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फल  : पुं० [सं०√फल्+अच्] १. वनस्पितियों, वृक्षों आदि में विशिष्ट ऋतुओं में लगनेवाला वह प्रसिद्ध अंग जो उनमें फूल आने के बाद लगता है, जो प्रायः खाया जाता है तथा जिसके अंदर प्रायः उस वनस्पति या वृक्ष के बीज और कुछ अवस्थाओं में गूदा और रस भी होता है। विशेष—वनस्पति विज्ञान में अनाज के दानों (गेहूँ, चावल दाल आदि) और वृक्षों के फलों (अनार, आम, नारंगी सेब आदि) में कोई अन्तर नहीं माना जाता पर लोक व्यवहार में ये दोनों अलग-अलग चीजें मानी जाती है। २. किसी प्रकार की क्रिया घटना प्रयत्न आदि के परिमाण के रूप में होने वाली कोई बात। नतीजा। जैसे—परीक्षा-फल। ३. धार्मिक क्षेत्र में किये गये कर्मों का वह परिणाम जो दुःख सुख आदि के रूप में मिलता है। ४. जीवन में किये जानेवाले कार्यों के वे चार शभ परिणाम, जो मनुष्य के लिए अभीष्टया उद्दिष्ट कहे गये हैं। यथा—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। ५. किये हुए कामों का प्रतिफल। बदला। उदाहरण—सबकी न कहे तुलसी के मते इतनो जग जीवन को फलु है।—तुलसी। ६. किसी प्रकार की प्राप्ति या लाभ। ७. अंकों आदि के रूप में वह परिणाम जिसकी प्राप्ति के लिए गणित की कोई क्रिया की जाती है। जैसे—क्षेत्र फल, गुणन-फल योग-फल। ८. गणित में वैराशिक की तीसरी राशि या निष्पत्ति में का दूसरा पद। ९. फलित ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति और योग के परिणाम के रूप में होनेवाले दुख-सुख आदि। १॰. न्याय शास्त्र में दोष या प्रवृत्ति के कारण उत्पन्न होने या निकलनेवाला अर्थ जिसे गौतम ने प्रमेय के अन्तर्गत माना है। ११. किसी प्रकार के विस्तार का क्षेत्र-फल। १२. छुरी, तलवार, तीर, भाले आदि की वह तेज धारवाला या नुकीला अंग जिससे उक्त चीजें आघात या काट करती है। १३. फलक। १४. ढाल। १५. पासे पर का चिन्ह या बिन्दी। १६. ब्याज। सूद। १७. जायफल। १८. कंकोल। १९. कोरैया वृक्ष।
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फल-कंटक  : पुं० [सं० ब० स०] १. कटहल। २. श्वेत पापड़ा।
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फल-कंटकी  : स्त्री० [सं० फलकंटक+ङीष्] इंदीवरा।
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फल-कर  : पुं० [सं० ष० त०] वृक्षों के फलों पर लगनेवाला कर।
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फल-काम  : वि० [सं० फल√कम्+णिङ+अण्, उपपद, स०] किसी विशिष्ट फल की प्राप्ति के लिए किया जानेवाला काम।
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फल-काल  : पुं० [सं० ष० त०] वह ऋतु या मौसम जिसमें कुछ विशिष्ट वृक्ष फल देतें हो। जैसे—आमों का फल-काल गरमी और बरसात है।
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फल-कृच्छ्र  : पुं० [सं० मध्य० स] एक प्रकार का कृच्छ्र व्रत जिसमें फलों का क्वाथ मात्रा पीकर एक मास बिताया जाता है।
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फल-कृष्ण  : पुं० [सं० स० त०] १. जल आँवला। २. करंज।
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फल-केसर  : पुं० [सं० ब० स०] नारियल का वृक्ष।
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फल-कोष  : पुं० [सं० ष० त०] १. पुरुष की इंद्रिय। लिंग। २. अंक-कोश।
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फल-ग्रह  : वि० =फलग्राही।
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फल-चमस  : पुं० [सं०] एक प्रकार का पुराना व्यजंन जो बड़ की छाल को कूटकर दही में मिलाकर बनाया जाता है।
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फल-त्रिक  : पुं० [सं० ष० त०] १. भाव-प्रकाश के अनुसार सोंठ, पीपल और काली मिर्च। २. त्रिफला।
