शब्द का अर्थ
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लौं :
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अव्य० [हिं० लग का स्थानिक रूप] १. तक। पर्यंन्त २. तुल्य। बराबर। समान। ३. किसी की तरह या भाँति। (व्रज०) |
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लौ :
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स्त्री० [सं० लयी] १. आग की लपट। ज्वाला। २. दीपों की टेम। दीप-शिखा। स्त्री० दे० ‘लगन’। क्रि० प्र०—लगना। |
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लौ-जोरा :
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पुं० [हिं० लौ+जोड़ना] आग की लौ या लपट की सहायता से धातुओं के टुकड़े जोड़नेवाला। कारीगर। |
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लौआ :
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पुं० [सं० लावुक०] कद्दू। घीआ। |
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लौंकड़ा :
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पुं० [?] अविवाहित नव-युवक। कुँआरा। जवान। पद—लौकड़ा वीर=हनुमान। |
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लौकना :
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अ०=लौकना (दिखाई पड़ना)। |
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लौकना :
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अ० [सं० लोकन] १. चमकना। उदाहरण—होइ अँधियार बीजु खग लौ कै जबहिं चीरगहि झाँपु।—जायसी। २. आँखों में चकाचौंथ होना। ३. दिखाई पड़ना। ४. लपलपाना (जीभ का)। |
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लौका :
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पुं० [सं० लावुक] [स्त्री० लौकी] कद्दू। स्त्री० [हि० लौकना] १. चमक। दीप्ति। २. कांति। शोभा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लौकांतिक :
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पुं० [सं०] पाँचवे स्वर्ग में बास करनेवाला जीव (जैन)। |
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लौकायतिक :
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पुं० [सं० लोकायत+ठक्—इक] १. लोकायत (दर्शन) का अनुयायी। २. नास्तिक। |
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लौकिक :
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वि० [सं० लोक+ठक्—इक] १. लोक संबंधी। २. इस लोक अर्थात् पृथ्वी से सम्बन्ध रखनेवाला। ऐहिक। सांसारिक। ३. लोक व्यवहार से संबंध रखनेवाला। व्यावहारिक। पुं० सात मात्राओं के छंदों की संज्ञा। |
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लौकिक-विवाह :
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पुं० [सं० कर्म० स०] धर्म, संप्रदाय आदि का विचार छोड़कर केवल कानून या विधि द्वारा निश्चित नियमों के अनुसार होने वाला विवाह। (सिविल मैरेज)। |
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लौकी :
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स्त्री० [सं० लावुक] १. कद्दू। घीआ। २. भभके में लगाई जानेवाली वह नली जिससे शराब चुआई जाती है। |
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लौक्य :
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वि० [सं० लोक+ष्यञ्] १. लोक-संबंधी। लौकिक। २. सब जगह समान रूप से पाया जानेवाला या होनेवाला। सामान्य। |
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लौंग :
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पुं० [सं० लवंग] १. एक प्रकार का वृक्ष जो दक्षिणी भारत, जावा, मलाया आदि में अधिकता से होता है। २. उक्त वृक्ष की कली जो खिलने से पहले ही तोड़कर सुखा ली जाती है और मसालों तथा दवाओं में सुगन्धि तथा गुण के लिए मिलाकर काम में लाई जाती है। ३. उक्त कली के आकार-प्रकार का आभूषण जो नाक तथा कान में पहना जाता है। |
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लौंग-चिंड़ा :
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पुं० [सं० लौंग+चिड़ा=चिड़िया] एक प्रकार का कवाब जो बेसन में मिलाकर बनाया जाता है। २. आग पर सेंककर फुलाई हुई रोटी। फुलका। |
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लौंग-मुश्क :
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पुं० [हिं० लौंग+मुश्क] एक प्रकार का पौधा और उसका फूल। |
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लौंग-लता :
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स्त्री० [सं० लवंग-लता] समोसे के आकार की मैदे की एक तरह की मिठाई जिसमें खोआ भरा रहता तथा ऊपर से लौंग भी खोंसा जाता है। |
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लौंगरा :
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पुं० [हिं० लौंग] एक तरह का साग जिसमें लौंग की तरह की कलियाँ लगती है। |
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लौंगिया :
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वि० [हिं० लौंग] १. लौंग की तरह का छोटा पतला और लंबा। जैसे—लौंगिया फूल, लौंगिया मिर्च। २. लौंग (कली) के रंग का। पुं० कुछ मटमैलापन लिये हुए एक प्रकार का काला रंग। (क्लोव) |
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लौंगिया-मिर्च :
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स्त्री० [हिं० लौंग+मिर्च] एक प्रकार की बहुत कड़वी मिर्च जिसका पौधा बहुत बड़ा और फल लौंग के आकार के छोटे-छोटे होते हैं। मिरची। |
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लौछार :
