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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
उत्तर-
काल एवं परिस्थितियों के सापेक्ष शिक्षा के उद्देश्य
यह सत्य है कि शिक्षा का महत्व व्यक्ति एवं समाज के लिए सदैव ही रहता है परन्तु शिक्षा के उद्देश्य सदैव समान नहीं रहते अर्थात् सदैव ही शिक्षा के उद्देश्य परिवर्तित होते रहते हैं। प्रत्येक देशकाल में समाज एवं राष्ट्र की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शिक्षा का स्वरूप एवं उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न हो जाते हैं। एक समय था जबकि समस्त विश्व में धार्मिक भावना को अधिक महत्व दिया जाता था। इस काल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ही धार्मिक था। जहाँ युद्ध एवं आक्रमणों का बोल-बाला अधिक होता है वहाँ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य-शारीरिक संगठन शिक्षा को ही अधिक महत्व दिया जाता था, इससे भिन्न-भिन्न राज्यों के कल्याण के लिए शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भिन्न-भिन्न स्वीकार होता है।
प्राचीनकाल में शिक्षा का उद्देश्य धार्मिक एवं व्यावसायिक था। इसके बाद ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा को ऐसा रूप दिया कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य राज्य की सेवा करना हो गया। आधुनिक युग में स्वतंत्र भारत में शिक्षा के बहुपक्षीय उद्देश्यों को महत्व दिया गया है। आज का युग विज्ञान का युग है। वैज्ञानिक युग में भौतिक उन्नति एवं समृद्धि को अधिक महत्व दिया जाता है। अतः आज शिक्षा का उद्देश्य आर्थिक समृद्धि प्राप्त करना हो गया है।
अन्धविश्वास एवं रूढ़ियाँ तथा कुरीतियाँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में बाधक होती हैं। अतः शिक्षा का उद्देश्य इन बाधाओं को समाप्त करना है। शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण में राष्ट्र की शासन-प्रणाली का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए लोकतांत्रिक, अधिनायकवादी, साम्यवादी तथा एकतन्त्रीय शासन प्रणाली वाले देशों में शिक्षा के मुख्य उद्देश्य एवं नीतियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। जनतांत्रिक राष्ट्रों में शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास करना होता है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त छूट एवं स्वतन्त्रता होती है। इससे भिन्न एकतन्त्रिय शासन प्रणाली तथा अधिनायकवादी देशों में शिक्षा का उद्देश्य राज्य की व्यवस्था में सहायक होना माना जाता है। अत ऐसे में व्यक्ति को अधिक छूट या स्वतन्त्रता नहीं दी जाती है। पूँजीवादी राष्ट्रों में शिक्षा का उद्देश्य आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त करना है। शासन प्रणाली के अतिरिक्त कभी- कभी व्यक्ति की किसी विशिष्ट मनोवृत्ति के परिणामस्वरूप भी शिक्षा के उद्देश्य परिवर्तित होते देखे जाते हैं। उदाहरण के लिए जर्मनी में हिटलर ने अपने शासन-काल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य अपने देश को सैन्य दृष्टिकोण से प्रबल बनाना निर्धारित किया था। इसके लिए उस काल में जर्मनी में सैन्य शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी तथा समस्त पाठ्य-पुस्तकों में देश की सीमाओं की सुरक्षा एवं विस्तार पर बल दिया जाने लगा।
इसी प्रकार भारतवर्ष में भी गाँधी जी ने शिक्षा का उद्देश्य हस्तकलाओं में निपुण बनाना प्रतिपादित किया था। स्पष्ट है कि प्रभावशाली विद्वान अथवा नेता की मनोवृत्ति भी शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक होती है। उपरोक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि शिक्षा के उद्देश्य के निर्धारण में विभिन्न कारक अपना-अपना योगदान देते हैं। इसलिए शिक्षा के उद्देश्य स्थिर नहीं होते।

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