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सत  : पुं० [सं० सत्] सत्यता पूर्ण धर्म। मुहावरा—सत करना या सत पर चढ़ना=पति का मृत शरीर लेकर पत्नी का चिता पर बैठना और उसके साथ सती होना। उदाहरण—(क) मूवाँ पीछे यत करे, जीवत क्यूं न कराइ।—कबीर। (ख) जब सती सत पर चढ़े तब पान रस्म है। सत पर रहना= (क) सत्य धर्म का पालन करना। (ख) स्त्री का पतिव्रता और साध्वी होना। पुं० [सं० सत्य] १. किसी चीज में से निकला हुआ सार भाग। तत्त्व। २. जीवनी शक्ति। वि० १. सत्यतापूर्ण। जैसा—सतगुरु,सतनाम। २. अच्छा। भला०। जैसा—सत भाय। ३. शत। सौ। जैसा—सतदल। वि० सात (संख्या) का संक्षिप्त रूप। (यौ० के आरं में जैसा—सतकोना, सतनजा, सतपदी सतसई आदि)।
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सत  : स्त्री०=सेंती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत-कोना  : वि० [हि० सात+कोना] सात कोनोंवाला।
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सत-खंडा  : वि० [हि० सात+खंड] सात खंडो या मंजिलोंवाला। (मकान या महल)।
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सत-गजरा  : पुं० दे० सतनजा। (बुन्देल) उदाहरण-सतगजरा की सोधी रोटी, मिरच हरीरी मेवा।—लोकगीत।
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सत-गँठिया  : स्त्री० [सं० सात+गाँठ] एक प्रकार की वनस्पति, जिसकी तरकारी बनाई जाती है।
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सत-गुरु  : पुं० [हि० सत=सच्चा+गुरु] १. अच्छा गुरु। २. ईश्वर। परमात्मा।
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सत-जुग  : पुं०=सत्य युग।
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सत-दंता  : वि० [हि० सात+दाँत] (पशु) जिसके सात दाँत हों।
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सत-दल  : वि० पुं०=शत-दल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत-ध्रत  : पुं०=शतधृत (ब्रह्मा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत-पतिमा  : वि० स्त्री० [हि० सात+पति] १. (स्त्री) जिसने सात पति किये हों। २. दुश्चरित्रा। पुंश्चली। वि० सात पतियोंवाला (या वाली)। स्त्री०=सतपुतिया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत-परब  : पुं० [सं० शतपर्वा] १. शत पर्व्वा। बाँस। २. ऊख। गन्ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत-पात  : पुं० [सं० शतपत्र] शतपत्र। कमल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत-पुतिया  : स्त्री० [सं० सप्तपुत्रिका] एक प्रकार का तरोई जिसमें प्रायः पाँच या सात फलियाँ एक साथ गुच्छे के रूप में लगती हैं।
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सत-पुरिया  : स्त्री० [?] एक प्रकार का जंगली मधुमक्खी।
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सत-भाएँ  : अव्य० [सं० सद्भाव] अच्छे भाव से।
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सत-भाय  : पुं०=सद्भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सत-माय  : स्त्री० [हिं० सौत+माँ] सौतेली माँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत-मृत्तिका  : स्त्री० [सं०] शांति पूजन में काम आने वाली इन सात स्थानों की मिट्टी।—अश्वशाला, गजशाला, गौशाला, तीर्थ-स्थान, राजद्वार, गुरुद्वार और नदी।
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सत-युग  : पुं० [सं० सत्य युग] १. सत्य युग। २. ऐसा समय जब कि लोग सब प्रकार से सुखी, सच्चे और सदाचारी हों।
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सत-रंग  : वि०=सत-रंगा।
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सत-लड़ा  : वि० [हि० सात+लड़] [स्त्री० सतलड़ी] सात लड़ोंवाला। जैसा—सतलड़ा हार। पुं० [स्त्री० अल्पा० सतलड़ी] सात लड़ियोंवाला बड़ा हार।
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सतकार  : पुं०=सत्कार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतकारना  : स० [सं० सत्कार+हि० ना (प्रत्यय)] सत्कार या सम्मान करना। इज्जत करना।
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सतजीत  : पुं०=सत्यजित्।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतत  : अव्य० [सं०] १. निरन्तर। बराबर। लगातार २. सदा हमेशा। वि० [भाव० सतति] निरन्तर चलता रहनेवाला। (परपेचुअल) जैसा—सतत उत्तरोत्तरता या अनुक्रम। परपेचुअल। सक्सेशन)।
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सतत-ज्वर  : पुं० [सं०] ऐसा ज्वर जो दिन में दो बार आये या कभी दिन में एक बार और फिर रात को भी एक बार आय़े। द्विकालिक विषम ज्वर।
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सततक  : वि० [सं०] दिन में दो बार आने या होनेवाला जैसा—सततक ज्वर।
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सततग  : वि० [सं०] वह जो सदा चलता रहता हो। निरन्तर गतिशील। पुं० वायु। हवा।
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सतत्व  : पुं० [सं० अव्य० स०] स्वभाव। प्रकृति।
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सतनजा  : पुं० [हि० सात+अनाज] सात भिन्न प्रकार के अनाजों का मिश्रित रूप। वह मिश्रण, जिसमें सात भिन्न-भिन्न प्रकार के अनाज हों। वि० अनेक प्रकार के तत्त्वों, पदार्थों आदि से मिल-जुलकर बना हुआ।
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सतनी  : स्त्री० [सं० सप्तपर्णी] १. सप्तपर्णी वृक्ष। सतिवन। छतिवन। २. एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जिसकी लकड़ी से सन्दूक आदि बनते हैं।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतनु  : वि० [सं० अव्य० स०] तन या शरीर से युक्त। शरीरधारी।
