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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

4

शिक्षा के घटक

(Factors of Education)

प्रश्न- शिक्षा के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

शिक्षा के प्रमुख घटक
(Factors of Education)

शिक्षा के घटक अथवा अंग को लेकर शिक्षाविदों का एक मत नहीं है। जॉन एडम्स के अनुसार, शिक्षा के दो घटक अथवा अंग हैं एक प्रभावित करने वाला (शिक्षक) और दूसरा प्रभावित होने वाला (शिक्षार्थी)। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री, जॉन डीवी के अनुसार, शिक्षा के तीन घटक अथवा अंग हैं - शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम। परन्तु पिछले कुछ वर्षों में शैक्षिक तकनीकी विकास से शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। शैक्षिक विशेषज्ञों की दृष्टि से मुख्यतः शिक्षा के तीन घटक अथवा अंग होते हैं - शिक्षक, शिक्षार्थी और सीखने-सिखाने की परिस्थितियाँ। इन परिस्थितियों में पाठ्यक्रम के अतिरिक्त शिक्षण विधियाँ, तकनीकी एवं सामाजिक पर्यावरण भी आते हैं। वर्तमान समय के विद्वान इन्हें शिक्षा के अंग अथवा घटक मानते हैं। जिसका वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है - -
(1) शिक्षार्थी - शिक्षार्थी से तात्पर्य - सीखने वाला, जो कि शिक्षा की प्रक्रिया का आवश्यक अंग है। शिक्षार्थी की अनुपस्थिति में शिक्षा प्रक्रिया नहीं चल सकती है। शिक्षा प्रक्रिया निर्भर करती है शिक्षार्थी के शारीरिक, मानसिक, स्वास्थ्य, सीखने की इच्छा, रुचि, चरित्र, बल एवं अध्ययनशीलता आदि पर निर्भर करती है। ये सभी गुण देखा जाए तो प्रत्येक छात्र में अलग-अलग होते हैं और शिक्षक को इन सभी गुणों को समझना होगा ताकि वह एक कुशल शिक्षक बन सके। इस सम्बन्ध पर आधारित एडम्स का यह कथन बड़ा आवश्यक है कि - एक ज्ञान और दूसरा लैटिन अर्थात विषय लैटिन से अधिक महत्वपूर्ण एक शिक्षक के लिए यह जानना है कि बालक की योग्यतायें, क्षमतायें एवं रुचियाँ क्या हैं? शिक्षार्थी की जो भी योग्यताएँ, क्षमताएँ व रुचियाँ उसके पर्यावरण एवं वंशानुक्रम पर निर्भर करती हैं, हम यह जानते हैं कि मनुष्य का सम्पूर्ण विकास उसके वंशानुक्रम और पर्यावरण पर ही निर्भर करता है। अतः शिक्षक को उसके पर्यावरण एवं वंशानुक्रम का ज्ञान होना अति आवश्यक है। इसीलिए इन सब बातों को ध्यान में रखकर वर्तमान समय में शिक्षा की समस्त योजनाएँ शिक्षार्थी को ध्यान में रखकर बनायी जाती हैं।
(2) शिक्षक - शिक्षक भी शिक्षार्थी की तरह शिक्षा की प्रक्रिया का आवश्यक अंग है। शिक्षा के व्यापक अर्थ के अनुसार हम सभी एक-दूसरे से कुछ न कुछ सीखते हैं। इसीलिए हम सभी शिक्षार्थी और शिक्षक दोनों हैं परन्तु शिक्षा के संकुचित अर्थ में कुछ विशेष व्यक्ति जो कि जानबूझ कर दूसरों को प्रभावित करते हैं और उनके आचार-विचारों में परिवर्तन करते हैं। वे ही शिक्षक कहलाते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता था और लोगों का यह मानना था कि योग्य शिक्षक के चरणों में बैठकर कोई भी ज्ञानी बन सकता है। इसीलिए शिक्षक को एक महान व्यक्ति माना जाता था परन्तु मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार बालक का विकास शिक्षक की अपेक्षा उसके अपने ऊपर निर्भर करता है। प्रत्येक बालक