बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
उत्तर -
विलियम हार्वे (William Harvey) ने सन् 1528 में खोज की कि रक्त पूरे शरीर में एक ही परिपथ में संचारित होता है, हृदय इसे कुछ वितरण वाहिनियों अर्थात् धमनियों में पम्प करता रहता है जो इसका पूर्ण शरीर में वितरण कर देती है, फिर संग्रहवाहिनियाँ अर्थात् शिराएँ पूर्ण शरीर से इसे वापस हृदय में लाती हैं। इस तरह रक्त की लगभग एक निश्चित मात्रा (मनुष्य में 5 लीटर) निश्चित परिपथ में पूर्ण शरीर में निरन्तर संचारित होती रहती है। समस्त रक्तवाहिनियों में रक्त के बहाव का वेग हृदय के थोड़े-थोड़े समयान्तरों पर संकुचन द्वारा ही उत्पन्न होता है। इस तरह से हृदय रक्त परिसंचरण का केन्द्रीय पम्पिंग स्टेशन होता है।
फेफड़ों में रक्ताभिसरण पूरे शरीर का अशुद्ध रक्त ऊर्ध्वमहाशिरा और अधोमहाशिरा द्वारा हृदय के दाहिने ग्राहक कोष्ठ में लाया जाता है। फिर त्रिदल द्वार पर दबाव पड़ने से रक्त दाहिने कोष्ठ में पहुँचाया जाता है। दाहिने क्षेपक कोष्ठ का संकुचन होने पर रक्त अर्द्धचन्द्राकृति तीन पदों से फुफ्फुसीय धमनी में चला जाता है। फुफ्फुसीय धमनी इस अशुद्ध रक्त को दोनों फेफड़ों में पहुँचाती है। फेफड़ों के मूल भाग में फुफ्फुस धमनी की अनेक छोटी-छोटी केशिकावाहिनियाँ वायु कोषों के आस-पास फैल जाती हैं। तब केशिकावाहिनियों के हीमोग्लोबिन तत्व के कारण वायुकोषों से आक्सीजन (O2) वायु का शोषण हो जाता है और रक्तवाहिनियों के दूषित पदार्थ कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2), जल की भाप इत्यादि वायुकोषों में व्यतिकरण क्रिया द्वारा पहुँचा दिये जाते हैं। इस प्रकार रक्त में ऑक्सी- हीमोग्लोबिन नामक शुद्ध पदार्थ तैयार हो जाता है। इस शुद्ध रक्त की केशिकावाहिनियों से फुफ्फुस शिरायें बनती हैं जो फेफड़ों से शुद्ध रक्त लेकर हृदय के बायें ग्राहक कोष्ठ में ले जाती हैं। इस तरह रक्त को हृदय के दाहिने भाग से बायें भाग तक आने के लिए फेफड़ों तक चक्कर लगाना पड़ता है। इसे ही फेफड़ों का रक्तभिसरण कहते हैं, इसमें रक्त शुद्धिकरण की क्रिया भी सम्पन्न होती है।
2. शारीरिक रक्ताभिसरण - फेफड़ों से शुद्ध रक्त चार शिराओं द्वारा लाया जाता है जो हृदय के बायें ग्राहक कोष में डाला जाता है फिर द्विदल द्वार पर दाव पड़ने से शुद्ध रक्त बायें क्षेपक कोष्ठ का संकुचन होने पर तीन अर्द्धचन्द्राकृति पदों में महाधमनी में जाता है।
इस महाधमनी की निम्नलिखित प्रमुख शाखायें पूरे शरीर को शुद्ध रक्त पहुँचाती हैं-
(i) दाहिनी ग्रीवा धमनी, गर्दन तथा सिर को शुद्ध रक्त पहुँचाती है।
(ii) दाहिनी अधोजत्रु धमनी, हंसली के पीछे से दाहिने हाथ में जाती है।
(iii) बगल की धमनी, भुजा को शुद्ध रक्त देती है।