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सतपदी  : स्त्री०=सप्तपदी।
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सतफल  : पुं० [सं० शतफला] घुँघची।
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सतफेरा  : पुं० [हि० सात+फेरा] विवाह के समय होनेवाला सप्तपदी नामक कर्म।
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सतबरग  : पुं०=सदबरग (पौधा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतबरवा  : पुं० [सं० शतपर्व=बाँस] एक प्रकार का वक्ष जिसके रेशों से नैपाली कागज बनाया जाता है।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतभइया  : वि० स्त्री [हि० सात+भइया] १. जो सात भाई हों। २. जिसके सात भाई हों। स्त्री० पेंगिया मैना।
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सतभाव  : पुं० [सं० सद्भाव] १. सद्भाव। अच्छा भाव। २. सरलता। सीधापन। ३. सचाई। सत्यता।
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सतभिखा  : स्त्री०=शतभिषा (नक्षत्र)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतभौंरी  : स्त्री० [सं० सप्त भ्रमण] सप्तपदी (दे०)।
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सतम  : वि०=सप्तम (सातवाँ)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सतमख  : पुं०[सं०शतमख] इंद्र। (डिं०)
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सतमासा  : वि० [हिं० सात+मास][स्त्री० सतमासी] (शिशु या बालक) जो गर्भ से सात महीने रहने के उपरान्त जनमा हो, नौ महीने अर्थात पूरी अवधि तक न रहा हो। पुं० एक रसम जो गर्भाधान के सातवें महीनें में होती है।
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सतमूली  : स्त्री०=शतमूली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतयुगी  : वि० [हिं० सत-युग] १. सत-युग के समय का। २. बहुत पुराना। ३. बहुत ही सच्चा, सात्विक या सीधा।
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सतर  : पुं० [अं०] १. छिपाव। २. मनुष्य का वह अंग जो ढका रखा जाता है और जिसके न ढके रहने पर उसे लज्जा आती है। गुह्य इन्द्रिय। पद-बे-सतर= (क) नंगा। नग्न। (ख) बुरी तरह से अपमानित किया हुआ। ३. आड़। ओट। परदा। स्त्री० [अं०] १. लकीर। रेखा। क्रि० प्र०—खींचना। २. अवली। कतार। पक्ति। वि० १. टेढ़ा। वक्र। २. कुपित। क्रुद्ध। अव्य० [सं० सत्वर] जल्दी या तेजी से।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतरकी  : स्त्री०=स्त्री०=सत्रहीं (मृतक की क्रिया)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतरंगा  : वि० [हिं० सात+सं० रंग][स्त्री० सत-रंगी] जिसमें सात रंग हो। सात रंगों वाला। जैसा—सतरंगा साफा, सतरंगी साड़ी। पुं० इन्द्र धनुष।
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सतरंज  : स्त्री०=शतरंज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतरंजी  : स्त्री०=शतरंजी।
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सतराई  : स्त्री० [सं० शत्रु+हिं० आई (प्रत्य०)] दुश्मनी। शत्रुता।
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सतराना  : अ० [हिं० सतर या सं० सतर्जन] १. क्रोध करना। कोप करना। २. कुढ़ना। चिढ़ना। सयो० क्रि०—जाना। ३. चोचला, दुलार या नखरा दिखाते हुए धृष्टतापूर्ण आचरण करना। सं० १. क्रोध चढ़ाना। २. चिढ़ाना।
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सतराहट  : स्त्री० [हिं० सतराना+हट (प्रत्य०)] सतराने की अवस्था, क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतरी  : स्त्री० [सं० सर्पद्रंष्ट्रा] सर्पद्रंष्ट्रा नामक ओषधि।
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सतरू  : पुं०=शत्रु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतरौहाँ  : वि० [हिं० सतराना] [स्त्री० सतरौही] १. कुपित। क्रोध युक्त। २. सतरानेवाला। सतराहट से युक्त। (फलतः कुढ़ने, चिढ़ने या रूठनेवाला)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतरौहें  : अव्य० [हिं० सतराना] सतराते हुए। सतराहट लिए हुए।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतर्क  : वि० [सं०] [भाव० सतर्कता] १. जो तर्क करने में कुशल हो। २. (व्यक्ति) जो अपनी तथा दूसरों की आवश्यकताओं, विचारों, भावनाओं का पूरा-पूरा ध्यान रखता हो। (कानसिडरेट)। ३. जो दूसरों के व्यापारों, कार्यो, आदि की थाह पहले से लगा या अनुमान कर लेता हो और इसीलिए चौकन्ना रहता हो। सावधान।
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सतर्कता  : स्त्री० [सं० सतर्क+तल्-टाप्] १. सतर्क होने की अवस्था, गुण या भाव। २. सावधानी। होशियारी।
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सतर्पना  : स० [सं० संतपर्ण] भली-भांति तृप्त या संतुष्ट करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सतर्ष  : वि० [सं० अव्य० स०] तृषित। प्यासा।
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सतलज  : स्त्री० [सं० सतद्र] पंजाब की पाँच नदियो में से एक। शतद्र नदी।
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सतवंती  : स्त्री० [सं० सत्यवती] पतिव्रता या सती और साध्वी स्त्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतवार  : वि० [सं० सत्] सत् या धर्म पर होनेवाला। सदाचारी और धर्मनिष्ठ।
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सतवारा  : पुं० [हि० सात+वार] सात दिनों का समूह। सप्ताह।
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सतवांसा  : वि० पुं०=सतमासा।
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सतसई  : स्त्री० [सं० सप्तशती] वह ग्रंथ जिसमें सात सौ पद्य हों। सात सौ पद्यों का समूह या संग्रह। सप्तशती। जैसा—बिहारी-सतसई।
