प्रश्न 2. विज्ञान शिक्षण की प्रदर्शन विधि क्या है? वर्णन कीजिए।
अथवा
विज्ञान शिक्षण में व्याख्यान-प्रदर्शन विधि का वर्णन कीजिए।
अथवा
"व्याख्यान विधि छात्रों को ज्ञान प्रदान करने की दृष्टि से सबसे खर्चीली
विधि है।" स्पष्ट कीजिए।
1. विज्ञान शिक्षण की व्याख्यान विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
3. पदार्थ विज्ञान शिक्षण में व्याख्यान-प्रदर्शन विधि के महत्व को समझाइये।
4. व्याख्यान विधि के दोष व प्रयोग बताइए।
उत्तर-प्रदर्शन विधि
(Demonstration Method)
प्रदर्शन से आशय किसी विषय-वस्तु को दृश्य के रूप में प्रदर्शित करने से है। इस
विधि द्वारा छात्रों को मूर्त रूप से शिक्षा प्रदान की जाती है। यह विधि
छात्रों के मस्तिष्क को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है क्योंकि इससे
अध्यापक छात्रों के सम्मुख प्रयोग का प्रदर्शन करता है। प्रदर्शन के द्वारा ही
घटना के विभिन्न पक्षों को प्रदर्शन द्वारा छात्रों को समझाया जाता है। इस विधि
द्वारा छात्रों की निरीक्षण तथा तार्किक शक्ति का विकास होता है। दृश्य के रूप
में होने के कारण यह छात्रों की रुचि को निरन्तर विषय के साथ बनाए रखती है। यह
व्याख्यान विधि की तरह एक पक्षीय न होकर बहुपक्षीय होती है।
उदाहरणार्थ- सल्फ्यूरिक अम्ल की चीनी पर प्रतिक्रिया दिखाने के लिए शिक्षक
विद्यार्थियों के सम्मुख इससे सम्बन्धित प्रयोगों का प्रदर्शन करता है।
प्रदर्शन विधि के कारण- (Merits of Demonstration Method)-
इस विधि के निम्नलिखित गुण हैं-
(1) इस विधि का आधार मनोवैज्ञानिक है।
(2) तुलनात्मक दृष्टि से कम खर्चीली है।
(3) छात्रों में तार्किक शक्ति का विकास होता है।
(4) प्रदर्शन द्वारा छात्रों को सूक्ष्म प्रेक्षण का ज्ञान कराया जाता है।
(5) शिक्षक शिक्षण सामग्री का प्रभावशाली निर्देशन कर सकता है।
(6) दुर्लभ पाठ्य सामग्री की दशा में यह विधि उपयुक्त होती है।
(7) इस विधि में विद्यार्थी स्मृति और कल्पना पर निर्भर रहने के बजाय वस्तु को
मूर्त रूप में देखते हैं।
(8) यह विधि उस समय अधिक उपयोगी हो जाती है जबकि उपकरण बहुत ज्यादा कीमती हों
तथा उनके टूटने व बिगड़ने का खतरा हो।
(9) इस विधि में कुछ उपकरणों को बहुत सावधानी से काम में लाना होता है।
(10) इस विधि में विद्यार्थियों के समय की बचत होती है क्योंकि थोड़े समय में
ही अनेक प्रयोग किये जा सकते हैं।
प्रदर्शन विधि के दोष (Demerits of Demonstration Method)-
इस विधि के निम्नलिखित दोष हैं-
(1) इस विधि द्वारा करके सीखने (Learning by doing) सिद्धान्त की अवहेलना की गई
है।
(2) यह अध्यापक पर निर्भर करती है।
(3) छात्रों में प्रयोग करने की क्षमता का विकास नहीं हो पाता।
(4) इसमें वैज्ञानिक प्रशिक्षण (Scientific Training) का अभाव पाया जाता है।
(5) कुछ छात्रों को छोड़ अधिकांश छात्र निष्क्रिय रहते हैं।
(6) इस विधि से शिक्षण करते समय अध्यापक इतना लीन हो जाता है कि वह इस बात पर
ध्यान नहीं दे पाता कि छात्र प्रयोग को ठीक प्रकार को ठीक प्रकार से समझ रहे
हैं अथवा नहीं।
(7) कक्षा में जहाँ छात्रों की संख्या अधिक होती है वहाँ यह विधि प्रभावशाली
नहीं होती।
(8) इस विधि का एक दोष यह भी है कि यह आवश्यक नहीं है कि छात्र प्रयोग के समस्त
