बी एड - एम एड >> वाणिज्य शिक्षण वाणिज्य शिक्षणप्रो. रामपाल सिंहप्रो. पृथ्वी सिंह
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बी.एड.-1 वाणिज्य शिक्षण हेतु पाठ्य पुस्तक
4 वाणिज्य शिक्षण की परम्परागत पद्धतियाँ
(TRADITIONAL METHODS OF COMMERCE TEACHING)
शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध में दो विचारधारायें हैं। एक विचारधारा के
अनुसारप्रत्येक शिक्षा को विभिन्न शिक्षण-विधियों का विस्तृत ज्ञान होना
चाहिए। दूसरी विचारधाराकेअनुसार यदि शिक्षक को विषय-वस्तु का पूरा ज्ञान है
तो उसे किसी भी शिक्षण पद्धतिके जानने तथा प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है।
यहाँ प्रथम विचारधाराशिक्षण-पद्धति को अत्यधिक महत्त्व देती है जबकि दूसरी
विचारधारा उसकी पूरी तरहउपेक्षा करती है। वास्तविक रूप से देखा जाये तो पाते
हैं कि दोनों ही विचारधारायेंत्रुटिपूर्ण हैं। अध्यापक को सफल शिक्षण हेतु
विषय-वस्तु तथा शिक्षण-पद्धति दोनों काही पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। दोनों
के समन्वय से ही सफल शिक्षण सम्भव है।
If teaching is to reach its highest degree of efficiency, in the
evidentthat teachers must be thoroughly trained in materials instruction
in theirfields and must also possess a broad understanding of all phases
ofmethod-including psychology-as a part of that philosophy of
educationwhich is essential to good teaching.---Bining & Bining,
Teaching the SocialStudies in Secondary Schools, p. 46.
अध्यापक को उचित शिक्षण-पद्धतियों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक
है।शिक्षण-पद्धति के महत्त्व के सम्बन्ध में मुदालियर कमीशन ने अपनी रिपोर्ट
में लिखा है {'यहाँ तक सर्वोत्तम पाठ्यक्रम एवं सर्वांगपूर्ण सिलेबस भी
मृततुल्य है जब तक कि उसकेलिए उचित शिक्षण-पद्धति तथा उचित शिक्षकों की
व्यवस्था न हो। Even the best curriculum and the most perfect syllabus
remains deadunless quickened into life by the right methods of teaching
and the rightkind of.teachers.--Secondary Education Report, p. 46.श्रीमती
एस० के० कोछर (Smt. S.K.Kochhar) ने अपनी पुस्तकं मेथड्स एण्डटेकनीक्स ऑफ
टीचिंग में शिक्षण-पद्धतियों के महत्व की अत्यन्त सुन्दर व्याख्या कीहै। वे
लिखती हैं {'जिस प्रकार एक सैनिक को लड़ने के विभिन्न हथियारों काज्ञान
आवश्यक है, उसी प्रकार शिक्षक को भी शिक्षण की विभिन्न पद्धतियों का
ज्ञानआवश्यक है। किस समय कौन-सी पद्धति अपनायी जाय, यह उसकी निर्णय-शक्ति
परनिर्भर है।
-A teacher must be fully conversant with the different methods ofteaching
in the same way as a soldier is to be conversant with the variousweapons
of fighting. Which method he should use at a particular timedepends upon
his judgement.-S.K. Kochhar {Methods and Techniques of Teaching, p. 245.इस
प्रकार शिक्षा-जगत में शिक्षण-पद्धतियों का बड़ा महत्व है।
शिक्षण-पद्धतियाँशिक्षण-कला को सुन्दर तथा सरल बनाती हैं। शिक्षण पद्धतियों
का ज्ञान सभी शिक्षकोंको होना आवश्यक है। शिक्षण-पद्धतियाँ शिक्षा के
उद्देश्यों तथा मूल्यों से घनिष्ठ रूप सेसम्बन्धित हैं और उन्हें प्राप्त
करने में सहायक होती हैं।
शिक्षण-पद्धति का शिक्षण-कार्य में महत्वपूर्ण स्थान है किन्तु इसका प्रयोग
अध्यापककों बड़ी सावधानी से करना चाहिए। एक ही डण्डे से सभी को हाँकना
अनुपयुक्त है।ठीक इसी प्रकार एक ही पद्धति से सभी विषय-वस्तु तथा छात्रों की
व्यक्तिगतआवश्यकताओं तथा क्षमताओं के अनुसार पद्धतियों को बदलते रहना चाहिए।
शिक्षा मेंशिक्षण-पद्धति कोई एक निश्चित तथा स्थिर पहलू पर नहीं होनी चाहिए।
शिक्षण-पद्धतिको एक गतिशील तथा गत्यात्मक रूप में प्रयोग करना चाहिए।
Methodology should be conceived as a dynamic function of educa-tion and
not as a 'static aspect of the process of teaching.-Bining&
Bining.p.45.
इसके साथ ही साथ शिक्षण-पद्धतियों का प्रयोग करते समय अध्यापक को स्वयंअपनी
क्षमताओं एवं योग्यताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। उसे देखना चाहिए किक्या
वास्तव में उसमें इतनी क्षमतायें एवं योग्यतायें हैं कि वह आधुनिक पद्धतियों
काप्रयोग कर सकता है। वास्तव में, अध्यापक को चाहिए कि वह किस पद्धति को
अपनासेवक बनाये, स्वयं पद्धतियों का सेवक न बने। यदि कोई पद्धति विशेष कारणों
सेसफलता प्राप्त नहीं कर पा रही है तो इस प्रकार की पद्धति को त्यागकर
अध्यापक कोअन्य कोई दूसरी उपयुक्त पद्धति अपना लेनी चाहिए। इसके लिए अध्यापक
को प्रायःसभी शिक्षण-पद्धतियों का ज्ञान होना आवश्यक है।
The successful teacher is he who is a familiar with all the methods and
who then, with his aims clearly in view, selects the methods that will
best aid him in attaining them.
