बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्यों का उल्लेख करते हुए पूर्व प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य
पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के मुख्य उद्देश्य शिशु का बहुमुखी विकास करना है जो कि बालक तथा समाज में उनके भावी जीवन के लिए उपयोगी है।
कोठारी आयोग ने पूर्व प्राथमिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए जो कि इस प्रकार है-
(1) स्वस्थ आदतों का विकास करना।
(2) बौद्धिक जिज्ञासा को विकसित करना।
(3) शारीरिक गामक एवं इन्द्रियों के विकास के अवसर।
(4) सामाजिक अभिवृत्तियों एवं व्यवहार के प्रतिमानों का विकास।
(5) सौन्दर्यात्मक बोध का विकास।
(6) भावों व विचारों को शुद्ध स्पष्ट एवं प्रभावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित करना।
(7) शिक्षा के अन्तर्गत आत्माभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करने के साथ स्वतन्त्रता व सृजनात्मकता हेतु प्रोत्साहित करना।
पूर्व प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम एवं शिक्षा पद्धति
पूर्व प्राथमिक शिक्षा का आयोजन ढाई से 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए किया जाता है। भारत में कई प्रकार के पूर्व प्राथमिक विद्यालय देखने को मिलते हैं जैसे कि - नर्सरी स्कूल / किण्डरगार्टन / मान्टेसरी स्कूल / बेसिक स्कूल / गरीबों के लिए स्कूल / एकांगी शिक्षा हेतु स्कूल / न्यूनतम बाल शिक्षा संघ स्कूल। यह विभिन्न प्रकार के विद्यालय विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों का आयोजन करते हैं। किण्डरगार्टेन विद्यालय फ्रोबेल के शिक्षा सिद्धान्तों पर आधारित है। जबकि नर्सरी विद्यालय श्रीमती मैकमिलन शैक्षिक विचारधारा पर आधारित पायी जाती है तथा इसके अन्तर्गत ऐसे पाठ्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिससे कि बच्चों का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास हो वहीं पर देखा जाए तो मान्टेसरी विद्यालय डॉक्टर मेरिया माण्टेसरी द्वारा स्थापित बाल विद्यालय है। जिसका पाठ्यक्रम इस प्रकार है कि छात्र में अच्छी आदतों का विकास हो। पूर्व प्राथमिक स्तर के लिए कोई भी निर्धारित विषय नहीं है परन्तु इस स्तर में बालक को खेल-खेल के माध्यम से ज्ञान कराया जाता है अब जहाँ तक प्रश्न उठता है शिक्षण पद्धति का तो किण्डरगार्टन, नर्सरी और माण्टेसरी शिक्षा पद्धति अलग-अलग होती है। भारत में पूर्व प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में इन पद्धतियों को अपनाया जा रहा है और साथ में ही ऐसी नवीन पद्धतियों को भी अपनाया जा रहा है जो कि भारत की परिस्थितियों के अनुकूल हैं।
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