भूगोल >> ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्रईजी नोट्स
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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।
14.
नदी के कार्य तथा उत्पन्न स्थलाकृतियाँ
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
भूतल पर समतल स्थापक बलों में बहते हुए जल नदी का कार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण
है। वर्षा का जो जल धरातल पर किसी न किसी रूप मे बहने लगता है, उसे बाही जल
(runoff) कहते हैं। जब बाही जल एक निश्चित रूप में ऊंचाई से निचले ढाल पर
गुरुत्वाकर्षण के कारण प्रवाहित होता है तो उसे नदी या 'सरिता' कहते हैं। अतः
नदी किसी भी ढाल पर एक निश्चित मार्ग में प्रवाहित होने वाली जलराशि होती है,
जिसमें जलधारा के साथ चट्टान चूर्ण भी बहते हुए चलते हैं। नदियाँ मुख्य रूप
से चार प्रकार की होती हैं, स्थायी नदी, अस्थायी नदी, आन्तरायिक नदी
(intermittent river) तथा अल्प कालिक नदी (ephemeral river) नदियाँ ऊंचे ढाल
से निचले ढाल की ओर बहती हैं, तथा यह ढाल भिन्न-भिन्न हुआ करता है। नदियाँ
भूतल पर समतल स्थापना का कार्य तीन रूपों में करती है, जिसे त्रिकल कार्य या
त्रिपथ कार्य (three-phase-work or three way-work) कहा जा सकता है। ये तीन
कार्य हैं-
(i) अपरदन (Erosion) (ii) परिवहन (transpotion)
(iii) निक्षेपण (Deposition)
नदी का सर्वप्रमुख कार्य भूपटल का अपरदन करना है। प्रमुख विद्वान सैलिसबरी
में बताया है कि-"नदी के प्रमुख कार्यों में से एक कार्य स्थल का सागर तक ले
जाया जाना है।' नदियाँ सदैव अपने मार्ग की समीपी चट्टानों को घिस कर तथा काट
कर अपने साथ परिवहन करने में प्रयत्नशील रहती हैं। नदी द्वारा अपरदन कार्य
में अपक्षय का भी पर्याप्त योग रहता है। अपक्षय की विभिन्न क्रियाओं
द्वारा समीपी चट्टान विघटित तथा वियोजित होकर कमजोर हो जाती है तथा जल के
साधारण कार्य द्वारा अलग होकर जल के साथ हो लेती है। नदियाँ अपरदन का कार्य
दो रुपों में करती हैं। एक तो नदी का जल घाटी की तली तथा किनारे को काटता है
और दूसरे नदी के साथ सम्मिलित पदार्थ भी अपरदन का कार्य करते हैं। फलस्वरूप
अपरदन के लिए नदी में बोझ (Load) का होना आवश्यक है। नदी के बोझ (भार) में
कंकड़, पत्थर, रेत आदि पदार्थ सम्मिलित किये जाते हैं।
नदियाँ अपरदन द्वारा प्राप्त चट्टान चूर्ण या मलबा (debris) का एक स्थान से
दूसरे स्थान तक स्थानान्तरण करती हैं। नदी के इस कार्य को परिवहन कहते हैं।
अपरदन के अलावा नदियों के अपक्षय द्वारा विघटित एवं वियोजित पदार्थ तथा भूमि
स्खलन (landslide), अपवात (slumping) तथा भूमि सपर्ण (land creep) द्वारा
मलवा प्राप्त होता है, जिसका परिवहन नदी का जल करता है। नदी द्वारा छोटे-बड़े
तथा महीन सभी प्रकार के कणों का परिवहन किया जाता है। नदी की परिवहन शक्ति की
एक सीमा होती है, जिससे अधिक बोझ (Load) होने पर नदी उसे ढ़ोने में असमर्थ हो
जाती है और निक्षेप करने लग जाती है। नदी की परिवहन शक्ति को प्रभावित करने
वाले दो कारक सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं-1. बोझ के पदार्थों का आकार तथा मात्रा
2. नदी का वेग।
महीन कणों वाले बारीक पदार्थों का परिवहन नदी के साथ घोल के रुप में आसानी से
हो जाता है परन्तु बड़े कणों वाले पदार्थों का परिवहन नदी की तली के साथ
लुढ़कते हुए होता है। नदी का वेग, जो नदी की परिवहन शक्ति को निर्धारित करता
है, नदी की घाटी के ढाल, आकार तथा स्वरूप एवं जल के आयतन पर आधारित होता है।
यदि नदी मार्ग का ढाल तथा आकार स्थिर है, तो जल के आयतन में वृद्धि होने पर
नदी वेग में वृद्धि होती है। उल्टी अवस्था होने पर नदी वेग कम हो जाता है।
यदि नदी घाटी का आकार तथा जल का आयतन स्थिर है तो अधिक ढाल होने पर नदी का
वेग अधिक हो जायेगा। यदि ढाल तथा आयतन स्थिर है तो सीधे जलमार्ग में नदी वेग
अधिक होगा और घुमावदार जलमार्ग का वेग कम होगा। इस तरह यदि नदी का वेग अधिक
होगा तो नदी की परिवहन शक्ति निश्चय ही अधिक हो जायेगी।
गिलबर्ट महोदय ने नदी के वेग तथा नदी की परिवहन शक्ति के बीच सम्बन्ध के आधार
पर एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया है, जिसे गिलबर्ट का 'छठी शक्ति का
सिद्धांत' (Gilbert's sixth power Law) कहते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार नदी
की परिवहन शक्ति नदी के वेग की छठी शक्ति के अनुपात में होती है अर्थात् यदि
नदी के वेग को दुगुना कर दिया जाय तो नदी की परिवहन शक्ति 64गुनी अधिक हो
जाएगी।
इस नियम को निम्न सूत्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं-
परिवहन शक्ति (नदी का वेग)
नदिया बोझ (अपसाद भार) का परिवहन कई रूपों में करती हैं। इनमें से निम्नलिखित
रुप अधिक महत्वपूर्ण हैं-
(i) कर्षण द्वारा (by traction)
(ii) उत्परिवर्तन द्वारा (by saltation)
(iii) लटक कर (by suspension)
(iv) घुलकर (by solution)
यदि नदी का अपरदन कार्य विनाशी होता है तो निक्षेप का कार्य रचनात्मक होता
है। अपरदन के समय नदियाँ स्थलखंड को काटकर घिसकर या चिकना बनाकर विभिन्न
स्थलरुपों का निर्माण करती हैं। इसके विपरीत निक्षेपण कार्य में तरह-तरह के
मलवा को विभिन्न रूपों में जमा करके विचित्र स्थलरूपों की रचना करती हैं।
भूआकृति विज्ञान में अपरदन से उत्पन्न स्थलरूपों को अधिक महत्व प्रदान किया
जाता है क्योंकि ये स्थल की सामान्य सतह से ऊँचे होते हैं तथा आसानी से देखे
जा सकते हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि निक्षेपण कार्य नगण्य होता है।
निक्षेपात्मक स्थलरूप भी मानव के लिए अत्यधिक आर्थिक महत्व वाले होते हैं।
इस प्रकार उपरोक्त कार्यों के सम्पन्न होने से नदियाँ विभिन्न स्थलरुपों का
निर्माण करती हैं।
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