--Bining & Bining, p. 64.फिर, इस ज्ञान से उत्तम पद्धति अपनानी
चाहिए।उत्तम पद्धतियों की विशेषतायें (Characteristics of Good Methods)
शिक्षण-कला में प्रयोग की जाने वाली उत्तम पद्धतियों में निम्नांकित
विशेषताएँ होती हैं-
(i) वही उत्तम पद्धति है जो पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में
सहायक हो।
(ii) पद्धति सुनिश्चित एवं प्रयोग करने योग्य हो।
(iii) उत्तम पद्धति कलात्मक (Artistic) होती है।
अध्यापक को यह वांछित एवं अवांछित का ज्ञान कराती है।
A good method must be artistic. The teacher should have a suresense of the
relevant and the irrelevant. As artist, the teacher must be awarenand
perspective.-Wesley & Wronsky. 11of propi
1(iv) उत्तम पद्धति व्यक्तिगत होती है।
(v) उत्तम पद्धति छात्रों में वांछित परिवर्तन लाती है एवं उनमें अच्छी आदतों
कानिर्माण करती है।
(vi) पद्धति ऐसी हो जो छात्रों की विषय-वस्तु के प्रति प्रेरित करें।
(vii) पद्धति ऐसी हो जो छात्रों की शिक्षा का सक्रिय सदस्य बनाये। पद्धति
मेंआवश्यकीय स्थलों पर छात्रों द्वारा सम्पादित करने के लिए पर्याप्त
क्रियाओं का होनाआवश्यक है।(viii)पद्धति ऐसी हो जो छात्रों को स्वाध्याय हेतु
प्रेरित करे।
(ix) उत्तम पद्धति छात्रों की तर्क, निर्णय तथा विश्लेषण-शक्ति का विकास
करतीहै तथा व्यक्तिगत विभिन्नताओं को पूर्ण मान्यता प्रदान करती है
पद्धतियों के प्रकार (Types of Methods)
वेस्ले (Wesley) तथा रॉन्स्की (Wronskey) ने निम्नांकित पद्धतियों का
उल्लेखकिया है:
Method Points of Emphasis
Topical
Synthesized ContentUnitUnderstanding of Significant UnitText-Book
ContentsQuestion and Answer
Classification and DrillLecture
Authoritative PresentationContract
Differentiated AchievementBlock
Differentiated AssignmentLaboratory
Achievement Through EquipmentProblem
Experience in Solving ProblemProject
Experimental LeamingDirected Study
Facilitation of LearningSocialised
Social Co-operationDevelopmental
Pupil GrowthSource
Development of Critical Faculties
वाणिज्य-शिक्षण के लिए उपरोक्त सभी पद्धतियाँ समान रूप से महत्त्वपूर्ण नहीं
हैं।प्रस्तुत पुस्तक में वाणिज्य-शिक्षण में प्रयोग की जाने वाली केवल
महत्त्वपूर्ण पद्धतियों काअध्ययन किया गया है। वाणिज्य शिक्षण में प्रायः
निम्नांकित पद्धतियों का प्रयोग कियाजाता है{
1. भाषण-पद्धति (Lecture Method
2. पाठ्य-पुस्तक-पद्धति (Text-Book Method)
3. प्रयोगशाला-पद्धति (Laboratory Method)
4. योजना-पद्धति (Project Method)
5. समस्या-पद्धति (Problem Method)
6. विश्लेषणात्मक- (Analytic and Synthetic Method)
7. समाजीकृत अभिव्यक्ति-पद्धति (Socialised Recitation Method)
8. निरीक्षित अध्ययन-पद्धति (Supervise Study Method)
9. वादविवाद-पद्धति (Discussion Method)
10. इकाई-पद्धति (Unit Method)
इन पद्धतियों में प्रथम दो पद्धतियाँ-भाषण-पद्धति और पाठ्यपुस्तक-पद्धति
कोपरम्परागत पद्धति (Traditional Method) के नाम से पुकारा जाता है और
अन्यपद्धतियों को आधुनिक पद्धतियाँ (Moderm Method)। प्रस्तुत अध्याय
में हम केवलपरम्परागत पद्धतियों का ही अध्ययन करेंगे।
1. भाषण-पद्धति
(LECTURE METHOD)
शिक्षा-जगत में भाषण-पद्धति अत्यन्त खुले रूप में प्रयोग की जाती है।
उच्चस्तरीय कक्षाओं में तो न केवल भारत में वरन् विश्व के समस्त विकसित देशों
में इसपद्धति का ही प्रयोग किया जाता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यदि हम देखें
तो पाते हैंकि भाषण-पद्धति अत्यन्त पुरानी है। भारत में जब आश्रम-प्रणाली
प्रचलित थी, तब गुरुअपने प्रवचनों द्वारा छात्रों को विषय-वस्तु सुना-सुनाकर
कंठस्थ कराते थे। वास्तविकरूप से यह पद्धति भी भाषण-पद्धति का एक रूप थी। आज
के भाषणों एवं तब के भाषणों में अन्तर केवल इतना है कि तब भाषण व्यक्तिगत
शिक्षण (Individualised Instructions) पर आधारित थे। आज भाषण-पद्धति
कक्षा-शिक्षण (Class Instruction)पर आधारित है। यूरोप में इस पद्धति का
प्रयोग आधुनिक प्रकार के विश्वविद्यालयों में मध्य युग में प्रारम्भ हुआ।
जर्मनी के विश्वविद्यालयों में भी इस पद्धति का प्रयोग मध्य युग में ही शुरू
हुआ। यूरोपीय देशों में इस पद्धति का काफी प्रसार एवं प्रचार हुआ। भारत में
विदेशी प्रणाली से जब शिक्षा प्रारम्भ हुई, तभी से भाषण-पद्धति का श्रीगणेश
भी हुआ और इस पद्धति का आज भी सर्वाधिक प्रयोग किया जा रहा है। इसके विपरीत
अमेरिका के विभिन्न संस्थानों ने इस पद्धति की तीव्र आलोचना की एवं उच्चतर
माध्यमिक स्तर पर इस पद्धति का प्रयोग अत्यन्त घातक बतलाया, किन्तु अभी भी यह
पद्धति अमेरिका मेंउच्च स्तर पर प्रयोग की जाती है। जर्मनी, फ्रान्स तथा
इंग्लैण्ड में इस पद्धति के सुधार हेतु अनेक प्रयोग किये गये और इनके आधार पर
इसे सर्वगुणसम्पन्न बनाने की पर्याप्तमात्रा में सफल चेष्टा की गयी। इन देशों
में अभी भी उच्च स्तर तथा माध्यमिक स्तर पर इसी पद्धति का प्रयोग किया जाता
है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसका कक्षा-शिक्षण में सफलतापूर्वक किया जा
सकता है।
It is the only practical procedure that can be followed in large classes;
and this, no doubt, is the chief reason why it is so widely used at the
present time.-Bining & Bining, p. 65.