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सतसंग  : पुं०=सत्संग।
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सतसंगति  : स्त्री०=सत्संग।
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सतसंगी  : वि०=सत्संगी।
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सतसठ  : वि०=सड़सठ।
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सतसल  : पुं० [देश] शीशम का पेड़।
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सतह  : स्त्री० [अ०] [वि० सतही] १. किसी वस्तु का ऊपरी भाग या विस्तार। २. बाहर या ऊपर का फैलाव। (लेबिल)। जैसा—जमीन या समुद्र की सतह। २. रेखागणित में वह विस्तार जिसमें लम्बाई-चौड़ाई तो हो पर मोटाई न हो।
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सतहत्तर  : वि० [सं० सप्त सप्तति, प्रा० सत्तसत्तति, प्रा० सत्तहत्तरि] जो गिनती में सत्तर से सात अधिक हो। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो इसप्रकार लिखी जाती है—७७।
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सतही  : वि० [हि० सतह] १. सतह या ऊपरी स्तर पर होनेवाला। २. ऊपरी। दिखौआ।
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सतांग  : पुं०=शतांग (रथ)।
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सतानंद  : पुं० [सं० ब० स०] गौतम ऋषि के पुत्र, जो राजा जनक के पुरोहित थे।
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सताना  : स० [सं० संतापन, प्रा० संतावन] १. संतप्त करना। २. मानसिक क्लेश पहुँचाकर परेशान करना। ३. तंग या परेशान करना।
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सतार  : पुं० [सं० अव्य० स०] जैनों के अनुसार ग्वारहवाँ स्वर्ग। वि० १. तारकों या तारों से युक्त। उदाहरण—चुनरी स्याम सतार, नभ, मुख ससि के अनुहारि।—बिहारी। २. जिसमें तारे टँके बने या लगे हुए हों।
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सतारुक  : पुं० [सं० अव्य० स०] एक रोग जिसमें शरीर पर लाल और काली फुँसियाँ निकलती है।
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सतारू  : पुं०=सतारुक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतालुई  : वि० [हि० सतालू] सतालू (फल) की तरह का हलका लाल। (क्रिम्सन) पुं० उक्त प्रकार का रंग जो गुलनारी से हलका होता है।
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सतालू  : पुं० [सं० सप्तालुक, मि० फा० शप्तालू] १. एक प्रकार का पेड़ जिसके गोल फल खाये जाते हैं। २. उक्त पेड़ का फल। आडू। शफतालू।
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सतावना  : स०=सताना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतावर  : स्त्री० [सं० शतावरी] एक प्रकार का झाड़दार बेल जिसकी जड़ और बीज औषध के काम आते हैं। शतमूली। नारायणी।
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सतासी  : वि० पुं०=सत्तासी।
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सति  : पुं० दे० सत्य। वि०=सत्। स्त्री०=सती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतिगुर  : पुं०=सदगुरु।
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सतिभाएँ  : अव्य०=सतभाएँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतिया  : वि०=सौतेला। पुं०=सथिया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतिवन  : पुं० [सं० सप्तपर्ण, प्रा० सत्तवन्न] एक सदाबहार बड़ा पेड़ जिसकी छाल दवा के काम आती है। सप्तपर्णी। छतिवन।
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सती  : वि० स्त्री० [सं०] १. अपने पति के अतिरिक्त और किसी पुरुष का ध्यान मन में न लानेवाली। साध्वी। पतिव्रता। २. अपने पति के मरने पर उसके साथ ही जल या मर जानेवाली। सहगामिनी। क्रि० प्र०—होना। स्त्री० १. दक्ष प्रजापति की कन्या जो शिव को ब्याही थी। २. विश्वामित्र की पत्नी का नाम। ३. पतिव्रता स्त्री। साध्वी। ४. वह स्त्री जो अपने पति के शव के सात चिता में जले। सहगामिनी स्त्री। मुहावरा—(पति के साथ) सती होना=मरे हुए पति के शरीर के साथ चिता में जल मरना। सहगमन करना। (किसी काम या बात के लिए) सती होना=बहुत अधिक कष्ट झेलते हुए मर मिटना। ६. मादा पशु। ७. सुगंधित या सोंधी मिट्टी। ८. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में एक नगण और एक गुरु होता है। पुं० [सं० सत्] १. वह जो सतधर्म का पालन करता हो। २. सात्त्विक वृत्तियोंवाला साधु या महात्मा। जैसा—बड़े-बड़े जोगी, जती और सती भी उसकी महिमा का पार नहीं पा सके। स्त्री० १.=शती। २.=शक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सती-चौरा  : पुं० [सं० सती+हि० चौरा] वह बेदी या छोटा चबूतरा जो किसी स्त्री के सती होने के स्थान पर उसके स्मारक में बनाया जाता है।
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सतीत्व  : पुं० [सं० सती+त्व] सती होने की अवस्था, धर्म या भाव। पातिव्रत्य। मुहावरा—किसी स्त्री का) सतीत्व बिगाड़ना या नष्ट करना=किसी स्त्री से बलात्कार करना।
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सतीत्व-हरण  : पुं० [सं० ष० त०] किसी सच्चरित्रा स्त्री के साथ बलात्कार करके उसका सतीत्व बिगाडना।
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सतीदोषोन्माद  : पुं० [सं० मध्मि० स०] स्त्रियों का वह उन्माद रोग जिसका प्रकोप किसी सतीचौरे को अपवित्र करने के कारण माना जाता है।
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सतीन  : पुं० [सं० सती√नी (ढोना)+ड] १. एक प्रकार का मटर। २. अपराजिता या कोयल नाम की लता।
