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गद्य संचयन

डी पी सिंह

राहुल शुक्ल

प्रकाशक : ज्ञानोदय प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 10
आईएसबीएन :0

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बी.ए.-III, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक



आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी और गद्य-साहित्य की विविधता

'सरस्वती' पत्रिका का प्रकाशन 1900 ई0 में इण्डियन प्रेस, इलाहाबाद ने आरम्भ किया । यह पत्रिका मासिक है। पं0 महावीरप्रसाद द्विवेदी ने 1903 ई0 में इसका सम्पादन कार्य स्वीकार किया और एक लम्बे अरसे 1920 ई0 तक इस कार्य में संलग्न रहे। यों तो हिन्दी का गद्य-साहित्य अपनी कई विधाओं में पल्लवित हो रहा था तो भी द्विवेदी जी और उनकी 'सरस्वती' ने बीस वर्षों तक हिन्दी-लेखकों के लिए दिशा-निर्देशक का काम किया है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण काम हिन्दी गद्य के स्वरूप का स्थिरीकरण था। दूसरी मुख्य बात थी, खड़ी बोली में काव्य-रचना के प्रति रुझान | इसके साथ ही कहानी, समीक्षा तथा उपन्यास हिन्दी गद्य की नयी विधाओं का आरम्भ हुआ | नाटक, निबन्ध और जीवन-चरित तो भारतेन्दु काल में ही लिखे गये थे किन्तु अब उनका रूप और भी उदात्त हो चला, विशेषतः निबन्ध का रूप और इस काल में हिन्दी-निबन्ध साहित्य को कई अच्छे लेखक मिले हैं, वे हैं- पं0 महावीरप्रसाद द्विवेदी, पं0 माधवप्रसाद मिश्र, बाबू गोपालराम गहमरी, बाबू बालकृष्ण गुप्त, पं0 गोविन्द नारायण मिश्र, अध्यापक पूर्ण सिंह, पं0 चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी', बाबू श्यामसुन्दर दास । इनमें शुद्ध निबन्ध की दृष्टि से अध्यापक पूर्णसिंह तथा पं0 चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' के निबन्ध उच्चकोटि के हैं- एक साथ सूक्ष्म विचार, भाव और उदात्त शैली से परिपुष्ट ।

पं0 महावीरप्रसाद द्विवेदी के निबन्ध समीक्षा-कोटि के निबन्ध हैं। इस काल में समीक्षा, कहानी और उपन्यास हिन्दी गद्य की नयी विधाएँ थीं। संस्कृत-साहित्य में समीक्षा का जो रूप पाया जाता था वह एक तरह से काव्य-शास्त्र या अलंकार-शास्त्र है जिसमें सिद्धान्त की बातें होती थीं, या फिर साहित्यिक कृतियों के टीका-ग्रन्थ होते थे, जिनमें कहीं-कहीं टीकाकार की कृति-सम्बन्धी मूल्यांकन दृष्टि होती थी। लेकिन अब जो हिन्दी में समीक्षा का आरम्भ हुआ वह सब पश्चिमी समीक्षा-शास्त्र से अनुप्रेरित था | इस समीक्षा का लक्ष्य सिद्धान्त से अधिक रचना का ही सम्यक-मूल्यांकन होता था। द्विवेदी जी के समीक्षात्मक निबन्ध समीक्षा+साहित्य का केवल शुभारम्भ करते हैं। इस विषय की प्रौढ़ता आगे के लेखकों में आयी। द्विवेदी जी वैसे समीक्षात्मक संदर्भ में भाषा और साहित्य को लेकर सरस्वती में बराबर लिखते रहते थे। इस विषय की उनकी पहली पुस्तक 'हिन्दी-कालिदास की आलोचना' थी। किन्तु साहित्य समीक्षा के उनके मुख्य निबन्ध 'रसज्ञ-रंजन' पुस्तक में संगृहीत हुए हैं, जिसमें कविता तथा कुछ कृतियों के प्रसंग में विचारपूर्ण विश्लेषण मिलता है। इस समय के अन्य समीक्षकों में पं0 पद्मसिंह शर्मा तथा मिश्रबन्धुओं का नाम उल्लेखनीय है। बिहारी-सतसई पर लिखा हुआ भाष्य शर्मा जी की प्रसिद्ध रचना है। 'हिन्दी-नवरत्न' में हिन्दी के प्रमुख नौ कवियों की कृतियों का मूल्यांकन मिश्रबन्धुओं ने किया है। पं0 महावीरप्रसाद द्विवेदी ने साहित्य में जो समीक्षाएँ लिखीं, उनमें अधिक महत्वपूर्ण कार्य उनकी हिन्दी भाषा तथा रचना व्याकरण से सम्बन्धित समीक्षा थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने इतिहास में लिखा है, 'यदि द्विवेदी जी न आ पड़े होते तो जैसी अव्यवस्थित, व्याकरण-विरुद्ध और ऊट-पटाँग भाषा चारों ओर हिन्दी को घेर रही थी उसकी परम्परा जल्दी न रुकती। उनके प्रभाव से लेखक सावधान हो गये और जिनमें भाषा की समझ और योग्यता थी उन्होंने अपना सुधार कर लिया।