अमेरिका में ऐसा सम्भव नहीं है, क्योंकि वहाँ की परिस्थितियाँ यूरोपीय देशों
से भिन्न हैं। जहाँ तक भारत का प्रश्न है, कुछ शैक्षिक तथा आर्थिक
परिस्थितियों के कारण।हैभारत को उच्च स्तर एवं माध्यमिक स्तर पर भी इस पद्धति
का प्रयोग करना पड़ रहा हैऔर जिस अवस्था में भाषण-पद्धति का प्रयोग करना पड़
रहा है, वह भी अत्यन्त दयनीय है निकट भविष्य में इसमें अभी कोई भी सुधरने की
आशा नहीं है। फिर भी यदि अध्यापक चाहें तो अपने स्वयं के प्रयत्न से इस दिशा
में पर्याप्त सुधार कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें कुछ विशेष बातों को ध्यान
में रखना होगा।भाषण-पद्धति का प्रयोग कब किया जाये ? (When to Use the
LectureMethod ?)
वाणिज्य-अध्यापक को भाषण-पद्धति का प्रयोग निम्नांकित कार्यों हेतु कर
लेनाचाहिए।
(1) संक्षिप्तीकरण हेतु (To Summarize) कुछ छात्र विषय-वस्तु की व्यापकता को
देखकर घबरा जाते हैं। वे इतनी विशाल विषय-वस्तु के जाल से निकल सकने में अपने
को असफल पाते हैं। इस हालत में वे अपनी विशाल विषय-वस्तु को पढ़ने की भी
इच्छा प्रकट नहीं करते हैं। अतः यह आवश्यक है कि इतनी विशाल विषय-वस्तु को
किसी ऐसी विधि से प्रस्तुत किया जाये कि सम्पूर्ण विषय-वस्तु एक छोटे से रूप
में छात्रों केसम्मुख उपस्थित हो जाये। यह कार्य भाषण-विधि द्वारा
सरलतापूर्वक सम्पन्न किया जासकता है। इसके अलावा भाषण के द्वारा छात्रों के
सम्मुख विशाल विषय-वस्तु संक्षिप्तरूप में प्रस्तुत करके छात्रों को
विषय-वस्तु का एक मोटा सा ज्ञान दिया जा सकता है। इससे छात्र जब पुस्तकें
पढ़ते हैं तो उनका अध्ययन अधिक अर्थपूर्ण हो जाता है। अतःभाषण पद्धति का
प्रयोग विशाल विषय-वस्तु का संक्षिप्तीकरण करने हेत किया जानाचाहिए।
(2) प्रेरणा प्रदान करने हेतु (To Motivate)-किसी विषय के पाठ या इकाई
कोप्रस्तुत करने से पूर्व भाषण-पद्धति द्वारा उसे नये विषय, पाठ या इकाई के
प्रमुखबिन्दुओं (Points) का ज्ञान कराकर छात्रों को उस विषय, पाठ या इकाई से
सीखने हेतु प्रेरित किया जा सकता है। इससे छात्रों को जब विषय-वस्तु प्रस्तुत
की जायेगी तो उन्हेंसमझने में भी सुविधा होगी।
(3) समय बचाने हेतु (To Save Time) पाठ्य-पुस्तक पढ़ने तथा समझने मेंसमय लगता
है। इसी प्रकार शिक्षण की आधुनिक पद्धतियाँ भी अधिक समय चाहती हैं।इससे
छात्रों को कभी-कभी समय बचाने की आवश्यकता पड़ जाती है। भाषण-पद्धति केद्वारा
छात्रों का समय सरलता से बचाया जा सकता है। भाषण द्वारा थोड़े से समय में
पर्याप्त विषय-वस्तु प्रस्तुत की जा सकती है। अतः भाषण का प्रयोग छात्रों का
समयबचाने हेतु भी किया जा सकता है।
(4) स्पष्ट करने हेतु (ToClarify)भाषण-पद्धति का प्रयोग विषय के तकनीकी-शब्द,
सम्बोध, प्रत्यय तथा सिद्धान्तों को स्पष्ट करने के लिए भी किया जा सकता है।
तकनीकी शब्दों, सम्बन्धों आदि की व्याख्या केवल भाषण-पद्धति द्वारा ही सम्भव
है। वाणिज्य विषय में अनेक स्थलों पर तकनीकी शब्द सम्बन्ध तथा सिद्धान्त आते
हैं।उनका स्पष्टीकरण सरल तथा स्पष्ट शब्दों में करना आवश्यक है। अतः
वहाँभाषण-पद्धति अपना लेनी चाहिए।
(5) गृह-कार्य देने हेतु (ToGive Assignment)- आज आपने जो कुछ कक्षा मेंपढ़ा
है, उस पर एक लेख लिखकर लाइए। इस प्रकार का गृह-कार्य देना
अत्यन्तअमनोवैज्ञानिक है। वास्तव में, जो कुछ भी गृह-कार्य दिया जाये उसकी
उपयोगिता, वर्तमान विषय-वस्तु से उसका सम्बन्ध, किस प्रकार उसे किया जाये आदि
पर एकछोटा-सा भाषण दे देना अच्छा रहता है। अध्यापक को गृह-कार्य देते समय
भाषण काप्रयोग कर लेना चाहिए।
(6) अतिरिक्त विषय-वस्तु प्रस्तुत करने हेतु (To Present Additional
Material)-कभी-कभी पुस्तकों में किसी विषय से सम्बन्धित विषय-वस्तु अत्यन्त
संक्षिप्त, अपर्याप्त यागलत होती है। छात्रों के स्तर को देखते हुए अध्यापक
को अतिरिक्त विषय-वस्तु देनीआवश्यक हो जाती है। अध्यापक भाषण-पद्धति द्वारा
छात्रों को अतिरिक्त विषय-वस्तु प्रदानकर सकता है।
इस प्रकार भाषण-पद्धति का प्रयोग अध्यापक अनेक स्थलों पर सफलतापूर्वक करसकता
है।
भाषण-पद्धति के गुण (Merits of Lecture Method)
भाषण-पद्धति में निम्नांकित गुण हैं {(1) भाषण-पद्धति व्यक्तिगत शिक्षण
(Individualised Instructions) पर आधारितहै। पुस्तकों में छपे हुए अक्षर कुछ
कह नहीं सकते हैं। वे न हमारी कमजोरियों को हीसमझते हैं और न व्यक्तिगत
विभिन्नताओं पर ही ध्यान देते हैं, किन्तु भाषण-पद्धति मेंशिक्षक तथा छात्र
