साकांक्ष/saakaanksh
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साकांक्ष  : वि० [सं० त० त०] १. (व्यक्ति) जिसके मन में कोई आकांक्षा हो। आकांक्षा रखनेवाला। २. (काम, चीज या बात) जिसे किसी और की कुछ अपेक्षा हो। सापेक्ष। पुं० भारतीय साहित्य में, एक प्रकार का अर्थदोष जो ऐसे वाक्यों में माना जाता है जिनमें किसी आपेक्षित आशय का स्पशष्ट उल्लेख न हो, और फलतः उस अपेक्षित आशय के सूचक शब्दों की आकांक्षा बनी रहती हो। यथा—‘जननी, रुचि, मुनि पितु वचन क्यों तजि हैं बन राम।—तुलसी। इसमें मुख्य आशय तो यह है कि राम वन जाना क्यों छोड़े। परन्तु ‘क्यों तजिहैं बन राम’ से यह आशय पूरी तरह से प्रकट नहीं होता, इसलिए इसमें साकांक्षा नामक अर्थ दोष है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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