बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
वैशेषिक द्रव्य को मानता है। द्रव्य गुण और कर्म का अधिष्ठान है और अपने कार्यों का उपादान कारण होता है। द्रव्य गुणों से भिन्न है, अगर उसे गुणों से भिन्न न माना जाए तो वह गुणवान नहीं हो सकता। गुण और कर्म गुणवान नहीं होते। वैशेषिक दर्शन द्रव्य को मूल सत्ता मानता है। वैशेषिक के अनुसार, द्रव्य, गुण और कर्म के आधार पर कार्य करता है। इसका कारण है कि गुण और कर्म तो किसी वस्तु में ही होते हैं।
अगर कपड़े का आधार धागा है, उसी प्रकार गुण और कर्म के आधार पर कपड़ा द्रव्य है। द्रव्य की परिभाषा इस प्रकार दी गई है द्रव्य वह पदार्थ है जो अपने सभी गुण या कर्म से अलग होते हुए भी आधार बना रहता है। कणाद ऋषि के अनुसार, द्रव्य अपने मिश्रित कार्यों का समवायी कारण भी बनता है। पाश्चात्य दार्शनिक अरस्तू ने कारण का वर्गीकरण चार प्रकार से किया है -
1. आकारिक कारण,
2. वास्तविक कारण
3. निमित कारण,
4. अन्तिम कारण।
द्रव्य के नौ प्रकार माने गये हैं -
1. पृथ्वी,
2. जल,
3. तेज,
4. वायु
5. आकाश,
6. काल,
7. दिक्,
8. आत्मा,
9. मन
इन नौ द्रव्यों में से 1 से 5 अंक पंचभूत कहलाते हैं। इनके अपने विशेष गुण होते हैं जिनका प्रत्यक्ष ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा होता है।
पंचभूत में पहला भूत पृथ्वी है। इसका विशेष गुण ग्रन्थ है, जिसका प्रत्यक्ष नाक ज्ञानेन्द्रिय द्वारा होता है।
दूसरा पंचभूत जल है जिसका विशेष गुण है। रस तथा इसका प्रत्यक्ष जीभ द्वारा होता है।
तीसरा पंचभूत तेज है जिसका प्रत्यक्ष आँख द्वारा होता है।
चौथा. पंचभूत वायु है, जिसका गुण स्पर्श है। इसका प्रत्यक्ष चमड़े से होता है।
पाँचवाँ पंचभूत आकाश है, इसका विशेष गुण आवाज है, जिसका ज्ञान कान ज्ञानेन्द्रियों द्वारा होता है।
द्रव्य का अन्तिम रूप परमाणुओं में पाया जाता है। परमाणु चार प्रकार के होते हैं। परमाणुओं को हम देख नहीं सकते, इसलिए इसका ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा नहीं होता। परमाणुओं का ज्ञान हमें अनुमान द्वारा होता है। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार, परमाणुओं के न तो कोई अन्दर होता है, न कोई बाहर। वे स्थान भी नहीं घेरते।
द्वि और काल भी द्रव्य हैं। इनका अस्तित्व भी अनुमान से लगता है। वैशेषिक दर्शन के अनुसार, चेतना का आधार आत्मा से है। आत्मा दो प्रकार की होती है.
