बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान
(District Institute of Education and Training DIET) स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में अनेक परिवर्तन हुए और सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में हमारे देश बहुत प्रगति की, किन्तु विकास के लाभ सभी वर्गों तक पहुँचाना संभव नहीं हो सका। इस असम्भव कार्य को शिक्षा के माध्यम से सम्भव किया जा सकता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारत सरकार ने अगस्त 1985 में शिक्षा की चुनौती नीति सम्बन्धी परिप्रेक्ष्य नामक दस्तावेज प्रकाशित किया। इस दस्तावेज से पूरे देश में शिक्षा पर बहस हुई विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त सुझावों का विश्लेषण करने के बाद मई 1986 में सरकार ने नई शिक्षा नीति का प्रारूप प्रस्तुत किया और तत्पश्चात् 'प्रोग्राम ऑफ एक्शन' की घोषणा की।
नई शिक्षा नीति के अनुसार निश्चिय किया गया कि सम्पूर्ण देश के प्रत्येक जिले में एक जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET) की स्थापना की जाए। इस संकल्प के अनुसार प्रत्येक जिले में एक 'डायट' की स्थापना कर दी गई इन संस्थाओं द्वारा प्रारम्भिक विद्यालयों के शिक्षकों की योग्यताओं में सुधार किया जाता है और उनमें वृद्धि की जाती है। इनमें प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है। यह प्रशिक्षण निम्नलिखित दो प्रकार का होता है
(1) सेवापूर्व (Pre-Service), (2) सेवाकालीन (In Service)
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान का उद्देश्य जिला स्तर पर शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाना है। जिले में नवाचारिक शैक्षिक गतिविधियों तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आयोजित करना तथा जिला स्तर पर शिक्षा के लिए योजना तैयार करना संस्थान का मुख्य उद्देश्य है। इस संस्थान के मुख्य कार्य निम्न हैं
(1) प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के लिए सेवा पूर्व तथा सेवाकालीन प्रशिक्षण देना। इसके अतिरिक्त विद्यालय संकुल के मुखिया, ब्लॉक स्तर पर शिक्षा विभाग के अधिकारी, औपचारिक प्रौढ़ शिक्षा इत्यादि के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
(2) जिले में प्राथमिक तथा प्रौढ़ शिक्षा व्यवस्था में शैक्षिक तथा संसाधन का सहयोग देना। (3) जिला स्तर पर प्राथमिक तथा प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्रों में उद्देश्यों की प्राप्ति में आने वाली विशिष्ट
समस्याओं के समाधान के लिए क्रियात्मक अनुसन्धान तथा प्रयोग करना।
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