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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के क्या कार्य है?
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के कार्य
आज किसी राष्ट्र की शिक्षा से न केवल वह राष्ट्र प्रभावित होता है अपितु उसका अन्य राष्ट्रों पर भी प्रभाव पड़ता है। आज हम किसी राष्ट्र में शिक्षा के परिणामस्वरूप हुए विकास से कितना शीघ्र प्रभावित होते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। इसे हम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के अप्रत्यक्ष प्रभाव के रूप में ले सकते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय भावना ने शिक्षा के कुछ प्रत्यक्ष कार्य भी निश्चित किये हैं जैसे संसार के समस्त व्यक्तियों को साक्षर करना, उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी सामान्य जानकारी देना, उन्हें देश-विदेश के ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराना, उन्हें संसार की विभिन्न सभ्यता एवं संस्कृतियों से परिचित कराना, उनमें मानव मात्र के प्रति प्रेम उत्पन्न करना और संसार में सह-अस्तित्व के सिद्धान्त को प्रतिष्ठित करना। आज ये सब कार्य अनेक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं द्वारा किये जा रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संस्था यू. एन. ओ. (U.NO.) में इसके लिए एक अलग विभाग यूनेस्को (UNESCO) है। इस क्षेत्र में यूनेस्को के कार्य बहुत प्रशंसनीय हैं। अन्तर्राष्ट्रीयता की दृष्टि से हम शिक्षा के कार्यों को निम्नलिखित रूप से संजो-पिरो सकते हैं-
1. संसार के समस्त व्यक्तियों को स्वास्थ्य सम्बन्धी सामान्य जानकारी देना और उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना।
2. संसार के समस्त व्यक्तियों को साक्षर करना और किसी एक राष्ट्र के व्यक्तियों को दूसरे राष्ट्रों के ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराना।
3. संसार के समस्त राष्ट्रों में वसुधैव कुटुम्बकम, विश्वबन्धुत्व की भावना का विकास करना।
4. संसार के सभी राष्ट्रों को एक-दूसरे की संस्कृतियों में परिचित कराना और उनके नागरिकों में सांस्कृतिक सहिष्णुता का विकास करना।
5. संसार के समस्त व्यक्तियों में सार्वभौमिक मूल्यों का विकास करना और उनका नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना।
6. संसार के समस्त राष्ट्रों में विशेषज्ञों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना और इस प्रकार एक- दूसरे के विकास में सहायता पहुँचाना।
7. संसार के समस्त राष्ट्रों को सह-अस्तित्व के सिद्धान्त की ओर अग्रसर करना।
8. संसार के समस्त राष्ट्रों को एक-दूसरे के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता की ओर अग्रसर करना।
9. संसार के व्यक्तियों को संसार के विभिन्न धर्म दर्शनों से परिचित कराना और उनमें धार्मिक सहिष्णुता का विकास करना !

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