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वायमण्डल संघटन और संरचना
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
वायुमण्डल एक बहुस्तरीय गैसीय आवरण है, जो पृथ्वी को चारों तरफ से आवृत्त
किये हए है तथा प्राकृतिक पर्यावरण एवं जीवमण्डलीय पारिस्थितिक तंत्र का एक
महत्वपूर्ण संघटक (Component) है क्योंकि जीवमण्डल के सभी जीवधारियों के
अस्तित्व के लिए इससे सभी आवश्यक गैसे उष्मा तथा जल प्राप्त होता है।
वायुमण्डल पृथ्वी से उसके गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा सम्बद्ध है। वायुमण्डल
सूर्य से आने वाली विकिरण तरंगों को छानने का भी कार्य करता है। यह पराबैंगनी
सौर्यिक विकिरण तरंगों का अवशोषण कर लेता है तथा उन्हें इस प्रकार, पृथ्वी की
सतह तक पहुंचने से रोकता है और धरातल से अत्यधिक गर्म होने से बचाता है, सागर
तल से 16 से 29 हजार किलोमीटर तक वायुमण्डल की ऊंचाई का अनुमान किया गया है।
वायुमण्डल की भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रियायें (processes) तथा मौसम एवं
जलवायु के तत्वों (उष्मा, तापमान, वायुदाब, पवन, आर्द्रता, मेघाच्दछन्नता
(cludiness), वर्षा, वायुमण्डलीय तूफान आदि। ने जीवमण्डल में पौधों एवं
जन्तुओं (मानव भी) के उद्भव, विकास एवं वृद्धि को सदैव प्रभावित एवं
नियंत्रित किया है। जीवमण्डल के संघटकों के मध्य पारस्परिक अन्तक्रियायें
(mutual interaction) होती रहती हैं। यद्यपि मौसम एवं जलवायु में प्राकृतिक
कारणों से स्थानीय, प्रादेशिक एवं भूमण्डलीय स्तरों पर मंद गति से सहज
परिवर्तन (secular changes) होते रहते हैं परन्तु मनुष्य द्वारा अब वायुमण्डल
के संघटन एवं संरचना मुख्य रूप से रासायनिक संरचना में त्वरित परिवर्तन होने
से मौसम एवं जलवायु में त्वरित परिवर्तन (drastic changes) की सम्भावना बलवती
हो गयी है। ज्ञातव्य है कि मौलिक रुप में गैसीय संघटक के संदर्भ में
वायुमण्डल सन्तुलित अवस्था में था परन्तु मनुष्य के इच्छित या अनिच्छित,
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कार्यों द्वारा इस गैसीय सन्तुलन में परिवर्तन होने
लगा है। मनुष्य के आर्थिक कार्यों द्वारा वायुमण्डल के प्राकृतिक गैसीय संघटन
में किसी भी प्रकार के परिवर्तन द्वारा वायु मण्डलीय संतुलन विक्षुब्ध हो
जाता है जिस कारण
विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं यथा वायुमण्डलीय
प्रदूषण तथा वायुमण्डल के रासायनिक संघटन में परिवर्तन, भूमण्डलीय ताप वृद्धि
(Global warming) तथा जलवायु परिवर्तन, जिस कारण परिस्थितिकीय संतुलन
(ecological balance) तथा पारिस्थितिकीय तंत्र की स्थिरता (ecological
stability) में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है। इसलिए वायुमण्डल की विशेषताओं
एवं प्रक्रियाओं का अध्ययन न केवल महत्वपूर्ण हो गया अपितु आवश्यक हो गया है।
वायुमंडल का संघटन (Composition of Atmosphere) पृथ्वी के चारों तरफ कई सौ
किलोमीटर से हजारों किलोमीटर से हजारों किलोमीटर की मोटाई में व्यापत गैसीय
आवरण को 'वायुमण्डल' कहा जाता है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही यह
वायुमण्डल उसके साथ टिका हुआ है। वास्तव में पृथ्वी का वायुमण्डल बहुस्तरीय
गैसीय आवरण (multilayered gaseous envelope) है। जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण
बल द्वारा पृथ्वी की सतह से सम्बद्ध है। विभिन्न गैसों के यांत्रिक सम्मिश्रण
को हवा कहते हैं। मूलतः वायुमण्डल तीन आधारभूत तत्वों या संघटकों से मिलकर
बना है-
(i) गैस (Gases)
(ii) 57879104 (Water Vapour)
(iii) एयरोसॉल (Aerosois)
वायुमण्डल की संरचना (Structure of Atmosphere) वर्तमान समय में वायुमण्डल के
विषय में आधुनिकतम जानकारी प्राप्त करने के लिए रेडियोसाण्डे, रविसाण्डे
(radio-sande, rawisonde), बैलून, रॉकेट, राडार, उपग्रह, रेडियोतरंग, विविध
प्रकार के सेन्सर आदि का सहारा लिया जाता है। इन माध्यमों से प्राप्त जानकारी
के आधार पर प्रभावी वायुमण्डल की ऊंचाई का 16 से 29 हजार किलोमीटर तक अध्ययन
किया गया है परन्तु सागर तल से 800 किलोमीटर ऊँचाई तक का वायुमण्डल सर्वाधिक
महत्वपूर्ण होता है। गैसों के सान्द्रण, सकल वायुमण्डलीय द्रव्यमान (mass),
वायुदाब तथा मौसम की घटनाओं की दृष्टि से वायुमंडल का लगभग 50 प्रतिशत भाग
5.6 किलोमीटर तथा 97 प्रतिशत भाग 29 किलोमीटर ऊंचाई तक निहित है। पृथ्वी के
वायुमंडल की रचना कई संकेन्द्रीय परतों या मण्डलों (concentric layers or
zones) से हुई है।
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