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सतीपन  : पुं०=सतीत्व।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतीर्थ  : पुं० [सं० ब० स०] १. एक ही आचार्य से पढ़नेवाले विद्यार्थी या ब्रह्मचारी। सहाध्यायी। २. सहपाठी।
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सतील  : पुं० [सं० अव्य० स०] १. बाँस। २. अपराजिता। २. वायु। हवा।
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सतुआ  : पुं०=सत्तू।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतुआ संक्रांति  : स्त्री० [हि० सतुआ+सं० संक्रान्ति] मेघ की संक्रान्ति जो प्रायः वैशाख में पड़ती है। इस दिन लोग सत्तू दान करते और खाते हैं।
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सतुआ सोंठ  : स्त्री० [हि० सतुआ+सोंठ] एक प्रकार की सोंठ।
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सतुआन  : स्त्री०=सतुआ संक्रान्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतुला  : स्त्री० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का जाँघिया जो घुटनों तक होता है।
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सतून  : पुं० [सं० स्थाणु से फा० सुतून] स्तंभ। खंभा।
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सतूना  : पुं० [हि० सतून=खंभा] बाज की एक प्रकार का झपट जिसमें वह पहले शिकार के ठीक ऊपर उड़ जाता है और फिर एकबारगी नीचे की ओर उस पर टूट पड़ता है।
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सतेरक  : पुं० [सं० सतेर+कन्] ऋतु। मौसम।
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सतेरी  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की मधुमक्खी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतोखना  : स० [सं० संतोषण] २. संतुष्ट करना। प्रसन्न करना। २. समझा बुझाकर संतोष या ढाढ़स दिलाना।
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सतोगुण  : पुं०=सत्त्वगुण।
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सतोगुणी  : वि०=सत्त्वगुणी।
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सतोदर  : पुं०=शतोदर (शिव)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतौला  : पुं० [हि० सात+औला (प्रत्यय)] प्रसूता स्त्री का वह विधिवत् स्नान जो प्रसव के सातवें दिन होता है।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सतौसर  : वि० [सं० सप्तसृक्] सात लड़ों का। सतलड़ा।
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सत्  : वि० [सं०√अस् (होना)+शतृ-अलोप] १. सच। सत्य। २. सज्जन। साधु। ३. धीर। ४. स्थायी। ५. पंडित। विद्वान। ६. पूज्य। मान्य। ७. प्रशस्त। ८. पवित्र। सुद्ध। ९. उत्तम। श्रेष्ठ। पुं० १. ब्रह्मा। २. माध्व संप्रदाय का एक नाम।
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सत्कदंब  : पं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का कदंब।
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सत्करण  : पुं० [सं० ष० त० कर्म० स०] [वि० सत्करणीय, भू० कृ० सत्कृत] १. सत्कार करना। आदर करना। २. मृतक की अन्त्येष्टि क्रिया करना।
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सत्करणीय  : वि० [सं० सत√कृ (करना)+अनीयर, कर्म० स०] जिसका सत्कार करना आवश्यक और उचित हो। सत्कार का पात्र। आदरणीय पूज्य।
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सत्कर्ता (र्त्त)  : वि० [सं० कर्म० स०] [स्त्री० सत्कर्त्री] १. अच्छा काम करनेवाला। सत्कर्म करनेवाला। २. आदर-सत्कार करनेवाला। पुं० आजकल वह व्यक्ति जो आगत और निमंत्रित व्यक्तियों का किसी रूप में सत्कार करता हो।
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सत्कर्म  : पुं० [सं० कर्म० स० सत्कर्मन्] १. अच्छा कर्म। अच्छा काम। २. धर्म या पुण्य का काम।
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सत्कर्मा (मन्)  : वि० [सं० ब० स०] सत्कर्म करनेवाला।
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सत्काय दृष्टि  : स्त्री० [सं०] मृत्यु के उपरांत आत्मा, लिंगशरीर आदि के बने रहने के सिद्धान्त जो बौद्धों की दृष्टि में मिथ्या है।
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सत्कार  : पुं० [सं०] १. अभ्यागत, अतिथि आदि की की जानेवाली खातिरदारी तथा सेवा। २. धन आदि भेंट देकर किसी का किया जानेवाला आदर-सम्मान या सेवा।
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सत्कारक  : वि० [सं०] सत्कार करनेवाला। सत्कर्ता।
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सत्कार्य  : वि० [सं० सत्√कृ (करना)+ण्यत्] १. जिसका सत्कार होना आवश्यक या उचित हो। सत्कार का पात्र। २. (मृतक) जिसकी अन्तेष्टि क्रिया होने को हो। पुं० उत्तम कार्य। अच्छा काम।
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सत्कार्यवाद  : पुं० [सं० मध्यम० स०] १. सांख्य का यह दार्शनिक सिद्धान्त कि बिना करण के कर्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। फलतः यह सिद्धान्त कि इस जगत की उत्पत्ति शून्य से नहीं किसी मूल सत्ता से है। यह सिद्धान्त बौद्धों के शून्यवाद के विपरीत है। २. दे० ‘पारिणामवाद’।
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सत्कीर्ति  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] उत्तम कीर्ति। यश। नेकनामी।
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सत्कुल  : पुं० [सं० कर्म० स०] उत्तम कुल। अच्छा या बड़ा खानदान। वि० जो अच्छे कुल में उत्पन्न हुआ हो।
