बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- मानसिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
मानसिक विकास का उद्देश्य
यह भी शिक्षा का सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक उद्देश्य हैं परन्तु इसे भी भिन्न-भिन्न लोग भिन्न-भिन्न अर्थों में लेते हैं। प्राचीन भारत में मानसिक विकास का अर्थ मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि से लिया जाता था। हमारे देश में एक समय ऐसा भी आया जब ज्ञान के लिए ज्ञान का नारा बुलन्द हुआ। अन्य देश की भी यही कहानी है। इस युग में शक्ति मनोविज्ञान में विश्वास रखने वाले शिक्षाशास्त्री मानसिक विकास का अर्थ बच्चों की स्मृति, निरीक्षण, कल्पना व तर्क आदि शक्तियों के विकास से लेते हैं। कुछ विद्वान विवेक शक्ति के विकास को ही मानसिक विकास कहते हैं और कुछ उसकी सीमा में बौद्धिक विकास को भी रखते हैं। स्पष्ट ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर तर्क द्वारा सत्य-असत्य का निर्णय करने की शक्ति ही बुद्धि हैं। इससे मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए शिक्षा का नारा बुलन्द हुआ।
आज शिक्षा के क्षेत्र में मानसिक विकास से तात्पर्य बच्चों को विचारों के आदान-प्रदान हेतु भाषा ज्ञान कराने एवं वस्तुगत एवं अध्यात्म जगत को जानने हेतु विविध विषयों का ज्ञान कराने; मानसिक शक्तियों स्मृति निरीक्षण, कल्पना, तर्क, चिन्तन, मनन, सामान्यीकरण, निर्णय आदि का विकास करने, बुद्धि को तर्क आदि की सहायता से सत्य-असत्य में भेद करने में प्रशिक्षण करने, मनुष्य में विवेक शक्ति के विकास करने और बच्चों को मानसिक रोगों (भय, निराशा, हीनता आदि) से बचाने तथा मानसिक प्रेरकों (अभय, आशा. आत्मविश्वास आदि) को उनमें उत्पन्न करने से लिया जाता है और इस सबके लिए हम बच्चों को अभिव्यक्ति के स्वतन्त्र अवसर देते हैं - इसके द्वारा विचारों का आदान-प्रदान और भाषा का विकास, दोनों एक साथ विकसित होते है। विभिन्न विषयों का ज्ञान एवं विभिन्न क्रियाओं में प्रशिक्षण बच्चों के बौद्धिक विकास में सहायक होता है। आज बच्चों को स्वयं करके स्वयं सीखने के अवसर दिये जाते हैं। इससे बच्चों की मानसिक शक्तियों-स्मृति, निरीक्षण, कल्पना, तर्क आदि का विकास होता है। आज बच्चों के साथ प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाता है। इससे वे भय से बचते हैं, अभय होते हैं निराशा से बचते हैं. आशावादी होते हैं और हीनता से बचते हैं, आत्मविश्वासी होते हैं।
शिक्षा के मानसिक विकास के उद्देश्य पर दो मत नहीं हो सकते। मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी है। शिक्षा के द्वारा सर्वप्रथम उसका शारीरिक और मानसिक विकास ही होना चाहिए। बिना मानसिक विकास के हम न तो इस भौतिक जगत को समझ सकते हैं और न आध्यात्मिक जगत को। ज्ञान से ही भौतिक श्री प्राप्त होती है और ज्ञान से ही आध्यात्मिक श्री प्राप्त होती है। ज्ञान के अभाव में मनुष्य पशु से अधिक और कुछ नहीं बन सकता।
अतः केवल ज्ञान के लिए अथवा शोषण के लिए मानसिक शक्तियों के विकास की हम वकालत नहीं कर सकते। आज आवश्यकता एक अच्छे मनुष्य के निर्माण की है। उसके लिए बच्चों को भाषा एवं विभिन्न विषयों तथा क्रियाओं का ज्ञान कराना पहली आवश्यकता है। परन्तु जब तक उसका प्रयोग शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक, नैतिक एवं चारित्रिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए नहीं किया जाता, वह व्यर्थ ही है।
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