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महासागरीय जल का खारापन
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
चाहे वर्षा का जल हो या महासागरों का, प्रकृति में उपस्थित सभी जलो में खनिज
लवण घुले हुए होते हैं। लवणता वह शब्द है जिसका उपयोग समुद्री जल में घुले
हुए नमक की मात्रा को निर्धारित करने में किया जाता है। सामान्य रूप में,
“सागरीय जल के भार तथा उसमें घुले हुए पदार्थों के भार के अनुपात को सागरीय
लेवणता कहते हैं।' दूसरे शब्दों में, इसका परिकलन 1,000 ग्राम समुद्री जल में
घुले हुए नमक (ग्राम में) की मात्रा के द्वारा किया जाता है। इसे प्रायः
प्रति 1,000 भाग (%) या PPT के रूप में व्यक्त किया जाता है। लवणता समुद्री
जल का महत्त्वपूर्ण गुण है। 24.7% की लवणता को खारे जल की सीमांकित करने का
उच्च सीमा माना गया है। महासागरों में लवणता का प्रभाव न केवल उसमें रहने
वाले जीवों और वनस्पतियों पर पड़ता है वरन् महासागरों की भौतिक विशेषताएँ,
तापक्रम, घनत्व, धारायें, दबाव आदि भी उससे प्रभावित होती है। सागर का हिमांक
लवणता पर आधारित होता है। अर्थात् अधिक लवणयुक्त सागर देर में जमता है। इसी
तरह सागरीय जल का क्वथनांक सामान्य जल से ऊंचा रहता है। वाष्पीकरण की मात्रा
सागरीय लवणता से नियन्त्रित होती है। लवणता अधिक है तो वाष्पीकरण न्यून होता
है। सागरीय लवणता के कारण जल का घनत्व भी बढ़ता जाता है। इसी तरह सागर में
लहर एवं धारायें, मछलियाँ, सागरीय जीव, प्लैंकटन आदि लवणता से नियन्त्रित
होते हैं। शुद्ध जल तथा सागरीय जल में मूलभूत अन्तर यह होता है कि सागरीय जल
में घुले रूप में नमक मिला होता है। सागरीय जल सक्रिय घोलक होता है जिसके
कारण उसमें कई प्रकार के खनिज घुली अवस्था में मिले रहते हैं। चूंकि
प्रतिवर्ष सागरों में लवणता लाया जाता है अतः उसकी कुल मात्रा में निरन्तर
वृद्धि हो रही है। कुल लोगों ने सागरों में लवण की कुल मात्रा ज्ञात करने का
प्रयास किया है। जोली के अनुसार यह मात्रा 50 अरब टन, मरे के अनुसार 5 अरब टन
तथा क्लार्क के अनुसार 2.7 अरब टन है। जोली के अनुसार यदि समस्त सागरीय लवण
को निकालकर ग्लोब पर फैला दिया जाय तो उसकी मोटाई 150 फीट हो जायेगी और यदि
उसे केवल धरातल पर बिछाया जाय तो मोटाई 500 फीट हो जायेगी। स्मरणीय है कि
विभिन्न सागरों के लवणों की कुल मात्रा में अन्तर हो सकता है, परन्तु उनकी
संरचना के अनुपात में सर्वत्र समानता होती है। विभिन्न सागरों में लवण की
मात्रा 3% से 37% के बीच रहती है। डिटमार ने सागरों में 27 प्रकार के लवणों
का पता लगाया जिनमें से 7 प्रकार के
लवण सर्वाधिक प्रमुख हैं— सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड, मैग्नेशियम
सल्फेट, कैल्शियम सल्फेट, पोटैशियम सल्फेट, कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नेशियम
ब्रोमाइड।
सागरीय लवणता का मख्य स्रोत पृथ्वी ही है। पृथ्वी के उत्पत्ति के समय जिस
पपड़ी का निर्माण हुआ उसी पपड़ी में लवण की मात्रा अधिक थी। पपड़ी के विघटन
तथा वियोजन के कारण अपरदन के कारकों द्वारा लवण सागरों में पहुँचाये जाने
लगे। नदियाँ सागर तक लवण पहुंचाने वाले कारकों में सर्वप्रमुख थीं। इसके
अलावा पवन भी नमक के स्थानान्तरण में प्रमुख भूमिका निभायी। इसके अलावा
ज्वालामुखी से निस्सृत राखों से भी कुछ लवण प्राप्त होता है। एक महासागर से
दूसरे महासागर में लवण की मात्रा में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इतना ही
नहीं, एक ही महासागर के विभिन्न भागों में लवण की मात्रा में अन्तर पाया जाता
है। लवण की मात्रा को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों में वाष्पीकरण,
वर्षा, नदी के जल का आगमन, पवन, सागरीय धाराएँ तथा लहरें इत्यादि प्रमुख हैं।
महासागरों की औसत लवणता 35% है; परन्तु प्रत्येक महासागर, सागर, झील इत्यादि
में लवण की मात्रा में अन्तर पाया जाता है। लवणता के वितरण में अन्तर क्षैतिज
तथा लम्वत् दोनों रूपों में होता है। इसी तरह बंद, आंशिक बंद तथा खुले सागरों
में भी लवणता में अन्तर पाया जाता है। अधिकतम लवणता 15 से 20 अक्षांशों के
बीच दर्ज की गयी है। अगर हम महासागरीय जल में लवणता के ऊर्ध्वाधर वितरण पर
प्रकाश डाला जाए तो गहराई के साथ लवणता में भी परिवर्तन होता है लेकिन इसमें
परिवर्तन समुद्र की स्थिति पर निर्भर करता है। कम लवणता वाला जल उच्च लवणता व
घनत्व वाले जल के ऊपर स्थित होता है। यदि अन्य कारक स्थिर रहें तो समुद्री जल
की बढ़ती लवणता उसके घनत्व को बढ़ाती है।
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