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सत्कृत  : वि० [सं० सत्√कृ (करना)+क्त] १. अच्छी तरह किया हुआ। २. जिसका सत्कार किया गया हो। ३. सजाया हुआ। अलंकृत। पुं० १. सत्कार। २. सत्कर्म।
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सत्कृति  : स्त्री० [सं०] अच्छी या उत्तम कृति। वि० सत्कर्म।
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सत्क्रिया  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. धर्म या काम। सत्कर्म। २. आदर-सत्कार। ३. किसी कार्य का आयोजन या तैयारी।
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सत्त  : पुं० [सं० सत्व] १. किसी पदार्थ का सार भाग। असली तत्त्व। रस। जैसा—गेहूँ का सत्त, मुलेठी का सत्त। २. मुख्य उपयोगी तत्त्व। ३. बल। शक्ति। वि०=सत्य। पुं० १.=सत्य। २. =सतीत्व।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत्तम  : वि० [सं० सत्+तमप्] १. सबसे अधिक सत् या अच्छा। २. सर्वश्रेष्ठ। ३. परम पूज्य।
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सत्तर  : वि० [सं० सप्तति, प्रा० सत्तरि] जो गिनती में साठ से दस अधिक हो। पुं० उक्त की बोधक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।—७०।
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सत्तरह  : वि० [सं० सप्तदश,प्रा० सत्तरह] जो गिनती में दस से सात अधिक हो। पुं० उक्त की बोधक संख्या जो अंकों में इस प्रकार लिखी जाती है—१७।
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सत्ता  : स्त्री० [सं० सत्,+तल्ल-टाप्] १. मूर्त रूप से वर्तमान रहने या होने की अवस्था, गुण या भाव। अस्तित्व। हस्ती। अभाव का विपर्याय। (बीइंग)। २. शक्ति। सामर्थ्य। ३. वह अधिकार, शक्ति या सामर्थ्य जो किसी प्रकार का उपयोग करती हुई और अपनी सक्षमता दिखलाती हुई काम करती हो। (पावर) जैसा—राजसत्ता। मुहावरा—(किसी पर) सत्ता चलाना=अपना अधिकार दिखलाते हुए और वश में रखते हुए उपभोग, व्यवहार शासन आदि करना। ४. राजनीति-शास्त्र में किसी विशिष्ट राष्ट्र का वह अधिकार या शक्ति जिससे बढ़कर और कोई अधिकार या शक्ति न हो। (सावरेंटी)। पुं० [हि० सात] ताश या गंजीफे का वह पत्ता जिसमें सात बूटियाँ हों।
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सत्ता-सामान्यत्व  : पुं० [सं० ब० स०, त्व] न्याय में वह स्थिति जब अनेक द्रव्यों, रूपों आदि में एक ही तत्त्व सामान्य रूप से पाया जाता हो। जैसा—कुंडल, कंकण आदि अनेक गहनों में सोना नामक द्रव्य सामान्य रूप से पाया जाता है।
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सत्ताईस  : वि० [सं०सप्त-विंशति,प्रा० सत्ताईस] जो गिनती में बीस से सात अधिक हो। पुं० उक्त की बोधक संख्या जो अंकों में इस प्रकार लिखी जाती है।—२७।
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सत्तांतरण  : पुं० [सं० सत्ता+अंतरण] [भू० कृ० सत्तांतरित] १. सत्ता का एक के हाथ से दूसरे हाथ में जाना। २. सत्ताधारी का सत्ता दूसरे को सौंपना। (ससेसन उक्त दोनों अर्थों में)।
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सत्तांतरित  : भू० कृ० [सं० सत्तांतरण] (देश या राज्य) जिसके शासन की सत्ता दूसरे को सौंप दी गई हो। (सीडेड)।
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सत्ताधारी (रिन्)  : वि० [सं० सत्ता√धृ (रखना)+णिनि] जिसे किसी प्रकार की सत्ता प्राप्त हो। सत्तावान। जैसा—सत्ताधारी राज्य। पुं० सत्ताप्राप्त अधिकारी। प्राधिकारी (देखें)।
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सत्तानवे  : वि० [सं० सप्तनवति, प्रा० सत्तावन] जो गिनती में सौ से तीन कम हो। पुं० उक्त की बोधक संख्या जो अंकों में इस प्रकार लिखी जाती है—९७।
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सत्तानाश  : पुं०=सत्यानाश।
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सत्तानाशी  : वि०=सत्यानाशी।
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सत्तार  : वि० [अ०] दोषों आदि पर परदा डालनेवाला। पुं० ईश्वर का एक नाम।
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सत्तारूढ़  : वि० [सं० सत्ता+आरूढ़] जो सत्ता प्राप्त कर उसका उपयोग और पालन कर रहा हो।
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सत्तावन  : वि० [सं० सप्तपंचाशत, प्रा० सत्तावन्न] जो गिनती में पचास से सात अधिक हो। पुं० उक्त की बोधक संख्या जो अंकों में इस प्रकार लिखी जाती है—५७।
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सत्तावाद  : पुं० [सं०] [वि० सत्तावादी] यह मत या सिद्धान्त कि किसी अधिनायक या अधिनायक वर्ग के तंत्र या शासन की सभी बातें बिना किसी विरोध के मानी जानी चाहिए। (ऑथॉरिटेरियनिज्मः)।
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सत्ताशास्त्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] पाश्चात्य दर्शन की वह शाखा जिसमें मूल या पारमार्थिक सत्ता का विवेचन होता है।
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सत्तासी  : वि० [सं० सप्ताशीति, प्रा० सत्तासी] जो गिनती में अस्सी से सात अधिक हो। पुं० उक्त की बोधक संख्या जो अंको में इस प्रकार लिखी जाती है—८७।
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सत्तू  : पुं० [सं० सत्तुक, प्रा० सत्तुअ] भुने हुए चने, जौ आदि का आटा या चूर्ण।
