शब्द का अर्थ
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व्रज :
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पुं० [सं०√व्रज (जाना)+क] १. जाने या चलने की क्रिया। व्रजन। गमन। २. झुंड। समूह। ३. गोकुल मथुरा, वृन्दावन के आसपास के प्रदेश का नाम। |
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व्रज-मंडल :
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पुं० [सं० ष० त०] व्रज और उसके आसपास का प्रदेश। |
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व्रजक :
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वि० [सं०√व्रज (गमनादि)+ण्वुल-अक] भ्रमण करनेवाला। पुं० संन्यासी। |
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व्रजन :
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पुं० [सं०√व्रज्+ल्युट-अन] चलना या जाना। गमन। |
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व्रजनाथ :
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पुं० [सं० ष० त०] व्रज के स्वामी श्रीकृष्ण। |
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व्रजभाषा :
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स्त्री० [सं० ष० त०] व्रज प्रदेश में बोली जानेवाली भाषा। ग्यारहवीं शताब्दी से इसमें निरंतर रचनाएँ प्रस्तुत हो रही है। |
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व्रजमोहन :
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पुं० [सं० व्रज√मुह्+णिच्+ल्युट-अन, ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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व्रजराज :
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पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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व्रजवल्लभ :
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पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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व्रजांगन :
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पुं० [सं० ष० त०] गोष्ठ। |
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व्रजांगना :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. व्रज की स्त्री। २. गोपी (श्रीकृष्ण के विचार से)। |
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व्रजित :
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भू० कृ० [सं०√व्रज+क्त] गया हुआ। प्रस्थित। पुं० १. गमन। २. भ्रमण। |
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व्रजी :
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स्त्री० [सं० व्रज] व्रजभाषा (व्रज की बोली)। |
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व्रजेंद्र :
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पुं० [सं० ष० त०] १. नंदराय। २. श्रीकृष्ण। |
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व्रजेश्वर :
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पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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व्रज्य :
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वि० [सं०√व्रज (गमनादि)+क्यप्] व्रजन संबंधी। |
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व्रज्या :
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स्त्री० [सं० व्रज्य+टाप्] १. घूमना-फिरना टहलना, या चलना। पर्यटन। २. गमन। जाना। ३. आक्रमण। चढ़ाई। ४. पगदंडी। ५. ढेर या समूह बनाना। ६. दल। जत्था। |
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