बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- मॉण्टेसरी प्रणाली के दोष बताइए।
उत्तर-
दोष या सीमाएँ (Limitations or Demerits)
मॉण्टेसरी पद्धति में अनेक अच्छाइयाँ है, किन्तु कुछ कमियाँ भी हैं जो निम्नलिखित हैं -
1. विलियम किलपैट्रिक का कथन है कि इस पद्धति में बालक के व्यक्तित्व के विकास पर बल दिया जाता है किन्तु उसके सामाजिक विकास पर यथोचित ध्यान नहीं दिया जाता। अतः विकास एकांगी होगा।
2. यह शिक्षा प्रणाली 3 से 7 वर्ष के बालकों के लिए विकसित की गई थी। इस आयु वर्ग के बालकों से यह आशा करना कि वे अपने कपड़े स्वयं धोएँगे, वे खाना स्वयं बनाएँगे, खाना स्वयं परोसेंगे, विद्यालय की सफाई करेंगे, हास्यास्पद है। कोमल बालकों से कठोर कार्यों के सम्पादन की आशा स्वयं मॉण्टेसरी के शिक्षण सिद्धान्तों के विरुद्ध है।
3. स्टर्न के अनुसार शैक्षिक उपकरणों से बुद्धि का एकांगी विकास होता है। रंग, रूप, ध्वनि पर अलग-अलग बल देने से मस्तिष्क के स्वाभाविक विकास में बाधा पड़ती है।
4. स्प्रंगर का कहना है कि मॉण्टेसरी पद्धति में काल्पनिक खेलों की उपेक्षा की गयी है। बालक की असन्तुष्ट मूल-प्रवृत्तियों का रेचन (catharsis) इन्हीं काल्पनिक खेलों से होता है। इस रेचन के अभाव में भावना-ग्रन्थियों के बनने का भय होता है।
5. हेसन का कहना है कि मॉण्टेसरी पद्धति में खेल के वास्तविक सिद्धान्त का अभाव है। खेल- खेल के लिए हो, तभी वह खेल होगा अन्यथा कार्य हो जायेगा।
6. मॉण्टेसरी पहले लिखना सिखाना चाहती हैं। यह प्रश्न विवादास्पद है।
7. जिस विधि से लिखना सिखाने की कार्य योजना मॉण्टेसरी पद्धति में होती है, वह वैज्ञानिक होते हुए भी मनोवैज्ञानिक नहीं कही जा सकती है। वर्ण तथा अक्षरों से न चलकर वाक्य से चलना गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के अनुसार अधिक उपयुक्त है।
8. इस पद्धति में केवल एक ही ज्ञानेन्द्रिय की एक बार शिक्षा दी जाती है। ज्ञानेन्द्रियों की पृथक् शिक्षा, शक्ति-मनोविज्ञान पर आधारित समझ पड़ती है। किन्तु शक्ति-सिद्धान्त का मनोविज्ञान में अब परित्याग हो चुका है।
9. कहने को तो इस पद्धति में पूर्ण स्वतंत्रता है किन्तु एक समय में एक उपकरण को देकर बालक की स्वतंत्रता को हम सीमित कर देते हैं।
10. इस पद्धति द्वारा बालक में सामाजिक गुणों का विकास नहीं हो पाता है।
11. इस पद्धति में समय अधिक नष्ट होता है।
12. यह शिक्षण पद्धति अधिक खर्चीली है अतः गरीब समाज में कठिनता से लागू हो पाती है।
13. इस पद्धति में इतने अधिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है कि ऐसा जान पड़ता है, मानो यह बालक की सम्पूर्ण शिक्षा का भार लेने का दावा करती है जो निराधार है।
14. यह पद्धति साधारण बालकों के लिए उतनी उपयोगी नहीं है जितनी की मन्दबुद्धि बालकों के लिए।
15. इस पद्धति में कुछ बड़ी संख्या में योग्य एवं सुशिक्षित अध्यापकों पाठ्य सहगामी क्रियाओं की आवश्यकता होती है जो उपलब्ध कराना अत्यन्त कठिन है।
इन गुण-दोषों के होते हुए भी मॉण्टेसरी के योगदान को शिक्षा-जगत भुला नहीं सकता है। पूर्व प्राथमिक स्तर पर बच्चों की शिक्षा की एक स्पष्ट एवं वैज्ञानिक पद्धति प्रदान करके डॉ. मेरिया मॉण्टेसरी ने शिक्षा-संसार का बड़ा उपकार किया है। भारत में आकर उन्होंने स्वयं कुछ भारतीय शिक्षकों को अपनी विधि में दीक्षित किया है। इसलिए भारत में पूर्व-प्राथमिक स्तर पर किण्डरगार्टन से अधिक मॉण्टेसरी विद्यालय हैं। यद्यपि मॉण्टेसरी शिक्षण पद्धति को फ्रॉबेल की शिक्षण पद्धति के समान नही माना जाता है फिर भी उसके कार्यों की सभी शिक्षा विद्वानों ने सराहना की है। मॉण्टेसरी ने किण्डरगार्टन शिक्षा पद्धति को अधिक परिष्कृत रूप में पेश करने की कोशिश की है। यही कारण है कि आधुनिक समय में मॉण्टेसरी शिक्षण पद्धति बहुत लोकप्रिय सिद्ध हुई है, क्योंकि इसने अपने द्वारा खोजी गई नवीन शिक्षण पद्धतियों के माध्यम से बालक के मनोविज्ञान को पढ़ते हुए शिक्षित करने का सफल प्रयास किया है। इनके कार्यों से प्रभावित होकर एच.डब्ल्यू.होम्स ने कहा था -
"डॉ. मॉण्टेसरी का कार्य अद्वितीय, अनोखा और गौरवपूर्ण है। हमारे पास शिक्षा प्रणाली का कोई ऐसा अन्य उदाहरण नहीं हैं, जो कम से कम अपनी क्रमबद्धता पूर्णता और अपने व्यावहारिक प्रयोग में मौलिक हो और जिसका निर्माण तथा उद्घाटन एक स्त्री के मस्तिष्क और हाथ से किया जाता है।'
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