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सत्त्व  : पुं० [सं०] १. सत्ता से युक्त होने की अवस्था या भाव। अस्तित्व। हस्ती। २. किसी वस्तु में से निकाला हुआ मूल और सार भाग। तत्त्व। सत्त। (एब्सट्रैक्ट) ३. किसी वस्तु की मुख्य और वास्तविक प्रवृत्ति। गुण संबंधी। विशिष्टता। खासियत। ४. चित्त या मन की प्रवृत्ति। ५. अच्छे और शुभ कर्मों की ओर होनेवाली प्रवृत्ति। शुभवृत्ति। ६. सांख्य के अनुसार प्रकृति के तीन गुणों में से एक जो सब में उत्तम कहा गया है, और जिसके लक्षण, ज्ञान, शांति शुद्धता आदि हैं। ७. आत्म-तत्त्व। चित्-तत्त्व। चैतन्य। ८. जीवनी-शक्ति। प्राण-तत्त्व। ९. जीवधारी। प्राणी। १॰. भूत-प्रेत। ११. मन की दृढ़ता और धीरता। १२. बल। शक्ति। १३. गर्भ। हमल।
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सत्त्व-दीप्ति  : स्त्री० [सं०] मनुष्य के स्वभाव की तेजस्विता।
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सत्त्वक  : पुं० [सं०] मृत मनुष्य की जीवात्मा। प्रेत।
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सत्त्वगुण  : पुं० [सं० मध्यम० स०] सत्त्व अर्थात् अच्छे कर्मों की ओर प्रवृत्त करनेवाला, गुण, जो प्रकृति के तीन गुणों में से एक तथा तीनों में सर्वश्रेष्ठ है।
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सत्त्वगुणी  : वि० [सं० सत्त्वगुण+इनि] १. सत्वगुण से युक्त। २. साधु और विवेकी। उत्तम प्रकृति का।
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सत्त्वधाम  : पुं० [सं० ब० स०] विष्णु का एक नाम।
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सत्त्वलक्षण  : वि० स्त्री० [सं० ब० स०] जिसमें गर्भ के लक्षण हों। गर्भवती। हामिला।
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सत्त्ववती  : वि० [सत्त्व+मतुप-म=व,ङीष्] १. सत्वगुण से सम्पन्न (स्त्री) २. गर्भवती। स्त्री० बौद्ध तांत्रिकों की एक देवी।
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सत्त्ववान्  : वि० [सं० सत्त्ववत्-नुम्-दीर्घ, सत्त्ववत्] [स्त्री० सत्त्ववती] १. सत्त्व या सार भाग से युक्त। २. जीवनी-शक्ति या प्राणों से युक्त। ३. साहसी। ४. दृढ़। मजबूत।
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सत्त्वशाली  : वि० [सं० सत्त्वशालिन्] [स्त्री० सत्वशालिनी] दृढ़, धीर और साहसी।
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सत्त्वशील  : वि० [सं० ब० स०] १. सात्त्विक प्रकृतिवाला। अच्छी प्रकृति का। २. सदाचारी और धर्मात्मा।
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सत्त्वस्थ  : वि० [सं०] १. अपनी प्रकृति में स्थित। २. अपनी बात या स्थान पर दृढ़तापूर्वक ठहरा रहनेवाला। ३. बलवान्। सशक्त। ४. जीवनी शक्ति से युक्त। प्राणवान्।
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सत्थी  : स्त्री० [?] जाँघ का मोटा भाग। (राज०)।
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सत्पथ  : पुं० [सं०] १. उत्तम मार्ग। २. उत्तम पंथ या संप्रदाय। ३. अच्छा आचरण। सदाचार।
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सत्पशु  : पुं० [सं०] ऐसा पशु जिसे देवता को बलि चढ़ाया जा सकता हो।
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सत्पात्र  : पुं० [सं०] १. उपदेश, दान आदि के योग्य उत्तम अधिकारी व्यक्ति। २. श्रेष्ठ और सदाचारी व्यक्ति। ३. विवाह के योग्य उत्तम वर।
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सत्पुरुष्  : पुं० [सं० कर्म० स०] सदाचारी और योग्य व्यक्ति।
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सत्य  : वि० [सं०] [भाव० सत्यता] १. सत् संबंधी। सत् का। २. सत् से युक्त। जैसा—संसार में ईश्वर का नाम ही सत्य है। ३. (कथन या बात) जो मूल या वास्तविक के ठीक अनुरूप हो। जिस पर पूरा-पूरा विश्वास किया जा सकता हो। जिसमें झूठ या मिथ्या का लेश भी न हो। जैसा—वह सदा सत्य बोलता है। ४. (घटना का उल्लेख या विवरण) जो सत्य या वास्तविकता के ठीक अनुरूप हो। ठीक। यथार्थ। जैसा—यह सत्य है कि आप वहाँ नहीं गये थे। ५. जैसा हो या होना चाहिए, ठीक वैसा ही। जैसा—सत्यव्रत, सत्यसंघ। (ट्रू अंतिम तीनों अर्थों के लिए)। ६. असल। वास्तविक। पुं० १. ठीक यथार्थ और वास्तविक तथ्य या बात। जैसा—सत्य कहीं छिपा नहीं रह सकता। २. उचित और न्यायसंगत पक्ष या बात। जैसा—उन्हें सत्य से कोई डिगा नहीं सकता। ३. वह पारमार्थिक सत्ता जिसमें कभी कोई विकार नहीं होता। जैसा—ब्रह्म ही सत्य है, और यह जगत् मिथ्या है। ४. पुराणानुसार ऊपर के सात लोकों में से सबसे ऊपर का लोक। ५. विष्णु। ६. विश्वदेवों में से एक। ७. नांदीमुख श्रद्धा के अधिष्ठाता देवता। ८. एक प्रकार का दिव्यास्त्र। ९. पुराणानुसार नवें कल्प का नाम। १॰. अश्वत्थ। पीपल। ११. प्रतिज्ञा। १२. कसम। शपथ। १३. दे० ‘सत्य युग’।
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सत्य-नारायण  : पुं० [सं०] नारायण या विष्णु भगवान का एक नाम जिसके संबंध में आजकल लोक में एक कथा बहुत प्रचलित तथा प्रसिद्ध है।
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सत्य-पुरुष  : पुं० [सं०] १. सारी सृष्टि उत्पन्न करनेवाला वह तत्त्व जो सबसे अतीत, ऊपर और परे माना गया है। २. परमात्मा।
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सत्य-प्रतिज्ञ  : वि० [सं० ब० स०] अपनी प्रतिज्ञा पर सदा दृढ़ रहने और उसका पूर्णतः पालन करनेवाला।
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सत्य-युग  : पुं० [सं० मध्यम० स०] पौराणिक काल-गणना के अनुसार चार युगों में से पहला युग जो इसलिए सर्वश्रेष्ट कहा गया है कि इसमें धर्म और सत्य की पूरी प्रधानता थी। इसकी अवधि १७२८००० वर्ष कही गई है। इसे कृत युग भी कहते हैं।
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सत्य-वसु  : पुं० [सं०] एक विश्वेदेवा।
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सत्य-संकल्प  : वि० [सं०] जो अपने संकल्प पर सदा दृढ़ रहे।