1. जीवात्मा,
2. परमात्मा।
जीवात्मा मनुष्य के शरीर में रहती है तथा परमात्मा स्वयं ईश्वर है। वैशेषिक दर्शन की प्रारम्भिक अवस्था में ईश्वर को नहीं माना जाता। इस अवस्था को अनीश्वरवादी कहा जाता है, परन्तु बाद में जब ईश्वर की व्याख्या होती है तो वह ईश्वरवादी बन जाता है।
गुण और क्रिया से समवेत द्रव्य के नौ प्रकार हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, देश, काल, आत्मा और मनस्।
वैशेषिक दर्शन बाध्यार्थवादी है। वह द्रव्यों के अस्तित्व को उनके ज्ञान से स्वतंत्र मानता है। यह बाध्यार्थवादी होने पर भी भौतिकवाद का समर्थक नहीं वह जीवात्मा और परमात्मा की सत्ता को मानता है। वैशेषिक भूतद्रव्य और आत्मा का द्वैत मानता है। इसलिए वह द्वैतवादी है। साथ ही साथ वह अनेकत्ववादी भी है क्योंकि वह पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि के नित्य परमाणुओं की, नित्य जीवात्माओं की और मनस् की अनन्त संख्या मानता है, इन्हें परस्पर पृथक् और स्वतंत्र मानता है। वैशेषिक पृथ्वी, जल, तेजस और वायु के परमाणुओं से निर्मित सावयव द्रव्यों को भी परस्पर पृथक मानता है। आकाश, देश और काल विभु और नित्य है तथा अपने-अपने विशेषों के कारण परस्पर पृथक् है। ईश्वर भी है और परमाणुओं की दुनिया से, सावयव द्रव्यों और जीवात्माओं से भिन्न है। ईश्वर नित्य परमाणुओं से जगत् की रचना करता है। परमाणु जगत् के उपादान कारण हैं। ईश्वर जगत् का निमित्त कारण है। जीवात्मा ईश्वर से पृथक् है और स्वतंत्र है। ईश्वर उनकी उत्पत्ति नहीं करता और न उनको नष्ट कर सकता है। वे नित्य हैं। इस प्रकार वैशेषिक दर्शन अनेकत्ववादी है। "
पृथ्वी, जल, तेजस वायु और आकाश पाँच भूत कहलाते हैं। इनमें से प्रत्येक का एक-एक विशेष गुण होता है। गंध पृथ्वी का विशेष गुण है, इस जल का रूप तेजस का, स्पर्श पृथ्वी का और शब्द आकाश का विशेष गुण है। घ्राणेन्द्रिय पार्थिव है और इसलिए गन्ध का ग्राहक है। इसी प्रकार रसना जल से बनी हुई, चक्षु तेजस् का बना हुआ, त्वचा वायु की बनी हुई और श्रवण आकाश का बना हुआ है और ये क्रमशः रस, रूप, स्पर्श और शब्द का ग्रहण करते हैं। न्याय-वैशेषिक का यह अपना विलक्षण तर्क है कि जिस भूत के विशिष्ट गुण का ज्ञान जिस इन्द्रिय से होता है उस इन्द्रिय को उसी भूत से बनी हुई होना चाहिए।
पृथ्वी नित्य अनित्य है। पृथ्वी के परमाणु नित्य हैं और उससे बने हुए पदार्थ अनित्य हैं। गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, कृत्रिमनत्व, गुरुत्व, वेग, संख्य, परिगण, पृथकत्व, संयोग, विभाग, परत्व और अपरत्व पृथ्वी के गुण है। गन्ध उसका विशेष गुण है। घ्राणेन्द्रिय पृथ्वी से निर्मित है। नित्य और अनित्य दोनों प्रकारों को पृथ्वी के रूप, रस और स्पर्श अनित्य और ताप के कारण होते हैं। पृथ्वी का सामान्य पृथ्वीत्व है जो पृथ्वी में समवेत होता है।
जल नित्य और अनित्य है। जल के परमाणु नित्य हैं और जल से निर्मित वस्तुएँ अनित्य हैं। रस, रूप, स्पर्श, स्वाभाविक द्रवत्व, स्नेह, गुठतत्व, वेग, संख्या, परिभास, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व और अपरत्व जल के गुण हैं। रस जल का विशेष गुण है। रसना जल से बनी हुई है। जल के परमाणुओं के गुण के नित्य हैं और जल के कार्यों के गुण अनित्य | जलत्व जल में समवेत होता है। है।
तेजस् नित्यानित्य है। तेजस् के परमाणु नित्य हैं और तेजस के कार्य अनित्य हैं। रूप, स्पर्श, द्रवत्व, वेग, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व और अपरत्व इसके गुण हैं। रूप इसका विशेष गुण तेजस् का बना हुआ है। इसका सामान्य इसमें समवेश रहता है।
वायु नित्यानित्य है। वायु के परमाणु नित्य और वायु के कार्य अनित्व हैं। स्पर्श, वेग, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व और अपरत्व इसके गुण हैं। स्पर्श इसका विशेष गुण है। त्वक् वायु निर्मित है। वायुत्व वायु में समवेत है।
पृथ्वी, जल, तेजस् और वायु के परमाणु होते हैं। इन परमाणुओं के संयोग से सावयव द्रव्यों की उत्पत्ति होती है। परमाणु नित्य हैं। लेकिन सावयव द्रव्य अनित्य होते हैं। परमाणुओं के गुण नित्य होते हैं लेकिन मूर्त वस्तुओं के गुण अनित्य होते हैं।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
- प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
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- प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
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- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
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- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
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- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
- प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
- प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?