आमने-सामने (Face to Face) बैठकर ज्ञान का आदान-प्रदान करतेहैं। इस
आदान-प्रदान में वाद-विवाद, बातचीत. तर्क तथा आलोचनाओं के माध्यम
सेविषय-वस्तु को यथासम्भव स्पष्ट बनाया जा सकता है. छात्रों की कठिनाइयाँ
मालूम कीजा सकती हैं तथा व्यक्तिगत विभिन्नताओं का पूरा-पूरा ध्यान रखा जा
सकता है।
(2) भाषण-पद्धति छात्रों में तर्क-शक्ति का विकास करती है। भाषणकर्ता से
छात्रतर्क करते हैं, उसके द्वारा प्रस्तुत सिद्धान्तों का विश्लेषण तथा
विवेचन करते हैं औरवाद-विवाद के द्वारा अपने संशयों को दूर करते हैं। इस
प्रकार उनकी तर्क-शक्ति काविकास होता है।
(3) इस पद्धति में विषय-वस्तु को अधिकतम रूप से स्पष्ट किया जा सकता
है।पाठ्य-वस्तु में अनेक ऐसे स्थल आते हैं जो अत्यन्त दुरूह तथा जटिल होते
हैं। सामान्यरूप से वे छात्रों की समझ में नहीं आते हैं। एक बार के पढ़ाने से
विषय-वस्तु अस्पष्टरह जाती है। भाषण-पद्धति के द्वारा अस्पष्ट विषय को उस समय
तक बार-बार दुहरायाजा सकता है तथा दूसरे शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है,
जब तक कि वह छात्रों कोस्पष्ट न हो जाये।
(4) भाषण-पद्धति के माध्यम से यदि शिक्षण कार्य सम्पादित किया जाये तो
इससेसमय तथा परिश्रम दोनों ही की बचत होती है। भाषण द्वारा विशाल विषय वस्तु
को संक्षिप्त में थोड़े समय के भीतर ही भीतर ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
पाठ्य-पुस्तक में छात्रोंको महत्वपूर्ण तथा अमहत्वपूर्ण दोनों ही प्रकार की
विषय-सामग्री को पढ़ने में अपनासमय तथा श्रम खराब करना पड़ता है। भाषण के
द्वारा केवल महत्वपूर्ण विषय-सामग्रीको प्रस्तुत करके छात्रों का समय तथा
श्रम दोनों ही की बचत की जा सकती है।
(5) अच्छी तरह से तैयार किया हुआ तथा भली प्रकार से दिया गया भाषण छात्रोंमें
रुचि पैदा करता है, छात्रों को विषय-वस्तु की प्रशंसा करने के लिए बाध्य करता
हैतथा छात्रों को विषय के मा- का ज्ञान कराता है।
(6) नवीन विषय, पाठ तथा इकाई की प्रस्तावना तैयार करने के लिएभाषण-पद्धति
सर्वोत्तम है।
(7) भाषण द्वारा अध्यापक विषयवस्तु को अपनी व्याख्या. हाव-भाव, भाषा,
उच्चारणआदि के द्वारा स्पष्ट कर सकता है, महत्वपूर्ण बिन्दुओं को समझा सकता
है तथा छात्रोंका ध्यान अपने भाषणों की तरफ आकर्षित कर सकता है।
(8) भाषण-पद्धति छात्रों के उच्चारण का सुधार करती है। अध्यापक जैसाउच्चारण
करेगा, अनुकरण के माध्यम से छात्र भी वैसा ही उच्चारण करने के प्रयत्नकरेंगे
और अपना उच्चारण सुधारेंगे।
(9) इसमें कुछ सीमा तक छात्र तथा अध्यापक दोनों ही सक्रिय रहते हैं।अध्यापक
छात्रों से प्रश्न पूछते हैं तथा छात्र अध्यापक के सम्मुख समस्यायें प्रस्तुत
करतेहैं।(10) अध्यापक अपने भाषणों की योजना मनोवैज्ञानिक विधि से निर्मित
करता है,जबकि पाठ्य-पुस्तकें तार्किक आधार पर होती हैं। इस प्रकार भाषण
पाठ्य-पुस्तकों से अच्छे होते हैं।
भाषण-पद्धति के दोष (Demerits of Lecture Method)
(1) अपरिपक्व भाषणकर्ता भाषण देते समय छात्रों को कक्षा में केवल
श्रोतामात्रबना देता है। ऐसा भाषणकर्ता भाषण देता रहता है और छात्र बैठे-बैठे
निर्जीव मूर्तियों केसमान सुनते रहते हैं। वे कक्षा-शिक्षण में कोई रुचि नहीं
ले सकते हैं
(2) भाषण-पद्धति विषय के सैद्धान्तिक ज्ञान पर अधिक बल देती है। इसमें
ज्ञानके व्यावहारिक पहलूं को महत्व नहीं दिया जाता है। 'क्रिया को यह पद्धति
कोई भीस्थान प्रदान नहीं करती है। यह पद्धति 'करके सीखने की पूर्ण अवहेलना
करती है।
(3) शैक्षणिक दृष्टिकोण से यह पद्धति एकपक्षीय (One Sided) है। छात्र कोइतना
अधिक कार्य नहीं करना पड़ता जितना अध्यापक को। अध्यापक को भारत मेंसाधारणतया
प्रतिदिन करीब-करीब छह भाषण देने पड़ते हैं। अध्यापक को छह भाषणोंको प्रतिदिन
तैयार करना बड़ा मुश्किल पड़ जाता है।
(4) भाषण पद्धति द्वारा ग्रहण किया गया ज्ञान अधिक स्थायी नहीं होता
है,क्योंकि इस प्रकार के ज्ञान का क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।
(5) छात्रों का अवधान-विस्तार (Attention Span) इतना अधिक नहीं होता है
कि40-50 मिनट तक एक भाषण को अवधान के साथ सुन सकें।
(6)- वास्तविक अध्ययन करना एक बात है और पाठ्यक्रम समाप्त करना दूसरीबात है।
भाषण पद्धति से पाठ्यक्रम तो शीघ ही समाप्त किया जा सकता है, किन्तु इसपद्धति
से वास्तविक शिक्षण नहीं हो पाता है।
(7) इस पद्धति में छात्रों को मौलिक चिन्तन करने का अवसर नहीं प्राप्त होता
