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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2011
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष प्राचीन इतिहास प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


शिशुनाग वंश
(Shishunag Dynasty)

बौद्ध साहित्य के अनुसार मगध की जनता ने पितृघाती नागदासक को शासन से च्युत कर उसके सुयोग्य मंत्री शिशुनाग को राजा बनाया।

बौद्ध और पौराणिक लेखों में सबसे मुख्य अन्तर शिशुनाग और काकवर्णिन् के राजवंशों की सूची में दिये हुए स्थान के सम्बन्ध में है। बौद्ध लेखक उन्हें बिम्बिसार, अजातशत्रु और उदयिन के भी पीछे रखते हैं और उन्हें एक अलग वंश का बताते हैं, किन्तु पुराण उन्हें अपनी सम्पूर्ण सूची के ऊपर रखते हैं और यथार्थ में उन्हें बिम्बिसार अजातशत्रु के पूर्वज बताते हैं। पौराणिक लेख के एक विवरण के अनुसार जो उसकी सच्चाई पर सन्देह उत्पन्न कर बौद्धों के प्रमाण को स्वीकार करने को प्रेरित करता है। अवन्ति का राजा प्रद्योत और बिम्बिसार समकालीन थे परन्तु पुराणों के अनुसार "शिशुनाग उनकी सब प्रतिष्ठा को मिटा देगा और राजा होगा।'' यह स्पष्टोक्ति निस्संदेह इस विचार की पुष्टि करती है कि शिशुनाग बिम्बसार और अजातशत्रु के बहुत पीछे हुआ और अवन्ति के शक्तिशाली राजा को अस्तगत कर अपनी उग्र नीति को आगे बढ़ाया।

शिशुनाग के उत्तराधिकारी - शिशुनाग के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक अथवा काकवर्ण मगध का राजा हुआ। सम्भव है कि वह अपने पिता के समय काशी का शासक रह चुका था। बौद्ध द्वितीय संगति भी इसके काल में हुई थी। संगति का स्थान पाटलिपुत्र था। बौद्ध साहित्य दीपवंश और महावंश के अनुसार उसने 28 वर्ष तक राज्य किया था। 'हर्षचरित' के अनुसार काकवर्ण शिशुनाग की हत्या नगर के बाहर छुरा भोंक कर की गयी थी। बौद्ध साहित्य के अनुसार काकवर्ण के 10 पुत्र थे जिन्होंने क्रमशः 82 तर्ष तक राज्य किया। इनमें नन्दिवर्धन सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ जो एक शूद्रा का पुत्र था जिसने नन्द वंश की स्थापना की।

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