बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- ब्रिटिश काल में प्राथमिक शिक्षा की समस्या बताइए।
उत्तर-
ब्रिटिश युग में प्राथमिक शिक्षा
ब्रिटिश काल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से लेकर ब्रिटिश शासन तक सभी के काल में भारत में शिक्षा पद्धति ने नवीन दिशा ग्रहण की। ईसाई धर्म के प्रचार के लिए आई हुई मिशनरियों के द्वारा ईसाई धर्म के प्रचारक भारत में शिक्षा का प्रसार करना चाहते थे। 1813 में आज्ञा-पत्र के अनुसार, भारतवासियों को शिक्षा का प्रावधान किया गया। 1835 में लार्ड मैकाले ने नयी शिक्षा नीति की घोषणा की तथा शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा को रखा तथा उसका यह मानना था कि अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने से भारत में जो पीढ़ी पैदा होगी वह कुछ समय बाद रंग, नस्ल, खून व राष्ट्रीयता से तो भारतीय होगी परन्तु विचारों, स्वामि-भक्ति में अंग्रेज होंगे।
एडम्स ने 1835,1836, 1839 में शिक्षा के प्रचार के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत किये अपने प्रथम प्रतिवेदन में एडम्स ने बंगाल व बिहार में 1,00,000 विद्यालय बताये अर्थात् लगभग चार सौ भारतीयों पर एक विद्यालय था।
1931 में सर हटांग ने कहा था कि प्राथमिक शिक्षा का प्रसार उस समय से 50 वर्ष की तुलना अधिक है। प्राथमिक शिक्षा के सन्दर्भ में सर हटींग ने निम्न तथ्य प्रस्तुत किये-
1. प्राथमिक विद्यालयों का पाठ्यक्रम अधिक विस्तृत नहीं था।
2. उस काल में एक अध्यापक विद्यालय का प्रचलन अधिक था।
3. शिक्षा की पद्धति परम्परागत थी उसमें नवीनता का कोई प्रयास नहीं किया गया था।-
4. शिक्षण पद्धति को देखते हुये पाठ्य-पुस्तकें उपयुक्त नहीं थीं।
5. पढ़ाई में दण्ड का भय अधिक था। बालकों में शिक्षा के प्रति रुचि नहीं थी तथा विद्यालयों में कठोर दण्ड का प्रावधान था।
6. उपस्थिति तथा शिक्षण में व्यतिक्रम था।
ईसाई मिशनरियों द्वारा किये गये कार्य-ईसाई धर्म प्रचारक अपने धर्म के प्रचार के लिए भारत में आये थे तथा इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने विद्यालय खोले थे।
उन मिशनरियों के कार्य निम्न थे-
1. प्राथमिक पाठशालायें स्थापित की गई।
2. धार्मिक शिक्षा बाईबिल के माध्यम से प्रदान की जाती थी जो अनिवार्य भी थी।
3. इनके पाठ्यक्रम में व्याकरण, इतिहास व भूगोल का समावेश था।
4. छपी हुई पाठ्य-पुस्तकें भारत में प्रथम बार भारत में प्रथम बार प्रचलित की गई थीं।
5. नियमित कक्षाओं की व्यवस्था थी। रविवार छुट्टी का दिन होता था।
6. भाषा का माध्यम मातृभाषा थी।
ब्रिटिश शासन व्यवस्था- जब 1859 में कम्पनी का शासन समाप्त हो गया तब भारत की नियति का विधाता ब्रिटिश राजसत्ता हो गयी।
उनके काल में शिक्षा की निम्न प्रकार से व्यवस्था हुई-
1. 1859 में स्टेनली डिस्पेच ने माना कि शिक्षा के लिए धन की आवश्यकता है।
2. 1864 में लोकल सैंस एक्ट प्राथमिक शिक्षा के लिए पास किया गया
3. भारतीय रियासतों, राज्यों व सरकार के नियन्त्रण में प्राइवेट विद्यालय काम करने लगे।
4. 1884 में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था स्वराज्य को सौंप दी गई परन्तु आर्थिक कठिनाइयों से स्थानीय प्रशासन इस कार्य को अंजाम न दे सका।
धीमी प्रगति के कारण- ब्रिटिश शासन काल में शिक्षा का प्रसार निम्न कारणों से धीमा रहा-
1. भारतीय शिक्षा पद्धति को नष्ट करने का हर सम्भव प्रयत्न किया गया।
2. जनशिक्षा देने वाली संस्थाओं को समाप्त कर दिया गया।
3. ब्रिटिश सरकार ने शिक्षा को वर्ग विशेष के लिए सीमित कर दिया।
प्रान्तों के प्रयत्न- प्रान्तों के प्रयत्न में शिक्षा का प्रसार निम्न कारणों से धीमा रहा-
1. 1880 में मुम्बई में सभी के लिए शिक्षा की घोषणा हुई तथा 1885 में कांग्रेस के गठन के बाद इब्राहिम रहमतुल्ला, चिमनलाल सीतलवाड़ आदि के प्रयत्नों से शिक्षा का प्रसार हुआ।
2. बड़ौदा में 1893 में अमरेली तथा 1906 में सम्पूर्ण रियासत में अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था की गई।
3. गोखले ने सबसे पहले 6 से 10 वर्ष के बालकों के लिए अनिवार्य शिक्षा पर एक बिल पेश किया जो पास न हो सका।
4. 1918 में प्रान्तीय परिषदों ने शिक्षा के विषय में कानून पास किये। मुम्बई नगरपालिका की प्रान्तीय परिषदों ने शिक्षा के सन्दर्भ में कानून बनवाया लेकिन कोई आर्थिक व्यवस्था नहीं की गयी थी।
5. 1919 में हींग समिति ने इस सम्बन्ध में अपने सुझावों को पेश किया।
6. भारत के प्रान्तों में कांग्रेस का शासन आने पर शिक्षा के प्रसार के लिए अनेक कार्य किये गये। 1939 में कांग्रेस ने प्रान्तीय सरकारों से इस्तीफा दे दिया तो शिक्षा का विकास रुक गया।
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