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फल-दान  : पुं० [सं० ष० त०] १. हिंदुओं की एक रीति जो विवाह के पहले वर-वरण के रूप में होती है। इसे वरक्षा भी कहते हैं। २. विवाह के पूर्व होनेवाली टीके की रस्म।
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फल-परिरक्षण  : पुं० [सं० ष० त०] फलों को इस प्रकार रखना कि वे सड़ने-गलने न पायें। फलों को क्षतिग्रस्त होने से बचाना। (प्रिजर्वेन आफ फ्रूटस)
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फल-पाक  : पुं० [सं० ब० स०] १. करौंदा। २. जल-आँवला।
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फल-पुच्छ  : पुं० [सं० ब० स०] वह वनस्पति जिसकी जड में गाँठ पड़ती हो। जैसे—प्याज, शलजम आदि।
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फल-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] [स्त्री, ०फल-पुष्पा] वह पौधा या वृक्ष जिसमें फल और फूल दोनों हों।
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फल-पूर  : पुं० [सं० फल√पूर्+क] दाड़ि। अनार।
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फल-प्रिय  : पुं० [सं० ब० स०] द्रोण काक। डोम कौवा। वि० जिसे खाने में फल अच्छे लगते हों।
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फल-फूल  : पुं० [हिं०] १. फल और फूल। २. भेंट के रूप में दी जानेवाली वस्तु।
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फल-भरता  : स्त्री, ० [सं० फल+हिं० भरना] फलों से भरे अर्थात् लदे होने की अवस्था या भाव। उदाहरण—झुक जाती है मन की डाली अपनी फल-भरता के डर में।—प्रसाद।
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फल-भूमि  : स्त्री० [सं० च० त०] स्थान जहाँ कर्मों के फल भोंगने पड़ते हों। जैसे—पृथ्वी, नरक स्वर्ग आदि।
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फल-भोजी (जिन्)  : वि० [सं० फल√भुज् (खाना)+णिनि] १. फल खानेवाला। २. केवल फलों का निर्वाह करनेवाला।
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फल-मंजरी  : स्त्री० [सं० ष० त०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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फल-मुख्या  : स्त्री० [सं० तृ० त०] अजमोदा।
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फल-मुग्दरिका  : स्त्री० [सं० स० त०] पिण्ड खजूर।
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फल-योग  : पुं० [सं० ष० त०] नाटक में वह स्थिति जिसमें फल की प्राप्ति या नायक के उद्देश्य की सिद्धि होती है। फलागम।
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फल-राज  : पुं० [सं० ष० त०] १. फलों का राजा। श्रेष्ठ फल। २. तरबूज। ३. खरबूजा। ४. आम।
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फल-लक्षणा  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] साहित्य में एक प्रकार की लक्षणा।
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फल-शर्करा  : स्त्री० [सं० ष० त० या मध्य० स०] फलों में रहनेवाली शर्करा या चीनी जो औषधि आदि के कार्यों के लिए विशिष्ट प्रक्रिया से निकाली या बनायी जाती है। (फ्रूट शूगर)।
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फल-शाक  : पुं० [सं० मयू० स०] तरकारी बनाकर खाया जानेवाला फल।
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फल-श्रुति  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. ऐसा कथन जिसमें किसी कर्म के फल का वर्णन होता है और जिसे सुनकर लोगों का वह कर्म करने की प्रवृत्ति होती है। जैसे—दान करने से अक्षय पुण्य होता है। २. उक्त प्रकार का वर्णन सुनना।
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फल-श्रेष्ठ  : पुं० [सं० ष० त० वा स० त०] आम।
