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चित्रलेखा

भगवती चरण वर्मा

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 19
आईएसबीएन :978812671766

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बी.ए.-II, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक

प्रश्न- वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

वैदिककालीन उच्च शिक्षा का वर्णन

वैदिक काल में उच्च शिक्षा का प्रारम्भ गुरुकुल कालीन शिक्षा से माना जाता है। 8 से 10 वर्ष की आयु पर बालकों का गुरुकुल में प्रवेश उपनयन संस्कार के बाद होता था। उपनयन संस्कार के उपरान्त बालक की उच्च शिक्षा प्रारम्भ होती थी। वैदिक-कालीन उच्च शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालकों का आध्यात्मिक, नैतिक, चारित्रिक तथा सांस्कृतिक विकास करना था, साथ ही बालकों में सामाजिक एवं राष्ट्रीय कर्त्तव्यों का बोध कराना एवं उनमें जीवकोपार्जन एवं कला-कौशल को विकसित करना था।

उच्च शिक्षा की पाठ्यचर्या

वैदिककालीन उच्च शिक्षा की दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-एक सामान्य शिक्षा तथा दूसरी विशिष्ट शिक्षा।
सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत उच्च स्तर पर संस्कृत भाषा, व्याकरण, धर्म तथा नीति-शास्त्र की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती थी। विशिष्ट शिक्षा के अन्तर्गत वैदिक साहित्य के विभिन्न ग्रन्थों, कर्मकाण्डों, ज्योतिर्विज्ञान, आयुर्विज्ञान, सैन्य शिक्षा, कृषि, पशुपालन, कला-कौशल, राजनीतिशास्त्र, भू-गर्भ शास्त्र और प्राणिशास्त्र की शिक्षा भी शैक्षिक रूप से प्रदान की जाती थी। वैदिककालीन उच्च शिक्षा की पाठ्यचर्या को उसकी प्रकृति के आधार पर निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया जाता है-
1. भौतिक विषयों से सम्बन्धित विषयों को अपरा पाठ्यचर्या।
2. आध्यात्मिक विषयों से सम्बन्धित विषयों को परा पाठ्यचर्या।
वैदिककाल में कक्षा नाटकीय पद्धति भी प्रचलित थी। गुरु ब्राह्मण वर्ण के वरिष्ठ प्रखर, बुद्धिमान, योग्य तथा सक्षम छात्र को कक्षा नाटक बना देते थे जो कि गुरु की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति में उनका शिक्षण कार्य में सहयोग करते थे। शिक्षण विधियों में प्रमुख रूप से तर्क विधि, श्रवण एवं मनन विधि, व्याख्यान विधि, प्रश्नोत्तर विधि, वाद-विवाद विधि, शास्त्रार्थ विधि तथा कथन एवं प्रदर्शन विधियों का प्रयोग किया जाता था।

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