प्रश्न 3 - कनिष्क के उत्तराधिकारियों का परिचय देते हुए यह बताइए कि कुषाण
वंश के पतन के क्या कारण थे ?
सम्बन्धित लघु उत्तरीय
प्रश्न 1. कनिष्क के उत्तराधिकारी कौन-कौन हुए ?
2. कुषाण वंश के पतन के क्या कारण थे ?
3. हुविष्क के जीवन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -कनिष्क के उत्तराधिकारी
(Heirs of Kanishka)
कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् उसके समस्त उत्तराधिकारी अयोग्य सिद्ध हुए, जबकि
महान कुषाण सम्राट कनिष्क प्रथम अपने समय में गौरव के शिखर पर पहुँच गया था।
इससे कुषाण साम्राज्य के ही नहीं , बल्कि मध्य एशिया के शासक भी भय खाते थे,
किन्तु इस गौरव को कनिष्क के उत्तराधिकारी वासिष्क को मथुरा और इसके
निकटवर्ती प्रदेश में राज्य करता हुआ बताया गया है।
1. वसिष्क - कनिष्क के पश्चात् वासिष्क राजा हुआ। इसने उत्तराधिकार में
प्राप्त राज्य को अक्षुण्ण बनाये रखा। मथुरा तथा सांची में उसके अभिलेख
प्राप्त हुए हैं। इनमें प्रथम अभिलेख की तिथि 24 तथा द्वितीय की 28 है। ये
दोनों तिथियाँ शक सम्वत् की हैं। इन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इन
प्रदेशों ! पर उसका शासन था। इसका कोई भी सिक्का उपलब्ध नहीं हुआ है। इसका
शासनकाल 101 ई. से 106 ई. तक माना गया है।
2. हुविष्क - वासिष्क के पश्चात् हुविष्क गद्दी पर बैठा। इसकी तिथियाँ 31वें
वर्ष से 60 वर्ष तक मिलती है। यह शक्तिशाली राजा था, इसके बहुत से सिक्के
भारत तथा अफगानिस्तान में मिले हैं। इसके समय में भी कुषाण राज्य अक्षुण्ण
बना रहा, काबुल में भी इसका अभिलेख मिला है। इसके अलावा बिहार में भी एक
अभिलेख मिला है। राजतरंगिणी से विदित होता है कि उसने काश्मीर में ‘हुष्कपुर'
नगर बसाया था। इसने सुन्दर मुद्राओं का निर्माण कराया था, इन मुद्राओं पर
भारतीय तथा यूनानी देवी-देवताओं की सुन्दर प्रतिमाओं का चित्रण है, परन्तु
किसी भी सिक्के पर महात्मा बुद्ध का चित्रण नहीं मिलता है। वह बौद्ध तथा जैन
मतानुयायियों के प्रति भी सहिष्णु था। इसका शासनकाल 106 से 138 ई. तक माना
गया है।
3. कनिष्क द्वितीय - पेशावर जिले के अन्तर्गत सिन्धु नदी के किनारे आरा नामक
स्थान पर एक अभिलेख मिला है, जिसमें वसिष्क पुत्र कनिष्क के शासन की 41वीं
तिथि मिलती है। स्टेनकोनों तथा फ्लीट आदि के अनुसार यह कनिष्क महान के
अतिरिक्त और कोई व्यक्ति था, अतः उन्होंने उसे कनिष्क द्वितीय माना है।
4. वासुदेव प्रथम - हुविष्क के पश्चात् वासुदेव गद्दी पर बैठा। इसके नाम से
यह ज्ञात होता है कि यह पूर्णतया भारतीय शैव था। इसके सिक्के पर शिव और नन्दी
के चित्र अंकित मिलते हैं। इसने 25 से 30 वर्ष तक राज्य किया, इसकी तिथियाँ
67 से 68 तक मिलती हैं। इस समय कुषाण काल का अवनति काल था। इसके और अभिलेख
उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में भी मिले हैं, सम्भवतः सिन्ध, काश्मीर,
अफगानिस्तान आदि राज्य उसके हाथ से निकल चुके थे। इसके सिक्के भी घटिया किस्म
के हैं। इसका शासनकाल 145 ई. से 176 ई. तक माना गया है।
5. कनिष्क तृतीय - इसका इतिहास एकमात्र कुछ मुद्राओं से ज्ञात होता है। इसकी
कोई भी मुद्रा सतलज नदी के पूर्व में नहीं मिली है। इससे अनुमान लगाया जाता
है कि पूर्वी पंजाब तथा उत्तर प्रदेश उसके हाथ से निकल गये थे। इन दोनों को