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फल-संस्कार  : पुं० [सं० ष० त०] ज्योतिष में आकाश के किसी ग्रह के केन्द्र का समीकरण या मंद-फल-निरूपण।
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फल-स्थापन  : पुं० [सं० ब० स०] फलीकरण या सीमन्तोन्नयन संस्कार।
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फलंक  : पुं०=फलक (आकाश)। स्त्री०=फलाँग। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलक  : पुं० [सं० फल+कन्] १. तखता। पट्टी। पटल। २. वह लंबा-चौड़ा कागज जिस पर कोई कोष्ठक, मान-चित्र या विवरण अंकित हो। फरद। (शीट) जैसे—दुर्वृत्त फलक। (देखें) ३. चादर। ४. तबक। वरक। ५. पुस्तक का पन्ना। पृष्ठ। ६. हथेली। ७. चौकी। ८. खाट या चारपाई का बुनावटवाला वह अंश जिस पर लोग लेटते हैं। पुं० [अं० फलक] १. आकाश। आसमान। २. ऊपरवाला लोक जो मुसलमानोंमे भाग्य का विधाता और सुख-दुःख का दाता माना जाता है। स्त्री० [अ० फलक] सबेरे का उजाला। उषा।
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फलक-यंत्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] ज्योतिष में एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से ज्या आदि का निर्णय किया जाता है।
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फलकंद  : पुं०=फरफंद।
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फलकना  : अ० [अनु] १. छलकना। २. उमगना। ३. दे० ‘फड़कना’।
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फलका  : पुं० [अ० फलक] १. दो या अधिक खंडोवाला नाव में का वह दरवाजा जिसमें से होकर लोग ऊपर-नीचे आते-जाते हैं। २. मुलायम मिट्टी। ३. अखाड़ा। (पहलवानों का)। पुं० फफोला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलँग  : स्त्री०=फलाँग। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलँगना  : अ० =फलाँगना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलग्राही (हिन्)  : पुं० [सं० फल√ग्रह+णिनि] वृक्ष। पेड़। वि० फल ग्रहण करनेवाला।
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फलचारक  : पुं० [सं०] १. प्राचीन काल का एकराजकीय अधिकारी। २. बौद्ध विहार का एक अधिकारी।
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फलचोरक  : पुं० [सं० ब० स०] चोरक या चोर नाम का गंधद्रव्य।
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फलड़ा  : पुं०=फल (हथियारों का)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलंत  : स्त्री० [हिं० फलना+अंत (प्रत्यय)] पौधों, वृक्षों आदि के फलने की क्रिया या भाव।
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फलतः  : अव्य० [सं० फल+तस्] उक्त बात के फल के रूप में। परिणामतः। इसलिए। जैसे—लोगों ने धन देना बंद कर दिया, फलतः चिकित्सालय बंद हो गया।
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फलत  : स्त्री० [हिं० फलना] १. वृक्षों के फलने की क्रिया या भाव। २. वह जो कुछ फला हो। बीजों, फलों आदि के रूप मे होनेवाली उपज। ३. कुल उपज।
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फलत्रय  : पुं० [सं० ष० त०] १. वैद्यक में, द्राक्षा, परुष और काश्मीरी इन तीनों फलों का समाहार। २. त्रिफला।
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फलद  : वि० [सं० फल√दा+क] १. फलनेवाला (वृक्ष) २. फल देनेवाला। पुं० पे़ड़। वृक्ष।
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फलदाता (तृ)  : वि० [सं० ष० त०] फल देनेवाला।
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फलदार  : वि० [हिं० फल+फा० दार (प्रत्यय)] १. (वृक्ष) जिसमें फल लगें हों। २. (अस्त्र) जिसके आगे घारदार फल लगा हो।
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फलदू  : पुं० [सं० फलद्रुम] एक प्रकार का वृक्ष जिसे धौली भी कहते हैं। वि० दे० ‘धौली’।