भाग को ध्यान से देखते सुनते रहे।
(9) प्रदर्शन विधि में समस्त छात्रों का सहयोग नहीं लिया जा सकता।
(10) इस विधि में छात्रों की अपेक्षा अध्यापक अधिक क्रियाशील रहता है।
प्रभावशाली एवं सफल प्रदर्शन हेतु सुझाव
(Suggestions for an Effective and Good Demonstration)
प्रभावकारी एवं सफलतम प्रदर्शन करने हेतु निम्नलिखित सावधानियाँ रखना आवश्यक
है—
(1) प्रदर्शन करते समय यह ध्यान रखें कि उसका स्थान ऐसा हो जहाँ से प्रत्येक
छात्र लाभान्वित हो सके।
(2) प्रदर्शन में एक समय में एक ही पाठ्य-वस्तु को प्रदर्शित करना चाहिए।
(3) प्रदर्शन के समय एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए।
(4) प्रदर्शन को बड़े रूप में प्रदर्शित करना चाहिए।
(5) प्रदर्शन सदैव छात्रों की रुचि व आवश्यकता पर निर्भर होना चाहिए।
(6) प्रदर्शन सम्बन्धी अन्य सूचनाओं को अंकित करने के लिए तथा उन्हें छात्रों
को समझाने के लिए ब्लैक-बोर्ड का प्रयोग करना चाहिए।
(7) प्रदर्शन उपरान्त निष्कर्षों को छात्रों को समझाकर नोट करना चाहिए।
व्याख्यान विधि
(Lecture Method)
भौतिक विज्ञान को पढ़ाने की व्याख्यान विधि अत्यन्त सरल और सस्ती विधि है।
प्रयोग सम्बन्धी
सामग्री तथा अन्य सहायक सामग्रियों के अभाव में अधिकांश पाठशालाओं के पास यही
एक ऐसी विधि है, जिसके द्वारा विज्ञान सम्बन्धी वर्ष भर के पाठ्यक्रम को पूरा
करके विद्यार्थियों को परीक्षा के लिए तैयार किया जाता है।
व्याख्यान शब्द का अर्थ- यह शिक्षण की एक विधि है जिसमें शिक्षक सिद्धान्तों को
मौखिक रूप से प्रस्तुत करता है, कक्षा में सामान्यतया नोट्स लेने के लिए
उत्तरदायी होता है, कक्षा की सहभागिता कम अथवा बिल्कुल नहीं होती है, जैसे कि
कक्षा के घण्टे में प्रश्न पूछना या विवेचना करना।
इस प्रकार की विधि को व्याख्यान विधि कहा जाता है। व्याख्यान विधि एक शैक्षणिक
प्रक्रिया है, जिसमें अध्यापक रुचि उत्पन्न करने, प्रभाव डालने, उत्प्रेरण अथवा
विचारों का परिवर्तन करने, क्रिया को प्रोत्साहित करने, सूचना प्रदान करने अथवा
आलोचनात्मक चिन्तन विकसित करने के लिए विस्तारपूर्वक मौखिक संदेश के अनुसार
उनका उपयोग करता है। उदाहरण, मानचित्र, चार्ट अथवा दृश्य सामग्री, मौखिक
प्रविधि के पूरक के रूप में उपयोग की जाती है।
विधि की प्रक्रिया
(Process of the Method)
व्याख्यान विधि में अध्यापक को जो पाठ पढ़ाना होता है, उसके लिए पहले से ही
पाठ्य-पुस्तक अथवा किसी और साधन से पढ़कर अपना व्याख्यान तैयार कर लेता है। फिर
कक्षा में उस पाठ से सम्बन्धित सामग्री को अपने व्याख्यान द्वारा छात्रों के
सम्मुख रखता है। वह अपना भाषण देता रहता है अथवा इस प्रकार कहिए कि उस पर भौतिक
विज्ञान सम्बन्धी सूचनाओं तथा विषय-वस्तु की वृष्टि-सी करते रहते हैं।
विद्यार्थी निष्क्रिय श्रोता बनकर उसका भाषण सुनते रहते हैं। उन्हें स्वयं तर्क
करने, चिन्तन करने अथवा बीच में अपनी कोई शंका समाधान करने का अवसर नहीं मिलता।
अध्यापक का उद्देश्य केवल अपने तैयार किए हुए भाषण को पूरी तरह से सुनाना भर
होता है। विद्यार्थी रुचि ले रहे हैं अथवा नहीं, उन्हें विषय ठीक से समझ में आ
रहा है या नहीं, इन बातों से अधिकतर वह उदासीन (Indifferent) ही रहता है।
व्याख्यान विधि के प्रमुख पद निम्नलिखित हैं -