है।अध्यापक जो कुछ भी विषय-वस्तु प्रस्तुत कर देता है, उसी से छात्र सन्तोष
करने लगतेहैं। स्वाध्याय की आदत का भी छात्र विकास नहीं कर पाते हैं।
(8) भाषण पद्धति की सफलता अध्यापक की भाषण-शक्ति पर निर्भर है। यदिअध्यापक
कुशल भाषणकर्ता नहीं है तो वह कभी भी सफलतापूर्वक नहीं पढ़ा सकता है।
(9) निम्नस्तरीय कक्षाओं में यह प्रणाली सफलतापूर्वक कार्य नहीं करती है।
इसपद्धति का प्रयोग उच्च स्तर पर ही किया जा सकता है।
(10) इससे शिक्षण-क्रिया अत्यन्त नीरस बन जाती है।
भाषण पद्धति प्रयोग करने हेतु सुझाव (Suggestions for Using the
LectureMethod)
वाणिज्य-शिक्षण में भाषण-पद्धति का प्रयोग करते समय अध्यापक को
निम्नांकिततथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए।
(1) भाषण देने से पूर्व विषय-वस्तु को सुनियोजित कर लिया जाये। जब
तकविषय-वस्तु योजनाबद्ध नहीं की जाती है, भाषण कभी भी सफल नहीं हो सकता
है।योजनाबद्धता के अतिरिक्त भाषणकर्ता को विषय-वस्तु का पूरा-पूरा ज्ञान होना
चाहिए।अध्यापक में कक्षा में पूछे जाने वाले सभी प्रकार के प्रश्नों का
सन्तोषजनक उत्तर प्रदानकरने की क्षमता होनी चाहिए।
(2) जहाँ तक हो सके, योग्यतम अध्यापकों की व्यवस्था करनी चाहिए। अध्यापकोंको
कुशल भाषणकर्ता होना आवश्यक है। अध्यापक ऐसे हों जो विषय के अनुसार
अपनाउच्चारण. अपना हावभाव तथा चेहरा बदल सके।
(3) भाषण देने से पूर्व भाषण की रूपरेखा (Synopsis) तैयार कर लेनी चाहिए।इससे
अध्यापक को मुख्य-मुख्य बिन्दु याद रखने में सुविधा होगी
(4) भाषा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। भाषा न तो इतनी उच्च कोटि की ही होकि
छात्र उसे समझ ही न पाये और न इतनी रसीली तथा अलंकृत ही हो कि भाषा कीरचना
विषय-वस्तु के मुख्य बिन्दुओं को ही दबा दे।
(5) स्वतन्त्रतापूर्वक बातचीत के रूप में भाषण देने की चेष्टा करनी चाहिए।
(6) इस पद्धति का प्रयोग विशेष रूप से भूमिका तथा प्रस्तावना निर्माण हेतु•
करना चाहिए।
((7) भाषण देते समय अध्यापक को छात्रों की भावमुद्रा को भी देखते जाना
चाहिए,क्योंकि छात्रों की भावमुद्रा अध्यापक को बतला सकती है कि क्या छात्र
उसके भाषण कोसमझ रहे हैं।
(8) शान्त भाव तथा धीमी गति से बोलना चाहिए। बीच-बीच में थोड़ी-सी देर केलिए
रुक भी जाना चाहिए।
(9) अध्यापक को अपनी भाषा, शैली, उच्चारण तथा हाव-भाव का विशेष ध्यानरखना
चाहिए।
(10) बीच-बीच में प्रश्न अवश्य पूछते रहना चाहिए। इससे छात्र भाषण के
प्रतिसजग रहेंगे और ध्यानपूर्वक सुनेंगे।
(11) भाषण में गम्भीरता नहीं होनी चाहिए। पाठ नीरस न हो।
(12) आवश्यक स्थानों पर उदाहरणों, दृष्टान्तों. कहानियों आदि का सहारा ले
लेनाचाहिए।
(13) भाषण पद्धति में परीक्षा को भी उपयुक्त स्थान प्रदान करना आवश्यक
है।(14) भाषण देते समय छात्रों के सभी स्तरों का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना
चाहिए।
पाठ्य-पुस्तक पद्धति (TEXT-BOOK METHOD)
विभिन्न शिक्षण पद्धतियों में भाषण पद्धति एवं पाठ्य-पुस्तक पद्धति शिक्षण
कीपरम्परागत पद्धतियाँ कहलाती हैं। भाषण पद्धति का हमने ऊपर विस्तारपूर्वक
अध्ययनकिया। अब हम पाठ्य-पुस्तक पद्धति का अध्ययन करेंगे। अध्ययन एवं अध्यापन
की यहसरल पद्धति है। इसी कारण अधिकांश उच्चतर माध्यमिक तथा उच्च
माध्यमिकविद्यालयों में यह पद्धति अपनायी जाती है। जहाँ तक पाठ्य-पुस्तक
पद्धति का सम्बन्धहै, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पाठ्य-पुस्तक-अध्यापन तथा
पाठ्य-पुस्तक पद्धतिद्वारा अध्यापन में पर्याप्त अन्तर है। पाठ्य-पुस्तक का
अध्ययन विभिन्न शिक्षण पद्धतियोंको सफल बनाने हेतु किया जाता है, जबकि
पाठ्य-पुस्तक पद्धति द्वारा अध्ययन एकपूर्व-निर्धारित दिशा में किया जाता है।
इस सम्बन्ध में पाठ्य-पुस्तक पद्धति का स्वरूपस्पष्ट करते हुए प्रो० वेस्ले
(Prof. Wesly) ने लिखा है {पाठ्य-पुस्तक पद्धतिज्ञानार्जन की वह पद्धति है
जिसका निकटतम उद्देश्य पाठ्य-पुस्तक को पूर्व-ज्ञान प्राप्तकरना होता है।
"...the text-book method may be defined as that teaching procedure in
which an understanding of the main body of information in the text-book is
the immediate objective. This does not imply an unworthy or a
short-sighted purpose, but it does mean that such a procedure re-volves
around the text-book, just as another procedure might revolve around the
laboratory or the problem.
