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ईजी नोट्स-2019 बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र

ईजी नोट्स

प्रकाशक : एपसाइलन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2009
आईएसबीएन :0

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बी. ए. प्रथम वर्ष भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम में सहायक-पुस्तक।


29.

पारिस्थितिक तंत्र

अध्याय का संक्षिप्त परिचय

'पारिस्थिक तंत्र' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ए0जी0 ट्रॉन्सली ने 1935 में किया। ट्रॉन्सली के अनुसार 'पारिस्थितिक तंत्र भौतिक तंत्रों का एक विशेष प्रकार का होता है। इसकी रचना जैविक तथा अजैविक संघटकों से होती है। यह अपेक्षाकृत स्थिर दशा में होती है, यह विवृत्त तंत्र होता है तथा विभिन्न प्रकारों तथा आकारों का होता है।" उन्होंने पुनः बताया कि पारिस्थितिक तंत्र एक गतिक तंत्र होता है जिसकी संरचना दो प्रमुख भागों से होती है—जीवोम या वायोम (Biome) तथा निवास क्षेत्र (habitat)। आर0एल0 लिण्डमैन के अनुसार किसी भी परिमाण वाली स्थान-समय इकाई में भौतिक-रासायनिक-जैविक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित तंत्र को पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। इसकी संरचना तीन मूलभूत संघटकों से होती है- (i) ऊर्जा संघटक (ii)जैविक (बायोम) संघटक तथा (iii) अजैविक का भौतिक (निवास्य) संघटक (स्थल, जल तथा वायु)। ऊर्जा, जैविक तथा मौलिक संघटकों के मध्य जटिल पारस्परिक अन्तक्रियाएँ होती है, साथ ही साथ विभिन्न जीवधारियों में भी पारस्परिक क्रियाएँ होती हैं। पारीस्थितिक तंत्र एक खुला तंत्र होता है जिसमें ऊर्जा तथा पदार्थों का सतत निवेश तथा बहिर्गमन होता रहता है। पारीस्थितिक तंत्र विभिन्न प्राकर की ऊर्जा (सौर्यिक ऊर्जा) भूतापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा आदि) द्वारा चालित होता है। परन्तु सौर्यिक ऊर्जा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है। इसमें ऊर्जा का प्रवाह एक दिवसीय होता है। पारिस्थितिक तंत्र एक कार्यशाली इकाई होता है जिसके अन्तर्गत जैविक संघटक (पौधे, मानव सहित जन्तु तथा सूक्ष्म वियोजक जन्तु) तथा भौतिक संघटक वृहद्स्तरीय भूजैवरसायन चक्र के माध्यम से घनिष्ठ रूप से एक-दूसरे से सम्बन्धित तथा आबद्ध रहते हैं। ज्ञातव्य है कि पारिस्थितिक तंत्र में पदार्थों का गमन चक्रीय रूप में सम्पादित होता है। पारिस्थितिक तंत्र के विकास एवं सम्बर्धन के कई अनुक्रम होते हैं। अन्तिम अनुक्रम को प्राप्त करने के बाद पारिस्थितिक तंत्र सर्वाधिक स्थिर दशा को प्राप्त हो जाता है।

पारिस्थितिक तंत्र की कार्यशीलता ऊर्जा प्रवाह के प्रारूप पर निर्भर करती है। ऊर्जा का प्रवाह तथा प्रारूप उष्मागतिकी (Thermodynamics) के प्रथम एवं द्वितीय नियमों द्वारा नियंत्रित होता है। पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश करने वाला सौर्यिक विकिरण ऊर्जा का मूल निवेश होता है। हरे पौधे इससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सौर्यिक ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं जो पोषण स्तर-एक के स्वपोषित प्राथमिक उत्पादक पोधों में संचित हो जाती है। इस तरह पोषण स्तर-एक में संचित ऊर्जा पोषण स्तर-दो के शाकाहारी जन्तुओं के लिए ऊर्जा का स्रोत बन जाती है। इस तरह शाकाहारी जन्तुओं द्वारा ग्रहण की गयी रासायनिक ऊर्जा इन जन्तुओं के ऊतकों (Tissness) तथा अंगों (Organs) के निर्माण एवं संवर्द्धन में सहायता करती है। इस तरह संचित रासायनिक ऊर्जा पोषण स्तर- दो से पोषण स्तर तीन के मांसाहारी जन्तुओं के लिए ऊर्जा का स्रोत होती है। पोषण
स्तर-तीन से कुछ ऊर्जा का पोषण स्तर-चार के सर्वाहारी जन्तुओं में स्थानान्तरण हो जाता है। पोषण स्तर - चार के जन्तु खासकर मनुष्य पोषण स्तर- दो तथा तीन से भी ऊर्जा प्राप्त करते हैं। उपर्युक्त प्रक्रिया से निर्मुक्त एवं खर्च होने के बाद जो बची ऊर्जा पौधों तथा जन्तुओं में संचित रहती है, वह पौधों तथा जन्तुओं के मर जाने के पश्चात् वियोजकों (Decomplsers) में स्थानान्तरित हो जाती है। वियोजक की श्वसन द्वारा अपनी ऊर्जा के बड़े भाग को वायुमण्डल में निर्मुक्त कर देते हैं। ज्ञातव्य है कि प्रत्येक पोषण स्तर में सुलभ स्थितिज ऊर्जा, जिसका अगले ऊपरी पोषण स्तर में स्थानान्तरण होता है, की मात्रा में कमी हो जाती है क्योंकि प्रत्येक पोषण स्तर एमं बढ़ते पोषण स्तर की ओर श्वसन द्वारा निर्मुक्त ऊर्जा की मात्रा बढ़ती जाती है।

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