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सत्यक  : पुं० [पा०] कैंची डि०)।
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सत्यक  : वि० [सं० सत्य+कन्]=सत्यंकार।
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सत्यकाम  : वि० [सं० ब० स०] सदा सत्य की कामना रखनेवाला बहुत सच्चा।
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सत्यंकार  : पुं० [सं०] [भू० कृ० सत्यंकृत] १. किसी को दिया हुआ वचन सत्य करना। वादा पूरा करना। २. पेशगी दिया जानेवाला धन जो इस बात का सूचक होता है कि जिस काम के लिए वह दिया गया है वह अव्य किया या कराया जायगा। ३.किसी निश्चय संविदा आदि को ठीक या सत्य ठहराना। विशेष० दे० ‘सत्यांकन’।
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सत्यकीर्ति  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का अस्त्र जो मंत्रबल से चलाया जाता था।
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सत्यकेतु  : पुं० [सं० ब० स०] १. एक बुद्ध का नाम। २. अक्रूर का एक पुत्र।
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सत्यजित्  : पुं० [सं०] १. तीसवें मन्वन्तर के इन्द्र का नाम। २. वसुदेव का एक भतीजा।
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सत्यतः  : अव्य० [सं०] सत्य यह है कि। वास्तव में। यथार्थतः। सचमुच।
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सत्यता  : स्त्री० [सं० सत्य+तल्-टाप्] १. सत्य होने की अवस्था धर्म या भाव। सच्चाई। २. वास्तविकता। ३. नित्यता।
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सत्यपर  : वि० [सं०] [भाव० सत्यपरता] सत्य में प्रवृत्त। ईमानदार।
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सत्यभामा  : स्त्री० [सं०] श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक जो सत्राजित् की कन्या थी।
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सत्यभूषणी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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सत्ययुगाद्या  : स्त्री० [सं०] वैशाख शुक्ल तृतीया जिस दिन से सत्य युग का आरम्भ माना गया है।
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सत्ययुगी  : वि० [सं० सत्य-युगी+इनि] १. सत्ययुग का। सत्य युग सम्बन्धी। २. सत्य-युग में होनेवाला। ३. सत्य-युग के लोगों की तरह का अर्थात् बहुत धर्मात्मा और सच्चा। ४. बहुत पुराना।
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सत्यलोक  : पुं० [सं०] ऊपर से सात लोकों में से सबसे ऊपर का लोक जहाँ ब्रह्मा का अवस्थान माना गया है। (पुराण)।
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सत्यवती  : वि० [सं० सत्यवान् का स्त्री०] १. सत्य का आचरण और पालन करनेवाली। २. पतिव्रता। सती। ३. कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। स्त्री० १. पराशर की पत्नी और व्यास की माता मत्स्यगंधा का वास्तविक नाम। २. एक प्राचीन नदी।
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सत्यवाच्  : पुं० [सं०] १. सत्य वचन। २. प्रतिज्ञा। ३. मंत्र-बल से चलनेवाला एक प्रकार का अस्त्र। ४. कौआ।
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सत्यवाद  : पुं० [सं०] [वि० सत्यवादी] १. सत्य बोलना। सच कहना। २. धर्म पर दृढ़ रहना।
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सत्यवादिनी  : स्त्री० [सं०] १. दाक्षायिणी का एक नाम। २. बोधिद्रुम की एक देवी।
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सत्यवादी  : वि० [सं० सत्यवादिन्] [स्त्री० सत्यवादिनी] १. सत्य कहनेवाला। सच बोलनेवाला। २. अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहनेवाला। ३. धर्म पर दृढ़ रहनेवाला। ४. सत्यवाद संबंधी।
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सत्यवान्  : वि० [सं०] [स्त्री० सत्यवती] सत्य का आचरण और पालन करनेवाला। पुं० शाल्व देश का एक प्रसिद्ध राजा जो सावित्री का पति था। (पुराणों में कहा गया है कि जब ये युवावस्था में ही मर गये, तब इनकी पत्नी सावित्री ने अपने पातिव्रत्य के बल पर इन्हें यम के हाथों से छुड़ाकर पुनरुज्जीवित किया था)।
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सत्यव्रत  : वि० [सं०] जिसने सत्य बोलने का व्रत लिया हो। पुं० सत्य का पालन करने का नियम या व्रत।
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सत्यशील  : वि० [सं०] [स्त्री० सत्यशीला] सदा सत्य का पालन करनेवाला। सच्चा।
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सत्यसंध  : वि० [सं०] [स्त्री० सत्यसंघा] वचन को पूरा करनेवाला। सत्य-प्रतिज्ञ। पुं० १. भगवान् रामचन्द्र का एक नाम। २. भरत का एक नाम। ३. जनमेजय का एक नाम। ४. कार्तिकेय का एक अनुचर।
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सत्या  : स्त्री० [सं० सत्य-टाप्] १. सच्चाई। सत्यता। २. व्यास की माता सत्यवती की एक नाम। ३. सीता का एक नाम। ४. दुर्गा।
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सत्याकृति  : स्त्री० [सं० सत्य+डाच्-आकृति० ष० त०]=सत्यंकार।
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सत्याग्रह  : पुं० [सं०] १. सत्य का पालन और रक्षा करने के लिए किया जानेवाला आग्रह या हठ। २. आधुनिक राजनीति में वह अहिंसात्मक कार्रवाई जो किसी अधिकारी या सत्ता के किसी निश्चय, व्यवहार आदि के प्रति अपना असंतोष विरोध आदि प्रकट करने के लिए की जाती है, और जिसका मुख्य अंग उस निश्चय या व्यवहार के अनुसार कार्य न करने अथवा उसका पालन न करने के रूप में होता है (पैसिव रेज़िस्टेन्स)।