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फलन  : पुं० [सं०√फल्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० फलित] १. वृक्षों में फल उत्पन्न होना या लगना। २. किसी काम या बात का परिणाम निकलना।
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फलना  : अ० [सं० फलन] १. वृक्ष का फलों से युक्त होना। फल लगना। २. स्त्रियों का उत्पत्ति, प्रसव आदि करना। ३. गृहस्थों का संतान आदि से युक्त होना। जैसे—सदाचारी गृहस्थ का फलना फूलना। ४. किसी काम या बात का शुभ फल या परिणाम प्रकट होना। उपयोगी और फलदायक सिद्ध होना। जैसे—नया मकान उन्हें खूब फला है। उदाहरण—इतने पर भी किन्तु न उसका भाग्य फला।—मैथिलीशरण। ५. इच्छा या कामना का पूर्ण होना। सफल मनोरथ होना। पद—फलना-फूलना-(क) धन-धान्य संतान आदि से अच्छी तरह सुखी और युक्त होना। (ख) उपदंश या गरमी नामक रोग के कारण सारे शरीर में छोटे-छोटे घाव होना। परिहास और व्यंग्य) ६. शरीर के किसी भाग पर बहुत से छोटे-छोटे दानों का एक साथ निकल आना जिससे पीड़ा होती है। जैसे—गरमी से सारी कमर (या जीभ) फल गयी है। पुं० [हिं० फाल] संगतराशों की एक तरह की छेनी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलवर्ति  : स्त्री० [सं०] वैद्यक में एक प्रकार का वस्ति कर्म जिसमें अँगूठे के बराबर मोटी और बारह अंगुल लम्बी पिचकारी गुदा में दी जाती है।
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फलवान्  : वि० [सं० फल+मतुप्, म+व, फलवत्] [स्त्री० फलवती] (वृक्ष आदि) जिसमें फल लगे हों। पुं० फलदार वृक्ष।
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फलविष  : पुं० [सं० ष० त०] वह वृक्ष जिसके फल विषैले होते हैं। जैसे—करंभ।
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फलश  : पुं०=फल-शाक।
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फलसफा  : पुं० [अ० फ़ल्सफ़ः] १. ज्ञान। २. विद्या। ३. दर्शन-शास्त्र। ४. तर्क-शास्त्र। ५. तर्क, दलील।
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फलसा  : पुं० [सं० पाली] १. मुहल्ला। २. दरवाजा। पुं०=फालसा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलहरी  : स्त्री० [हिं० फल+हरी (प्रत्यय)] १. वन के वृक्षों के फल। वन-फल। २. सब प्रकार के फल। वि०=फलहारी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलहार  : पुं० [सं० फलाहार] १. फलों का भक्षण। २. व्रत आदि के दिन खाये जानेवाले फल अथवा कुछ विशिष्ट फलों का बनाया जानेवाला व्यंजन।
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फलहारी  : स्त्री० [सं० फल√हृ+अण्, लहार+ङीष्, ब० स०] कालिका देवी। वि० [हिं० फलहार] १. फलहार-संबंधी। २. फलाहार के रूप में होनेवाला।
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फलाँ  : वि० [फा० फ़लाँ] कोई अनिश्चित। अमुक।
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फला  : स्त्री [सं०√फल्+अच्+टाप्] १. शमी। २. प्रियुंग। ३. झिझिरीट।
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फलाकना  : स०=फलाँगना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलाकाँक्षा  : स्त्री० [सं० फल-आकांक्षा, ष० त०] फल-प्राप्ति की आकांक्षा या कामना।
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फलाँग  : स्त्री० [?] १. एक स्थान से उछलकर दूसरे स्थान पर जाने की क्रिया या भाव। कुदान। चौकड़ी। छलाँग। क्रि० प्र०—भरना।—मारना। २. उतनी दूरी जो फलाँग से पार की जाय। ३. मलखंभ की एक कसरत।
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फलाँगना  : अ० [हिं० फलाँग+ना (प्रत्यय)] एक स्थान से उछलकर दूसरे स्थान पर जाना या गिरना। फलाँग भरना। फाँदना।
