बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
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राज्य स्तर : एस. सी. ई. आर. टी.
[State Level : SCERT (DIET ) ]
प्रश्न- राज्य शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद के उद्देश्यों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्राथमिक शिक्षक तैयार करने में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों की भूमिका बताइए। क्या हमारे संस्थान इस दिशा में हैं कि वे अच्छा प्रशिक्षण प्रदान कर सकें?
उत्तर - राज्य शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद (SCERT) राज्य शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद की स्थापना 1981 में राज्य में शिक्षा स्तर को उन्नत बनाने के उद्देश्य से की गयी। परिषद का मुख्यालय लखनऊ में है।
परिषद का प्रशासनिक नियन्त्रण निदेशक राज्य शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद के द्वारा किया जाता है। परिषद के मुख्य विभाग हैं -
(1) प्रारम्भिक शिक्षा विभाग (State Institute and Education Allahabad)
(2) भारतीय भाषा विज्ञान (राज्य हिन्दी संस्थान, वाराणसी)
(3) मानविकी तथा सामाजिक विज्ञान विभाग (GOVT. Central Podagogical Institute, Allahabad)
(4) विज्ञान तथा गणित विभाग
(5) श्रव्य-दृश्य विभाग
(6) मनोविज्ञान तथा निर्देशन विभाग
(7) विदेशी भाषा विज्ञान
(8) राजकीय शैक्षिक तकनीकी संस्थान, लखनऊ।
(9) पाठयक्रम तथा मूल्यांकन विभाग
(10) शैक्षिक प्रशासन तथा नियोजन विभाग।
(11) राजकीय शैक्षिक तकनीकी संस्थान, लखनऊ।
राज्य शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद के उद्देश्य -
यह निम्न प्रकार हैं
(1) शिक्षा में क्रियात्मक अनुसन्धान तथा शैक्षिक अनुसन्धान में समन्वय बढ़ाना।
(2) सेवा पूर्व तथा सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रमों की व्यवस्था करना।
(3) विद्यालय विस्तार सेवाओं में लगी संस्थाओं को शैक्षिक अनुसन्धान में निर्देशन तथा प्रशिक्षण प्रदान करना।
(4) शिक्षा विभाग के कर्मचारियों तथा शिक्षण संस्थाओं को नवीन शिक्षण तकनीकी विधियों तथा शिक्षा नवाचार से अवगत कराना।
(5) राज्य विश्वविद्यालयों के शिक्षा विभागों तथा शैक्षिक संस्थाओं के साथ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करना।
(6) विद्यालय शिक्षा से सम्बन्धित नवीन सूचनाओं तथा विचारों को संग्रहीत करना तथा वितरित करना।
(7) राज्य प्रशासन तथा अन्य संस्थाओं को विद्यालयी शिक्षा के स्तर के सम्बर्द्धन के लिए परामर्श देना।
(8) उददेश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक सामग्री, पुस्तकें, मैंगजीन तथा अन्य साहित्य तैयार करना तथा प्रकाशित करना।
(9) शिक्षा में शोध तथा नवाचार, नवीन प्रोजेक्ट, कर्मचारियों के लिए उच्च स्तरीय व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा विद्यालयों में विस्तार सेवाओं की सुविधाओं को प्रोत्साहन देना।
(10) राज्य सरकार द्वारा दिये गये शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम को पूरा करना।
राज्य शैक्षिक अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद के कार्य
(Functions of State Council of Educational Researchional Training) -
राज्यों में राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद के निम्नलिखित कार्य होते हैं -
(1) शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शोध कार्यों को करना तथा उन शोध कार्यों में समन्वय स्थापित करना।
(2) राज्य में अध्यापक शिक्षा के विकास का अवलोकन करना।
(3) विद्यालयी शिक्षा के विकास में एक एजेण्ट के रूप में कार्य करना।
(4) राज्य की माध्यमिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण की क्रियाओं, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET) के कार्यों, अध्यापक शिक्षा संस्थाओं तथा उच्च शिक्षा संस्थाओं का पर्यवेक्षण करना है।