1. पाठ की तैयारी (Preparation of Lesson)
2. प्रस्तुतीकरण (Presentation)
व्याख्यान विधि के गुण
(Merits of Lecture Method)
(1) आर्थिक दृष्टि से उपयोगी–व्याख्यान विधि द्वारा पढ़ाने में व्यय बहुत कम
होता है क्योंकि इस विधि में-
(i) वैज्ञानिक सामग्री अथवा उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती।
(ii) एक ही अध्यापक विद्यार्थियों की एक बड़ी संख्या को एक साथ पढ़ा सकता है।
(2) समय की बचत—इस विधि का प्रयोग करने से विषय-वस्तु को संगठित रूप में एक
निश्चित क्रम से पढ़ाया जा सकता है।
थोड़े से समय में विद्यार्थियों को अधिक बातें बतलाई जा सकती हैं। ऐसा करने से
समय की बचत होती है तथा यह सन्तोष भी होता है कि जितना समय था, उस हिसाब से
बहुत-कुछ पढ़ा लिया है। समय की बचत होने से पाठ्यक्रम को भी समय पर समाप्त करने
में आसानी रहती है।
(3) अधिक सरल और सुविधाजनक यह विधि अध्यापक और विद्यार्थी दोनों के लिए ही अधिक
सरल और सुविधाजनक है। अध्यापक को इस विधि द्वारा पढ़ाने में न तो बहुत अधिक
तैयारी करनी पड़ती है और न पढ़ाते समय प्रयोगों का प्रदर्शन करने,
विद्यार्थियों को मनोवैज्ञानिक रूप से समझने तथा उनमें अध्ययन के प्रति रुचि
उत्पन्न करने इत्यादि झंझट में फंसना ही पड़ता है। इसीलिए इस विधि
द्वारा अध्यापक कोई विशेष परिश्रम किए बिना अधिक आत्म-विश्वास से पढ़ा सकता है।
इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को भी प्रयोग आदि के करने से छुट्टी मिल जाती है,
उन्हें परीक्षा सम्बन्धी सभी प्रकार का उपयोगी ज्ञान केवल अध्यापक का भाषण
सुनने से ही प्राप्त हो जाता है।
(4) कई परिस्थितियों में विशेष रूप से उपयोगी-भौतिक विज्ञान को पढ़ते समय ऐसी
बहुत-सी परिस्थितियों तथा अवसर आते हैं जहाँ कि इस विधि का प्रयोग उपयोगी ही
नहीं बल्कि आवश्यक भी हो जाता है, जैसे-
(i) किसी भी पाठ की प्रस्तावना करते समय।
(ii) पढ़ाई गई वस्तु का सारांश देते समय।
(iii) प्रयोग सम्बन्धी निर्देशन देते समय।
(iv) कठिन प्रयोगों को स्पष्ट करते समय।
(v) विज्ञान सम्बन्धी ऐतिहासिक घटनाओं, प्राणियों की जीवन कथाओं और अन्य
विज्ञान सम्बन्धी आविष्कारों का वर्णन करते समय।
(vi) महान् वैज्ञानिकों की जीवनी से परिचित कराते समय।
व्याख्यान विधि के दोष
(Demerits of Lecture Method)
(1) अमनोवैज्ञानिक- यह विधि विषय को अधिक महत्त्व देती है। इसमें बालक की
रुचियों, मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं और अभिरुचियों की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया
जाता। यहाँ बालक एक श्रौतामात्र ही होता है, जो निष्क्रिय रूप से बैठे-बैठे
अध्यापक का भाषण सुनता रहता है इस प्रकार यह विधि मनोवैज्ञानिक नियमों के
प्रतिकूल है।
(2) मानसिक शक्तियों का उचित रूप से विकास नहीं इस विधि से विद्यार्थी
बैठे-बैठे जो अध्यापक कहता है उसे सही मानकर सुनते रहते हैं। उन्हें स्वयं तर्क
करने तथा चिन्तन करने का अवसर ही नहीं मिलता। फिर मानसिक शक्तियों के विकसित
होने का प्रश्न ही क्या उठ सकता है? यह विधि तो केवल चुपचाप सुनने और
सुनी-सुनाई बात को दोहराने पर ही जोर देती है।
(3) विज्ञान शिक्षण के मुख्य उद्देश्य के प्रतिकूल- इस विधि द्वारा न तो
विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न किया जा सकता है और न उन्हें
