बी ए - एम ए >> चित्रलेखा चित्रलेखाभगवती चरण वर्मा
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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
मूल भारतीय संविधान में भारतीय नागरिकों को सात मौलिक अधिकार प्रदान किये गये थे किन्तु 44वें संविधान संशोधन 1979 के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की श्रेणी से समाप्त करके उसे सम्पत्ति के अधिकार के रूप में मान्यता दी गयी है। सन 1950 से लेकर 1978 तक इस अधिकार के सम्बन्ध में अनेक संवैधानिक संशोधन किये गये। मूल भारतीय संविधान में कहा गया था कि - ऐसे कानून का निर्माण नहीं किया जा सकता जिसके अन्तर्गत किसी की व्यक्तिगत सम्पत्ति बिना उचित मुआवजे के लेने या अधिग्रहण की व्यवस्था हो।
किन्तु सन् 1951 के प्रथम संविधान संशोधन में यह व्यवस्था की गयी कि जमींदारी तथा जमींदारी के अन्त से सम्बन्धित विधेयक मुआवजे की व्यवस्था के बिना भी वैध समझे जायेंगे। सन् 1954 के चतुर्थ संविधान संशोधन में यह व्यवस्था की गयी कि 'सम्पत्ति ग्रहण करने के बदले में राज्य के द्वारा क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए लेकिन क्षतिपूर्ति की मात्रा विधानमण्डल द्वारा निर्धारित की जायेगी और क्षतिपूर्ति की जाँच न्यायपालिका के द्वारा नहीं की जा सकेगी।
सन् 1967 को सर्वोच्च न्यायालय के गोलकनाथ विवाद में निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती।
सन् 1977 में सत्ताधारी जनतापार्टी द्वारा अपने चुनाव घोषणा में कहा गया था कि 'सम्पत्ति का अधिकार एक मूल अधिकार के रूप में नहीं रहेगा वरन् वह केवल एक कानूनी अधिकार होगा और इस चुनावी घोषणा को 44वें संविधान संशोधन 1979 के द्वारा साकार करके यह व्यवस्था की गयी कि 'सम्पत्ति का अधिकार अब एक मूल अधिकार नहीं रहा वरन् केवल एक कानूनी अधिकार है। सम्पत्ति का अधिकार मूल अधिकार के रूप में न रहने पर भी कानूनी प्रक्रिया के बिना शासन द्वारा किसी व्यक्ति की सम्पत्ति नहीं छीनी जा सकेगी। जिन व्यक्तियों के पास भूमि सीमाकरण कानून (Land ceiling Act) की सीमा के भीतर भूमि है और उस भूमि पर वे स्वयं कृषि कार्य करते हैं तो बाजार मूल्य पर मुआवजा दिये बिना उन व्यक्तियों की भूमि राज्य द्वारा नहीं ली जा सकेगी।
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