बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- शारीरिक विकास के उद्देश्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
शारीरिक विकास का उद्देश्य
शारीरिक विकास शिक्षा का सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक उद्देश्य है, यह बात दूसरी है कि भिन्न- भिन्न समाजों में भिन्न-भिन्न समय पर इसे भिन्न-भिन्न रूप में स्वीकार किया जा रहा है। उदाहरणार्थ, भौतिक्रवादी समाज शरीर को साध्य मानते हैं, उनका विश्वास है कि स्वस्थ शरीर मनुष्य का सबसे पहला सुख है। इसके विपरीत अध्यात्मवादी समाज शरीर को साधन मानते हैं, उनका विश्वास है कि स्वस्थ शरीर उच्च साधना एवं आत्मानुभूति का साधन है।
आज शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के शारीरिक विकास से तात्पर्य उनकी मांसपेशियों को सशस्त बनाने कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों के विकास एवं प्रशिक्षण और जन्मजात शक्तियों के विकास एवं उदात्तीकरण से लिया जाता है और इस सबके लिए उन्हें उत्तम स्वास्थ्य के नियम बताये जाते हैं, उनके लिए आसन, व्यायाम और खेल-कूद की व्यवस्था की जाती है, उन्हें इन्द्रियों के प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर दिये जाते हैं, उन्हें रोगों से बचने के उपाय बताये जाते हैं और रोगग्रस्त होने पर उसके उचित उपचार के लिए जागरूक किया जाता है।
शिक्षा के शारीरिक के उद्देश्य की महत्ता पर दो मत नहीं हो सकते। शरीर सब धर्मों (कार्यो) का साधन है (शीर माध्यम खलु धर्म साधनम्)। चाहे भौतिक उपलब्धियों की बात सोचें और चाहे आध्यात्मिक उपलब्धियों की, सबकी प्राप्ति शरीर से ही की जाती है। इतना ही नहीं अपितु स्वस्थ मनुष्य प्रसन्न रहता है और उसमें कार्य करने का उत्साह रहता है। स्वस्थ मनुष्य के हाथों में ही देश सुरक्षित रह सकता है। मनोवैज्ञानिक खोजों के परिणाम यह बताते हैं कि स्वस्थ मस्तिष्क के लिए स्वस्थ शरीर आवश्यक होता है। अस्वस्थ मनुष्य प्रायः चिड़चिडे होते हैं, उनमें किसी प्रकार का उत्साह नहीं होता। शक्तिहीन होने पर वे अध्ययन, चिन्तन और मनन, कुछ भी नहीं कर पाते। अस्वस्थ मनुष्य रोटी भी नहीं कमा सकता। वह न तो अपना हित कर सकता है, न समाज का और न राष्ट्र तथा संसार का। उसका जीवन एक भार-स्वरूप होता है। अतः प्रारम्भ से ही हमें बच्चों के शारीरिक विकास पर ध्यान देना चाहिए। यह कार्य शिक्षा के द्वारा ही पूरा किया जा सकता है, अतः शिक्षा का एक उद्देश्य बच्चों का शारीरिक विकास होना चाहिए।
इन सब विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शारीरिक विकास के उद्देश्य को हमें स्वीकार तो करना चाहिए, परन्तु न तो उसे शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य मानना चाहिए और न ही मुख्य उद्देश्य। हमें तो मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं चारित्रिक, व्यावसायिक और आध्यात्मिक, सभी प्रकार के विकास पर समान रूप से ध्यान देना चाहिए।
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