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शब्द का अर्थ

लच  : स्त्री० =लचक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लचक  : स्त्री० [हिं० लचकना] १. लचकने की क्रिया या भाव। लचन। झुकाव। जैसे—कमर की लचक। क्रि० प्र०—खाना। २. वह गुण जिसके कारण कोई चीज लचकती या झुकती है। ३. कमर आदि में लचकने के कारण होनेवाली पीड़ा। क्रि० प्र०—खाना। स्त्री० [दे०] एक प्रकार की बड़ी नाव।
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लचकना  : अ० [?] १. किसी लम्बी चीज का दबाव आदि के फलस्वरूप मध्य भाग पर से कुछ झुकना या मुड़ना। २. चलते समय कमर का थोड़ा झुकना या मुड़ना जो सौंदर्य सूचक माना जाता है।
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लचकनि  : स्त्री०=लचक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लचका  : पुं० [हिं० लचकना] १. लचकने के कारण लगनेवाला आघात। क्रि० प्र०—आना।—लगना। २. लचक। २. जल-विहार के काम आनेवाली एक प्रकार की नाव। ४. कपड़े पर टाँका जानेवाला एक प्रकार का साज जो सुनहला और रुपहला दोनों प्रकार का होता है।
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लचकाना  : स० [हिं० लचकना] किसी पदार्थ को लचकने में प्रवृत्त करना। झुकाना। लचाना।
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लचकीला  : वि० =लचीला।
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लचकौहाँ  : वि० [हिं० लचकना+औहाँ (प्रत्यय)] १. जो रह-रह कर लचकता हो। २. लचकने की प्रवृत्ति रखनेवाला। ३. लचीला।
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लचन  : स्त्री० =लचक।
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लचना  : अ, =लचकना।
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लचलचा  : वि० =लचीला।
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लचाका  : पुं० १. =लचक। २. =लचका। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लचाकेदार  : वि० [हिं० लचाका+फा० दार (प्रत्यय)] मजेदार। बढ़िया (बाजारू)।
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लचाना  : स० [हिं० लचना का स० रूप०] लचने या लचकने में प्रवृत्त करना। लचकाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लचार  : वि० =लाचार।
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लचारी  : स्त्री० [हिं० अचार] आम का एक प्रकार का खट्टा अचार जिसमें तेल नहीं छोड़ा जाता है। स्त्री० [?] १. भेंट। २. एक तरह का गीत। स्त्री० =लाचारी।
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लचीला  : वि० [हिं० लचना+ईला (प्रत्यय)] [स्त्री० लचीली] जो दबाये जाने पर कुछ या अधिक झुक या मुड़ जाता हो। परन्तु दबाव छूटने पर फिर अपनी सामान्य स्थिति प्राप्त कर लेता हो।
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लचुई  : स्त्री० =लुच्ची (मैदे की पूरी)।
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लच्छ  : पुं० =लक्ष। वि० =लक्ष (लाख)। स्त्री० =लक्ष्मी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लच्छण  : पुं० [सं० लक्षण] १. स्वभाव। (डिं०) २. लक्षण। (डिं०) पुं० =लक्ष्मण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लच्छन  : पुं० १. =लक्षण। २. =लक्ष्मण। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लच्छना  : स्त्री० =लक्षणा।
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लच्छमण  : वि० [सं० लक्ष्मीवान्] धनवान्। अमीर। (डिं०) पुं० =लक्ष्मण।
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लच्छमी  : स्त्री० =लक्ष्मी।
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लच्छा  : पुं० [अनु०] [स्त्री, अल्पा० लच्छी] १. कुछ विशेष प्रकार से लगाये गये बहुत से तारों या डोरों का समूह। गुच्छे या धब्बे के रूप में लगाए हुए तार। जैसे—रेशम का लच्छा, सूत का लच्छा। २. किसी चीज के सूत की तरह ऐसे लंबे और पतले कटे हुए टुकड़े जो आपस में उलझकर मिल जाते हों। जैसे—अदरक, गरी, पेठे या प्याज का लच्छा। ३. किसी उबाली या पकायी हुई गाढ़ी चीज के रूप के लंबोतरे अंश को प्रायः आपस में मिले रहते हैं। जैसे—मलाई या रबड़ी के लच्छे। ४. मैदे की एक प्रकार की मिठाई जो प्रायः पतले लंबे सूत की तरह और देखने में उलझी हुई डोर के समान होती है। ५. पतली और हलकी जंजीरों से बना हुआ एक प्रकार का गहना जो हाथ या पैर में पहना जाता है। ६. एक प्रकार का घटिया और मिलावटी केसर।
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लच्छा-साख  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की संकर रागिनी।
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लच्छि  : स्त्री० =लक्ष्मी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लच्छि-निवास  : पुं० [सं० लक्ष्मी निवास] विष्णु। नारायण। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लच्छित  : वि० =लछित। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लच्छिनाथ  : पुं० [सं० लक्ष्मीनाथ] लक्ष्मीपति। विष्णु। (डिं०) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लच्छिमी  : स्त्री०=लक्ष्मी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लच्छी  : स्त्री० [हिं० लच्छा का स्त्री० अल्पा०] सूत, रेशम, ऊन, कलाबत्तू इत्यादि की लपेटी हुई गुच्छी। अट्टी। छोटा लच्छा। पुं० [?] एक प्रकार का घोड़ा। स्त्री० =लक्ष्मी।
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लच्छेदार  : वि० [हिं० लच्छा+फा० दार (प्रत्यय)] १. (खाद्य पदार्थ) जिसमें लच्छे पड़े या बने हों। लच्छोंवाला। जैसे—लच्छेदार रबड़ी। २. (बात) जो चिकनी-चुपड़ी तथा मजेदार हो।
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