(5) विशिष्ट शिक्षा के लिए कार्यक्रमों को लागू करना और एन.सी.ई.आर.टी. (NCERT) के शैक्षिक कार्यक्रमों को राज्य में लागू करना।
(6) विद्यालयी शिक्षा के लिए अनुदेशन सामग्री को बनाना।
(7) सेवारत शिक्षकों के लिए अभिविन्यास पाठ्यक्रमों की व्यवस्था करना और अध्यापक शिक्षा के कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित करना।
(8) शिक्षकों के वृत्तिक विकास तथा अन्य शिक्षा अधिकारियों के विकास हेतु पत्राचार पाठयक्रम तथा सम्पर्क पाठयक्रमों की व्यवस्था करना।
(9) शिक्षा की विभिन्न समस्याओं के लिए शोध कार्यो को प्रोत्साहित करना।
(10) प्रौढ़ शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा के कार्यक्रमों का आकलन करना और राज्य सरकार को उनकी प्रगति के सम्बन्ध में अवगत कराना।
(11) राज्य में छात्रों को छात्रवृत्ति वितरण हेतु परीक्षाओं की व्यवस्था करना जिससे प्रतिभाशाली छात्रों को छात्रवृत्ति प्राप्त हो सके।
(12) यह संस्था राज्य के जनसंख्या शिक्षा तथा पर्यावरण शिक्षा के कार्यक्रमों की प्रगति का अवलोकन करती है।
(13) यह संस्था बालिकाओं की शिक्षा की प्रगति तथा समाज के कमजोर छात्रों हेतु शैक्षिक कार्यक्रमों की व्यवस्था की भी देखभाल करती है।
शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थानों की दशा- देश तथा प्रदेश स्तर पर स्थापित शिक्षक-प्रशिक्षक संस्थानों की स्थापना का उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था में अच्छे शिक्षकों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। शासन ने इस दिशा में सार्थक प्रयास भी किये, किन्तु कुछ जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों को छोड़कर शेष की स्थिति व दशा ऐसी नहीं है, कि वहाँ से योग्य शिक्षक उपलब्ध हो सकें। उनके पास न तो उपयुक्त भवन है, न उपयुक्त पुस्तकालय है, न उपयुक्त प्रयोगशाला है, न ही खेलकूद के लिये पर्याप्त संसाधन, न खेल का मैदान ही है। यदि उक्त में से कुछ या अधिकांश की उपलब्धता है, तो पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। शिक्षक अपना कर्त्तव्य व दायित्व का निर्वहन नहीं करते। अधिकांश डायट में स्थायी प्राचार्य की कमी सदैव ही बनी रहती है। अधिकांश डायटों में प्रतिनिधि प्राचार्य नियुक्त होते हैं, जिनके पास अपने मूल विभाग का कार्यभार भी होता है। इस प्रकार के प्राचार्यों का कार्यकाल प्रायः एक वर्ष या दो वर्ष का ही होता है जिसके कारण डायट संस्थान के शिक्षकों, कर्मचारियों तथा प्रशिक्षुओं के प्रति उनका प्रभाव, दबाव व लगाव नहीं हो पाता है।
आज अधिकांश डायट संस्थान प्रशिक्षण के बजाय एन-केन-प्रकारेण धनोपार्जन की प्रक्रिया में संलिप्त रहते हैं, जिसके कारण इनसे संलग्न शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थानों की दशा भी अत्यन्त दयनीय होती है। निरीक्षण के नाम पर दिखावा, दबाव व धनोपार्जन मुख्य उद्देश्य होता है। सुधार करना किसी भी निरीक्षक के लिये जरूरी नहीं लगता। निजी प्रबन्धन बिना संसाधन, बिना शिक्षक के उन संस्थाओं का संचालन करते रहते हैं। यहाँ प्रशिक्षणरत प्रशिक्षुओं की स्थिति तो और भी हास्यास्पद दिखती है जहाँ प्रशिक्षु संस्थान में जाए बिना ही प्रमाण-पत्र, अंकतालिका प्राप्त कर लेता है। परीक्षा तो पूर्णत: मजाक सी दिखती है। परीक्षा में विश्वसनीयता भी नहीं होती। यदि मूल्यांकन प्रक्रिया पर नजर डालें तो यह काल्पनिक सी लगती है। एक दिन में एक सौ या उससे अधिक उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कैसे सम्भव है। परीक्षकों की अन्तरात्मा इतनी प्रबल नहीं है कि वे वास्तविक मूल्यांकन कर सकें।
वास्तव में देखा जाय तो इन संस्थानों की दशा ऐसी नहीं है, कि वे अच्छा प्रशिक्षण प्रदान कर सकें।
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