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फलागम  : पुं० [सं० फल-आगम, ष० त०] १. वृक्षों में फलों के आने का काल। फल लगने की ऋतु या मौसम। २. वृक्षों में फलआना या लगना। ३. शरद्-ऋतु। ४. साहित्य में रूपक की पाँच अवस्थाओं मे से पाँचवी और अंतिम अवस्था, जिसमें नायक आदि के अभीष्ट की सिद्धि होती है।
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फलाढ्य  : वि० [सं० फल-आढ्य] फलों से लदा या भरा हुआ।
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फलादन  : पुं० [सं० फल-अदन, ब० स०] १. वह जो फल खाता हो। २. तोता।
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फलादेश  : पुं० [सं० फल-आदेश, ष० त०] १. किसी बात का फल या स्वामी। फल कहना। २. ज्योतिष में वे बातें जो ग्रहों के प्रभाव या फल के रूप में बतालाई जाती है।
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फलाध्यक्ष  : पुं० [सं० फल-अध्यक्ष, ष० त०] १. फलों का मालिक या स्वामी। २. ईश्वर जो सब प्रकार के फल देता है। ३.खिरनी का पेड़।
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फलान  : स्त्री० [अ० फलाँ] स्त्री का भग। योनि। (बाजारू)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलाना  : स० [हिं० फलना का प्रे०] १. किसी को फलने मे प्रवृत्त करना। फलने का काम कराना। २. फलों से युक्त करना। वि० [वि० फलाँ] [स्त्री० फलानी] (वह) जिसका नाम न लिया गया हो। अमुक।
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फलानुमेय  : वि० [सं० फल-अनुमेय, तृ० त०] जिसका अनुमान फल या परिणाम देखने से ही किया जाय।
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फलापेक्षा  : स्त्री० [सं० फल-अपेक्षा, ष० त०] फल की अपेक्षा या कामना।
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फलाफल  : पुं० [सं० फल-अफल, द्व० स०] किसी कर्म या कार्य के शुभ-अशुभ या इष्ट-अनिष्ट फल। फल और अफल।
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फलाम्य  : पुं० [सं० फल-अम्ल, द्व० स०] १. खट्टे रसवाला या खट्टा फल। २. अम्लबेंत। ३. विषावली। विषाविल।
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फलाम्ल-पंचक  : पुं० [सं० ष० त०] बेर, अनार, विषाविल अम्लबेंत और बिजौरा ये पाँच खट्टे फल।
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फलार  : पुं०=फलाहार। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलाराम  : पुं० [सं० फल-आराम, ष० त०] फलदार वृक्षों का बाग।
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फलारी  : वि०=फलाहारी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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फलार्थी (र्थिन्)  : पुं० [सं० फल√अर्थ+णिनि] वह जो फल की कामना करे। फलकामी।
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फलालीन  : स्त्री० (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)=फलालेन।
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फलालेन  : स्त्री० [अं० फ़्नानेल] एक प्रकार का ऊनी वस्त्र जो बहुत कोमल और ढीली ढाली बुनावट का होता है।
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फलावरण  : पुं० [सं० फल-आवरण, ष० त०] फलनेवाले पेड़-पौधों के फलों का वह ऊपरी आवरण जिसके अंदर बीज रहते हैं। (पेरिकॉर्प)
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फलांश  : पुं० [सं० फल-अंश, मयू० स०] १. तात्पर्य। २. सारांश।
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फलाशन  : पुं० [सं० फल-अशन, ब० स०] १. वह जो फल खाता हो। फल खानेवाला। २. तोता।
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फलाशी (शिन्)  : पुं० [सं०√फल+अश्+णिनि] वह जो फल खाता हो। फल खानेवाला।
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फलासंग  : पुं० [फल-आसंग, स० त०] किसी क्रम के फल के प्रति होनेवाला आसंग या आसक्ति।
