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ईजी नोट्स-2019 बी.एड. - I प्रश्नपत्र-4 वैकल्पिक पदार्थ विज्ञान शिक्षण

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2271
आईएसबीएन :0

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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) पदार्थ विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।

प्रश्न 1. भारतीय शिक्षा के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम से आप क्या समझते हैं? इसकी रूपरेखा को बताइये।

उत्तर - भारतीय शिक्षा का राष्ट्रीय पाठ्यक्रम (National Curriculum of Indian Education)-राष्ट्रीय पाठ्यक्रम के अन्तर्गत विज्ञान शिक्षण के माध्यम से यह अपेक्षा की जाती है कि दसवीं कक्षा तक विज्ञान पढ़ने वाले छात्र में स्वयं निर्णय लेने, विश्लेषण करने, अवलोकन करने व अपनी तात्कालिक और भावी आवश्यकताओं के लिए आवश्यक औजारों व उपकरणों का प्रयोग करने की योग्यता आ जाती है। छात्र में वैज्ञानिक विधि से कार्य करने का कौशल आ जाता है। इससे वह वैज्ञानिक ' संकल्पनाओं, नियमों व सिद्धान्तों को समझ सकता है और समस्याओं का समाधान ढूंढ सकता है। विज्ञान पाठ्यक्रम शिक्षा के अन्तर्गत प्राकृतिक पर्यावरण का अध्ययन, वनस्पति, जीव-जन्तु, ऊर्जा के स्त्रोतों तथा प्राकृतिक संसाधनों के स्त्रोतों के विषय में शिक्षा का प्रावधान है। प्राथमिक स्तर पर बागवानी, खेल, पशु-पक्षियों की देखरेख, विज्ञान सम्बन्धी वस्तुओं को रखना उनसे खेलना आदि होता है। प्राथमिक स्तर पर विज्ञान और पर्यावरण का अध्ययन एकीकृत रूप में होता है। विज्ञान को विषय के रूप में पढ़ाया तो जा रहा है किन्तु भौतिक, रसायन विज्ञान एवं जीव विज्ञान को अलग-अलग भागों में प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है।

विज्ञान पाठ्यक्रम पर एन. सी. ई. आर. टी. के विचार को इस प्रकार बता सकते हैं -

प्राथमिक स्तर पर पाठ्यक्रम के अन्तर्गत जो निष्पादन होता है उसका समाकलन उपागम करके अनुगमन करना चाहिये। पाठ्यक्रम में विज्ञान की विधि और प्रयुक्ति पर बल देना चाहिये जिससे शिक्षार्थी को यह जानकारी हो कि वैज्ञानिक सामान्यीकरण अस्थायी है। विज्ञान के अभिज्ञान में दूसरे सहभागी और उसके शिक्षक हो सकते है।

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा (National Curriculum Framework,2005) - राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुरोध की वजह से पाठ्यक्रम में आने वाली विभिन्न अवस्थाओं को NPE के अनुसार रखा गया है तथा विद्यालयी स्तर की विभिन्न अवस्थायें प्रस्तुत की गयी है। जो हमारी वर्तमान पाठ्यक्रम प्रणाली, स्कूल त्रिस्तरीय व्यवस्था पर आधारित है। इसमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर शैक्षिक स्तर शामिल होते है। इसी कारण विद्यार्थी अपने पाठ्यक्रम के भार से मुक्ति पाता है और तेजी से मानसिक एवं शारिरिक क्रियाओं की वजह से इन अवस्थाओं को पार कर लेता है। अत: हम कह सकते हैं कि पाठ्यक्रमीय सृजन का लक्ष्य छात्रों की अभिवृद्धि का निर्माण करना है तथा उसके अनुभवों को इस प्रकार डिजायन करना होता है कि छात्रों की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और अपनी अभिरुचियों का अनुगमन कर सके। इसी प्रकार पाठ्यक्रम निर्माता की अभिवृद्धि और शिक्षक की अभिवृद्धि भी इसमें सम्मिलित है तथा इन दोनों की अभिवृद्धि छात्र को सहायता प्रदान करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE -1986) के द्वारा विज्ञान पाठ्यक्रम के बारे में निम्न बातें कही गयी हैं -

1. विज्ञान पाठ्यक्रम को सुदृढ़ किया जाये जिससे कि बच्चों में कलात्मक, सृजनात्मकता एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को हल करने का साहस विकसित हो सके जिससे उसकी मानसिक क्रियायें विकसित होती हैं।

2. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पाठ्यक्रम को अधिक लचीला बनाना चाहिये जिससे कि विद्यार्थी उसको उत्साहित होकर पढ़े और आगे उसका विस्तारपूर्वक उल्लेख कर सके।

3. पाठ्यक्रम को विषय के स्तरों पर रखना चाहिये। इस वजह से विद्यार्थी इसे आसानी से शिक्षण में ग्रहण कर पायेगा।

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