बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
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कोशिका
(Cell)
प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
अथवा
कोशिका की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
चित्र की सहायता से एक कोशिका के विभिन्न भागों का वर्णन कीजिये।
अथवा
चित्र की सहायता से मानव कोशिका की रचना का वर्णन कीजिए तथा कोशिका के कार्यों को लिखिए।
लघु उत्तर प्रश्न
1. कोशिका की परिभाषा लिखिए।
2. मानव कोशिका का कार्य बताइए।
3. कोशिका विभाजन का महत्व बताइए।
4. चित्र द्वारा मानव कोशिका की संरचना का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
5. मानव कोशिका की रचना चित्र द्वारा दर्शाइए।
6. माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'ऊर्जाग्रह' कहलाता है। क्यों?
उत्तर-
कोशिका (Cell)
मानव शरीर असंख्य छोटी-छोटी जीवित इकाइयों से मिलकर बना है। इन इकाइयों को कोशिका कहते हैं। कोशिकाएँ निर्जीव नहीं होती हैं वरन ये शरीर की जीवित इकाइयां हैं। ये गति करती हैं, श्वांस लेती हैं, अपना पोषण कर वृद्धि करती हैं, व्यर्थ पदार्थों का त्याग करती हैं व जनन भी करती हैं। अतः मानव शरीर असंख्य जीवित इकाइयों का समूह है। ये मानव शरीर की निर्माणक इकाइयाँ हैं। शरीर निर्माण में यह ठीक उसी प्रकार कार्य करती है जैसे एक भवन निर्माण में ईंटें। ईटों को आपस में जोड़ने के लिए सीमेण्ट का प्रयोग किया जाता है जबकि कोशिकाएँ शरीर में कोलेजन नामक तत्व से जुड़ी रहती हैं यद्यपि ये कोशिकाएँ आपस में जुड़ी रहती हैं फिर भी शरीर में पायी जाने वाली प्रत्येक कोशिका का एक अलग अस्तित्व होता है। प्रत्येक कोशिका एक पतली सी झिल्ली से ढकी रहती है और दूसरी कोशिका से अलग रहती है।
मानव कोशिका की सूक्ष्मदर्शीय संरचना
कोशिकाएँ सभी जीवधारियों में पाई जाती हैं जिनमें से अधिकांश जीवधारी बहुकोशकीय होते हैं। बहुत से ऐसे भी होते हैं जो एककोशकीय से निर्मित होते हैं। शरीर में पायी जाने वाली असंख्य कोशिकाएँ समान आकार की नहीं होती हैं। शरीर के अंगों के अनुसार ये लम्बी, चपटी, गोल, उभरी हुई या विकृत आकृति की होती है। जैसे रक्त कणों में तश्तरी के समान उभरी हुई त्वचा में गोल, पंचभुज, षष्ठकोणीय माँसपेशियों में लम्बी व नुकीली तथा तन्त्रिका कोशिका लम्बी और बहुशाखीय होती हैं। इसी कारण वे एक अंग से दूसरे अंग तक सन्देश लाने ले जाने का कार्य सुगमतापूर्वक कर पाती हैं। संकीर्ण स्थानों की कोशिकाएँ दबकर विकृत आकृति की हो जाती हैं।
शरीर के छोटे से छोटे भाग में कोशिकाएँ होती हैं किन्तु ये इतनी छोटी होती हैं कि बिना अणुवीक्षण यन्त्र के इन्हें नहीं देखा जा सकता है। मानव शरीर की कोशिका का व्यास 4.01 मिमी० होता है।
कोशिका की संरचना
(Structure of Cells)
प्रत्येक कोशिका के तीन भाग होते हैं -
1. कोशिका भित्ति (Cell Wall) - कोशिका के ऊपर एक पतली दोहरी झिल्ली चढ़ी होती है जो कोशिका के आन्तरिक भाग की रक्षा करती है। इस भित्ति के कारण ही प्रत्येक कोशिका एक कोशिका से अलग रहती है और अपना अलग अस्तित्व रखती है। कोशिका के भीतरी भाग में जो जीवद्रव्य पाया जाता है उसी का कुछ भाग गाढ़ा व कठोर होकर कोशिका भित्ति का निर्माण करता है।
2. जीवद्रव्य (Protoplasm) कोशिका भित्ति के अन्दर एक गाढ़ा चिपचिपा तरल, रंगहीन और अर्द्धपार्दर्शक पदार्थ भरा रहता है जिसे जीवद्रव्य कहते हैं। जीवद्रव्य ही कोशिका और मानव का जीवन है। यदि कोशिका से जीवद्रव्य समाप्त कर दिया जाए तो वह मृत हो जाएगी इसी से कोशिका जीवित रहती है और अपना पोषण करती है। जीवद्रव्य में जल प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट विद्यमान रहते हैं।
कोशिकाद्रव्य कोशिका के दो भागों में होता है। केन्द्रक के अन्दर और केन्द्रक के बाहर कोशिका भित्ति के अन्दर और केन्द्रक के बाहर वाले जीवद्रव्य को साइटोप्लाज्म तथा केन्द्रक के अन्दर के जीवद्रव्य को न्यूक्लियोप्लाज्म कहते हैं।