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सत्याग्रही  : वि० [सं०] सत्य के पालन या रक्षा के लिए आग्रह या हठ करनेवाला। पुं० वह जो सत्याग्रह (देखें) करता हो। सत्याग्रह करनेवाला व्यक्ति।
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सत्यात्मा (त्मन्)  : वि० [सं० ब० स०] पूर्ण रूप से सत्यपरायण।
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सत्यानाश  : पुं० [सं० सत्ता+नाश] पूरी तरह से होनेवाला नाश। सर्वनाश। मटियामोट। बरबादी।
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सत्यानाशी  : वि० [हि० सत्यानाश+ई (प्रत्यय)] [स्त्री० सत्यानाशिनी] १. सत्यानाश करनेवाला। चौपट करनेवाला। स्त्री० भड़भाँड़ नाम का कँटीला पौधा।
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सत्यानृत  : पुं० [सं० ब० स०] १. झूठ और सच का मेल। ऐसी बात जिसमें कुछ सच भी हो और कुछ झूठ भी हो। २. रोजगार। व्यापार।
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सत्यापन  : पुं० [सं० सत्य+णिच्-आ-युक्-ल्युट-अन] [भू० कृ० सत्यापित] १. जाँच या मिलान करके देखना कि ज्यों का त्यों और ठीक या सत्य है कि नहीं। (वेरीफ़िकेशन)।
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सत्यापना  : स्त्री० [सं० सत्याप+णुच्-अन-टाप्]=सत्यापन।
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सत्यापित  : भू० कृ० [सं०] जिसका सत्यापन हुआ या हो चुका हो। (वेरीफ़ाइड)।
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सत्यार्जव  : वि० [सं०] सीधा-सादा और सच्चा।
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सत्येतर  : वि० [सं०] सत्य से भिन्न अर्थात् मिथ्या।
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सत्योत्तर  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. सत्य बात की स्वीकृति देना। २. अपने किए हुए अपराध दोष आदि का स्वीकरण। इकबाल।
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सत्र  : पुं० [सं०] १. यज्ञ। २. सौ दिनों में पूरा होनेवाला एक प्रकार सोम याग। ३. आड़ या ओट करके छिपाना। ४. ऐसा स्थान जहाँ आदमी छिप सकता हो। छिपने की जगह। ५. घर। मकान। ६. धोखा। भ्रांति। ७. धन-संपत्ति। ८. तालाब। ९. जंगल। वन। १॰. विकट समय या स्थान। ११. वह स्थान जहाँ गरीबों को भोजन दिया जाता हो। अन्नसत्र। सदावर्त। १२. आजकल वह नियत काल जिसमें कोई काम एक बार आरंभ होकर कुछ समय तक निरंतर चलता रहता हो। (सेशन)। १३. संस्था सभा आदि की निरंतर नियमित रूप से कुछ समय तक होनेवाली बैठक या अधिवेशन (सेशन)। पुं०=शत्रु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत्र-न्यायालय  : पुं० [सं०] किसी जिले के जज का वह न्यायालय जिसमें कुछ विशिष्ट गुरुतर अपराधों का विचार होता है और जिसमें किसी मुकदमे का आरम्भ होने पर उसका विचार और सुनवाई तब तक चलती रहती है जब तक उसका निर्णय नहीं हो जाता। (सेशन कोर्ट)।
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सत्रप  : पुं० दे० ‘क्षत्रप’।
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सत्रह  : वि० दे० ‘सत्तरह’।
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सत्राजिती  : स्त्री० [सं० सत्राजित्-ङीप्] सत्राजित् की कन्या सत्यभामा का एक नाम।
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सत्राजित्  : पुं० [सं० सत्र-आ√जि (जीतना)+क्विप्—तुक्] १. सत्यभामा का पिता, एक यादव। २. एक प्रकार का एकाह यज्ञ।
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सत्रायण  : पुं० [सं० सत्र+फक्-आयन] यज्ञों का लगातार चलनेवाला क्रम।
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सत्रावसान  : पुं० [सं० ष० त०] आधुनिक राजतंत्र में विधानमंडल या संसद के सर्वप्रधान अधिकारी के द्वारा अनिश्चित और दीर्घ काल के लिए किया जानेवाला स्थगन (प्रोरोगेशन)।
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सत्रि  : वि० [सं० सत्र+इनि] बहुत यज्ञ करनेवाला। पुं० १. हाथी। २. बादल। मेघ।
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सत्री  : वि० [सं० सत्रिन्-दीर्घ-नलोप, सत्रिन्] यज्ञ करनेवाला। पुं० राजदूत।
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सत्रु  : पुं०=शत्रु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत्रुघन, सत्रुहन  : पुं०=शत्रुघ्न।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत्व  : पुं०=सत्त्व।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत्वर  : अव्य० [सं० अव्य० स०] १. त्वरापूर्वक। शीघ्र। २. तुरन्त। झटपट। वि० शीघ्रगामी। तेज-रफ्तार।
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सत्संग  : पुं० [सं०] १. सज्जनों के साथ उठना-बैठना। अच्छा साथ। भली संगत। अच्ची सोहबत। २. साधु-महात्मा या धर्मनिष्ठ व्यक्ति के साथ उठना-बैठना और धर्म-संबंधी बातों की चर्चा करना। ३. बोलचाल में वह समाज या जनसमूह जिसमें कथा-वार्ता या रामनाम का पाठ होता हो।
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सत्संगति  : स्त्री०=सत्संग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सत्संगी  : वि० [सं० सत्संग+इनि, सत्संगिन] [स्त्री० सत्संगिनी] १. सत्संग करनेवाला। अच्छी सोहबत में रहनेवाला। २. सबसे मेल-जोल रखनेवाला। ३. धार्मिक व्यक्तियों के साथ रहकर धर्म-चर्चा करनेवाला।
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सत्समागम  : पुं० [सं० ष० त०] १. भले-आदमियों का संसर्ग। २. सत्संग।
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सत्सार  : पुं० [सं० ब० स०] १. चित्रकार। चितेरा। २. कवि। ३. एक प्रकार का पौधा।
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