(iv) रेडियलधमनी, हाथ के बाहरी भाग में शुद्ध रक्त पहुँचाती है।
(v) अलनर धमनी, हाथ के भीतरी भाग को शुद्ध रक्त पहुँचाती हुई हथेली में भी आ जाती है। इसी तरह महाधमनी के कमानीदार भाग से शरीर ऊपरी बायें अंगों को भी शुद्ध रक्त पहुँचाने वाली पाँच धमनियाँ निकलती हैं।
(vi) वक्षस्थल के हिस्से में महाधमनी की अनेक शाखायें शुद्ध रक्त पहुँचाती है।
(vii) उदर गट्टर में महाधमनी की तीन शाखाएँ बनाती हैं- (a) जठर धमनी (b) यकृत धमनी (c) प्लीहा।
(viii) एक मूत्र पिण्ड की ओर आने वाली धमनी रहती है।
(ix) कटि-गहूर के अवयवों को शुद्ध रक्त भी एक धमनी द्वारा पहुँचाया जाता है।
(x) फीमोरल धमनी - पैरों को शुद्ध रक्त पहुँचाती है।
इस तरह से अनेक धमनियाँ सम्पूर्ण शरीर को शुद्ध रक्त पहुँचाने के लिए छोटी-छोटी केशिकावाहिनियों में परिणित हो जाती हैं। ये केशिकावाहिनियों शरीर की प्रत्येक को भोजन रस और ऑक्सीजन पहुँचाती है तथा उष्णता उत्पन्न होने के कारण जो दूषित पदार्थ तैयार होते हैं उन्हें अन्य केशिकावाहिनियाँ शोषित कर देती हैं। इस प्रकार दूषित पदार्थों से युक्त शिरायें केशिकावाहिनियाँ बनाती हैं पूरा अशुद्ध रक्त दो बड़ी महाशिराओं में पहुँचाया जाता है जो अधोमहाशिरा और ऊर्ध्वमहाशिरा कहलाती हैं। ये दोनों अशुद्ध रक्त को हृदय के दाहिने ग्राहक कोष्ठ में उड़ेलती हैं। इस प्रकार रक्त परिभ्रमण की क्रिया लगातार चलती रहती है। इसे ही शारीरिक अभिसरण कहते हैं। हृदय के बायें बाग से दाहिने भाग तक आने में रक्त को सम्पूर्ण शरीर का चक्कर लगाना पड़ता है।
3. यकृताभिसरण उदर- महाधमनी की कई शाखायें बनती हैं जो जठर, अंतड़ी, क्लोम, प्लीहा इत्यादि को शुद्ध रक्त पहुँचाती हैं। इनसे आने वाली अशुद्ध रक्त केशिकावाहिनियों से एक कोष्ठशिरा अधोमहाशिरा में मिलने के पूर्व रक्त में मिल जाती हैं, जहाँ उनकी अनेक केशिकावाहिनियाँ बन जाती हैं चूँकि रक्त पर्याप्त मात्रा में रहता हैं, इसलिए यकृत में ग्लूकोज का ग्लाइकोजन के रूप में परिवर्कतन कर कार्बोहाइड्रेट्स यकृत में सुरक्षित रख लिए जाते हैं। फिर यकृत का अशुद्ध रक्त एक शिरा द्वारा अधोमहाशिरा में पहुँचाया जाता है। इसे ही यकृताभिसरण कहते हैं।
4. हृदयाभिसरण हृदय के स्नायुओं को शुद्ध रक्त पहुँचाने के लिए महाधमनी की मेहराब से कॉरोनरी धमनियाँ निकलती हैं जो हृदय में जाकर सूक्ष्म केशिकावाहिनियों के रूप में परिणित हो हृदय को पोषक तत्व प्रदान करती हैं। हृदय की अशुद्ध रक्त वाहिनियों से एक शिरा तैयार होकर ऊर्ध्वमहाशिरा में मिलती है। इस तरह हृदय की माँसपेशियों का अशुद्ध रक्त दाहिने ग्राहक कोष्ठ में लाया जाता है। रक्त के इस परिभ्रमण को हृदयाभिसरण कहते हैं।
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