वैज्ञानिक ढंग से समस्याओं को हल करने अथवा चिन्तन करने का ही प्रशिक्षण मिलता
है। अत: यह विधि तो उद्देश्यों की पूर्ति के स्थान पर इनकी पूर्ति में बाधा ही
बनकर खड़ी होती है।
(4) व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति नहीं - इस विधि में प्रत्यक्ष अनुभव और
प्रयोग सम्बन्धी कार्य को कोई स्थान नहीं दिया जाता। 'करो और सीखो' जैसी उपयोगी
सिद्धान्त की पूरी तरह अवहेलना की जाती है। यही कारण है कि इस विधि द्वारा
पुस्तक सम्बन्धी शाब्दिक ज्ञान तो हो सकता है, परन्तु जिस तरह विज्ञान को सुना,
देखा तथा व्यवहार में लाया जा सकता है, उसकी प्राप्ति नहीं होती।
(5) विषय को समझने में कठिनाई – इस विधि द्वारा पढ़ने से विषय को समझने में भी
कठिनाई होती है, इसके निम्न कारण हैं -
(i) भौतिक विज्ञान एक ऐसा विषय है, जिसे केवल सुनकर ही नहीं समझा जा सकता जब तक
चीज को देखा न जाए और उसके बारे में प्रत्यक्ष अनुभव न प्राप्त किया जाए। उसके
बारे में केवल सुनने से स्पष्ट ज्ञान नहीं हो सकता।
(ii) इस विधि से पढ़ाते समय स्वाभाविक तौर पर पढ़ाने की गति कुछ अधिक तेज होती
है। जितनी गति से ज्ञान की बौछार की जाती है, उतनी शीघ्रता से बटोरने की शक्ति
और योग्यता कम ही विद्यार्थियों में पाई जाती है।
(iii) इस विधि में अध्यापक एक निश्चित क्रम में पढ़ता है। अगर किसी कारणवश उसका
कुछ अंश विद्यार्थियों को स्पष्ट न हो तो उसके बाद की सभी बातें समझने में
कठिनाई होती है।
(iv) अध्यापक अपना कार्य केवल भाषण देना मात्र ही समझता है। कोई बालक कितना
ध्यान दे रहा है और कितना समझ रहा है, इससे वह अपना कोई सम्बन्ध नहीं रखना
चाहता।
(v) बोलना भी एक कला है। सभी अध्यापक अच्छे वक्ता नहीं होते। इस गुण के अभाव
में भी विद्यार्थी पाठ को नहीं समझ पाते।
इन सब दोषों को देखते हुए हम भौतिक विज्ञान के शिक्षण के लिए कम-से-कम हाई
स्कूल की कक्षाओं तक व्याख्यान विधि को अपने इसी रूप में कोई स्थान नहीं दे
सकते। प्राइमरी कक्षाओं के विज्ञान शिक्षण के लिए तो इस विधि का प्रयोग कदापि
नहीं करना चाहिए। वास्तव में देखा जाए तो यह इस विषय में शिक्षण के उद्देश्यों
की पूर्ति में सबसे अधिक बाधक है।
व्याख्यान विधि का प्रयोग
व्याख्यान विधि में अनेक दोष होते हुए भी इसके महत्त्व को नहीं भुलाया जा सकता।
आज भी बड़ी कक्षाओं में शिक्षण की यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इसके अतिरिक्त
कई क्षेत्रों में यह तुलनात्मक दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। जैसे-
(1) जब पाठ्य-वस्तु का आकार सीमित तथा निश्चित हो।
(2) जब किसी विषय की शुरूआत करनी हो।
(3) जब पहले से पढ़ी हुई विषय-सामग्री की पुनरावृत्ति करनी हो।
(4) जब किसी विषय के गूढ़ तथा तार्किक तत्वों की उच्चस्तरीय व्याख्या करनी हो।
(5) प्रयोगात्मक प्रदर्शन की व्याख्या करने में सहायक।
व्याख्यान-प्रदर्शन विधि
(Lecture-Demonstration Method)
व्याख्यान-प्रदर्शन विधि भौतिक विज्ञानों के शिक्षण की महत्वपूर्ण विधि है।
व्याख्यान-प्रदर्शन विधि में दोनों भाषण विधि और प्रदर्शन विधि के गुण शामिल
हैं। इसलिये इसको भाषणयुक्त प्रदर्शन विधि या व्याख्यान प्रदर्शन विधि कहते