कुछ शक्तियों के साथ जन्म लेता है। शिक्षक केवल इन शक्तियों को उचित दिशा प्रदान करता है। परन्तु शिक्षक की उपस्थिति के बगैर आज शिक्षा की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस बात पर शोध भी किए गए कि शिक्षक की सफलता आखिर किस बात पर निर्भर करती है। शिक्षक अपने दायित्व का निर्वाह भली-भाँति तभी कर सकता है जब उसमें निम्नलिखित गुण हों जैसे कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, उच्च सामाजिकता, उच्च संस्कृति, स्पष्ट जीवन दर्शन, नैतिकता एवं चरित्र बल, अपने विषय का ज्ञान, कौशल दक्षता, विभिन्न विषयों का सामान्य ज्ञान अथवा संगठन शक्ति आदि। इन गुणों के साथ ही उसको अध्ययनशील एवं प्रगतिशील होना भी आवश्यक है।
(3) पाठ्यक्रम - शिक्षा प्रक्रिया का तीसरा आवश्यक अंग पाठ्यक्रम है। नियोजन शिक्षा के उद्देश्य पूर्व निश्चित हैं जिसकी प्राप्ति के लिए बच्चों को जो कुछ भी सिखाया जाता है और सीखने में जो कुछ भी सहायता करता है वह पाठ्यक्रम है। व्यापक अर्थ की दृष्टि से पाठ्यक्रम में वे सभी अनुभव शामिल हैं जिन्हें एक बालक किसी विद्यालय, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, क्रीडास्थल या किसी प्रकार के मंच आदि से प्राप्त करता है, जबकि संकुचित दृष्टि में पाठ्यक्रम से आशय केवल विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विषयों से ही है। पाठ्यक्रम शिक्षक और शिक्षार्थी के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है।
(4) शिक्षक तकनीकी - शिक्षक को यह ज्ञान आवश्यक होना चाहिए कि शिक्षा की प्रक्रिया को किस प्रकार प्रभावी बनाया जाए तथा छात्र को पढ़ाने के लिए कैसे तैयार किया जाए।
(5) सामाजिक पर्यावरण हम जहाँ और जिन व्यक्तियों के बीच में रहते हैं और जिनसे बातचीत करते हैं उनकी भाषा, विचार, सभ्यता और संस्कृति ही हमारा सामाजिक पर्यावरण है। बालकों की शिक्षा में सामाजिक पर्यावरण का विशेष योगदान रहता है जो कि शिक्षक-शिक्षार्थी दोनों को ही प्रभावित करता है। अतः सामाजिक पर्यावरण शिक्षा प्रक्रिया का एक आवश्यक अंग माना जाता है।
(6) प्राकृतिक पर्यावरण - प्राकृतिक पर्यावरण शिक्षा की प्रक्रिया पर विशेष प्रभाव डालता है। अध्ययनों से पता चलता है कि प्रदूषित पर्यावरण में बालक शीघ्र थक जाते हैं। इसी के साथ ही यह भी देखा जाता है कि अधिक गर्मी में बालक थक जाते हैं और अधिक सर्दी के दिनों में शिक्षा की प्रक्रिया बाधित होती है। इसी कारणवश आज शिक्षाशास्त्री इसे शिक्षा प्रक्रिया का एक आवश्यक अंग मानते हैं।
(7) मापन और मूल्यांकन - कुछ शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार शैक्षिक प्रक्रिया के तीन प्रमुख अंग हैं -
(A) शैक्षिक उद्देश्य, (B) सीखने-सिखाने की परिस्थितियाँ, (C) मूल्यांकन।
उपरोक्त दिए गए तीनों अंग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। आज बच्चों की बुद्धि, रुचि, अभिरुचि, अभिवृत्ति और व्यक्तित्व का मापन कर उन्हें शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन दिया जाता है। मापन और मूल्यांकन के आधार पर निकाले गए निष्कर्षों के आधार पर यदि आवश्यक होता है तो शिक्षण विधियों में सुधार किया जाता है और आवश्यकतानुसार छात्रों का मार्गदर्शन भी किया जाता है।

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