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स्त्री० [हिं० बौछार] १. कटाक्ष, व्यंग आदि की हलकी रंगत या पुट। जैसे—उसमें हास्य रस की अच्छी लौछार है। २. किसी पर किया जानेवाला कटाक्ष या व्यंग। जैसे—उनकी बातों में कई आदमियों पर लौछार था। |
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लौज :
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पुं० [अ० लौज़] १. बादाम। २. पिसे हुए बादाम की एक प्रकार की बरफी। |
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लौंजी :
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स्त्री० [सं० लून=काटा हुआ] आम की फाँक जो अचार चटनी आदि के काम आती है। स्त्री० =न्योंजी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लौट :
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स्त्री० [हिं० लोटना] १. लौटने की क्रिया या भाव। २. लौटे अर्थात् उलटे किये अथवा घुमाए हुए होने की अवस्था या भाव। घुमाव। |
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लौट-पौट :
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स्त्री० [हिं० लौट+अनु० पौट] १. कपड़े आदि की ऐसी छपाई जिसमें दोनों ओर एक से बेल-बूटे दिखाई पड़े। वह छपाई जिसमें उलटा सीधा न हो। दो-रुखी छपाई। २. उलटने-पलटने की क्रिया या भाव। स्त्री० =लोट-पोट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लौट-फेर :
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पुं० [हिं० लौट+फेर] १. इधर का उधर हो जाना। २. बहुत बड़ा परिवर्तन। उलट-फेर। |
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लौटना :
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अ० [हिं० उलटना] १. एक स्थान से किसी दिशा में जाकर फिर उसी स्थान पर वापस आना। जैसे—शहर या विदेश से घर लौटना। २. पीछे की ओर घूमना। मुड़ना। ३. किसी को काम चलाने के लिए किसी चीज का वापस मिलना। स०=उलटना (पलटना)। |
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लौटान :
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स्त्री० [हिं० लौटना] लौटने की अवस्था, क्रिया या भाव। |
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लौटाना :
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स० [हिं० लौटना का स०] १. जो कहीं से आया हो, उसे लौटने अर्थात् वहीं जाने में प्रवृत्त करना। जो जहाँ से आया हो, उसे वहीं वापस भेजना। जैसे—किसी के नौकर को जवाब देकर लौटाना। २. किसी से ली हुई चीज उसे वापस करना या देना जैसे—दुकानदार के यहाँ से आई हुई चीज लौटाना। संयो० क्रि०—देना। स=उलटना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लौटानी :
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स्त्री० [हिं० लौटना] लौटने की क्रिया या भाव। पद—लौटानी में=लौटते समय। लौटती बार। |
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लौंठा :
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पुं० [हिं० लुआठा] ऐसा हृष्ट-पुष्ट नवयुवक जिसे कुछ भी बुद्धि या समझ न हो। |
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लौंड़ा :
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पुं० [?] [स्त्री० लौंड़ी लौंडिया] १. छोकरा। बालक। लड़का। २. अबोध और नासमझ अथवा छिछोरा नवयुवक। ३. ऐसा लड़का जिसके साथ लोग अस्वाभाविक मैथुन करते हों। |
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लौड़ा :
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पुं० [सं० लोल या हिं० लंड] पुरुष की मूतेन्द्रिय। लिंग। |
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लौंड़ापन :
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पुं० [हिं० लौंड़ा+पन (प्रत्यय)] १. लौंडा होने की अवस्था या भाव। २. ऐसी नासमझी जिसमें छिछोरापन या लड़कपन भी मिला हो। |
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लौड़ी :
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स्त्री० [हिं० लौंडा+ई (प्रत्य)०] १. वह बालिका या स्त्री जो दूसरों के यहाँ छोटे-छोटे काम करने के लिए नौकर हो। दासी। |
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लौंडेबाज :
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वि० [हिं० लौंड़ा+फा० बाज़] [भाव० लौंडेबाज़ी] १. (पुरुष) जो बालकों के साथ प्रकृति विरुद्ध संभोग करता हो। २. (स्त्री) जो नव-युवकों से प्रेम रखती हो। (बाजारू) |
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लौड़ेबाजी :
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स्त्री० [हिं० लौंड़ा+फा० बाज़ी] १. लौड़ेबाज होने की अवस्था या भाव। २. लौंडेबाज़ का अप्राकृतिक कार्य। |
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लौड़ो-घेरी :
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स्त्री० [हिं० लौड़ा+घेरना] ऐसा दुश्चरित्रा स्त्री जिसके पास प्रायः नवयुवक आते-जाते रहते हों। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लौंद :
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पुं० [?] अधिमास। मलमास। |
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लौद, लौदरा :
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पुं० [सं० नव=डाली] [स्त्री० लौदड़ी, लौदरी] अरहर आदि की नरम डाली जिससे छानी छाने का काम लेते हैं। (दुआब व अंतर्वेद)। |
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लौंदरा :
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पुं० [हिं० लव=बालू] वह पानी जो ग्रीष्म ऋतु में वर्षा आरम्भ होने के पूर्व बरसता है। लवंद। दौगरा। |
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लौंदी :
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स्त्री० [देश] वह करछी जिससे खँडसार के शीरे का पाग चलाया जाता है। (बुंदेल०) |
