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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता के विकास के लिए कौन-कौन से उपाय हैं?
उत्तर-
भारत में भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता के विकास के उपाय
(Means of Developing Emotional and National Integration in India)
स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्ष बाद ही हमने अनुभव किया कि हमारे देश में भावात्मक (राष्ट्रीय) एकता में कमी आ रही है और तभी से इसके कारणों एवं उपायों पर निरन्तर विचार होता आ रहा है। इसके मूल कारणों के संदर्भ में हमने कुछ मुख्य गोष्ठियों, सम्मेलनों और समितियों के निर्णय प्रस्तुत किये हैं। यहाँ उन्हीं के द्वारा राष्ट्रीय एकता के विकास के लिए सुझाए उपायों का संक्षेप में उल्लेख करना आवश्यक है -
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित
1. राष्ट्रीय एकता गोष्ठी (1958) - के सुझाव इस गोष्ठी ने राष्ट्रीय एकता के विकास हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये थे -
(i) भारतीय इतिहास को उसके सही रूप में लिखा जाये।
(ii) शिक्षा संस्थाओं में राष्ट्रीय उत्सव मनाये जायें।
(iii) धर्म और जाति के नाम पर छात्रवृत्तियाँ न दी जायें।
(iv) धर्म और जाति के नाम पर छात्रावास न बनाये जायें।
2. उपकुलपति सम्मेलन (1961) - के सुझाव इसका विचार क्षेत्र केवल विश्वविद्यालय की भूमिका तक सीमित था। इसने राष्ट्रीय एकता के विकास में विश्वविद्यालय के स्वरूप और कार्य सम्बन्धी निम्नलिखित सुझाव दिये थे-
(i) विश्वविद्यालयों के जातीय स्वरूप, जैसे - हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी और मुसलमान विश्वविद्यालय, अलीगढ को समाप्त किया जाये।
(ii) विश्वविद्यालयों के क्षेत्रीय और भाषायी स्वरूप को समाप्त किया जाये। विश्वविद्यालयों में देश के किसी भी क्षेत्र के युवकों को उनकी योग्यता के आधार पर प्रवेश दिया जाये। इसके लिए शिक्षा का माध्यम एक होना आवश्यक है और वह राष्ट्रभाषा हिन्दी अथवा अंतर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी ही हो सकती है।
(iii) विश्वविद्यालयों में प्राध्यापकों की नियुक्ति अथवा छात्रों के प्रवेश में जाति, लिंग, भाषा, क्षेत्र व धर्म किसी भी आधार पर कोई भेदभाव न बरता जाये।
3. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता समिति (1961) के सुझाव - यह कांग्रेस दल द्वारा गठित की गई थी, इसलिए इसकी सिफारिशें वोट की राजनीति पर आधारित होना स्वाभाविक है। इसने निम्नलिखित सुझाव दिये थे
(i) शिक्षा तथा अन्य क्षेत्रों में राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बढ़ावा।
(ii) विघटनकारी प्रवृत्तियों पर अंकुश।
(iii) सरकारी नौकरियों में जाति और धर्म की प्रवृत्ति पर रोक।
(iv) अल्पसंख्यकों के लिए अवसरों में वृद्धि।
4. मंत्रियों के सम्मेलन (1961) के सुझाव - यह भी राजनीतिक नेताओं का सम्मेलन था, पर प्रान्तीयता से ऊपर उठकर विचार व्यक्त करना इनकी यथा संदर्भ में विवशता थी। राष्ट्रीय एकता के विकास हेतु इन्होंने निम्नलिखित सुझाव दिये थे
(i) राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार।
(ii) समस्त भारतीय भाषाओं के लिए एक लिपि।
(iii) अंतर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी को बनाये रखना।
(iv) त्रिभाषा सूत्र (1. मातृभाषा, 2. अहिन्दी क्षेत्रों में हिन्दी और क्षेत्रों में कोई एक अन्य भारतीय भाषा और 3. अंग्रेजी या अंतर्राष्ट्रीय महत्व की कोई अन्य भाषा) लागू किया जाये।
(v) परीक्षा का माध्यम प्रादेशिक भाषाओं के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेजी भी।
(vi) विश्वविद्यालयी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी अथवा हिन्दी। भविष्य में केवल हिन्दी हों।
5. डॉ. सम्पूर्णानन्द भावात्मक एकता समिति (1961-62) के सुझाव - इस समिति ने स्पष्ट किया कि भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकता के विकास में शिक्षा की अहम् भूमिका है। इसने निम्नलिखित सुझाव दिये थे -
(i) विद्यालयों के कार्यक्रम को कुछ इस प्रकार सुनिश्चित करना कि उनमें भाग लेते हुए बच्चों में वर्ग संकीर्णता समाप्त हो और उनमें उचित आदर्शों का निर्माण हो।
(ii) शिक्षा ऐसी हो जो बच्चों को भविष्य के प्रति आश्वस्त करें।
(iii) शिक्षा ऐसी हो जो बच्चों में राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य भावना का विकास करे।
6. राष्ट्रीय एकता समिति (1967) के सुझाव - यह समिति भी राजनीतिक लोगों की समिति थी, अतः इसके सुझाव भी राजनीतिक प्रेरित हैं। इसने निम्नलिखित सुझाव दिये थे -
(i) साम्प्रदायिकता का दमन।
(ii) उपद्रव मचाने वाले सेना संगठनों - शिवसेना, तमिल सेना, नाग सेना आदि पर प्रतिबन्ध।
(iii) भाषा विवाद का हल।
(iv) शिक्षा में सुधार।
7. शिक्षा जगत की अन्य गोष्ठियों के सुझाव - इस बीच इस विषय पर न जाने कितनी गोष्ठियों का आयोजन हुआ, कितने प्रकाशन हुए, उन सबकी सिफारिशों को यहाँ प्रस्तुत करना सम्भव नहीं पर सभी ने शिक्षा को जाति, भाषा, क्षेत्र और धर्म आदि के संकुचित धरातल से उठाकर उसे राष्ट्रीय हित से जोड़ने की बात कही। यह कार्य कैसे किया जाये, इस विषय पर उन्होंने अनेक सुझाव दिये जिनमें शिक्षा के उद्देश्यों को व्यापक बनाना और पाठ्यचर्या में राष्ट्र हित की सामग्री को स्थान देना मुख्य हैं।

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