1. साइटोप्लाज्म और अन्तः कोशिका रस साइटोप्लाज्म कोशिका में सभी स्थानों पर एक सा गाढ़ा नहीं होता है यह अर्द्धतरल होता है और कहीं कम गाढ़ा और कहीं अधिक गाढ़ा दिखाई देता है। अधिक गाढ़े भाग में कुछ पिण्ड दिखाई देते हैं जिसमें सबसे महत्वपूर्ण पिण्ड केन्द्रक है। केन्द्रक के अतिरिक्त कई अन्य पिण्ड भी पाए जाते हैं जो निम्नलिखित हैं-
(i) सेण्ट्रोसोम (Centrosome) - यह सितारे का आकार का नन्हा सा पिण्ड होता और बाहर केन्द्रक के पास होता है। कोशिका विभाजन की क्रिया में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह केवल जन्तु कोशिका में पाया जाता है।
(ii) माइट्रोकान्ड्रिया (Mitrochondria) - ये गतिशील पिण्ड हैं तथा अपना स्थान बदलने के साथ-साथ आकृति भी बदलते रहते हैं। कोशिका में लाखों की संख्या में होते हैं। ये कुछ ऐसे स्रावी (ATP) को उत्पन्न करते हैं जो कोशिका की उपापचय क्रिया में सहायक होते हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया के अन्दर ऑक्सी- श्वसन की क्रिया का मुख्य भाग घटित होता है। काइर्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण की क्रिया में ऐडीनोसीन डाइफॉस्फेट (ADP) से एडीनोसीन ट्राइफॉस्फेट नामक उच्च ऊर्जा वाले यौगिक का निर्माण होता है। यह ऊर्जा कोशा की विभिन्न प्रकार की क्रियाओं में काम आती है। चूँकि यह ऊर्जा माइटोकॉण्ड्रिया के अन्दर एडीनोसीन ट्राइफास्फेट के रूप में संचित रहती है तथा विभिन्न कार्यों में प्रयोग में लायी जाती है, इसलिए माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का 'ऊर्जा गृह' कहते हैं।
(iii) गाल्गीबॉडी (Golgi Bodies) - यह नली के समान सूक्ष्म रचनाएँ हैं। इनके कार्य का ज्ञान भली प्रकार नहीं हो पाया है। ये भी केन्द्रक के पास स्थित रहती है।
(iv) रसधानी (Vacuoles) - कोशिका में ये नन्हें-नन्हें छेद के रूप में दिखाई देते हैं। कोशिका वृद्धि के समय कोशिका रस (cytoplasm) के फैलने से कोशिका रस में रिक्त स्थान शेष रह जाते हैं। इन्हीं को रसधानियां (vacuoles) कहते हैं। इसमें एक तरल पदार्थ भरा रहता है जिसमें कई पदार्थ घुले रहते हैं। इनसे कोशिका में जल का सन्तुलन बना रहता है, इसकी सहायता से कोशिका भोजन ग्रहण करती है।
3. केन्द्रक (Nucleus) - केन्द्रक कोशिका का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है। यह कोशिका के मध्य में स्थित होता है और कोशिका रस का ही सघन पिण्ड है। यह अधिक गहरे रंग का होता है। अतः इसे कोशिका में आसानी से पहचाना जा सकता है। केन्द्रक ही कोशिका का जीवन है। केन्द्रक के द्वारा ही कोशिका वृद्धि तथा जनन करती है। कोशिका के बाह्य भाग के समान ही केन्द्रक भी एक पतली झिल्ली से आवृत रहता है जिसे केन्द्रक कला कहते हैं। केन्द्रक के अन्दर भी गाढ़ा तरल चिपचिपा पदार्थ भरा रहता है जो कोशिका रस से अधिक गाढ़ा होता है। इसे केन्द्रक जीवद्रव्य कहते हैं। इसके अतिरिक्त क्रोमोसोम्स जीन भी पाए जाते हैं।
केन्द्रक जीवद्रव्य (Nucleoplasm) - केन्द्रक के अन्दर का गाढ़ा तरल तथा चिपचिपे पदार्थ को केन्द्रक जीवद्रव्य कहते हैं। ये कोशिका की क्रियाओं को संचालित करता है।
क्रोमोसोम्स (Chromosomes) - केन्द्रक के अन्दर धागे के समान प्रोटीन की बनी संरचनाएं होती हैं जो महीन कणों के रूप में केन्द्रक द्रव्य में जैली फैली रहती है। इस समय इन्हें क्रोमेटिन कण (chromatin granules) कहते हैं। कोशिका विभाजन के समय यह लम्बे सूत्रों का रूप धारण कर लेते हैं। तब इन्हें क्रोमोसोम्स पर गुण सूत्र कहते हैं। प्रत्येक कोशिका में 23 जोड़े क्रोमोसोम्स होते हैं। ये ही नए जीव का स्वास्थ्य व विकास निर्धारित करते हैं। क्रोमोसोम्स के अन्दर ही अत्यन्त महीन संरचनाएं पाई जाती हैं जिन्हें जीन्स कहते हैं। माता और पिता के आनुवंशिक गुण इन्हीं सूत्रों द्वारा बच्चों में हस्तान्तरित होते हैं इसलिए जीन्स को "आनुवंशिकता के वाहक" भी कहा जाता है।
जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण व कार्य
कोशिका मानव शरीर की इकाई है जीवित प्राणी के समान ये भी गति करती हैं, साँस लेती है, गति करती है, भोजन ग्रहण करती है, जनन करती है तथा संवेदनशील होती है। इन्हीं लक्षणों के कारण ही कोशिका को जीवित इकाई माना जाता है। एक जीवित कोशिका के निम्नलिखित लक्षण हैं -
1. वृद्धि (Growth) कोशिका सजीव इकाई है। मानव शरीर की वृद्धि कोशिकाओं की वृद्धि पर निर्भर करती है। प्रत्येक कोशिका भोजन ग्रहण कर अपने लिए जीवद्रव्य का निर्माण करती है और वृद्धि करती रहती है लेकिन कोशिकाओं में यह वृद्धि निश्चित सीमा तक ही होती है उसके बाद मृत हो जाती है लेकिन मृत होने से पूर्व ये कोशिका विभाजन द्वारा नयी कोशिकाओं का निर्माण कर जाती है जैसे रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की जीवन अवधि केवल तीन से चार होती है उसके बाद में नष्ट हो जाती है। 2. गति (Locomotion) जीवित प्राणियों के समान कोशिकाएँ भी गति करती हैं। शरीर से ये आवश्यकतानुसार अपना स्थान बदल लेती हैं। उदाहरण के लिए जब शरीर पर किसी रोग के जीवाणुओं का आक्रमण होता है तो श्वेत कोशिकाएं (W. B. C.) रक्त कोशिकाओं की पतली दीवारों से छनकर बाहर निकल आती है और रोग के जीवाणुओं को चारों ओर से घेर लेती है।
3. श्वसन (Respiration) - श्वसन क्रिया के दौरान जीवित प्राणी ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाईऑक्साइड त्यागता है। कोशिकाएं भी श्वसन करती हैं। कोशिका का जीवद्रव्य रक्त से ऑक्सीजन ग्रहण करता है तथा चयापचय क्रियाओं के बाद उत्पन्न कार्बन डाईऑक्साइड को रक्त में त्याग देता है जिससे कोशिकाएं साथ रहती हैं व उनका जीवन बना रहता है।
4. पोषण (Nutrition) - कोशिकाओं में वृद्धि का गुण होता है और वह वृद्धि पोषण के बिना असम्भव है अतः कोशिकाएं भी भोजन ग्रहण करती हैं। रक्त परिसंचरण क्रिया के दौरान जब पौष्टिक तत्वों युक्त रक्त शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचता है तो ये कोशिकाएं रक्त से पौष्टिक तत्वों को ग्रहण करने के लिए जीवद्रव्य का निर्माण करती हैं व अपना पोषण करती हैं।
5. आत्मीकरण (Assimilation) - मानव शरीर जो भोजन ग्रहण करता है उसमें विभिन्न प्रकार के पौष्टिक तत्व होते हैं। पाचन संस्थान द्वारा इन पौष्टिक तत्वों का पाचन कर उन्हें तरल अवस्था में परिवर्तित कर अवशोषण योग्य बनाया जाता है। अवशोषण क्रिया में ये पौष्टिक तत्व रक्त में मिल जाते हैं और रक्त परिसंचरण के दौरान शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचते हैं। कोशिकाएं भी अवशोषण या आत्मीकरण का कार्य करती हैं। ये रक्त से पौष्टिक तत्वों को अवशोषित करती हैं और फिर अपने लिए भोजन के रूप में जीवद्रव्य का निर्माण करती हैं।
6. उत्सर्जन (Excretion) जीवित प्राणियों के समान कोशिकाएं भी व्यर्थ पदार्थों का त्याग करती हैं। ये अपने पोषण के लिए रक्त से पौष्टिक तत्व ग्रहण करती हैं तथा विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा जीवद्रव्य का निर्माण करती हैं जिसके कारण कार्बन डाईऑक्साइड उत्पन्न होती है। इस कार्बनडाईऑक्साइड को वे त्याग देती हैं जो रक्त के द्वारा फेफड़ों में पहुँचाए जाते हैं और श्वाँस द्वारा त्यागे जाते हैं।
7. संवेदनशीलता (Sensitivity) - कोशिकाओं में संवेदनशीलता का गुण होता है। कोशिकाओं की संवेदनशीलता के कारण ही व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थिति में अपनी रक्षा करता है जैसे- किसी गर्म वस्तु से हाथ लग जाने पर व्यक्ति तुरन्त अपने हाथ को हटा लेता है।
8. प्रजनन (Reproduction) - अपनी प्रजाति की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए। कोशिकाएं जनन भी करती हैं। कोशिकाओं के इसी गुण के कारण जीवित प्राणियों में विकास होता है। कोशिका विभाजन की क्रिया द्वारा ये एक से अनेक में परिवर्तित हो जाती है। नयी उत्पादन होने वाली प्रत्येक कोशिका गुणों में अपनी मातृ कोशिका के समान ही होती है।