-Teaching Social Studies in High Schools, p.359.
पाठ्य-पुस्तक पद्धति का कमजोर तथा परिश्रमी दोनों ही प्रकार के छात्र
भलीप्रकार से प्रयोग कर सकते हैं। पाठ्य-पुस्तक का बड़े स्तर पर प्रयोग होता
है. अतः यहआवश्यक है कि पाठ्य-पुस्तक का प्रयोग बड़ी सावधानी से किया जाये,
उद्देश्यों कोसदैव ध्यान में रखा जाये और पाठ्य-पुस्तक के अध्यापक के
निर्देशन में ही इसका उपयोगकिया जाये। अध्यापक का उद्देश्य पाठ्य-पुस्तक से
अधिकतम लाभ उठाना होना चाहिए।इसके लिए हम पाठ्य-पुस्तके का चार प्रकार से
उपयोग कर सकते हैं-
(1) पाठ्य-पुस्तक का सबसे पहला प्रयोग करने का ढंग पाठ्य-पुस्तक कोअक्षरशः
छात्रों को रटवाना है। छात्रों के अध्ययन हेतु एक पाठ्य-पुस्तक निर्धारित
करदी जाती है और छात्र उसे अक्षरशः रटते हैं। जो छात्र पाठ्य-पुस्तक के जितने
अधिकपन्ने रटने में सफल होता है, वह उतना ही अधिक बुद्धिमान माना जाता है। इस
प्रणालीको The Memoriter System नाम से पुकारा जाता है। वर्तमान में इस
प्रणाली कापूर्णरूपेण बहिष्कार किया जा चुका है।
(2) दूसरी प्रणाली को हम The Recitation Testing System कहते हैं। इसप्रणाली
के अनुसार अध्यापक छात्रों को पाठ्य-पुस्तक के कुछ पन्ने घर पर पढ़ने तथाउनके
सार को याद करके आने को कहता है। दूसरे दिन अध्यापक पहले दिन के दिये गये
कार्य से सम्बन्धित प्रश्न पूछता है। वास्तव में, यह प्रणाली प्रथम प्रणाली
का हीसुधरा हुआ रूप है। यह प्रणाली प्रथम प्रणाली के अनेक दोषों को दूर करती
है। फिर भीइसमें कल दोष पाये जाते हैं। यह सम्भव नहीं है कि बड़ी कक्षाओं में
सभी छात्रों से प्रश्न पूछे जा सकें। दूसरे, यह प्रणाली रटने पर अधिक बल देती
है. विषय-वस्तु के समझनेपर नहीं।
(3) दूसरी प्रणाली का भी एक और सुधारा हुआ रूप है, जिसे हम The Pupil-Teacher
Text-Book System कहते हैं। इसमें अध्यापक तथा छात्र दोनों ही
साथ-साथगठ्य-पुस्तक का अध्ययन करते हैं। पहले से ही इसके लिए कोई तैयारी नहीं
की जातीहै। पाठ्य-पुस्तक खोलकर अध्यापक विषय-वस्तु को छात्रों को समझाता जाता
है. छात्रहैपी पुस्तकों का मौन वाचन करते हैं तथा अन्त में अध्यापक प्रश्न
पूछता है। यह प्रणालीस्वतन्त्र अध्ययन की आदत का निर्माण नहीं करती है।
(4) पाठ्य-पुस्तक का अध्ययन करने की अन्तिम प्रणाली है The TopicalRecitation
System| इस प्रणाली के अन्तर्गत पाठ को कई उप-भागों (Topics) मेंविभाजित कर
दिया जाता है। छात्र प्रत्येक उप-भाग का पूर्णतया अध्ययन करते हैं और'छात्रों
से यह आशा की जाती है कि वे किसी भी उप-भाग से सम्बन्धित प्रश्न का उत्तरदे
सकेंगे। इस प्रणाली में पाठों को उप-भागों में विभाजित करने तथा गृह-कार्य
देने मेंविशेष सावधानी रखने की आवश्यकता पड़ती है।
पाठ्य-पुस्तक के प्रबोन (The Use of Text-Book)
Uxor bookपाठ्य-पुस्तक के प्रयोग के सम्बन्ध में भी दो विचारधारायें प्रचलित
हैं। एकविचारधारा के अनुसार कक्षा में एक ही पाठ्य-पुस्तक होनी चाहिए, जबकि
दूसरीविचारधारा के अनुसार कक्षा में कई पाठ्य-पुस्तकें होनी चाहिए। नीचे हम
दोनोंविचारधाराओं का पृथक्-पृथक् अध्ययन करेंगे
(1) एक पाठ्य-पुस्तक पति (The Single Text-Book Method) इस पद्धति केअनुसार,
जैसा इसके नाम से ही स्पष्ट है, छात्रों को पढ़ने के लिए एक ही पाठ्य-पुस्तक
निर्धारित की जाती है। इस प्रणाली के अनुसार पाठ्य-पुस्तक निर्धारित करते समय
अत्यन्त सावधानी रखनी चाहिए। किस प्रकार की पाठ्य-पुस्तक निर्धारित की जाय?
अच्छी पाठ्य-पुस्तक में किन-किन गुणों का होना आवश्यक है ?
