शब्द का अर्थ
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प्रांत :
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पुं० [सं० प्र-अंत,प्रा० स०] [वि० प्रांतिक] १. अंत। शेष। सीमा। २. किनारा। छोर। सिरा। ३. ओर। तरफ। दिशा। ४. भारत में, अंगरेजी शासन में वह शासनिक इकाई जिसमें कई प्रमंडल होते थे, तथा जिसका प्रधान शासक राज्यपाल होता था। प्रदेश। (प्राविन्स) ५. एक प्राचीन ऋषि। ६. उक्त ऋषि के गोत्र के लोग। |
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प्रांत पुष्पा :
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स्त्री० [ब० स०] १. एक प्रकार का पौधा। २. उक्त पौधे का फूल। |
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प्रांतग :
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वि० [सं० प्रांत√गम् (जाना)+ड] सीमा पर का निवासी। |
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प्रांतदुर्ग :
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पुं० [मध्य० स०] प्राचीन भारत में, वह दुर्ग जो नगर के किनारे प्राचीर के बाहर होता था। २. दुर्ग के आस-पास की बाहर की बस्ती। |
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प्रांतभूमि :
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स्त्री० [ष० त०] १. किसी पदार्थ का अंतिम भाग। किनारा। सिरा। २. योग में सिद्धि की अंतिम सीमा; समाधि। ३. सीढ़ी। |
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प्रांतर :
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पुं० [सं० प्र-अन्तर, ब० स०] १. छाया आदि से रहित विस्तृत निर्जन पथ। २. दो गाँवों के बीच की जमीन। ३. दो प्रदेशों के बीच का स्थान। ४. जंगल। वन। ५. पेड़ के तने का खोखला अंश। खोडर। |
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प्रांतायन :
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पुं० [सं० प्रांत+फ़क्—आयन्] प्रांत नामक ऋषि के गोत्रज। |
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प्रांतिक :
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वि० [सं० प्रांत+ठक्—इक]=प्रांतीय। |
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प्रांतीय :
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वि० [सं० प्रांत+छ—ईय] [भाव० प्रांतीयता] १. प्रांत से संबंध रखनेवाला। प्रांत में होनेवाला। २. प्रांत की सरकार के अधि-क्षेत्र का (अर्थात् जिस पर केन्द्रीय सरकार का अधिकार न हो)। |
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प्रांतीयता :
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स्त्री० [सं० प्रांतीय+तल—टाप्] १. प्रांतीय होने की अवस्था या भाव। २. अपने प्रांतवासियों के प्रति होनेवाली ऐसा मोहजन्य तथा पक्षतापूर्ण भावना जिसके कारण अन्य प्रांतों के वासियों के प्रति उदासीनता या उपेक्षा दिखाई जाती है। (प्राविन्शलिज़्म) |
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