9. मृत्यु (Death) - यद्यपि प्रत्येक कोशिका वृद्धि व जनन करती है। लेकिन यह वृद्धि सीमित समय के लिए ही होती है। एक निश्चित समय बाद कोशिका की मृत्यु हो जाती है। प्रजनन क्रिया द्वारा वह नयी कोशिकाओं को जन्म दे जाती है जो उसकी वंश परम्परा को बनाए रखती है।
इस प्रकार कोशिका में जीवित प्राणी के समान सभी लक्षण पाए जाते हैं इसलिए कोशिका को 'जीवित इकाई' कहा जाता है।
कोशिका विभाजन का महत्व - कोशिका विभाजन की क्रिया से मुख्य दो लाभ होते हैं।
1. नयी कोशिकाओं का निर्माण - कोशिका विभाजन की क्रिया में प्रत्येक कोशिका पूर्ण विकास के बाद केन्द्रक, जीवद्रव्य और क्रोमोसोम्स सहित दो भागों में विभक्त हो जाती है। विभाजित दोनों ही कोशिकाएं गुणों में समान होती हैं। इस प्रकार शरीर में कोशिका का विभाजन की क्रिया द्वारा निरन्तर नयी कोशिकाओं का निर्माण होता है जिससे शरीर की वृद्धि व विकास होता है।
2. टूटी-फूटी कोशिकाओं की क्षति पूर्ति - शारीरिक वृद्धि की अवस्था में तो शरीर में निरन्तर नई कोशिकाओं का निर्माण होता रहता है लेकिन शरीर का कोई भाग जल जाने पर कट जाने पर या अधिक क्षतिग्रस्त हो जाने पर उस स्थान की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
कोशिका विभाजन द्वारा जो कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं वे इस क्षति की पूर्ति करती हैं। उदाहरण के लिए शल्य चिकित्सा के समय जब शरीर के किसी अंग को काटा जाता है तो उस स्थान की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। किन्तु कुछ समय बाद उस प्रकार की त्वचा सामान्य हो जाती है क्योंकि उस स्थान के चारों ओर की कोशिकाएं विभाजन तथा पुनर्विभाजन की क्रिया द्वारा नयी त्वचा कोशिकाओं की रचना करने लगती हैं।
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- प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
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- प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
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- प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
- प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
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- प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
- प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
- प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
- प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
- प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
- प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
- प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
- प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
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- प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
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- प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
- प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
- प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
- प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
- प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
- प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
- प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
- प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
- प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
- प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
- प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
- प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
- प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
- प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?