शब्द का अर्थ
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भुक :
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पुं० [सं० भुज्] १. भोजन। आहार। २. अग्नि। आग। स्त्री०=भूख। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
भुकड़ी :
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स्त्री० [?] बरसात के दिनों में प्रायः सड़ी हुई चीजों पर जमनेवाली एक प्रकार की सफेद रंग की काई। फफूँदी। क्रि० प्र०—लगना। |
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भुकराँद :
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स्त्री०=भुकरायँध। |
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भुकरायँध :
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स्त्री० [हिं० भुँकड़ी+गंध] किसी चीज पर भुकड़ी जमने से निकलनेवाली गंध। |
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भुक्खड़ :
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वि० [हिं० भूख+अड़ (प्रत्य०)] १. जिसे विशेष तेज भूख लगी हो। २. जिसकी भूख मिटती न हो। जो प्रायः कुछ न कुछ खाता रहता या खाना चाहता हो। ३. लालची। लोलुप। ४. कंगाल। दरिद्र। |
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भुक्त :
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भू० कृ० [सं०√भुज् (खाना)+क्त, कुत्व] १. जो खाया गया हो। भक्षित। २. जिसका भोग किया गया हो। ३. (अधिकार-पत्र) जिसे भुना लिया गया हो। (कैश्ड) |
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भुक्त-भोग :
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वि० [ब० स०] जिसने भोग किया हो। |
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भुक्त-भोगी :
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वि० [सं० भुक्त+भोग] जिसे किसी बुरे काम या बात का दूषित परिणाम या फल भोगना पड़ा हो। |
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भुक्त-मान :
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पुं० [सं० कर्म० स०] कर्म का वह फल या भोग जो बोगा जाता हो या भोगा जाने को हो। |
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भुक्त-वृद्धि :
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स्त्री० [ष० त०] खाये हुए पदार्थों का पेट में फूलना। |
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भुक्त-शेष :
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वि० [ष० त०] खाने से बचा हुआ। उच्छिष्ट। जूठा। |
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भुक्ति :
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स्त्री० [सं०√भुज् (खाना)+क्तिन्, कुत्व] १. भोजन। आहार। २. किसी पदार्थ का किया जानेवाला भोग। ३. लौकिक सुख। ४. ज्योतिष में ग्रहों का किसी राशि में अवस्थित होना। ५. वह स्थिति जिसमें कोई किसी पदार्थ पर अपना अधिकार रखकर उसका भोग करता है। कब्जा। दखल। (पज़ेशन) |
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भुक्ति-पात्र :
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पुं० [ष० त०] ऐसे बरतन जिनमें रखकर चीजें खाई जाती हैं। |
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भुक्ति-प्रद :
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वि० [सं० भुक्ति+प्र√दा (देना)+क] [स्त्री० भुक्तिप्रदा] भोग देनेवाला। भोगदाता। पुं० मूँग। |
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भुक्तोच्छिष्ट :
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वि० [भुक्त-उच्छिष्ट, कर्म० स०] किसी के खाने-पीने के बाद बचा हुआ। जूठन के रूप में होनेवाला। पुं० उच्छिष्ट। जूठन। |
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भुक्तोज्झित :
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वि०, पुं० [भुक्त-उज्झित, कर्म० स०]=भुक्तोच्छिष्ट। |
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