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लौन :
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पुं० =लोंदा। |
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लौंन :
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पुं० १. =लवन। २. =लौंद। ३. =लोन (नमक)। |
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लौन :
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पुं० [सं० लवण] नमक। मुहावरा—(किसी का) लौन मानना=जिसने पालन-पोषण किया हो उसके प्रति कृतज्ञ या निष्ठ रहना। उदाहरण—बड़े भए तब लौन मानि यह जहँ-तहँ चलत भगाई।—सूर। (उक्त पद में यह मुहा० व्यंग्यात्मक रूप से आया है)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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लौनहार :
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पुं० [हिं० लौन+हार (प्रत्यय)] [स्त्री० लौनहारिन] खेत काटनेवाला। लवनी या लौनी करनेवाला। |
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लौना :
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स० [सं० लवन] खेत की फसल काटना। लवना। स्त्री० =लवनी। पुं० [?] जलाने की लकड़ी। ईधन। पुं० [सं० लूम या रोम] वह रस्सी जिसमें किसी पशु को भागने से रोकने के लिए उसका एक अगला और एक पिछला पैर बाँधा जाता है। |
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लौनी :
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स्त्री० [हिं० लौना] १. फसल की कटनी। कटाई। लवनी। २. फसल के कटे हुए डंठलों का मुट्ठा। स्त्री० [सं० नवनीत] मक्खन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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लौमना :
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पुं० =लौना। |
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लौमनी :
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स्त्री० १. =लौना। २. =लौनी। |
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लौरी :
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स्त्री० [?] बछिया। |
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लौल्य :
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पुं० [सं० लोल+ष्यञ्] १. लाल होने की अवस्था या भाव। लोलता। चंचलता। २. लालच। लोभ। |
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लौस :
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पुं० [फा०] १. किसी काम या बात में लिप्त होना। लीनता। २. मिलावट। २. धब्बा। ३. लगाव सम्पर्क। |
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लौह :
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पुं० [सं० लोह+अण्] १. लोहा। २. शस्त्रास्त। वि० लोहे का। लौह-संबंधी। स्त्री० [अ०] १. तख्ती। २. पुस्तक का पृष्ठ। |
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लौह-पट :
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पुं० [सं० मध्य० स०] १. लोहे का परदा। २. ऐसी व्यवस्था जिसकी आड़ में होनेवाली बातें किसी प्रकार दूसरों पर प्रकट न हो सकती हों (आयरन कर्टेन)। |
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लौह-युग :
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पुं० [सं० मध्य० स०] संस्कृति के इतिहास में वह युग जब उपकरण तथा अस्त्र-शस्त्र लोहे के ही बनते थे। अन्य धातुओं का आविष्कार नहीं हुआ था। (आयरन एज)। |
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लौह-सार :
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पुं० [सं० ष० त०] रासायनिक प्रक्रिया से बनाया हुआ एक प्रकार का लवण जो लोहे से बनाया जाता है और औषधियों में काम आता है। |
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लौहकार :
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पुं० [सं० लौह√कृ+अण्] लोहार। |
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लौहज :
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वि० [सं० लौइ√जन् (उत्पत्ति)+ड] लोहे से निकला या बना हुआ। |
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लौहाचार्य :
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पुं० [सं० लौह-आचार्य, ष० स०] धातुओं के तत्त्व जाननेवाला। वह जो धातु विद्या का अच्छा ज्ञाता हो। |
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लौहासव :
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पुं० [सं० लौह-आसव, मध्य० स०] लोहे के योग बनाया जानेवाला आसव। |
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लौहिक :
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वि० [सं० लौह+ठक्—इक] १. लोहे का बना हुआ। लोहे का। २. लोहे से सम्बन्ध रखनेवाला। ३. दे० ‘लोहस’। |
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लौहित :
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पुं० [सं० लोहित+अण्] शिव का त्रिशूल। |
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लौहिताश्व :
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पुं० [सं० लोहिताश्व+अण्] १. अग्नि। २. शिव। |
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लौहित्य :
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पुं० [सं० लोहित+ष्यञ्] १. एक प्रकार का धान जिसके चावल प्रदेश लाल रंग के होते हैं। २. ब्रह्मपुत्र नदी। ३. बरमा की सीमा पर स्थित प्रदेश का प्राचीन नाम। ४. लाल समुद्र या लाल सागर का पुराना नाम। |
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