एक पाठ्य-पुस्तक पद्धति में कुछ गम्भीर दोष हैं। सर्वप्रथम, इस पद्धति
केअन्तर्गत अध्यापन कराने में छात्रों को मुद्रित (Printed) शब्दों में आस्था
बढ़ जाती है,छपी हुई विषय-वस्तु पर छात्रों को अटूट विश्वास हो जाता है।
द्वितीय, एक पुस्तकपड़ने से छात्र एक ही प्रकार का दृष्टिकोण अपना लेते हैं
तथा अन्य दृष्टिकोणों से वेपूर्णतया अनभिज्ञ बने रहते हैं। इस प्रकार एक
पाठ्य-पुस्तक प्रणाली के अन्तर्गत योग्यशिक्षण सम्भव नहीं है।
(2) बहु पाठ्य-पुस्तक पद्धति (The Several Text-Books Method)-जैसा इसकेनाम
से ही स्पष्ट है, इस पद्धति के अन्तर्गत छात्रों के अध्ययनार्थ एक से
अधिकपाठ्य-पुस्तकें प्रस्तुत की जाती हैं। अध्यापन तथा अध्ययन दोनों ही
दृष्टिकोणों सेविनिंग तथा विनिंग ने बहुपाठ्य-पुस्तक पद्धति को भी अच्छा
बतलाया है। छोटीकक्षाओं-माध्यमिक स्तर तक में एक पाठ्य-पुस्तक पद्धति ही
अपनानी चाहिए. किन्तुउच्च माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक तथा विश्वविद्यालय स्तर
पर तो हर हालत में बहुपाठ्य-पुस्तक पद्धति को अपनाना चाहिए। इन स्तरों पर
कदापि एक पाठय-पुस्तक तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। बहु पाठ्य-पुस्तक पद्धति
से इन स्तरों के छात्र अनेक प्रकार से लाभान्चित होते हैं। इन लाभों में
निम्नलिखित प्रमुख हैं
{i) छात्र अनेक दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं।
(ii) छात्रों में स्वतन्त्र स्वाध्याय की आदत पड़ती है।
(iii) एक पुस्तक के दोष दूसरी अन्य पुस्तकों के गुणों से दूर हो जाते हैं।
(iv) छात्र तार्किक प्रणाली से अध्ययन करना सीखते हैं।
इस प्रकार हम निष्कर्ष निकालते हैं कि उच्च स्तर पर अनेक पुस्तकों का
निर्माणहोना चाहिए।पाठ्य-पुस्तक पद्धति के गुण (Merits ofthe Text-Book
Method)
पाठ्य-पुस्तक पद्धति में निम्नांकित गुण हैं
{(1) पाठ्य-पुस्तक छात्रों के सम्मुख विषय-वस्तु को अत्यन्त योजित रूप में
प्रस्तुतकरती है।
(2) पाठ्य-पुस्तक छात्रों की विभिन्न आवश्यकताओं तथा सीमाओं को ध्यान मेंरखकर
विषय-वस्तु को यथासम्भव बोधगम्य बनाने की चेष्टा करती है।
(3) यह पद्धति छात्रों के कंधों पर पूरा-पूरा दायित्व डालती है। छात्र इस
दायित्वको पूरा करने हेतु यथासम्भव सभी साधनों का प्रयोग करते हैं।
(4) पाठ्य-पुस्तक पद्धति छात्रों में स्वाध्याय की आदत डालती है। छात्र
स्वयंविभिन्न पुस्तकों का अध्ययन कर विषय-वस्तु का गहन अध्ययन करते हैं।
(5) पाठ्य-पुस्तक छात्रों को सक्रियता प्रदान करती है। छात्र पाठ्य-पुस्तकों
काअध्ययन करने में सक्रिय रहते हैं।
(6) पाठ्य-पुस्तक पद्धति अध्यापक एवं छात्र दोनों के ही समय तथा श्रम कीबचत
करती है। अध्यापक को सभी विषय-वस्तु (सुगम तथा जटिल) का स्पष्टीकरण छात्रों
के सम्मुख नहीं करना पड़ता। छात्र सुगम विषय-वस्तु को पुस्तकों से स्वयं
हीसमझ लेते हैं, जबकि अध्यापक केवल जटिल विषय-वस्तु को ही व्याख्या द्वारा
स्पष्टकरता है।
पाठ्य-पुस्तक पद्धति के दोष (Demerits of Text-Book Method)
उपरोक्त गुणों के होते हुए भी पाठ्य-पुस्तक पद्धति में निम्नांकित दोष पाय
जातेहैं
(1) वास्तविक रूप में पाठ्य-पुस्तक पद्धति में प्रयोग की जाने वाली
पाठ्य-पुस्तकेउद्देश्य प्राप्त करने की साधनमात्र हैं, किन्तु व्यवहार में यह
देखा जाता है कि अध्यापकतथा छात्र दोनों ही इस साधन को साध्य (End) मान लेते
हैं। अध्यापक तथा छात्रों काएकमात्र उद्देश्य पाठ्य-पुस्तक समाप्त कराना हो
जाता है। इससे शिक्षा के मूल उद्देश्यप्राप्त करने में बाधा होती है।
(2) पाठ्य-पुस्तक पद्धति छात्रों में रहने की आदत की आवश्यकता से अधिकविकास
करती है। छात्र अपनी तर्क-शक्ति से काम न लेकर पाठ्य-पुस्तक में दी
गयीविषय-वस्तु को रटकर उत्तीर्ण होने को ही अपना उद्देश्य बना लेते हैं।
(3) यह पद्धति छात्रों के पूर्वानुभवों को कोई भी महत्व प्रदान नहीं करती है।
।(4) पाठ्य-पुस्तक पद्धति व्यक्तिगत विभिन्नताओं को भी ध्यान में नहीं रखती।
सभीप्रकार के छात्रों को एक ही प्रकार की पाठ्य-पुस्तक का अध्ययन करना पड़ता
है।
(5) पाठ्य-पुस्तक विभिन्न छात्रों के भाषा-ज्ञान का भी ध्यान नहीं रखती
है।पुस्तकों की भाषा, शैली, विषय-वस्तु आदि छात्रों के मानसिक स्तर के अनुसार
नहीं भीहो सकती है।
(6) यह पद्धति केवल सैद्धान्तिक ज्ञान ही प्रदान करती है, व्यावहारिक
तथाप्रयोगात्मक नहीं।
(7) कभी-कभी पाठ्य-पुस्तकें अध्यापक के महत्त्व को कम कर देती हैं। छात्र
यहसमझते हैं कि अब तो हम पाठ्य-पुस्तकों से ही ज्ञान प्राप्त कर लेंगे.
