिसार में आँतें कम क्रियाशील हो जाती हैं तथा पाचन शक्ति कम हो जाती है। अतिसार की तीव्र स्थिति में केवल तरल पदार्थ देने चाहिए; जैसे—उबला जल नमक चीनी मिला हुआ, दाल का पानी, नीबू पानी, साबूदाना का पानी, फलों का रस आदि थोड़े-थोड़े समय बाद देना चाहिए।
जब रोग की तीव्रता कम हो जाये तो रोगी को अर्द्ध-तरल आहार देना चाहिए; जैसे- दलिया, खिचड़ी, दही आदि देना चाहिए। कुछ दिन बाद कोमल ठोस आहार देना चाहिए; जैसे - दाल रोटी, उबली सब्जियाँ, डबलरोटी दूध के साथ आदि।
तीव्र अतिसार में रोगी के शरीर में पानी व खनिज लवणों की कमी हो जाती है जबकि कम तीव्रता वाला अतिसार अधिक दिनों तक चलता है तो रोगी के शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी उत्पन्न हो जाती है और रोगी कमजोर तथा पतला हो जाता है। अतः उसके पोषक तत्त्वों की जरूरत पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मल के रूप में अधिक पानी निकलने से उसके साथ सोडियम तथा पोटेशियम की भी बहुत अधिक मात्रा निकल जाती है जिससे शरीर में इलेक्ट्रो-लाइटस का सन्तुलन बिगड़ जाता है और रोगी को घबराहट तथा उल्टियाँ होने लगती हैं। अतः रोगी को पानी या फलों के रस में थोड़ा नमक डालकर देना चाहिए।
दीर्घकालीन अतिसार में मल द्वारा निरन्तर आयरन के निष्कासित होने से शरीर में आयरन की कमी हो जाती है तथा यह कमी अतिसार के समय आहार की कम मात्रा होने से और बढ़ जाती है। मल के साथ कुछ विटामिन्स भी शरीर से बाहर चले जाते हैं और शरीर में विटामिन्स की कमी हो जाती है। आँतों में अवशोषण शक्ति कम हो जाने से अन्य तत्त्वों के साथ प्रोटीन की भी कमी हो जाती है।
अतिसार में पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता
1. खनिज लवण - अतिसार में खनिज लवणों की सबसे ज्यादा कमी हो जाती है। इसलिए शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का सन्तुलन बनाये रखने के लिए आहार में सोडियम, पोटेशियमयुक्त आहार ज्यादा शामिल करने चाहिए; जैसे फलों का रस आदि।
2. ऊर्जा या कैलोरी - अतिसार में कैलोरी की ज्यादा हानि होने से इसकी जरूरत बढ़ जाती है। तीव्र अतिसार में 1500 कैलोरी प्रतिदिन तथा दीर्घकालीन अतिसार में 2500 कैलोरी प्रतिदिन की जरूरत पड़ती है। ऊर्जा की कमी पानी अथवा जूस में ग्लूकोज डालकर पूरी की जाती है।
3. पानी - अतिसार के मरीज में पानी की कमी बनी रहती है। यह पानी मल के साथ विसर्जित हो जाता है।
4. प्रोटीन - अतिसार में प्रोटीन की जरूरत अधिक होती है। रोगी को प्रतिदिन 100 ग्राम प्रोटीन आहार में देना चाहिए।
5. विटामिन्स अतिसार में मल के साथ विटामिन्स भी शरीर से बाहर आ जाते हैं, (ज्यादातर पानी में घुलनशील विटामिन्स, विटामिन B - कॉम्प्लेक्स तथा विटामिन 'सी' जिससे शरीर में विटामिन की कमी हो जाती है।
6. वसा - वसा का पाचन देर से होता है इसलिए आहार में वसा की मात्रा ज्यादा नहीं दी जाती है।
अतिसार से पीड़ित रोगी के आहार से सम्बन्धित जानने योग्य बातें
1. एक बार में आहार की मात्रा कम हो तथा आहार की संख्या ज्यादा होनी चाहिए अर्थात् दो-दो घण्टे बाद आहार देना चाहिए।
2. आहार ऐसा होना चाहिए जिसे कि मरीज शीघ्र पचा सके।
3. आहार सादा तथा बिना मिर्च-मसाले का होना चाहिए।
4. निम्न भोज्य पदार्थ अतिसार के मरीज को देने चाहिए-
साबूदाना, दलिया, केला, फलों का रस, ग्लूकोज तथा नमक मिला पानी, खिचड़ी, दाल का पानी, दही, कस्टर्ड, उबली सब्जी आदि।
5. निम्न भोज्य पदार्थ अतिसार के मरीज को नहीं देने चाहिए-
सलाद, हरी पत्ते वाल सब्जियाँ, मसाले, तले हुए खाद्य, मक्खन, गुड़ आदि।
अतिसार के तीव्रतम अवस्था में भोज्य पदार्थों की मात्रा
1. | उबला पानी ग्लूकोज तथा नमक मिला हुआ | 1000 | मिली लीटर/व्यक्ति/दिन |
2. | फलों का रस | 1000 | मिली लीटर/व्यक्ति/ दिन |
3. | दाल का पानी या कच्चे नारियल का पानी | 100 | मिली लीटर/व्यक्ति/ दिन |
4. | जौ का पानी | 1000 | मिली लीटर / व्यक्ति / दिन |
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