यौधेव, मालवा तथा नाग आदि जातियों ने स्वतन्त्र कराया था। इस प्रदेश में इनकी
मुद्रायें मिली हैं। इस प्रकार कनिष्क के तृतीय राज्य के अन्तर्गत केवल
पश्चिमी पंजाब, सीस्तान, अफगानिस्तान एवं बैक्ट्रिया के प्रदेश थे, इसने 180
ई. से 210 ई. तक राज्य किया।
6. वासुदेव द्वितीय - वासुदेव के सिंहासन पर बैठने के समय कुषाणों का राज्य
बड़े संकट में था। इस समय इनके अनेक शत्रु सिर उठा रहे थे। ईरान में इस समय
सोवियन वंश की स्थापना हो गयी थी, विद्वानों का अनुमान है कि इसने
सम्भवतः अपना दूत चीन के राजा के पास सहायता के लिए भेजा था, जिससे कि वह
सेसेनियन वंश से अपनी रक्षा कर सके।
वासुदेव के पश्चात् नाममात्र के राज्य हुए। उसके शासनकाल में सेसेनियम वंश ने
अफगानिस्तान तथा उत्तरी सीमा प्रान्त कुषाणों से छीन लिया था।
कुषाण वंश के पतन के कारण
(Causes of Fall of Kushan Dynasty)
1. गुप्त वंश की स्थापना - डा. बनर्जी का मत है कि गुप्तों ने कुषाणों के
साम्राज्य का अन्त किया था, परन्तु अधिकांश विद्वान इस मत से सहमत नहीं हैं
क्योंकि गुप्तों का उदय कुषाणों के पतन के लगभग एक शताब्दी पश्चात् हुआ था।
2. स्वतन्त्र जातियों का विद्रोह - डा. अल्तेकर का मत है कि यौधेय, मालव तथा
आर्जुयन नामक गणतन्त्रात्मक जातियों ने कुषाणों के प्रदेश को छीना था। इन
जातियों की मुद्रायें केवल पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में मिली हैं। देवताओं के
सेनापति कार्तिकेय का चित्र भी इनकी मुद्रा पर अंकित है। जनसाधारण का विश्वास
है कि यौधेय विजय के पथ से परिचित हैं। यह सम्भव है कि मथुरा तथा पूर्वी
पंजाब के प्रदेश इन जातियों ने कुषाणो से छीन लिये थे।
3. नाग जाति - डा. जायसवाल ने पुराणों के आधार पर यह मत प्रतिपादित किया है
कि नागों ने कुषाणों को भारत से निकाला था, पुराणों में इन नागों को 'भारशिव
कहा है। इन विजयों के उपलक्ष्य में इन्होंने काशी में 10 अश्वमेघ यज्ञ किये
थे जिनकी स्मृति अब भी दशाश्वमेघ घाट (बनारस) के रूप में विद्यमान है। भारत
में कुषाणों को इस जाति से भी संघर्ष करना पड़ा था और इसने कुषाणों के कुछ
प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था।
4. सेसेनियन वंश का प्रादुर्भाव - सेसेनियन वंश के प्रादुर्भाव से कुषाणों की
शक्ति का अन्त हुआ। ससैनियन वंश के राजा आरदेशीय प्रथम ने कुषाणों से
बैक्ट्रिया तथा अफगानिस्तान के प्रदेश छीन लिये थे।
5. जुआन-जुआन जाति - चीनी ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि कुषाण साम्राज्य के
उत्तरी भाग पर जुआन-जुआन (Jouan-Jouan) नामक जाति ने अधिकार कर लिया था।
6. चीन से युद्ध - चीन के युद्धों ने भी कुषाणों की शक्ति को कम कर दिया था,
चीन ने तुर्किस्तान कुषाणों से छीन लिया था।
इस प्रकार विभिन्न कारणों से कुषाण वंश का अन्त हुआ। कुषाणों के पतन के
पश्चात् भी पंजाब के अन्तर्गत कुषाणों की एक अन्य शाखा किदार कुषाण शासन करते
रहे। प्रयागप्रशस्ति में भी उनका उल्लेख मिलता है। इसलिए उसमें देवी पुत्र
शाहि शहानुशाही का प्रयोग किया गया है। इसमें ये समुद्रगुप्त के सम्मुख
नतमस्तक हो गये थे। पंचवीं शताब्दी में इसने हूणों के आक्रमण का सामना किया
और नवीं शताब्दी तक इसका अस्तित्व बना रहा।
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