हैं। इस विधि में शिक्षक कक्षा के सामने प्रयोग करता है और इसी बीच वह
विद्यार्थियों से प्रश्न भी पूछता है। इस विधि में विद्यार्थी सभी वस्तुओं को
सावधानीपूर्वक देखने के लिए अत्यन्त विवश हो जाते हैं, क्योंकि इन्हें प्रयोग
के प्रत्येक चरण की ठीक-ठीक व्याख्या करनी पड़ती है, इसी कारण उनका सहयोग
आवश्यक हो जाता है। जब विज्ञान शिक्षण को पाठ्यक्रम में सबसे पहले शामिल किया
गया तो यह महसूस किया गया कि विद्यार्थियों में आश्चर्य और रुचि उत्पन्न करने
के लिये उनके सामने अनेकों प्रदर्शन करके दिखाये जायें ताकि विद्यार्थियों को
यह विश्वास हो जाए कि शिक्षक जो कुछ बता रहा है वही सच है, और विद्यार्थी जो
कुछ देख रहे हैं उन्हें भली-भाँति स्मरण भी रख सकते हैं या नहीं। लेकिन इसके
बाद शिक्षकों ने यह महसूस किया कि यदि विद्यार्थी व्यक्तिगत रूप से प्रयोगशाला
में प्रयोग करे तो वह जल्दी और प्रभावशाली ढंग से सीखेगा। इस सम्बन्ध में कई
खोजें की गयीं लेकिन यह तय नहीं हो पाया कि कौन-सी विधि अपने आप में श्रेष्ठ
है, लेकिन यह बात निकलकर सामने आयी कि व्याख्यान-प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ विधि
सिद्ध हो सकती है। व्याख्यान-प्रदर्शन विधि एक ऐसी शैक्षणिक प्रक्रिया है
जिसमें मौखिक सूचना विवेचना के अन्तर्गत सामग्री के बोध के लिए परीक्षण करने
अथवा कठिन अंशों को स्पष्ट करने, तथ्यों की पहचान करने, सिद्धान्तों को उद्धरित
करने के लिए उपकरणों के प्रयोग के साथ ही शिक्षा दी जाती है।
व्याख्यान-प्रदर्शन विधि की विशेषताएं
(Characteristics of Lecture-Demonstration Method)
इस विधि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
1. यह विधि भौतिक विज्ञानों के शिक्षण के लिए विशेष उपयोगी है।
2. यह विधि सस्ती है और इसमें समय भी कम लगता है।
3. इस विधि में विद्यार्थी विशेष रुचि लेते हैं।
4. यह विधि मनोविज्ञान पर आधारित है क्योंकि इसमें छात्र वस्तुओं को देखते हैं,
इस कारण उन्हें झूठी कल्पना का सहारा नहीं लेना पड़ता।
5. इस विधि में विद्यार्थी को व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है।
6. इस विधि में विद्यार्थी का ज्ञान स्थायी होता है।
7. इस विधि में विद्यार्थियों की जिज्ञासा और सृजनात्मकता को संतुष्टि मिलती
है।
8. इस विधि में सभी विद्यार्थी एक प्रकार की ही प्रक्रिया और प्रविधि देखते
हैं।
व्याख्यान-प्रदर्शन विधि के दोष (Demerits of Lecture-Demonstration Method)-
इस विधि के निम्नलिखित दोष हैं -
1. इस विधि में विद्यार्थी निष्क्रिय रहते हैं। शिक्षक ही प्रदर्शन करता है तथा
शिक्षक ही पूरे समय तक समझाता रहता है।
2. इस विधि में विद्यार्थी प्रयोग न करके निरीक्षण करते हैं।
3. इस विधि में 'करके सीखने के लिए कोई स्थान नहीं है।
4. यह विधि विद्यार्थी के लिये आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं है।
5. इस विधि में विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास नहीं हो पाता
और न ही वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण मिल पाता है।
6. प्रदर्शन विधि में यह आवश्यक नहीं कि सभी विद्यार्थी उस प्रदर्शन को समझ रहे
हों और शिक्षक के व्याख्यान की ओर ध्यान दे रहे हों।
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