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फलासव  : पुं० [सं० फल-आसव, ष० त०] चरक के अनुसार दाख, खजूर आदि फलों के आसव जो २६ प्रकार के होते हैं।
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फलाहत  : स्त्री० [हिं० फलाना=फलों से युक्त करना] १. वृक्षों आदि से फल उत्पन्न करने की क्रिया, भाव या व्यवसाय। २. कृषि-कर्म। खेती-बारी। (पश्चिम)।
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फलाहार  : पुं० [सं० फल-आहार, ष० त०] फलों का आहार। स्त्री० [सं० फलाहार] अन्न-वर्ग के खाद्यानों से भिन्न कुछ विशिष्ट फलों से बनाये जानेवाले व्यंजन जो हिन्दुओं में व्रत के दिन खाये जाते हैं। जैसे—एकादशी को स्त्रियां फलाहार करती है।
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फलाहारी (रिन्)  : पुं० [सं० फलाहार+इनि] [स्त्री० फलाहारिणी] वह जो फल खाकर निर्वाह करता हो। वि० १. फलाहार संबंधी। २. (खाद्य पदार्थ) जिसकी गिनती फलाहार में होती है। (फलाहारी चीज में अन्न का मेल नहीं होती है।) जैसे—फलाहारी मिठाई।
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फलि  : पुं० [सं०√फल्+इन्] १. एक प्रकार की मछली। २. प्याला।
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फलिक  : वि० [सं० फल+ठञ्-इक] १. फल का उपभोग करनेवाला। २. किसी कार्य, घटना या बात के उपरांत उसके फल या परिणाम के रूप में होनेवाला। (रिज़ल्टैण्ट) पुं० पर्वत। पहाड़।
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फलिका  : स्त्री० [सं० फलिक+टाप्] १. एक प्रकार का बोड़ा जो हरे रंग का होता है। २. किसी चीज के आगे का नुकीला भाग।
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फलित  : भू० कृ० [सं०फल+इतच्] १. फला हुआ। २. पूरा या संपन्न किया हुआ। ३. जिसमें कुछ विशिष्ट स्थितियों आदि के परिणामों के संबंध में विचार हुआ हो। जैसे—फलित ज्योतिष (दे०) पुं० १. पेड़। वृक्ष। २. पत्थर-फोड़। छरीला।
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फलित-ज्योतिष  : पुं० [सं० कर्म० स० वा, ष० त०] ज्योतिष की दो शाखाओं में से एक जिसमें ग्रह, नक्षत्रों आदि के मनुष्य जाति तथा सृष्टि के अन्य अंगों पर पड़नेवाले शुभाशुभ फलो का विचार होता है। (एस्टा्लोजी) ज्योतिष की दूसरी शाखा गणित ज्योतिष हैं।
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फलितव्य  : वि० [सं०√फल्+तव्य] जो फलने को हो अतवा फलने के योग्य हो।
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फलिता  : स्त्री० [सं० लित+टाप्] रजस्वला स्त्री।
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फलितार्थ  : पु० [सं० फलित-अर्थ, कर्म० स०] १. तात्पर्य। २. सारांश। निचोड़।
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फलिन  : वि० [सं०फल+इनच्] (वृक्ष) जिसमें फल लगते हों। पुं० १. कटहल। २. श्योनाक। ३. रीठा।
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फलिनी  : स्त्री० [सं०फल+इनि+ङीष्] १. प्रियंगु। २. अग्नि-शिखा नामक वृक्ष। ३ मूसली। ४. इलायची। ५. मेंहदी। ६. सोनापाढ़ा। ७. भायमाणा लता। ८. जल-पीपल। ९. दुद्धी घास। १॰. दा से बनाया हुआ आसव या मद्य।
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फली  : पुं० [सं० फल+अच्+ङीष्] १. सोनापाढ़ा। २. कटहल। ३. प्रियंगु। ४. मूसली। ५. आमड़ा। वि० [सं० फल+इनि] १. फलों से युक्त। फलवाला। २. जिसमें फल लगते हों। ३. लाभदायक। स्त्री० [हिं० फल+ई (प्रत्यय)] १. पेड़-पौधों का फल के रूप में होनेवाला वह लंबोतरा अंग जिसके अंदर केवल बीज रहते हैं। गूदा या रस नहीं रहता। (पाँड) २. उक्त प्रकार का कोई चिपटा छोटा लंबोतरा तथा हरा फल जो तरकारी आदि के रूप में खाया जाता हो। छीबीं। (बीन) जैसे—सेम की फली।
