हिन्दी साहित्य >> गद्य संचयन गद्य संचयनडी पी सिंहराहुल शुक्ल
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बी.ए.-III, हिन्दी साहित्य प्रश्नपत्र-II के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार पाठ्य-पुस्तक
हिन्दी गद्य-साहित्य का समृद्धि काल (1920-1945 ई0)
इस काल में हिन्दी गद्य-साहित्य को समृद्ध करने वाले कई प्रतिभा सम्पन्न लेखक
सर्जन-क्षेत्र में उतरे | इसी काल में एकांकी नाटक की नयी विधा का प्रयोग भी
हिन्दी में हुआ | उसके प्रथम प्रयोगकर्ता श्री भुवनेश्वर और डॉ० रामकुमार वर्मा
हैं | इन्होंने 1930 के आस पास अपने एकांकी लिखे हैं। बाद में वर्मा जी के तो
कई एकांकी-संग्रह प्रकाशित हुए| श्री भुवनेश्वर के एकांकी 'कारवाँ' नाम से
संगृहीत हुए हैं | एकांकी में एक स्थान, एक समय तथा एक घटना का अभिनय होता है |
आधा घण्टा के आस-पास का समय एकांकी-अभिनय के लिए ठीक माना जाता है। नाटक के
क्षेत्र में प्रतिभा सम्पन्न नाटककार बाबू जयशंकर 'प्रसाद', श्री हरिकृष्ण
'प्रेमी', श्री उदयशंकर भट्ट, बाबू वृन्दावनलाल वर्मा तथा समस्या नाटककार पंडित
लक्ष्मीनारायण मिश्र ने स्थायी साहित्य का सर्जन किया है।
उपन्यास तथा छोटी कहानियों के क्षेत्र में भी प्रेमचन्द, बाबू जयशंकर प्रसाद,
जैनेन्द्रकुमार, पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र', पं0 भगवतीप्रसाद वाजपेयी,
विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक', प्रतापनारायण श्रीवास्तव, विनोदशंकर व्यास, पं0
जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज', राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह आदि के नाम उल्लेखनीय हैं
। ऐतिहासिक उपन्यास लिखने वालों में श्री चतुरसेन शास्त्री तथा बाबू
वृन्दावनलाल वर्मा अग्रगण्य रहे हैं।
समीक्षा-साहित्य भी स्वतन्त्र पुस्तकाकार तथा निबन्ध के रूप में इस काल में
लिखा गया । हिन्दी के प्रख्यात समीक्षक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की कृतियाँ इसी
समय सामने आयीं। उनकी पुस्तकें- गोस्वामी तुलसीदास, हिन्दी साहित्य का इतिहास,
चिन्तामणि (निबन्ध संग्रह), त्रिवेणी (निबन्ध संग्रह), सूर तथा जायसी पर लिखी
समीक्षाएँ हिन्दी के लिये मौलिक एवं स्थायी देन है। इस समय के अन्य प्रमुख
समीक्षक हैं- बाबू श्यामसुन्दर दास, लाला भगवानदीन, पं0 जनार्दनप्रसाद झा
'द्विज', पं0 भुवनेश्वर मिश्र 'माधव', पंडित शान्तिप्रिय द्विवेदी। डॉ.
नगेन्द्र ने भी इसी समय से समीक्षा के क्षेत्र में लिखना आरम्भ किया।
साहित्य-वाङ्मय के अतिरिक्त अन्य विषयों की पुस्तकें भी इस काल में लिखी गयीं।
भारतीय इतिहास विषय का मौलिक चिन्तन करने वाले एवं भारतीय दृष्टि से उसके -
अनुसन्धाता श्री जयचन्द्र विद्यालंकार की दो इतिहास-पुस्तकें 1940 के आस-पास
प्रकाशित हुईं- भारत भूमि और उसके निवासी, इतिहास-प्रवेश | 'इतिहास-प्रवेश' का
बाद में बहुत परिवर्धन हुआ| आजादी के बाद वह 'भारतीय इतिहास का उन्मीलन' नाम से
प्रकाशित हुयी। इसके पूर्व इनके गुरु पं0 गौरीशंकर हीराचन्द ओझा की पुस्तकें भी
हिन्दी में आ चुकी थीं। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन की कृतियाँ भी इस समय तक
लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर चुकी थीं। उनमें इतिहास, यात्रा तथा
अनुसन्धान कई प्रकार की पुस्तकें हैं। समाज, राजनीति तथा शिक्षा विषय पर श्री
विनोबा भावे, डॉ. सम्पूर्णानन्द तथा पं0 कमलापति त्रिपाठी की रचनाएँ उत्कृष्ट
हैं। आखेट विषय पर श्रीराम शर्मा के निबन्ध साहित्यिक सौष्ठव से युक्त हैं।
इसके साथ 1940 के आस-पास हिन्दी गद्य-शैली को अभिनव गति तथा सज्जा प्रदान करने
वाले कुछ लेखक और उनकी कृतियाँ सामने आयीं। ये कृतियाँ निबन्ध-ललित निबन्ध के
रूप में हैं। इन लेखकों में महाराज कुमार रघुवीर सिंह, श्री सियारामशरण गुप्त,
श्री रामवृक्ष बेनीपुरी, पं0 माखनलाल चतुर्वेदी, 'एक भारतीय आत्मा', बाबू
गुलाबराय तथा पदुमलाल पन्नालाल बख्शी के नाम विशिष्ट हैं। गद्य-काव्य के लेखक
हैं- श्री वियोगी हरि, श्री रायकृष्णदास।
हिन्दी गद्य-साहित्य में युगान्तर विषय तथा शैली के नये प्रयोग (1945 ई0 से अब
तक)
1945 ई0 तक हिन्दी गद्य-साहित्य ने अपने स्वरूप में स्थिरता तथा विषय, सर्जन
एवं शैली की दष्टि से समद्धि प्राप्त कर ली थी। 1945 ई0 तक का हिन्दी गद्य
साहित्य उसकी ओजस्विता एवं विस्तार का परिचायक है। 1945 ई0 के अनन्तर हिन्दी
गद्य-साहित्य में युगान्तर का आरम्भ हो जाता है तथा 1947 ई0 से आजादी प्राप्त
होने के बाद इस युगान्तर की गति और भी तेज हुई है। आज भी इस युगान्तर का क्रम
पूर्ववत् है। युगान्तर में कहीं स्थिरता नहीं रहती। सर्वत्र परिवर्तन और नयेपन
की अदम्य जिज्ञासा - विह्वल किये रहती हैं। ऐसी ही कुछ नूतनता की विह्वल प्यास
1945 के बाद हिन्दी गद्य साहित्य में पायी जाती है। इसके कई परिणाम लक्षित हए
हैं- नयी-नयी विधाएँ, विषयों के प्रति नये दृष्टिकोण, भाषा और शैली के नये
प्रयोग, लोक-भाषा के प्रयोग से आँचलिक गद्य-शैली का विकास, इसके साथ ही गहन और
उदात्त चिन्तन भी। पिछले काल की अपेक्षा इधर कई नूतन विधाओं पर लेखकों ने अपनी
कलम का प्रयोग किया है रेखाचित्र, संस्मरण, ललित निबन्ध, रिपोर्ताज,
पत्र-साहित्य, ध्वनि-रूपक|
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