कहानी और उपन्यास की सर्वथा नयी विधाओं का प्रयोग हिन्दी में इसी समय आरम्भ हुआ । यद्यपि पं0 बालकृष्ण भट्ट तथा पं0 अम्बिकादत्त व्यास की रचनाएँ 'सौ अजान एक सुजान', 'आश्चर्य वत्तान्त' - उपन्यास के ढंग की रचनाएँ भारतेन्दु काल में लिखी गयी थीं पर उपन्यास का सही रूप उनसे सर्वथा भिन्न था । उपन्यास जीवन के यथार्थ अनुभव और संभावनाओं का रोचक चित्रण है | उसी प्रकार कहानी भी है। कहानी को छोटी कहानी भी कहा जाता है। इसमें जीवन के किसी एक अंश या किसी आंशिक घटना का रोचक प्रस्तुतीकरण रहता है। कहानी लेखक की कुशलता का परिचय देती है, उसका आरम्भ और अन्त, कथावस्तु एवं पात्र का संचयन ही उसका प्रमाण है। सबसे पहली कहानी पं0 किशोरीलाल गोस्वामी की 'इन्दुमती' थी, जो 1900 ई0 में 'सरस्वती' में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद दो-तीन वर्षों के अन्तर से 'सरस्वती' में दूसरी कहानियाँ भी प्रकाशित हुईं। इनमें ग्यारह वर्ष का समय (रामचन्द्र शुक्ल), दुलाईवाली (बंगमहिला) कहानियाँ विशिष्ट थीं। हिन्दी की अति प्रख्यात कहानी 'उसने कहा था' (चन्द्रधर शर्मा गुलेरी) भी सरस्वती में 1915 ई० में प्रकाशित हुई । वैसे तो उपन्यास लेखकों में बाबू देवकीनन्दन खत्री के जासूसी उपन्यास 'चन्द्रकान्ता सन्तति' बहुत लोकप्रिय रहे, लेकिन जैसे उपन्यास-साहित्य के आरम्भ से हमारा यहाँ अभिप्राय है वैसे उपन्यास किशोरीलाल गोस्वामी और पंडित अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने लिखे । 'हरिऔध' जी के दो उपन्यास 'ठेठ हिन्दी का ठाट' तथा 'अधखिला फूल' उपन्यास के साथ ही भाषा-प्रयोग के नमूने भी थे | जयशंकर प्रसाद तथा जी0पी0 श्रीवास्तव ने भी इसी समय कहानियाँ लिखना आरम्भ किया । उनकी कहानियाँ प्रसाद जी के मासिक पत्र 'इन्दु' में प्रकाशित हुईं।

जीवन-चरित्र तथा शिकार एवं यात्रा से सम्बन्धित साहित्य भी इस समय बहुत लिखा गया।

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