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फलीकरण  : पुं० [सं० फल+च्वि, इत्व, दीर्घ√कृ+ल्युट-अन] [भू० कृ० फलीकृत] १. अनाज को बूसे या भूसी से अलग करना। माँड़ना। फटकना। २. भूसी।
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फलीता  : पुं० [अ० फलीतः] १. पलीता। क्रि० प्र०—दिखाना। २. बत्ती। ३. कपड़ों में शोबा के लिए गोट के साथ टाँकी जानेवाली डोरी। ४. ताबीज। मुहावरा—फलीता सुंघाना-ताबीज या यंत्र की धूनी देना।
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फलीदार  : वि० [हिं० +फा] (पौधा या फसल) जिसमें फलियँ लगती हों। (लेग्यूमिनस)
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फलीभूत  : भू० कृ० [सं० फल+च्वि, इत्व, दीर्घ√भू+क्त] जिसकी फल या परिणाम प्रत्यक्ष हो चुका हो या निकल चुका हो।
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फलेंदा  : पुं० [सं० फलेंद्र] एक प्रकार काजामुन जिसका फल बड़ा, गूदेदार और मीठा होता है। फरेंद।
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फलेंद्र  : पुं० [सं० फल-इंद्र, सुप्सुपा, स०] फलेंद्रा या बड़ा। जामुन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
फलोत्तमा  : स्त्री० [सं० फल-उत्तमा, स० त०] १. काकलीदाख। २. दुद्धी या दूधिया घास। ३. त्रिफला।
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फलोत्पत्ति  : स्त्री० [सं० फल-उत्पत्ति, ष० त०] १. फल की उत्पत्ति। फल का प्रकट या प्रत्यत्र होना। २. व्यापार आदि में होनेवाला आर्थिक लाभ। पुं० आम (वृक्ष)।
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फलोदय  : पुं० [सं० फल-उदय० ष० त०] १. फल का प्रत्यक्ष होना। २. हर्ष। ३. दंड। ४. स्वर्ग।
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फलोद्देश  : पुं० [सं० उद्देश्य० ष० त०] दे० ‘फलोपेक्षा’।
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फलोद्बव  : वि० [सं० फल-उद्भव, ब० स] फल में से उपजने या जन्मने वाला। पुं० फल का उद्भव या उत्पत्ति।
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फलोपजीवी (विन्)  : वि० [सं० फल-उप√जी+णिनि] जिसकी जीविका फलों के व्यवसाय से चलती हो।
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फल्क  : वि० [सं०√फल्+क] जो फैला हुआ हो अथवा जिसने अपने अंग फैलाये हों।
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फल्गु  : वि० [सं०√फल्+ड, गुगागम] १. जिसमें कुछ तत्त्व न हो। निस्सार। २. निरर्थक। व्यर्थ। ३. छोटा। ४. क्षुद्र। तुच्छ। ५. साधारण। सामान्य। स्त्री० [सं०] बिहार की एक छोटी नगरी जिसके तट पर गया नगरी बसी हुई है। २. बसंत काल। ३. मिथ्या वचन। ४. कठगूलर।
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फल्गुन  : पुं० [सं०√फल्+उनन्, गुगागम] १. अर्जुन। २. फागुन का महीना। वि० १. फागुनी नक्षत्र संबंधी। २. जिसका जन्म फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ हो। ३. लाल।
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फल्गुनाल  : पुं० [सं० फल्गुन√अल्+अच्०] फाल्गुन मास।
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फल्गुनी  : स्त्री०=फाल्गुनी।
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फल्गुनीभव  : पुं० [सं० फल्गुनी√भू+अप्] बृहस्पति।
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फल्गुवाटिका  : स्त्री० [सं० फल्गु+वाटी, ष० त०+कन्, टाप्, ह्रस्व] कठगूलर।
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फल्य  : वि० [सं० फल+यत्] १. फूल। २. कली।
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फल्ला  : पुं० [देश०] एक प्रकार का रेशम जो बंगाल से आता है।
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