अध्यापकों की क्याजरूरत है
(8) पाठ्य-पुस्तक पद्धति के अन्तर्गत छात्र स्वयं का कोई भी दृष्टिकोण
अपनाने-में असफल रहते हैं। ये विभिन्न पुस्तकों में दिये गये दृष्टिकोणों को
ही अपना दृष्टिकोणबना लेते हैं।
(9) पाठ्य-पुस्तकें कभी-कभी बड़ी नीरसता पैदा कर देती हैं, क्योंकि पुस्तकों
मेंमुद्रित अक्षर हमसे कुछ नहीं कह सकते।
सुझाव (Suggestions)
(1) इस पद्धति की सफलता चुनी गयी पाठ्य-पुस्तक पर काफी मात्रा में आधारितहै।
अतः अध्यापक को पाठ्य-पुस्तकों का चयन बड़ी सावधानी से करना चाहिए।अध्यापक को
उन सभी तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए जिनका वर्णन 'वाणिज्य कीपाठ्य-पुस्तक'
नामक अध्याय में किया गया है।
(2) अध्यापक को चाहिये कि वह पाठ्य-पुस्तक प्रणाली में व्याप्त नीरसता को
दूरकरे। इसके लिए सर्वोत्तम साधन उपयुक्त सहायक-सामग्री का प्रयोग करना है।
इसकेअतिरिक्त अध्यापक अन्य उपायों, यथा उदाहरण, दृष्टान्त आदि के द्वारा भी
सरसता लासकता है।
(3) पाठ्य-पुस्तक पद्धति में अनुभवी तथा योग्य अध्यापकों की आवश्यकता
पड़तीहै. क्योंकि पुस्तक का चयन, छात्रों का उचित निर्देशन, अध्ययन की योजना
निर्माणआदि अनेक ऐसे कार्य है जिनमें अनुभवी तथा योग्य अध्यापकों की आवश्यकता
पड़तीहै। अतः अनुभवी तथा योग्य अध्यापकों की व्यवस्था करनी चाहिए।
(4) छात्रों को उपयुक्त विधि से निर्देशित करने की आवश्यकता है। छात्रों को
इसप्रकार से निर्देशित किया जाये कि वे रटने की आदत का विकास आवश्यकताअधिक न
करें, वरन् समीक्षात्मक, तार्किक तथा विश्लेषणात्मक रूप से अध्ययन करना
सीखें।
(5) पद्धति को यथासम्भव व्यावहारिक एवं प्रयोगात्मक बनाने की चेष्टा
करनीचाहिए।
(6) अध्यापक को प्रश्न पूछते समय भी अत्यन्त सावधानी रखनी चाहिए। प्रश्नों
केसम्बन्ध में प्रस्तुत पुस्तक में अन्यत्र विस्तारपूर्वक लिखा गया है।
संक्षिप्त में प्रश्नों कीभाषा व शैली अत्यन्त सरल, बोधगम्य तथा स्पष्ट होनी
चाहिए।
(7) अध्ययन में मौन वाचन तथा सस्वर वाचन दोनों ही प्रकार के अध्ययन
कीव्यवस्था होनी चाहिए। इससे छात्र ध्यान केन्द्रित करना तथा सही उच्चारण
करना दोनों ही सीख सकेंगे।
(8) श्यामपट-कार्य की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए। श्यामपट पर जो कुछ भीकार्य
किया जाये वह सरल, क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित होना चाहिए।
अभ्यास-प्रश्न
निबन्धात्मक प्रश्न
1. शिक्षण-पद्धतियों से आप क्या समझते हैं ? एक उत्तम शिक्षण-पद्धति के
प्रमुख गुणों की चर्चा कीजिये।
2. वाणिज्य-शिक्षण में भाषण-पद्धति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? इस पद्धति
के गुण व दोष भी लिखिये।
3. वाणिज्य शिक्षण में भाषण-पद्धति को किस प्रकार उपयोगी बनाया जा सकता है?
4. वाणिज्य शिक्षण की पाठ्य-पुस्तक पद्धति से आप क्या समझते हैं ?
पाठ्य-पुस्तक पद्धति से वाणिज्य का शिक्षण किस प्रकार किया जाता है?
5. वाणिज्य-शिक्षा की पाठ्य-पुस्तक पद्धति के गुण-दोषों की चर्चा कीजिये।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
1. शिक्षण पद्धति का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
2. एक अच्छी शिक्षण पद्धति की कुछ प्रमुख विशेषतायें बताइये।
3. वाणिज्य-शिक्षण में भाषण-पद्धति का प्रयोग कब करना चाहिए?
4. भाषण-पद्धति को प्रणाली बनाने हेतु कुछ सुझाव दीजिये।
5. शिक्षण के लिए पाठ्य-पुस्तक का प्रयोग कितने प्रकार से निभाया जा सकता है?
प्रत्येक प्रकार का परिचय दीजिये।
6. पाठ्य-पुस्तक पद्धति को उपयोगी बनाने हेतु कुछ सुझाव दीजिये।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. अध्यापक को सफल शिक्षण हेतु तथादोनों का ही पर्याप्तज्ञान होना चाहिए।
2. वही उत्तम पद्धति है जो पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक
हो।
(अ) सत्य
(ब) असत्य
3. कौन-सी पद्धति शिक्षा की परम्परागत पद्धतियाँ कहलाती हैं?
(अ) प्रयोगशाला पद्धति
(ब) भाषण पद्धति
(स) पाठ्य-पुस्तक पद्धति
(द) ब और स दोनों।
4. पाठ्य-पुस्तक पद्धति दो प्रकार की होती है-
1. एक पाठ्य-पुस्तक पद्धति.
2.........
उत्तर-1 विषय वस्तु, शिक्षण पद्धति. 2. (अ) सत्य, 3. (द) ब और स दोनों, 4.
बहुपाठ्य-पुस्तक पद्धति।
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